दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ The Association of Southeast Asian Nations – ASEAN
आसियान दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों द्वारा गठित एक क्षेत्रीय अन्तरसरकारी संगठन है, जिसका गठन दक्षिण-पूर्व एशिया में आर्थिक विकास तेज करने, सामाजिक और सांस्कृतिक विकास सुनिश्चित करने तथा शांति और सुरक्षा को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से किया गया है।
मुख्यालय: जकार्ता (इण्डोनेशिया)
सदस्यता: ब्रूनेई, कम्बोडिया, इण्डोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलीपीन्स, सिंगापुर, थाईलैण्ड और वियतनाम।
संवाद सहयोगी: आस्ट्रेलिया, कनाडा, चीन, यूरोपीय संघ, भारत, जापान, कोरिया गणतंत्र, न्यूजीलैंड, रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका।
आधिकारिक भाषा: अंग्रेजी
उत्पति एवं विकास
1967 में बैंकॉक (थाईलैण्ड) में आसियान घोषणा पर इण्डोनेशिया, मलेशिया, फिलीपीन्स, सिंगापुर और थाईलैण्ड द्वारा हस्ताक्षर के साथ ही दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ (आसियान) का उद्भव हुआ। आसियान की स्थापना के पीछे दक्षिण-पूर्व एशिया के गैर-साम्यवादी देशों में क्षेत्रीय सहयोग स्थापित करने के लिए एक ढांचा स्थापित करने का उद्देश्य था। इसने दक्षिण-पूर्व एशियाई संघ (एएएसए) का स्थान ले लिया, जिसकी स्थापना 1961 में फिलीपीन्स, थाईलैण्ड और मलय महासंघ (अब मलेशिया) ने आर्थिक राजनीतिक विषयों से निपटने के लिए की थी। ब्रूनेई, वियतनाम, लाओस, म्यांमार तथा कम्बोडिया ने क्रमशः 1984, 1995, 1997, 1997 और 1999 में आसियान की सदस्यता ग्रहण की।
उद्देश्य
आसियान के लक्ष्य हैं-
- आसियान क्षेत्र में आर्थिक वृद्धि, सामाजिक उन्नति और सांस्कृतिक विकास की गति को त्वरित करना;
- आर्थिक, सामाजिर्क, सांस्कृतिक, तकनीकी, वैज्ञानिक और प्रशासनिक क्षेत्रों से जुड़े सामूहिक हित के विषयों में सक्रिय सहयोग और पारस्परिक सहायता को प्रोत्साहन देना, तथा;
- सदस्य देशों द्वारा कृषि और उद्योग के अधिक उपयोग, व्यापार में विस्तार (अंतरराष्ट्रीय वस्तु व्यापार की समस्याओं के अध्ययन सहित), परिवहन और संचार सुविधाओं में सुधार तथा लोगों के जीवन स्तर में वृद्धि लाने के लिये अधिक प्रभावशाली सहयोग प्रदान करना।
संरचना
आसियान की संगठनात्मक संरचना के अंतर्गत ये पांच घटक आते हैं-
- शासन प्रमुखों की बैठक;
- आसियान मंत्रिस्तरीय बैठक (एएमएम);
- आसियान आर्थिक बैठक (एईएम),
- आसियान स्थायी समिति, तथा;
- सचिवालय।
सदस्य देशों के शासनाध्यक्षों के मध्य प्रत्येक तीन वर्षों के अंतराल पर होने वाला शिखर सम्मेलन आसियान की सबसे शक्तिशाली संरचना है। त्रि-वर्षीय सम्मेलन के अतिरिक्त, शासनाध्यक्षों के बीच प्रत्येक वर्ष अनौपचारिक बैठकें भी होती हैं। एएमएम, जो कि सदस्य देशों के विदेश मंत्रियों से बना होता है, आसियान का सर्वोच्च नीति-निर्धारक निकाय है तथा क्षेत्रीय समन्वय और सहयोग के विकास के लिये दिशा-निर्देशों का निर्धारण करता है। बैठक का आयोजन प्रतिवर्ष सदस्य देशों में घूर्णन पद्धति से और वर्णमाला क्रम में होता है।
वार्षिक बैठक, उत्तर-मंत्रिस्तरीय सम्मेलन (post-ministerial conference) के पश्चात होती है। उत्तर मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में आसियान के विदेश मंत्री संवाद सहयोगी सदस्य देशों के विदेश मंत्रियों से मिलते हैं। एईएम, जिसके सदस्य आसियान के आर्थिक मंत्री होते हैं, का आयोजन प्रत्येक वर्ष औपचारिक या अनौपचारिक रूप से होता है। इस बैठक में आसियान देशों में आर्थिक सहयोग पर चर्चा होती है। एएमएम तथा एईएम अपनी रिपोर्ट संयुक्त रूप से शासनाध्यक्षों के सम्मेलन में प्रस्तुत करते हैं।
एएससी, जिसके सदस्य मंत्रिस्तरीय बैठक के मेजबान देश के विदेश मंत्री और अन्य 9 देशों के राजदूत होते हैं, आसियान मंत्रिस्तरीय बैठकों का कार्य-संचालन करती है। यह विशिष्ट उद्देश्यों की पूर्ति के लिये गठित क्षेत्रीय समितियों के कार्यों की समीक्षा करती है। इस समीक्षा का उद्देश्य मंत्रिस्तरीय बैठकों में निर्धारित दिशा-निर्देशों का क्रियान्वयन सुनिश्चित करना होता है।
प्रत्येक सदस्य देश की राजधानी में एक राष्ट्रीय सचिवालय होता है। केन्द्रीय सचिवालय जकार्ता में अवस्थित है। महासचिव इसका प्रधान अधिकारी होता है। सदस्य देश बारी-बारी से तीन वर्षों के लिये इस पद के दावेदार होते हैं।
इन प्रमुख अंगों के अतिरिक्त, आसियान के अंतर्गत कई समितियां, उपसमितियां और अस्थायी समूह गठित किये गये हैं।
गतिविधियां
आसियान के प्रमुख कार्यक्रम हैं- आर्थिक सहयोग; आसियान देशों तथा विश्व के शेष देशों के मध्य व्यापार को प्रोत्साहन; सदस्य देशों के मध्य संयुक्त अनुसंधान और तकनीकी सहयोग; पर्यटन और दक्षिण-पूर्व एशियाई अध्ययनों का विकास, और;सांस्कृतिक, वैज्ञानिक, शैक्षणिक एवं प्रशासनिक आदान-प्रदान।
अपनी स्थापना के आरम्भिक वर्षों में आसियान एक लचीला और हल्का संगठन था। 1970 के दशक के मध्य में आसियान को नई राजनीतिक और राजनयिक शक्ति तब मिली जब वियतनाम युद्ध के पश्चात् दक्षिण-पूर्व एशिया में शक्ति-संतुलन में परिवर्तन आया। 1970 के दशक में सदस्य देशों में महत्वपूर्ण आर्थिक प्रगति हुई। इससे भी आसियान संगठन को बल मिला। दक्षिण-पूर्व और पूर्व-एशियाई उप-क्षेत्र (जहां चीन और जापान का वर्चस्व था) में सत्ता-संतुलन बनाये रखने के लिये आसियान ने क्षेत्रीय कूटनीति में पूरे प्रशान्त क्षेत्र तथा अन्य बाह्य शक्तियों (जैसे-यूरोपीय संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका) को सम्मिलित कर लिया।
आसियान का पहला सम्मेलन 1976 में बाली (इण्डोनेशिया) में हुआ। इस सम्मेलन में कई औद्योगिक परियोजनाओं के संबंध में समझौते हुये। इसके अतिरिक्त, दो महत्वपूर्ण दस्तावेजों-मैत्री और सहयोग संधि तथा मैत्री घोषणा-पर भी हस्ताक्षर किये गये। मैत्री एवं सहयोग संधि ने सभी देशों की संप्रभुता और स्वतंत्रता के लिये परस्पर आदर, सदस्य देशों के आंतरिक मामलों में अहस्तक्षेप, विवादों के शांतिपूर्ण हल तथा प्रभावशाली सहयोग के सिद्धान्तों को स्वीकृति प्रदान की। 1987 में इस संधि में संशोधन किया गया, जिसके अनुसार दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र के अन्दर और बाहर अवस्थित अन्य देशों के आसियान में प्रवेश को स्वीकृति दी गई। मैत्री घोषणा सदस्य देशों के मध्य आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संबंधों का आधार बनी तथा इसने सदस्य देशों को दक्षिण-पूर्व एशिया में शांति, स्वतंत्रता और तटस्थता क्षेत्र (Zone of Peace, Freedom and Neutrality-ZOPEAN) स्थापित करने के लिये सहमत किया (1971 में कवालालाम्पुर में जोपफान घोषणा पर हस्ताक्षर किए गए)।
1977 में अधिमान्य व्यापार व्यवस्था (पीटीए) पर मौलिक समझौता सम्पन्न हुआ। इसके अंतर्गत विविध प्रकार की वस्तुओं पर शुल्क में क्रमशः कटौती करने पर विचार किया गया। फिर भी, आसियान के अन्दर होने वाले व्यापार में अधिमान्य श्रेणी की वस्तुओं का हिस्सा बहुत ही कम था। अतः 1987 में राष्ट्रीय और क्षेत्रीय आर्थिक विकास के लिए नई प्राथमिकताओं का निर्धारण किया गया।
शीत युद्ध की समाप्ति के बाद आसियान देश अपने क्षेत्र के राजनीतिक विषयों पर अधिक नियंत्रण रखने की स्थिति में आ गये। जैसे-जैसे वे अपनी नई नीतियों का क्रियान्वयन करने लगे, उन्होंने पाया कि उनकी आर्थिक परिस्थितियों और प्रभावों में वृद्धि हो रही है। 1990 के दशक के प्रारम्भ होने तक क्षेत्रीय व्यापार और सुरक्षा विषयों पर आसियान एक प्रभावशाली शक्ति बनकर उभर चुका था। 1998 में सदस्य देशों का संयुक्त सकल घरेलू उत्पाद अनुमानतः 5,00,000 मिलियन अमेरिकी डॉलर था।
1992 में सिंगापुर में आयोजित चतुर्थ आसियान सम्मेलन में आसियान मुक्त व्यापार क्षेत्र (एएफटीए) स्थापित करने का निर्णय लिया गया। एएफटीए की स्थापना के पीछे प्रमुख उद्देश्य अगले 15 वर्षों में एक सामूहिक बाजार की स्थापना करना था। एएफटीए (आफ्टा) की स्थापना की दिशा में पहला कदम जनवरी 1993 में उठाया गया, जब एक सामूहिक प्रभावकारी अधिमान्य शुल्क (सीईपीटी) योजना लागू हुई। इस योजना में उत्पादित और संसाधित कृषि उत्पादों के लिए एक सामूहिक शुल्क व्यवस्था पर विचार किया गया। इसके बाद आयोजित आर्थिक और व्यापार मंत्रियों की बैठकों ने शुल्क कटौती प्रक्रिया के अधीन आने वाली वस्तुओं की संख्या बढ़ा दी है तथा आफ्टा के क्रियान्वयन को तेज कर दिया है। दृष्टि 2020 को साकार करने की दिशा में पहला व्यावहारिक कदम था- 1998 के हनोई शिखर सम्मेलन में 1994-2004 की अवधि के लिये हनोई योजना को स्वीकृति। दृष्टि 2004 का लक्ष्य है- आसियान को राजनीतिक स्थिरता और आर्थिक वैभव से ओत-प्रोत देशों की गोष्ठी (Concert of Nations) तथा देख-रेख करने वाले देशों के समुदाय (community of caring societies) के रूप में नाइ पहचान देना।
1992 में आयोजित सिंगापुर शिखर सम्मेलन में यह निर्णय लिया गया कि आसियान विदेश मंत्री आगामी बैठकों में सुरक्षा विषयों पर चर्चा कर सकते हैं। 1995 के बैंकॉक शिखर सम्मेलन में एक संधि पर हस्ताक्षर किए गए, जिसके अंतर्गत दक्षिण-पूर्व एशियाई परमाणु मुक्त क्षेत्र (एसईएनएफजेड) की स्थापना हुई। यह संधि, जो मार्च 1997 में लागू हुई, हस्ताक्षरकर्ता देशों को कुछ कदम उठाने की अनुमति नहीं देती-
- नाभिकीय अस्त्रों के विकास, निर्माण या अन्य तरीकों से प्राप्ति, कब्जा या उन पर नियंत्रण;
- दक्षिण-पूर्व एशिया के नाभिकीय अस्त्रों की तैनाती और आवागमन, तथा;
- परमाणु अस्त्रों का उपयोग या परीक्षण।
प्रोटोकॉल के विपरीत, संधि के प्रमुख हस्ताक्षरकर्ता देशों ने सम्पूर्ण भू-राजनीतिक दक्षिण-पूर्व एशिया को सम्मिलित करने वाले निर्दिष्ट क्षेत्र के अन्दर या बाहर ऐसी गतिविधियों से अलग रहने का निर्णय किया। संधि के हस्ताक्षरकर्ता अन्य देशों को इस क्षेत्र की मर्यादा का उल्लंघन करने की आज्ञा नहीं दे सकते। इसी बात को ध्यान में रखे हुये प्रोटोकॉल, जिस पर आसियान देशों ने 1995 में सहमति दी, तत्कालीन परमाणु शक्तियों से इस क्षेत्र की मर्यादा को बनाये रखने की अपील करता है। संधि (जो परमाणु अस्त्र देशों द्वारा हस्ताक्षर के लिये खुली है) का प्रोटोकॉल परमाणु अस्त्र सम्पन्न देशों से संधि के उद्देश्यों का आदर करने की अपील करता है तथा उनके द्वारा एसईएएनएफजेड संधि के हस्ताक्षरकता देशों के विरुद्ध नाभिकीय अस्त्रों का उपयोग करने या उपयोग का भय दिखाने पर रोक लगाता है।
सुरक्षा की दृष्टि से दूसरा महत्वपूर्ण कदम 1993 में उठाया गया जब क्षेत्र के सुरक्षा विषयों पर विचार करने के लिये सदस्य देश के विदेश मंत्रियों ने आसियान क्षेत्रीय मंच (एआरएफ) स्थपित करने का निर्णय लिया। एआरएफ की पहली औपचारिक बैठक 1994 में हुई। इस बैठक में आसियान के तत्कालीन 7 स्थायी सदस्यों के अतिरिक्त इसके संवाद सहयोगी (आस्ट्रेलिया, कनाडा, यूरोपीय संघ, जापान, कोरिया गणतंत्र, न्यूजीलैण्ड और संयुक्त राज्य अमेरिका) तथा पर्यवेक्षक सदस्यों (चीन, लाओस, पापुआ न्यु गिनी, रूस और वियतनाम) ने भाग लिया। इसमें जिन मुद्दों पर विचार किया गया, उनमें प्रमुख थे-क्षेत्रीय शांति की स्थापना, नाभिकीय अप्रसार, विश्वासोत्पादक उपाय (confidence-building measures) और दक्षिण चीन समुद्र में अवस्थित स्पार्टली समूह पर कई देशों के विवादास्पद दावे।
1995 में ब्रूनेई में आयोजित एआरएफ की बैठक में एआरएफ वरिष्ठ अधिकारी बैठक (एआरएफ-एसओएम) को संस्थागत रूप दिया गया तथा एआरएफ को प्रोत्साहित करने, निवारक कूटनीति, विश्वासोत्पादक उपायों को विकसित करने और विवादों को सुलझाने के लिये व्यापक दृष्टिकोण अपनाने का निर्णय लिया गया। जुलाई 2000 में बैंकॉक (थाइलैण्ड) में एआरएफ की सातवीं बैठक हुई जिसमें 27 सदस्यों ने भाग लिया- 10 आसियान सदस्य, भारत, जापान, संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, चीन, यूरोपीय संघ, आस्ट्रेलिया, कनाडा, दक्षिण कोरिया, न्यूजीलैण्ड, पापुआ न्यु गिनी, मंगोलिया और उत्तरी कोरिया।
ब्रुनेई, कम्बोडिया, चीन, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलिपीन्स, सिंगापूर, थाईलैंड और वियतनाम के मंत्री और प्रतिनिधि आसियान मेकांग नदी घाटी विकास सहयोग (मेकांग समूह) के सदस्य हैं। इस समूह के उद्देश्य हैं- मेकांग नदी घाटी क्षेत्र को नियमित करना तथा संवाद एवं सामूहिक परियोजना पहचान के माध्यम से आसियान मेकांग समूह के बंधन को मजबूत करना।
पिछले वर्षों में, आसियान एशिया-प्रशान्त क्षेत्र में सबसे व्यवहार्य क्षेत्रीय संगठन बनकर उभरा है, यद्यपि इस क्षेत्र में बार-बार उत्पन्न हो रहे राजनीतिक और आर्थिक संकटों ने संगठन की आन्तरिक संसक्ति को गहरा आघात पहुंचाया है। संगठन के कई सदस्यों की अपनी विशिष्ट राजनीतिक विवशताएं होती हैं। कभी-कभी तो एक-दूसरे के आन्तरिक मामलों से निपटने के उनके विचार विषम होते हैं। इन परिस्थितियों में किसी आम राय पर पहुंचना कठिन हो जाता है। 1990 के दशक के अंत में उत्पन्न दक्षिण-पूर्व एशियाई आर्थिक संकट ने भी इस संगठन की गहरा आघात पहुंचाया। फिर भी, यह अपने-आपको पुनर्जीवित करने में सक्षम हो गया। इस संबंध में यूरोपीय संघ-आसियान सहयोग तथा आसियान का अपने संवाद सहयोगियों से उल्लेखनीय संबंध हैं।
भारत द्वारा आसियान देशों के साथ मुख्य रूप से आर्थिक व व्यापारिक संबंधों को मजबूत बनाने का प्रयास किया गया। यद्यपि इस क्षेत्र में अभी भी सुरक्षा का कोई नया ढांचा विकसित नहीं हो सका है, लेकिन सुरक्षा सम्बन्धी कुछ चिंताओं जैसे- समुद्री डकैती, समुद्री व्यापार व् संचार मार्गों की सुरक्षा, प्राकृतिक आपदा तथा अवैध व्यापार इत्यादि पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। इन मुद्दों पर भारत तथा पूर्वी एशिया के देशों के साथ सहयोग की प्रक्रिया भी शुरू की गई है।
भारत की पूरब की ओर देखो नीति का सबसे उल्लेखनीय तत्व भारत तथा आसियान के बीच घनिष्ठ आर्थिक व सांस्कृतिक संबंधों का विकास है। पूरब की ओर देखी की नीति के क्रियान्वयन के संबंध में सबसे पहली शुरुआत 1992 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव की दक्षिण-पूर्व एशिया की ऐतिहासिक यात्रा से हुई। इसके परिणामस्वरूप आसियान द्वारा 1992 में ही भारत को वार्ता साझीदार का दर्जा प्रदान किया गया। 1995 में भारत की आसियान के साथ पूर्ण-वार्ताकार देश का दर्जा प्राप्त हुआ। 1998 में भारत द्वारा किए गए द्वितीय परीक्षण के परिणामस्वरूप भारत और आसियान के बढ़ते संबंधों में कुछ रुकावट आई, क्योंकि अमेरिका ने भारत के विरुद्ध कुछ आर्थिक प्रतिबंध लागू कर दिए थे। इन प्रतिबंधों को वर्ष 2001 में वापिस लिया गया।
वर्ष 2002 में भारत और आसियान के बीच नियमित आधार पर वार्षिक शिखर सम्मेलनों की व्यवस्था स्थापित की गई। ये शिखर सम्मेलन उसी समय तथा उसी स्थान पर होते हैं, जहां पर आसियान के शिखर सम्मेलन आयोजित किए जाते हैं। 2002 से लेकर अब तक निरन्तर भारत और आसियान के मध्य वार्षिक शिखर सम्मेलन होते आए हैं। 2012 में भारत और आसियान के संबंधों की स्थापना की 20वीं वर्षगांठ पर नई दिल्ली में एक विशेष शिखर सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस प्रकार वर्ष 2012 के बाद भारत और आसियान के बीच सामरिक संबंधों की प्रक्रिया आरम्भ हुई। वर्तमान में दोनों के मध्य आर्थिक, व्यापारिक, सांस्कृतिक, तथा सुरक्षा संबंधी मामलों में सहयोग की प्रक्रिया तेजी से आगे बढ़ रही है।
भारत और आसियान के संबंधों में सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि 2010 में लागू भारत-आसियान मुक्त व्यापार समझौता है। इस समझौते पर 2009 में हस्ताक्षर किए गए थे, लेकिन यह 1 जनवरी 2010 से लागू हुआ। इस समझौते के अंतर्गत दोनों पक्षों द्वारा कुल 4000 वस्तुओं पर सीमा शुल्क की दरों को न्यूनतम स्तर पर ले जाने का फैसला किया गया है। इनमें से मार्च 2014 तक 3200 वस्तुओं पर सीमा शुल्क को न्यूनतम कर दिया गया है तथा शेष 800 वस्तुओं पर 2016 के अंत तक सीमा शुल्क को न्यूनतम कर दिया जाएगा। वस्तुओं के व्यापार में इन 4,000 वस्तुओं का हिस्सा 80 प्रतिशत है। इस समझौते के तहत् भारत द्वारा अपनी नकारात्मक वस्तुओं की संख्या को घटाकर 560 कर दिया है। नकारात्मक वस्तुओं की सूची में वे वस्तुएं शामिल होती हैं जिन पर कोई देश अपने हितों के कारण सीमा शुल्क में छूट नहीं देना चाहता है।
वर्ष 2012 तक आसियान देशों की संयुक्त जीडीपी 2.3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक थी। यदि आसियान एक देश होता तो यह विश्व की आठवीं बड़ी अर्थव्यवस्था होती।
27 फरवरी, 2009 को आसियान समूह के 10 देशों और आस्ट्रेलिया तथा न्यूजीलैंड के साथ एक मुक्त व्यापार समझौता किया गया। यह आकलित किया गया कि यह एफटीए 12 देशों की जीडीपी में 2000-2020 की समयावधि में 48 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक की कुल वृद्धि करेगा।
आसियान के अभी तक (अक्टूबर 2013 तक) 23 शिखर सम्मेलन हो चुके हैं। आसियान क्षेत्रीय मंच (एआरएफ) की स्थापना 1994 में आसियान व्यवस्था के अंतर्गत की गई थी। आसियान क्षेत्रीय मंच आसियान का सुरक्षा संबंधी मामलों पर विचार-विमर्श का मंच है। इसमें वर्तमान में 27 देश शामिल हैं। फिलहाल इस मंच का मुख्य सरोकार एशिया प्रशांत क्षेत्र में समुद्री मार्गों की सुरक्षा को सुनिश्चित करना है।
आसियान व्यवस्था का तीसरा संगठन पूर्वी एशिया शिखर सम्मलेन है जिसकी स्थापना वर्ष 2005 में की गयी थी। भारत इसका संस्थापक देश है। इसका प्रमुख उद्देश्य पूर्वी एशिया में यूरोपियन संघ की तर्ज पर क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देने का प्रयास करना है। अतः यह इस क्षेत्र के देशों के मध्य राजनीतिक, आर्थिक व सांस्कृतिक सहयोग व एकीकरण पर बल देता है। भारत में पुराने नालंदा विश्वविद्यालय की पुनर्स्थापना का निर्णय इसी संगठन द्वारा लिया गया है। इसके वार्षिक सम्मेलन भी आसियान वार्षिक सम्मेलनों के साथ ही संपन्न होते हैं।
वर्ष 2007 से, आसियान देश निरंतर आपस में अपने आयात शुल्क को निम्न कर रहे हैं और वर्ष 2015 तक अधिकतर आयात शुल्कों को शून्य करने का लक्ष्य रखा गया है। वर्ष 2011 से आसियान आर्थिक समुदाय आसियान क्षेत्र में लघु एवं मध्यम उद्यमों (एसएमई) की स्थिति मजबूत करने एवं प्रतिस्पर्द्धात्मिक-प्रवृत्ति बढ़ाने पर सहमत हुआ है। दक्षिण पूर्वी एशिया देशों के समूह आसियान के साथ भारत की संवाद भागीदारी के 20 वर्ष तथा इस समूह के साथ भारत के शिखर वार्ता स्तरीय संबंधों के 10 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में आसियान-भारत स्मृति सम्मेलन का आयोजन दिसंबर, 2012 की किया गया। भारत-आसियान में संबंधों में प्रगाढ़ता लाने के लिए सम्मेलन में उपस्थित अन्य भागीदारों ने अपने विचार व्यक्त किए तथा आपसी संबंधों की रणनीतिक भागीदारी में बदलने का निर्णय किया गया। सम्मेलन में स्वीकार किए गए विजन स्टेटमेंट में राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक-सांस्कृतिक सुरक्षा एवं विकासात्मक सहयोग के लिए रोड मैप निधारित किया गया।