स्वतंत्रता एवं विभाजन की ओर, 1939-1947 Towards Independence And Partition, 1939-1947
द्वितीय विश्व युद्ध की पूर्व संध्या पर कांग्रेस की स्थिति
कांग्रेस युद्ध में ब्रिटेन को सहयोग करेगी यदि-
- युद्धोपरांत भारत की स्वतंत्रता प्रदान कर दी जाये। तथा
- अतिशीघ्र, केंद्र में किसी प्रकार की वास्तविक एवं उत्तरदायी सरकार की स्थापना की जाये।
- 1 सितम्बर, 1939: द्वितीय विश्व युद्ध प्रारंभ तथा ब्रिटेन ने भारत के युद्ध में सम्मिलित होने की घोषणा की।
- 10-14 सितम्बर 1939: वर्धा में कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक में- गांधीजी ने ब्रिटेन को बिना शर्त युद्ध में समर्थन देने की घोषणा की।
- सुभाषचंद्र बोस और समाजवादियों ने तर्क दिया कि स्थिति का लाभ उठाकर उपनिवेशी शासन के विरुद्ध आंदोलन प्रारंभ किया जाये तथा उसे अपदस्थ करने की कोशिश की जाये।
जवाहरलाल नेहरू ने युद्ध के साम्राज्यवादी स्वरूप को स्वीकार किया लेकिन वे युद्धरत ब्रिटेन की परेशानियों से लाभ उठाये जाने के पक्षधर नहीं थे। इसके साथ ही उन्होंने युद्ध में भारत की सहभागिता का भी विरोध किया। कांग्रेस कार्यकारिणी ने पारित प्रस्ताव में कहा-जब तब भारत की आजादी देने का वायदा नहीं किया जाता, भारत युद्ध में ब्रिटेन को सहयोग नहीं देगा; सरकार को शीघ्र ही युद्ध के उद्देश्यों को स्पष्ट करना चाहिए।
लिनलियगो की घोषणा (17 अक्टूबर, 1939)
- ब्रिटेन के युद्ध का उद्देश्य भेदभावपूर्ण अतिक्रमण को रोकना है।
- 1935 के भारत शासन अधिनियम में संशोधन के लिये सरकार शीघ्र ही भारत के राजनीतिक दलों, विभिन्न समुदायों तथा समूहों से विचार-विमर्श करेगी। आवश्यकता पड़ने पर परामर्श लेने के लिये सरकार एक परामर्श समिति का गठन भी करेगी।
कांग्रेस की प्रतिक्रिया
- युद्ध में भारत का समर्थन नहीं।
- प्रांतीय कांग्रेस सरकारों द्वारा त्यागपत्र।
- लेकिन अभी (शीघ्र ही) कोई जन-आंदोलन प्रारंभ नहीं किया जायेगा।
मार्च 1940
- मुस्लिम लीग के लाहौर अधिवेशन में पाकिस्तान प्रस्ताव पारित किया गया।
अगस्त प्रस्ताव (अगस्त 1940)
- भारत के लिये डोमिनियन स्टेट्स मुख्य लक्ष्य।
- युद्ध के पश्चात संविधान सभा गठित की जायेगी, जिसमें मुख्यतः भारतीय होंगे।
- भविष्य की किसी भी योजना के लिये अल्पसंख्यकों की सहमति आवश्यक है।
- कांग्रेस ने अगस्त प्रस्तावों को अस्वीकार कर दिया।
अक्टूबर 1940
- कांग्रेस ने व्यक्तिगत सत्याग्रह प्रारंभ किया।
- लगभग 25 हजार सत्याग्रही जेल भेजे गये।
मार्च 1942
- लगभग सम्पूर्ण दक्षिण-पूर्व एशिया को विजित करते हुये जापानी सेनायें रंगून तक पहुंच गयीं।
क्रिप्स मिशन (मार्च 1942)
इसने प्रस्ताव किया कि-
- डोमिनियन स्टेट्स के साथ भारतीय संघ की स्थापना; इसे राष्ट्रमंडल से पृथक होने का अधिकार होगा।
- युद्ध के पश्चात प्रांतीय विधानसभाओं द्वारा संविधान सभा, के सदस्यों का चुनाव किया जायेगा; यह संविधान सभा, संविधान का प्रारूप तैयार करेगी। यदि कोई प्रांत, संघ में सम्मिलित होना न चाहे तो ब्रिटेन उससे पृथक से समझौता करेगा।
- इस दौरान भारत की सुरक्षा का दायित्व ब्रिटेन के हाथों में होगा। कांग्रेस ने निम्न प्रावधानों पर आपति की।
- डोमिनियन स्टेट्स
- प्रांतों को संघ से पृथकता का अधिकार।
- गवर्नर-जनरल की सर्वोच्चता बनाये रखने का प्रावधान।
मुस्लिम लीग ने निम्न प्रावधानों पर आपति की-
- स्पष्ट रूप से पाकिस्तान के निर्माण की बात का न होना।
- संविधान सभा के गठन की प्रक्रिया।
भारत छोड़ो आंदोलन आन्दोलन क्यों प्रारंभ किया गया?
- क्रिप्स मिशन के प्रस्तावों में भारतीय मांगों को पूरा करने के लिये सरकारी इच्छाशक्ति का अभाव।
- युद्ध के समय उत्पन्न कठिनाइयों से उपजा जन-असंतोष
- ब्रिटेन की अपराजेयता का भ्रम टूटना।
- संभावित जापानी आक्रमण के मद्देनजर, भारतीय नेताओं की जनता को तैयार करने की अभिलाषा।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की बैठक (बंबई-8 अगस्त, 1942)
- बैठक में भारत छोड़ो प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया।
- 9 अगस्त, 1942 सभी प्रमुख कांग्रेसी नेता गिरफ्तार कर लिये गये।
मुख्य गतिविधियां
- जनता विद्रोह एवं प्रदर्शन पर उतारू-मुख्यतः पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार एवं मुख्यतः सरकारी भवनों एवं प्रतीकों पर आक्रमण।
- आंदोलनकारियों को समुचित नेतृत्व प्रदान करने के लिय कुछ नेताओं की भूमिगत गतिविधियां।
- बलिया (उ.प्र.), तामलुक (बंगाल) एवं सतारा (महाराष्ट्र) में समानांतर सरकारों का गठन।
- समाज के विभिन्न वर्ग, जिन्होंने आंदोलन में सक्रियता से भाग लिया
- युवा, महिलाऐं, श्रमिक, किसान, सरकारी सेवक, एवं साम्यवादी।
- फरवरी 1943: गांधी ने आमरण अनशन प्रारंभ किया।
- 23 मार्च, 1943: पाकिस्तान दिवस मनाया गया।
सी. राजगोपालाचारी फार्मूला (मार्च 1944)
- मुस्लिम लीग को तुरंत भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन का समर्थन करना चाहिए तथा अंतरिम सरकार को सहयोग प्रदान करना चाहिये।
- युद्ध के उपरांत मुस्लिम बहुसंख्यक क्षेत्रों को आत्म-निर्धारण का अधिकार प्रदान किया जाये।
- देश के विभाजन की स्थिति में रक्षा, वाणिज्य एवं दूरसंचार इत्यादि मुद्दों का संचालन एक ही केंद्र (Common Center) से किया जाये।
- जिन्ना ने फार्मूले को अस्वीकार कर दिया क्योंकि वे चाहते थे कि कांग्रेस द्वि-राष्ट्र सिद्धांत को स्वीकार कर ले।
देसाई-लियाकत समझौता
- केंद्रीय कार्यकारिणी में कांग्रेस एवं मुस्लिम लीग दोनों का समान प्रतिनिधित्व हो।
- 20 प्रतिशत स्थान अल्पसंख्यकों के लिये आरक्षित किये जायें।
वैवेल योजना (शिमला सम्मेलन-जून 1945)
- अपवादस्वरूप गवर्नर-जनरल एवं कमांडर-इन-चीफ को छोड़कर,
- गवर्नर-जनरल की कार्यकारिणी के सभी सदस्य भारतीय होंगे।
- परिषद में हिन्दू एवं मुसलमानों की संख्या बराबर रखी जायेगी।
- मुस्लिम लीग ने शर्त रखी कि परिषद के सभी मुसलमानों का मनोनयन वह खुद करेगी तथा उसने कार्यकारिणी परिषद में साम्प्रदायिक निषेधाधिकार की मांग की।
- कांग्रेस ने आरोप लगाया कि वैवेल योजना, उसे विशुद्ध सवर्ण हिन्दू दल घोषित करने का प्रयास है।
ब्रिटिश शासन के अंतिम दो वर्ष
दो मुख्य आधार
- स्वतंत्रता एवं विभाजन के संबंध में कुटिल समझौते; सांप्रदायिकता एवं हिंसा से परिपूर्ण।
- तीव्र, उन्मादी जन-प्रतिक्रिया।
- जुलाई 1945: ब्रिटेन में श्रमिक दल का सत्ता में आना।
- अगस्त 1945: केंद्रीय एवं प्रांतीय विधानसभाओं के लिये चुनावों की घोषणा।
- सितम्बर 1945: युद्ध के उपरांत संविधान सभा गठित करने की घोषणा।
सरकारी रूख में परिवर्तन; इसका कारण था-
- वैश्विक शक्ति समीकरण में परिवर्तन, ब्रिटेन अब विश्व की नंबर एक शक्ति नहीं रहा।
- श्रमिक दल का भारत से सहानुभूति प्रदर्शन।
- ब्रिटिश सैनिकों का पस्त होना एवं ब्रिटिश अर्थव्यवस्था में पराभव।
- सम्पूर्ण एशिया में साम्राज्यवाद विरोधी लहर।
- ब्रिटिश नौकरशाही, कांग्रेस द्वारा पुनः नया आंदोलन करने की संभावना से भयाक्रांत।
कांग्रेस के लिये दो मुख्य चुनावी मुद्दे
- 1942 का सरकारी दमन।
- आजाद हिंद फौज के युद्धबंदियों के लिये जनता का दबाव।
आजाद हिंद फौज के संबंध में जन-प्रदर्शनः मुख्य बिंदु
- अप्रत्याशित उत्साह एवं सशक्त भागेदारी।
- अप्रत्याशित भौगोलिक एवं सामाजिक प्रसार।
- सरकार के परम्परागत भक्त-सरकारी सेवक एवं निष्ठावान समूह भी आंदोलन के प्रभाव से अछूते नहीं रहे।
- दिनोंदिन यह मुद्दा भारत बनाम ब्रिटेन बनता गया।
तीन प्रमुख विद्रोह,
- 21 नवंबर, 1945 को कलकत्ता में, आजाद हिंद फौज के सैनिकों पर मुकद्दमा चलाये जाने को लेकर।
- 11 फरवरी 1946 को पुनः कलकत्ता में, आजाद हिंद फौज के एक अधिकारी को सात वर्ष का कारावास दिये जाने के विरोध में।
- 18 फरवरी, 1946 को बंबई में; भारतीय शाही सेना के नाविकों की हड़ताल के संबंध में।
कांग्रेस ने विद्रोह की रणनीति एवं समय की अनुपयुक्त मानते हुए, इनका समर्थन नहीं किया।
चुनाव परिणाम
- कांग्रेस ने केंद्रीय व्यवस्थापिका की 102 सीटों मे से 57 सीटों पर विजय प्राप्त की। उसे मद्रास, बंबई, संयुक्त प्रांत, बिहार, मध्य प्रांत एवं उड़ीसा में पूर्ण बहुमत मिला, पंजाब में उसने यूनियनवादियों एवं अकालियों के साथ मिलकर गठबंधन सरकार बनायी।
- मुस्लिम लीग ने केंद्रीय व्यवस्थापिका के 30 आरक्षित स्थानों पर विजय प्राप्त की- सिंध एवं बंगाल में उसे पूर्ण बहुमत मिला।
1946 के अंत तक अंग्रेजों की वापसी क्यों सुनिश्चित लगने लगी?
- राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन में भारतीय राष्ट्रवादियों की उत्तरोत्तर सफलता।
- नौकरशाही एवं अंग्रेज राजभक्तों के मनोबल में ह्रास।
- आजाद हिंद फौज के युद्धबंदियों के प्रति सैनिकों का समर्थन तथा भारतीय शाही सेना के नाविकों का विद्रोह।
- समझौते एवं दमन की ब्रिटिश नीति का सीमाकरण।
- आंतरिक सरकारी शासन का असंभव हो जाना।
अब सरकारी नीति का मुख्य उद्देश्य
भारतीयों को सत्ता हस्तांतरित करके सम्मानजनक वापसी तथा साम्राज्यवादी शासन के पश्चात भारत-ब्रिटेन संबंधों को मधुर बनाये रखने की योजना।
कैबिनेट मिशन
प्रावधान
- पाकिस्तान का प्रस्ताव अस्वीकृत।
- मौजूदा विधानसभाओं का तीन समूहों-क, ख एवं ग में समूहीकरण।
- संघ, प्रांतों एवं देसी रियासतों में तीन-स्तरीय कार्यपालिका एवं व्यवस्थापिका।
- प्रांतीय विधानसभायें, संविधान सभा के सदस्यों का चयन करेंगी।
- रक्षा, विदेशी मामले एवं संचार के लिये एक सामान्य केंद्र (Common Center) की व्यवस्था।
- प्रांतों को स्वायत्तता तथा अवशिष्ट शक्तियां।
- देशी रियासतें, उत्तराधिकारी सरकार या ब्रिटिश सरकार से समझौता करने हेतु स्वतन्त्र।
- भविष्य में प्रांतों को समूह या संघ में सम्मिलित होने की छूट।
इस बीच संविधान सभा द्वारा एक अंतरिम सरकार का गठन किया जायेगा।
- व्याख्याः कांग्रेस ने तर्क दिया कि समूहीकरण वैकल्पिक था, जबकि लीग ने सोचा कि समूहीकरण अनिवार्य है। मिशन ने लीग के मसले को समर्थन देने का निश्चय किया।
- स्वीकार्यताः जून 1946 में लीग तथा कांग्रेस दोनों ने कैबिनेट मिशन योजना को स्वीकार कर लिया।
- आगे का विकासः जुलाई 1946: नेहरू के प्रेस वक्तव्य के पश्चात मुस्लिम लीग ने योजना से अपना समर्थन वापस ले लिया तथा 16 अगस्त, 1946 को ‘प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस‘ मनाने की घोषणा की।
- सितम्बर, 1946: जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में अंतरिम सरकार ने शपथ ली।
- अक्टूबर, 1946: मुस्लिम लीग, अंतरिम सरकार में सम्मिलित लेकिन उसने अड़ियलवादी रवैया अपनाया।
- फरवरी 1947: कांग्रेस के सदस्यों ने मुस्लिम लीग के सदस्यों को अंतरिम सरकार से निष्कासित करने की मांग की, लीग ने संविधान सभा को भंग करने की मांग उठायी।
एटली की घोषणा (20 फरवरी, 1947)
30 जून, 1948 की अवधि तक सत्ता-हस्तांतरण कर दिया जायेगा, सत्ता हस्तांतरण या तो एक सामान्य केंद्र (Common Center) या कुछ क्षेत्रों में प्रांतीय सरकारों को किया जा सकता है।
माउंटबैटन योजना (3 जून, 1947)
- पंजाब एवं बंगाल विधान सभायें विभाजन का निर्णय स्वयं करेंगी; सिंध भी अपना निर्णय स्वयं करेगा।
- उ.-प्र. सीमांत प्रांत तथा असम के सिलहट जिले में जनमत संग्रह कराया जायेगा यदि विभाजन हुआ दो डोमिनयन बनाये जायेंगे, दोनों की अलग-अलग संविधान सभायें होंगी।
- 15 अगस्त, 1947 को भारत की स्वतंत्रता दे दी गयी।
- 18 जुलाई, 1947 ब्रिटिश संसद ने “भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947″ पारित किया; 15 अगस्त, 1947 से इसे क्रियान्वित किया गया।
शक्तियां तथा कारक, जिन्होंने अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर विवश किया
- ऐतिहासिक उद्देश्य का सिद्धांत।
- साम्राज्यवाद का पतन।
- दो महान शक्तियों का उदय।
- इंग्लैंड में श्रमिक दल का उदय।
- भारतीय राष्ट्रवाद को रोकने में अंग्रेजों की विफलता।
- विस्फोटक परिस्थितियां तथा कानून व्यवस्था की स्थिति।
- भारतीय नौसेना का विद्रोह।
- वामपंथ का उभरना।
- द्वि-विकल्प सिद्धांत।
- राष्ट्रमंडल का विकल्प।
1857 के पश्चात स्थिति में परिवर्तन
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केंद्र में परिवर्तन
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प्रांतीय प्रशासन में परिवर्तन
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स्थानीय स्वायत्त संस्थाओं में परिवर्तन
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सेना में परिवर्तन
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लोक सेवायें
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प्रशासनिक नीतियां
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विदेश नीति
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