सर्वोच्च न्यायालय ने किशोर न्याय अधिनियम के तहत् किशोरावस्था की उम्र 18 वर्ष ही रखी The Supreme Court, keeps 18 years of age teens under the Juvenile Justice Act
सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति अल्तमस कबीर की अध्यक्षता वाली पीठ ने उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें किशोर न्याय अधिनियम के तहत् नाबालिगों की उम्र 18 वर्ष से घटाकर 16 वर्ष करने और जघन्य अपराधों में संलिप्त नाबालिगों के साथ रियायत न बरतने की अपील की थी। इस पीठ के अन्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति सुरेन्द्र सिंह निज्जर और न्यायाधीश न्यायमूर्ति जस्ती चेल्मेश्वर हैं। पीठ ने यह निर्णय 17 जुलाई, 2013 को दिया।
पीठ ने यह भी कहा कि किशोर न्याय अधिनियम 2000 में किशोरावस्था 16 वर्ष से बढ़ाकर 18 वर्ष की गई थी। अब इसे दोबारा 16 वर्ष करने का कोई ठोस कारण नहीं है। इस कानून में न्यायालय की दखल देने की कोई जरूरत नहीं है।
सर्वोच्च न्यायालय की इस पीठ ने बलात्कार तथा अन्य जघन्य अपराधों में किशोरों की लगातार बढ़ती तादाद की दलील को सिरे से खारिज कर दिया। उसने कहा कि इस तरह का कोई आकड़ा या डाटा पेश नहीं किया गया है कि जिससे पता चले कि 16 से 18 वर्ष की उम्र के किशोर जघन्य अपराधों में बड़ी तादाद में शामिल हैं। निर्णय में यह भी कहा गया है कि आईपीसी और किशोर न्याय अधिनियम में किशोर की अवस्था को लेकर भिन्नता है। आईपीसी में 12 साल की उम्र के बच्चे को उसके कृत्य के लिए उत्तरदायी माना गया है। 12 साल की उम्र में वह अपने किए का परिणाम समझता है।
बेंच ने कहा कि भिन्नता के बावजूद किशोरन्याय अधिनियम एक विशेष कानून है। इसे संसद ने वर्ष 2000 में गहन सोच-विचार के बाद पारित किया था। संसद द्वारा कानून बनाने के सात साल बाद 2007 में नियमावली तय की गई। उसके बाद ही यह अमल में आया। इसमें बदलाव की आवश्यकता नहीं है।
विदित हो कि दिल्ली में 16 दिसंबर, 2012 की रात 23 वर्षीय मौत ने समाज के हर वर्ग को प्रभावित किया था। आरोपियों में एक की उम्र 18 वर्ष से कम थी। जिसने पीड़िता के साथ सबसे ज्यादा क्रूरता की थी। इस घटना के बाद यह मांग बहुत जोर से उठी थी कि संगीन अपराधों में नाबालिग माने जाने की उम्र सीमा को 18 से घटाकर 16 वर्ष कर दिया जाए।