सर्वोच्च न्यायालय ने राजीव गांधी हत्या के दोषियों की फांसी की सजा बदली The Supreme Court changed the death sentence of convicts in the Rajiv Gandhi assassination
सर्वोच्च न्यायालय ने 18 फरवरी, 2014 को राजीव गांधी हत्याकांड के तीन दीषियों की फांसी की सजा उम्रकैद में बदल दी । दया याचिका में हुई 11 साल की देरी को दोषियों की सजा माफ करने का आधार बनाया गया। न्यायालय ने इसे अत्यधिक विलंब माना। मुख्य न्यायाधीश पी. सदाशिवम, रंजन गोगोई और शिवकीर्ति सिंह की तीन सदस्यीय पीठ ने यह निर्णय दिया। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि, दोषियों के राष्ट्रपति को लिखे पत्रों में मानसिक वेदना साफ झलकती है। उन्होंने लिखा कि वे चलती-फिरती लाशें हैं। हालांकि केंद्र का तर्क था कि दोषियों की दया याचिकाओं के निपटारे में अनुचित विलंब नहीं हुआ है। उन्हें मानसिक वेदना से नहीं गुजरना पड़ा।
न्यायालय ने 21 जनवरी को फैसला दिया था, जिसमें कहा था कि दया याचिकाओं के निपटारे में विलंब मौत की सजा की उम्रकैद में तब्दील करने का आधार हो सकता है। यदि कैदी मानसिक रूप से बीमार है तो उसे फांसी नहीं हो सकती। इसके साथ पीठ ने 15 कैदियों की सजा उम्र कैद में बदल दी थी।
सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि उम्रकैद का अर्थ ताउम्र कैद होगी। बावजूद इसके सरकार चाहे तो उनकी सजा माफ कर सकती है। लेकिन इस दौरान संतुलन के नियमों को ध्यान में रखा जाए।
सर्वोच्च न्यायालय ने सिफारिश की कि दया याचिका निपटाने के लिए राष्ट्रपति को मुनासिब सलाह दें। सरकार व्यवस्थित तरीकों से दया याचिकाओं को निपटाए। कोर्ट ने कहा कि फांसी में देरी के मुद्दे को भी एक मापदंड बना देना चाहिए।
उल्लेखनीय है कि भारत में हर फांसी की सजा की पुष्टि उच्च न्यायालय द्वारा किया जाना जरूरी होता है। यदि मामला उच्चतम न्यायालय में दायर किया जाता है और वहां भी फांसी की सजा की पुष्टि होती है तो उच्चतम न्यायालय में ही एक पुनरीक्षण याचिका दायर की जा सकती है। यदि पुनरीक्षण याचिका में भी सजा बहाल रखी जाती है तो उच्चतम न्यायालय में क्यूरेटिव पेटिशन डाली जा सकती है। जब यहाँ भी सजा बहल रहती है, तब मुजरिम के पास राज्यपाल अथवा राष्ट्रपति के पास दया याचिका लगाने का विकल्प होता है।