लिव रिलेशनशिप पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय Supreme Court decision on Live relationship
सर्वोच्च न्यायालय ने लिव इन रिलेशनशिप पर वैवाहिक मामलों की एक अदालत और मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए आदेशों के विपरीत 21 अक्टूबर, 2010 को यह निर्णय दिया कि भले ही कोई व्यक्ति अपनी यौन इच्छाओं की पूर्ति के लिए रखैल या दासी रखता हो और साथ-साथ उसका भरण-पोषण भी करता हो, तो भी इस तरह के संबंधों की लिव इन रिलेशनशिप की मान्यता नहीं दी जा सकती। लंबे समय तक एक साथ रह रहे महिला और पुरुष के संबंध को उसी अवस्था में लिव इन रिलेशनशिप की मान्यता दी जा सकती है, जब वह समाज के सामने अपने आपको पति-पत्नी के रूप में पेश करते हों। भले ही वे विवाह के पवित्र बंधन में न बंधे हों। सप्ताहांत या सिर्फ कुछ क्षणों के लिए बिताए गए अंतरंग पल लिव इन रिलेशनशिप नहीं है और इस तरह के रिश्तों के दौर से गुजरने वाली महिला को गुजारा भत्ता नहीं दिया जा सकता है।
महिला द्वारा गुजारा भत्ता पाने की शर्ते:
- युवक-युवती की उम्र कानून शादी के योग्य हो।
- युवक-युवती को समाज के सामने स्वयंको पति-पत्नी की तरह पेश करना होगा।
- दोनों स्वेच्छा से एक-दूसरे के साथ रह रहे हों और दुनिया के सामने स्वयं को एक खास अवधि के लिए जीवनसाथी के रूप में दिखाएं।
- दोनों अविवाहित होने चाहिए।