विजयनगर का वैभव Splendor Of Vijayanagara
पन्द्रहवीं तथा सोलहवीं सदियों में भारत का भ्रमण करने वाले विदेशी यात्रियों ने विजयनगर साम्राज्य के विषय में देदीप्यमान विवरण लिख छोडे हैं। विजयनगर शहर विशाल दुगों से घिरा तथा बृहदाकार था। इटली का यात्री निकोली कौण्टी, जिसने, लगभग 1420 ई. में यहाँ भ्रमण किया था, लिखता है- नगर की परिधि साठ मील है। इसकी दीवारें पहाड़ों तक चली गयी हैं तथा उनके अधोभाग में घाटियों को परिवेष्टित करती हैं, जिससे इसका विस्तार बढ़ जाता है। अनुमान किया जाता है कि इस नगर में अस्त्र धारण करने के योग्य नब्बे हजार आदमी हैं। राजा भारत के सभी अन्य राजाओं से अधिक शक्तिशाली है। अबदुर्रज्जाक, जो फारस से भारत आया था तथा 1442-1443 ई. में विजयनगर गया था, लिखता है- उस देश में इतनी अधिक जनसंख्या है कि कम स्थान में उसका अन्दाज देना असम्भव है। राजा के कोष में गड्ढे-सहित प्रकोष्ठ हैं, जो पिघले हुऐ सोने के थोक से भरे हैं। देश के सभी निवासी-ऊँच अथवा नीच, यहाँ तक कि बाजार के शिल्पकार तक कानों, गलों, बाँहीं, कलाइयों तथा अंगुलियों में जवाहरात एवं सोने के आभूषण पहनते हैं। डोमिंगौस पीजू (पेज या पेइस)जो एक पुर्तगीज था तथा जिसने विजयनगर का एक विस्तृत विवरण लिखा है, कहता है- इसके राजा के पास भारी खजाना है। उसके पास बहुत सैनिक एवं बहुत हाथी हैं, क्योंकि इस देश में ये बहुतायत से मिलते हैं…….इस नगर में आपको प्रत्येक राष्ट्र एवं जाति के लोग मिलेगे, क्योंकि यहाँ बहुत व्यापार होता है तथा बहुत-से बहुमूल्य पत्थर मुख्यतः हीरे पाये जाते हैं। यह संसार में सबसे सम्पन्न नगर है। यह चावल, गेहूँ, अन्न, मकई-जैसे खाद्य पदार्थों तथा कुछ मात्रा में जौ एवं सेम, मूग, दलहन, चने (घोड़े का दाना) तथा इस देश में उपजने वाले बहुत-से अन्य बीजों से परिपूर्ण है। ये लोगों के भोजन हैं और यहाँ इनका बड़ा भंडार है, तथा ये बड़े सस्ते हैं। गलियाँ तथा बाजार अनगिनत लदे हुए बैलों से भरे रहते हैं। एडोअडों बारबोस जो 1516 ई. में भारत में उपस्थित था, विजयनगर का वर्णन करते हुए लिखा है- अत्यन्त विस्तृत, अति जनाकीर्ण तथा देशी हीरों, पेगू की लाल-मणियों, चीन एवं अलेक्जेण्ड्रिया के रेशम और मालाबार के सिंदूर, कपूर, कस्तूरी, मिर्च एवं चन्दन के क्रियाशील व्यापार के स्थान के रूप में करते हैं।