ध्वनि Sound
तरंग गति
तरंगें Waves
तरंगों के द्वारा ऊर्जा का एक स्थान से दूसरे स्थान तक स्थानान्तरण होता है। तरंगों को मुख्यतः दो भागों में बाँटा जा सकता है-
1. यांत्रिक तरंगें Mechanical Waves
वे तरंगें, जो किसी पदार्थिक माध्यम (ठोस, द्रव एवं गैस) में संचरित होती है, यांत्रिक तरंगें कहलाती हैं। इन तरंगों के किसी माध्यम में संचरण के लिए यह आवश्यक है कि माध्यम में प्रत्यास्थता (Elasticity) व जड़त्व (Inertia) के गुण मौजूद हों।
यांत्रिक तरंगों के प्रकार: यह मुख्यतः दो प्रकार की होती हैं-
(i) अनुप्रस्थ तरंगें एवं (ii) अनुदैर्घ्य तरंगें
(i) अनुप्रस्थ तरंगें Transverse Waves: जब किसी माध्यम में तरंग गति की दिशा माध्यम के कणों के कम्पन करने की दिशा के लम्बवत् होती है, तो इस प्रकार की तरंगों को अनुप्रस्थ तरंगें कहते हैं। अनुप्रस्थ तरंगें केवल ठोस माध्यम में एवं द्रव के ऊपरी सतह पर उत्पन्न की जा सकती हैं। द्रवों के भीतर एवं गैसों में अनुप्रस्थ तरंगें उत्पन्न नहीं की जा सकती हैं। अनुप्रस्थ तरंगें शीर्ष (crest) एवं गर्त (trough) के रूप में संचरित होती हैं।
(ii) अनुदैर्घ्य तरंगें Longitudinal Waves जब किसी माध्यम में तरंग गति की दिशा माध्यम के कणों की कम्पन करने की दिशा के अनुदिश या समान्तर (along) होती है, तो ऐसी तरंगों को अनुदैर्घ्य तरंगें कहते हैं। अनुदैर्घ्य तरंगें सभी माध्यम में उत्पन्न की जा सकती हैं। ये तरंगें संपीडन (Compression) और विरलन (Rarefaction) के रूप में संचरित होती हैं। संपीडन वाले स्थान पर माध्यम का दाब एवं घनत्व अधिक होता है, जबकि विरलन वाले स्थान पर माध्यम का दाब एवं घनत्व कम होता है। वायु में उत्पन्न तरंगें, भूकम्प तरंगें, स्प्रिंग में उत्पन्न तरंगें आदि सभी अनुदैर्ध्य तरंगे होती हैं।
2. अयांत्रिक तरंगें या विद्युत्-चुम्बकीय तरंगे Non-Mechanical Waves or Electromagnetic Waves
यांत्रिक तरंगों के अतिरिक्त अन्य प्रकार की तरंगें भी होती हैं, जिनके संचरण के लिए माध्यम की आवश्यकता नहीं होती तथा वे तरंगें निर्वात् (vacuum) में भी संचरित हो सकती हैं। इन्हें अयांत्रिक या विद्युत् चुम्बकीय तरंगें कहते हैं, जैसे-प्रकाश तरंगें, रेडियो तरंगें, x-तरंगें आदि।
विद्युत्-चुम्बकीय तरंगों में विद्युत् क्षेत्र तथा चुम्बकीय क्षेत्र परस्पर लम्बवत् तलों में कम्पन करते रहते हैं तथा रिक्त स्थान में प्रकाश की चाल से आगे बढ़ जाते हैं। इन क्षेत्रों के संचरण की दिशा उन तलों के लम्बवत् होती है जिनमें ये स्थित होते हैं। इस प्रकार विद्युत्-चुम्बकीय तरंगें सदैव अनुप्रस्थ होती हैं तथा इन तरंगों की चाल प्रकाश के चाल के बराबर होती है। इन तरंगेों का तरंगदैर्घ्य परिसर (wavelength range) 10-14 मीटर से लेकर 104 मीटर तक होता है। कुछ प्रमुख विद्युत्-चुम्बकीय तरंगें सारणी में प्रदर्शित हैं।
प्रमुख विद्युत्-चुम्बकीय तरंगें | ||||
विद्युत्-चुम्बकीय | खोजकर्ता | तरंगदैर्ध्य परिसर | आवृत्ति परिसर (Hz में) | उपयोग |
गामा-किरणें (γ-rays) | बैकुरल | 10-14m से 10-10m तक | 1020 से 1018 तक | इसकी वेधन क्षमता अत्यधिक होती है । उपयोग-नाभिकीय अभिक्रिया तथा कृत्रिम रेडियोधर्मिता में |
एक्स-किरणे (X-rays) | रॉन्जन | 10-10m से 10-8m तक | 1018 से 1016 m तक | इसका उपयोग चिकित्सा एवं तक औद्योगिक क्षेत्र में किया जाता है। |
पराबैंगनी-किरणें (UV-rays) | रिटर | 10-8 m से 10-7 m तक | 1016 से 1014 m तक | उपयोग-सेंकाई करने, प्रकाश तक वैद्युत् प्रभाव को उत्पन्न करने, बैक्टीरिया को नष्ट करने में |
दृश्य-विकिरण (Visible radiation) | न्यूटन | 3.9×10-7m से 7.8×10-7m तक | 1014 से 1012 | इससे हमें वस्तुएँ दिखलाई पड़ती हैं। |
अवरक्त विकिरण (Infra-red radiation) | हर्शल | 7.8×10-7m से 10-3 rn तक | 1012 से 1010 तक | ये किरणे ऊष्मीय विकिरण हैं । ये जिस वस्तु पर पड़ती हैं, उसका ताप बढ़ जाता है। उपयोग-कुहरे में फोटोग्राफी करने में, रोगियों की सेकाई करने में, TV के रिमोट कण्ट्रोल में |
लघु रेडियो तरंगें (short radio waves) | हेनरिक हर्ट्ज | 10-3 m से 1 m तक | 1010 से 108 तक | इसका उपयोग रेडियो, टेलीविजन एवं टेलीफोन में होता है। |
दीर्घ रेडियो तरंगें (long radio waves) | मारकोनी | 1 m से 104m तक | 106 से 104 तक | इस प्रकार की तरंगों का उपयोग तक रेडियो एवं टेलीविजन में होता है। |
तरंग गति Wave Motion
जब हम तालाब में एक पत्थर का टुकड़ा फेंकते हैं, तो पत्थर के गिरने के स्थान पर विक्षोभ (disturbance) उत्पन्न होता है, जो तरंगों के रूप में जल के चारों ओर फैल जाता है। यह विक्षोभ तरंगों के रूप में आगे बढ़ जाता है, जबकि माध्यम के कण यानी जल के कण अपने स्थान पर तरंग गति की दिशा के लम्बवत् ऊपर-नीचे कम्पन करते रहते हैं। इस प्रकार विक्षोभ को आगे बढ़ने की प्रक्रिया को तरंग गति कहते हैं।
कम्पन की कला Phase of Vibration
आवर्त गति में कम्पन करते हुए किसी कण की किसी क्षण पर स्थिति तथा गति की दिशा को जिस राशि द्वारा निरूपित किया जाता है, उसे उस क्षण पर उस कण के कम्पन की कला कहते हैं। अतः कम्पन की कला वह राशि है, जो कम्पन करने वाले कण के विस्थापन एवं गति की दिशा तथा अन्य सम्बन्धित राशियों को किसी विशेष क्षण पर व्यक्त करती है।
आयाम Amplitude
दोलन करने वाली वस्तु का अपने माध्य स्थिति से महत्तम विस्थापन की दोलन का आयाम कहते हैं । तरंग द्वारा स्थानान्तरित ऊर्जा माध्यम के कणों के कम्पनों के आयाम के वर्ग के अनुक्रमानुपाती होती है। इसे a से व्यक्त किया जाता है।
आवर्त काल Time Period
माध्यम का कम्पन करता हुआ कोई कण एक कम्पन पूरा करने में जितना समय लेता है, उसे आवर्त काल कहते हैं। इसे T से व्यक्त किया जाता है।
तरंगदैर्घ्य Wavelength
माध्यम के किसी कण के एक पूरा कम्पन किये जाने पर तरंगें जितनी दूरी तय करती है, उसे तरंगदैर्घ्य कहते हैं। इसे ग्रीक अक्षर λ से व्यक्त किया जाता है। अनुप्रस्थ तरंगों में दो क्रमागत श्रृंगों अथवा गतों के बीच की दूरी तथा अनुदैर्घ्य तरंगों में दो क्रमागत संपीडन या विरलन के बीच की दूरी को तरंगदैर्घ्य कहते है।
आवृति Frequency
माध्यम का कम्पन करता हुआ कोई कण एक सेकण्ड में जितना कम्पन करता है, उसे आवृत्ति कहते हैं।
ध्वनि Sound
ध्वनि तरंगें अनुदैर्घ्य तरंगें होती हैं। इसकी उत्पत्ति वस्तुओं में कम्पन से होती है, लेकिन सब प्रकार का कम्पन ध्वनि उत्पन्न नहीं करता। जिन तरंगों की लगभग 20 कम्पन प्रति सेकण्ड से 20,000 कम्पन प्रति सेकण्ड के बीच होती है, उनकी हमें अपने कानों द्वारा होती है और उन्हें हम सुन सकते हैं। जिन यांत्रिक तरंगों की सीमा से कम या अधिक होती है उसके लिए हमारे कान सुग्राही नहीं हैं और हमें की अनुभूति नहीं होती है। अतः ध्वनि शब्द का प्रयोग केवल उन्हीं तरंगों के लिए किया जाता है, जिनकी अनुभूति हमें अपने कानों द्वारा होती है। भिन्न-भिन्न मनुष्यों के लिए ध्वनि तरंगों की आवृत्ति परिसर (Range of frequency) अलग-अलग हो सकती है।
ध्वनि तरंगों की आवृत्ति परिसर Range of Frequency
अवश्रव्य तरंग Infrasonic Waves
20Hz से नीचे की आवृति वाली ध्वनि तरंगों को अवश्रव्य तरंगें कहते हैं। इसे मनुष्य के कान सुन नहीं सकते हैं। इस प्रकार की तरंगों को बहुत बड़े आकार के स्रोतों से उत्पन्न किया जा सकता है।
श्रव्य तरंगे Audible Waves
2o Hz से 20,000 Hz के बीच की आवृत्ति वाली तरंगों को श्रव्य तरंगें कहते हैं। इन तरंगों को मनुष्य के कान सुन सकते हैं।
पराश्रव्य तरंगे Ultrasonic Waves
20,000Hz से ऊपर की तरंगों को पराश्रव्य तरंगें कहते हैं। मनुष्य के कान इसे नहीं सुन सकते हैं। परन्तु कुछ जानवर जैसे-कुत्ता, बिल्ली, चमगादड़ आदि इसे सुन सकते हैं। इन तरंगों को गाल्टन की सीटी के द्वारा तथा दाब-वैद्युत् प्रभाव (Piezo-Electric Effect) की विधि द्वारा क्वार्ट्ज के क्रिस्टल के कम्पनों से उत्पन्न करते हैं। इन तरंगों की आवृत्ति बहुत ऊँची होने के कारण इसमें बहुत अधिक ऊर्जा होती है। साथ ही इनकी तरंगदैर्घ्य छोटी होने के कारण इन्हें एक पतले किरण-पुंज के रूप में बहुत दूर तक भेजा जा सकता है ।
पराश्रव्य तरंगों के उपयोग:
(i) संकेत भेजने में
(ii) समुद्र की गहराई का पता लगाने में
(iii) कीमती कपड़ों, वायुयान तथा घड़ियों के पुजों को साफ करने में
(iv) कल-कारखानों की चिमनियों से कालिख हटाने में
(v) दूध के अन्दर के हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट करने में
(vi) गठिया रोग के उपचार एवं मस्तिष्क के ट्यूमर का पता लगाने में, आदि।
3. ध्वनि की चाल
विभिन्न माध्यमों में ध्वनि की चाल भिन्न-भिन्न होती है। किसी माध्यम में ध्वनि की चाल मुख्यतः माध्यम की प्रत्यास्थता (E) तथा घनत्व (a) पर निर्भर करती है। सर्वप्रथम न्यूटन ने सैद्धान्तिक गणना के द्वारा यह सिद्ध किया कि किसी माध्यम का प्रत्यास्थता गुणांक E हो तथा घनत्व d हो, तो उस माध्यम में अनुदैर्घ्य तरंगों की चाल [latex]v\quad =\quad \sqrt { \frac { E }{ d } }[/latex] ।
यदि माध्यम कोई ठोस छड़ है, तो अनुदैर्घ्य तरंग की चाल [latex]v\quad =\quad \sqrt { \frac { Y }{ d } }[/latex], जहाँ Y प्रत्यास्थता-गुणांक है और यदि माध्यम कोई द्रव अथवा गैस है, तो अनुदैर्घ्य तरंगों की चाल [latex]v\quad =\quad \sqrt { \frac { B }{ d } }[/latex] । गैसों के सम्बन्ध में न्यूटन का विचार था कि जब अनुदैर्घ्य तरंगें किसी गैस में चलती हैं, तो गैस का ताप स्थिर रहता है। अतः गैस का समतापी आयतन प्रत्यास्थता गुणांक (Isothermal Bulk Modulus) B का मान गैस के प्रारंभिक दाब (P) के बराबर होता है। अतः न्यूटन के अनुसार, किसी गैस में ध्वनि की चाल [latex]v\quad =\quad \sqrt { \frac { P }{ d } }[latex] ।
इस सूत्र से गणना करने पर हवा में ध्वनि का वेग 280 मी./से. मिलता है, जो कि हवा में ध्वनि की चाल 332 मी./से. से काफी कम है। इस भूल को लाप्लस नामक वैज्ञानिक ने सुधारा, इनके अनुसार-
हवा में ध्वनि की चाल [latex]v\quad =\quad \sqrt { \frac { \lambda P }{ d } }[/latex], वायु के लिए λ = 1.41, P = 1.013 × 105 Nm-2 तथा d = 1.29 kgm-3 । (जहाँ λ = Cp/Cv , Cp = स्थिर दाब पर गैस की विशिष्ट ऊष्मा, Cv= स्थिर आयतन पर गैस की विशिष्ट ऊष्मा, d = गैस का घनत्व)
गैसों के सापेक्ष द्रवों में प्रत्यास्थता अधिक होती है तथा ठोसों में सबसे अधिक होती है। यही कारण है कि द्रवों में ध्वनि की चाल गैसों की अपेक्षा अधिक तथा ठोसों में सबसे अधिक होती है। वायु में ध्वनि की चाल 332 मी./से., जल में ध्वनि की चाल 1493 मी./से. तथा लोहे में ध्वनि की चाल 5130 मी./से. होती है।
कुछ माध्यमों में ध्वनि की चाल | |||
माध्यम | ध्वनि की चाल मी./से. (0°C) | माध्यम | ध्वनि की चाल मी./से. (0°C) |
CO2 | 260 | जल | 1493 |
वायु | 332 | समुद्री जल | 1533 |
भाप (100°C) | 405 | लोहा | 5130 |
अल्कोहल | 1213 | कांच | 5640 |
हाइड्रोजन | 1269 | एल्युमिनियम | 6420 |
पारा | 1450 |
जब ध्वनि एक माध्यम से दूसरे माध्यम में जाती है, तो ध्वनि की चाल तथा तरंगदैर्घ्य बदल जाती है, जबकि आवृत्ति नहीं बदलती है। अतः किसी माध्यम में ध्वनि की चाल ध्वनि की आवृति पर निर्भर नहीं करती है।
ध्वनि की चाल पर विभिन्न भौतिक राशियों का प्रभाव
दाब का प्रभाव Effect of Pressure
ताप समान होने पर गैस में ध्वनि की चाल पर दाब का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
ताप का प्रभाव Effect of Temperature
माध्यम का ताप बढ़ने पर उसमें ध्वनि की चाल बढ़ जाती है। वायु में 1°C ताप बढ़ने पर ध्वनि की चाल 0.61 मी०/से० बढ़ जाती है।
आर्द्रता का प्रभाव Effect of Humidity
नमीयुक्त वायु का घनत्व, शुष्क वायु के घनत्व से कम होता है, अतः आर्द्र वायु में ध्वनि की चाल बढ़ जाती है। यही कारण है कि बरसात के मौसम में सीटी की आवाज बहुत दूर तक सुनाई देती है।
माध्यम के वेग का प्रभाव Effect of Velocity of Medium
माध्यम के वेग की दिशा में ध्वनि की चाल बढ़ जाती है तथा इसके विपरीत दिशा में घट जाती है।
नोट – ध्वनि की चाल गैसों के घनत्व अथवा अणुभार के वगमूल के व्युत्क्रमानुपाती (inversely proportional) होती है।
[latex]v\propto \frac { 1 }{ \sqrt { M } }[/latex]
यदि दो गैसों के अणुभार क्रमशः M1 एवं M2 तथा उनमें ध्वनि की चालें क्रमशः v1 तथा v2 हों, तो-
[latex]\frac { { v }_{ 1 } }{ { v }_{ 2 } } =\sqrt { \frac { { M }_{ 2 } }{ { M }_{ 2 } } }[/latex]
उदाहरण – हाइड्रोजन में ध्वनि की चाल 1260 मी./से. है, तो ऑक्सीजन में वह कितनी होगी?
vH=1260 मी./से., MH=2, MO=32
[latex]{ v }_{ o }=\sqrt { \frac { { M }_{ H } }{ { M }_{ O } } } =1260\sqrt { \frac { 2 }{ 32 } } =1260\times \frac { 1 }{ 4 } =315[/latex] मी./से.
ध्वनि के लक्षण
ध्वनि के मुख्यतः तीन लक्षण होते हैं- (i) तीव्रता, (ii) तारत्व, (iii) गुणता
(i) तीव्रता Intensity/Loudness
तीव्रता ध्वनि का वह लक्षण है, जिससे ध्वनि धीमी/ मन्द (feeble) अथवा तीव्र/प्रबल (loud) सुनाई देती है। ध्वनि की तीव्रता एक भौतिक राशि है, जिसे शुद्धता से नापा जा सकता है। माध्यम के किसी बिन्दु पर ध्वनि की तीव्रता, उस बिन्दु पर एकांक क्षेत्रफल से प्रति सेकण्ड तल के लम्बवत् गुजरने वाली ऊर्जा के बराबर होती है। इसका SI मात्रक माइक्रोवाट/मी.2 (=10-6जूल/सेकण्ड मी०2) तथा प्रयोगात्मक मात्रक बेल (Bel) है। बेल के दसवें भाग को डेसीबेल (Decibel-dB) कहते हैं।
ध्वनि की तीव्रता (i) ध्वनि स्रोत की शक्ति पर, (ii) श्रोता तथा स्रोत के बीच की दूरी पर तथा (iii) छत, फर्श और दीवारों पर होने वाले परावर्तनों पर निर्भर करती है। यदि ध्वनि स्रोत को बिन्दु स्रोत माना जाए तथा अवशोषण और परावर्तनों को नगण्य मान लिया जाय, तो ध्वनि की तीव्रता स्रोत से दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती (inversely proportional) होती है। इसके अतिरिक्त, ध्वनि की तीव्रता आयाम के वर्ग के अनुक्रमानुपाती, आवृत्ति के वर्ग के अनुक्रमानुपाती तथा माध्यम के घनत्व के अनुक्रमानुपाती होती है। बड़े आकार की वस्तु से उत्पन्न ध्वनि का आयाम बड़ा होता है। इसके कारण बड़े आकार की वस्तु से उत्पन्न ध्वनि की तीव्रता अधिक होती है। यही कारण है कि स्वरित्र द्विभुज (Tunning fork) की ध्वनि हमें घण्टे की ध्वनि से धीमी सुनाई पड़ती है। वायु यदि ध्वनि की चाल की दिशा में बह रही है, तो ध्वनि की चाल एवं तीव्रता दोनों बढ़ जाती है।
ध्वनि के स्रोत | तीव्रता (dB में) | ध्वनि के स्रोत | तीव्रता (dB में) |
साधारण बातचीत | 30-40 | मोटर साइकिल | 110 |
जोर से बातचीत | 50-60 | साइरन | 110-120 |
ट्रक, ट्रैक्टर | 90–100 | जेट विमान | 140–150 |
आरकेस्ट्रा | 100 | मशीनगन | 170 |
विद्युत् मोटर | 110 | मिसाइल | 180 |
विश्व स्वास्थ्य संगठन (W.H.O.) के अनुसार 45 डेसीबल ध्वनि मानव के लिए सर्वोत्तम होती है। W.H.O ने 75 डेसीबल से ऊपर की ध्वनि को मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक माना है। यों तो एक साधारण मानव ज्यादा-से-ज्यादा 130 डेसीबल तक तीव्रता वाली ध्वनि सुन सकता है; लेकिन 85 डेसीबल से अधिक ध्वनि में व्यक्ति बहरा हो सकता है और 150 डेसीबल की ध्वनि तो व्यक्ति को पागल बना सकता है।
(ii) तारत्व Pitch
तारत्व, ध्वनि का वह लक्षण है, जिसके कारण ध्वनि को मोटा (grave) या तीक्ष्ण (shrill) कहा जाता है। तारत्व आवृति (frequency) पर निर्भर करता है। जैसे-जैसे ध्वनि की आवृत्ति बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे ध्वनि का तारत्व बढ़ता जाता है तथा ध्वनि तीक्ष्ण अथवा पतली होती जाती है। बच्चों एवं स्त्रियों की पतली आवाज तारत्व अधिक होने के कारण ही होती है। पुरुषों की मोटी आवाज तारत्व कम होने के कारण होती है। चिड़ियों की आवाज, सोनोमीटर (sonometer) के पतले तने हुए पतले तार से निकलने वाली ध्वनि, मच्छड़ों की भनभनाहट, अधिक तारत्व की ध्वनियों के उदाहरण हैं। ध्वनि के तारत्व का ध्वनि की तीव्रता से कोई संबंध नहीं होता है। अधिक प्रबल ध्वनि का तारत्व कम अथवा अधिक कुछ भी हो सकता है। जैसे-शेर की दहाड़ एक तीव्र (प्रबल) ध्वनि है, लेकिन इसका तारत्व बहुत ही कम होता है, जबकि मच्छड़ की भनभनाहट एक धीमी ध्वनि है लेकिन इसका तारत्व शेर की दहाड़ से अधिक होता है।
(iii) गुणता Quality
ध्वनि का वह लक्षण जिसके कारण समान तीव्रता तथा समान तारत्व की ध्वनियों में अन्तर प्रतीत होता है, गुणता कहलाता है। गुणता अधिस्वर (overtones) पर निर्भर करता है । समान तीव्रता तथा समान तारत्व की ध्वनियों में अन्तर प्रतीत होने का कारण यह है कि उन ध्वनियों में मूल स्वरक (tone) के साथ-साथ विभिन्न संख्या में संनादी (harmonics) उपस्थित रहते हैं। कोई स्वर (note) एक ही आवृत्ति का नहीं होता है। उसमें ऐसे भी स्वरक मिले होते हैं, जिनकी आवृत्तियाँ विभिन्न होती हैं। जिस आवृत्ति के स्वरक की प्रधानता रहती है, उसे मूल स्वरक (Fundamental Note) कहते हैं। बाकी स्वरकों को संनादी स्वरक (Harmonic Notes) कहते हैं, इनकी आवृत्तियाँ मूल स्वरक की दुगुनी, तिगुनी आदि होती हैं। इन संनादी स्वरकों की मात्रा की विभिन्नता के कारण स्वर का रूप बदल जाता है। इनकी संख्या तथा आपेक्षिक तीव्रता विभिन्न ध्वनियों में भिन्न-भिन्न होती है। अतः ध्वनि की गुणता संनादी स्वरों की संख्या, क्रम तथा आपेक्षिक तीव्रता पर निर्भर करती है। गुणता के भिन्नता के कारण ही हम अपने परिचितों की आवाज सुनकर पहचान लेते हैं। इसी की भिन्नता के कारण हम दो वाद्ययंत्रों से उत्पन्न समान तीव्रता एवं समान आवृति की ध्वनियों को स्पष्ट रूप से पहचान लेते हैं।
यदि एक बन्द आर्गन पाइप तथा एक खुले आर्गन पाइप से समान आवृति का मूल स्वरक उत्पन्न हो रहा हो, तो भी दोनों से उत्पन्न ध्वनियों की गुणता भिन्न-भिन्न होती है, क्योंकि बन्द पाइप से निकलने वाली ध्वनि में केवल विषम (odd) संनादी उपस्थित होते हैं, जबकि खुले पाइप से निकलने वाली ध्वनि में सम (even) तथा विषम (odd) दोनों संनादी उपस्थित रहते हैं। मूल स्वरक से अधिक आवृत्ति वाले संनादियों को अधिस्वरक (Overtone) कहते हैं।
स्वर अन्तराल Musical Interval
जब कोई वाद्ययंत्र केवल एक ही आवृत्ति की ध्वनि उत्पन्न करता है, तो उसे स्वर कहते हैं। एक साथ दो स्वरों को बजाने पर उनका प्रभाव उनकी आवृत्तियों के अन्तर पर निर्भर नहीं करता, अपितु उनके अनुपात पर निर्भर करता है। दो स्वरों की आवृत्तियों के अनुपात को स्वर अन्तराल कहते है।
डॉप्लर प्रभाव Doppler Effect
इस प्रभाव को आस्ट्रिया के भौतिकीवेत्ता क्रिस्चियन जॉन डॉप्लर ने सन् 1842 ई० में प्रस्तुत किया था। इसके अनुसार श्रोता या स्रोत की गति के कारण किसी तरंग (ध्वनि तरंग या प्रकाश तरंग) की आवृत्ति बदली हुई प्रतीत होती है, अर्थात् जब तरंग के स्रोत और श्रोता के बीच आपेक्षिक गति होती है, तो श्रोता की तरंग की आवृत्ति बदलती हुई प्रतीत होती है। आवृत्ति बदली हुई प्रतीत होने की घटना को डॉप्लर प्रभाव कहते हैं। इसकी निम्न स्थितियाँ होती हैं-
(i) जब आपेक्षिक गति के कारण स्रोत और श्रोता के बीच की दूरी घट रही होती है, तब आवृत्ति बढ़ती हुई प्रतीत होती है।
(ii) जब आपेक्षिक गति से श्रोता तथा स्रोत के बीच दूरी बढ़ रही होती है, तब आवृति घटती हुई प्रतीत होती है। ध्वनि तरंगों के लिए
आभासी आवृत्ति = प्रेक्षक के सापेक्ष ध्वनि का वेग / स्रोत के सापेक्ष ध्वनि का वेग × वास्तविक आवृत्ति
डॉप्लर प्रभाव के कारण ही जब रेलगाड़ी का इंजन सीटी बजाते हुए श्रोता के निकट आता है, तो उसकी ध्वनि बड़ी तीखी (shrill), अर्थात् अधिक आवृति की सुनाई पड़ती है और जैसे ही इंजन श्रोता को पार करके दूर जाने लगता है, तो ध्वनि मोटी (grave), अर्थात् कम आवृति की सुनाई पड़ती है।
प्रकाश में डॉप्लर प्रभाव
प्रकाश तरंगें भी डॉप्लर प्रभाव दर्शाती हैं। ध्वनि में डॉप्लर प्रभाव असममित (asymmetric) होता है, जबकि प्रकाश में डॉप्लर प्रभाव सममित (symmetric) होता है। इसका तात्पर्य यह है कि ध्वनि में डॉप्लर प्रभाव इस बात पर निर्भर करता है कि ध्वनि स्रोत श्रोता की ओर आ रहा है या उससे दूर जा रहा है। इसके विपरीत प्रकाश में डॉप्लर प्रभाव केवल प्रकाश स्रोत व दशक के बीच आपेक्षिक वेग पर निर्भर करता है, इस बात पर नहीं कि स्रोत दर्शक के निकट आ रहा है या उससे दूर जा रहा है। प्रकाश के डॉप्लर प्रभाव द्वारा सुदूर तारों व गैलेक्सियों के पृथ्वी के सापेक्ष वेग तथा उनकी गति की दिशा ज्ञात की जाती है। खगोलज्ञ एडविन हब्बल (Edvvin Hubble) ने डॉप्लर प्रभाव द्वारा ही यह ज्ञात किया था कि विश्व का विस्तार हो रहा है। तारे के प्रकाश के वर्णक्रम (spectrum) का अध्ययन करके प्रकाश की आवृति में हुए परिवर्तन का पता लगाया जाता है। यदि कोई तारा या गैलेक्सी पृथ्वी की ओर आ रहा है तो उसे प्राप्त प्रकाश का तरंगदैर्घ्य स्पेक्ट्रम के बैंगनी सिरे की ओर विस्थापित होता है और यदि तारा या गैलेक्सी पृथ्वी से दूर जा रहा है, तो प्राप्त प्रकाश का तरंगदैर्घ्य स्पेक्ट्रम के लाल सिरे की ओर विस्थापित होता है। अर्थात् यदि स्पेक्ट्रम में प्रकाश रेखा बैंगनी सिरे की ओर विस्थापित होती है, तो प्रकाश स्रोत (तारा, गैलेक्सी) पृथ्वी की ओर आ रहा है और यदि वह लाल सिरे की ओर विस्थापित हो रहा है, तो प्रकाश स्रोत (तारा, गैलेक्सी) पृथ्वी से दूर जा रहा है।
ध्वनि के गुण
1. ध्वनि का परावर्तन Reflection of Sound
प्रकाश की भांति ध्वनि भी एक माध्यम से चलकर दूसरे माध्यम के पृष्ठ पर टकराने पर पहले माध्यम में वापस लौट आती है। इस प्रक्रिया को ध्वनि का परावर्तन कहते है। ध्वनि का परावर्तन भी प्रकाश के परावर्तन की तरह होता है
किन्तु ध्वनि का तरंगदैर्घ्य अधिक होने के कारण इसका परावर्तन बड़े आकार के पृष्ठों से अधिक होता है, जैसे दीवारों, पहाड़ों, पृथ्वी तल आदि से।
(a) प्रतिध्वनि Echo: जो ध्वनि किसी दृढ़ दीवार, पहाड़, गहरे कुएँ आदि से टकराने (अर्थात् परावर्तित होने) के बाद सुनाई देती है, उसे प्रतिध्वनि (Echo) कहते हैं। यदि श्रोता परावर्तक सतह के बहुत निकट खड़ा है, तो उसे प्रतिध्वनि नहीं सुनाई पड़ती है। स्पष्ट प्रतिध्वनि सुनने के लिए ध्वनि के स्रोत तथा परावर्तक सतह के बीच की न्यूनतम दूरी 17 मीटर होनी चाहिए। इसका कारण यह है कि जब हमारा कान कोई ध्वनि सुनता है, तो उसका प्रभाव हमारे मस्तिष्क पर 0.1 सेकेण्ड तक रहता है, अतः यदि इस अवधि में कोई अन्य ध्वनि भी आएगी, तो वह पहली के साथ मिल जाएगी। अतः स्पष्ट प्रतिध्वनि सुनने के लिए आवश्यक है कि परावर्तक सतह श्रोता से कम-से-कम इतनी दूरी पर हो कि परावर्तित ध्वनि को उस तक पहुँचने में 0.1 सेकण्ड से अधिक समय लगे। ध्वनि द्वारा वायु में 0.1 सेकण्ड में चली गई दूरी = 0.1 × 332 = 33.2 मीटर । अतः यदि हम कोई ध्वनि उत्पन्न करते हैं, तो उसकी स्पष्ट प्रतिध्वनि सुनने के लिए परावर्तक तल की दूरी कम-से-कम 33.2/2 = 16.6 मी० (लगभग 17 मीटर) होनी चाहिए।
प्रतिध्वनि द्वारा हम समुद्र की गहराई, वायुयान की ऊँचाई, सुदूर स्थित पहाड़ की दूरी आदि की माप कर सकते हैं।
(b) अनुरणन Reverberation: ध्वनि का हॉल की दीवारों, छतों व फशों से बहुल परावर्तन होता है। बहुल परावर्तन (multiple reflection) के कारण ही ध्वनि स्रोत को एकदम बन्द कर देने पर भी हॉल में ध्वनि एकदम से बन्द नहीं होती, बल्कि कुछ समय तक सुनाई देती रहती है। अतः किसी हॉल में ध्वनि-स्रोत को बन्द करने के बाद भी ध्वनि का कुछ देर तक सुनाई देना अनुरणन कहलाता है तथा वह समय जिसके दौरान यह ध्वनि सुनाई देती है, अनुरणन काल (Reverberation time) कहलाता है। अनुरणन काल का मान हॉल के आयतन तथा इसके कुल अवशोषक क्षेत्रफल पर निर्भर करता है (T = 0.053 V/A, जहाँ T= अनुरणन काल, V = हॉल का आयतन, A = अवशोषक क्षेत्रफल)। गणना द्वारा यह पाया गया कि यदि किसी हॉल में अनुरणन काल 0.8 सेकण्ड से अधिक है, तो वक्ता द्वारा दिए जाने वाले भाषण के शब्द व्यक्तियों को स्पष्ट रूप से सुनाई नहीं देते। दीवारों पर अवशोषक पदार्थ का क्षेत्रफल बढ़ाकर या घटाकर अनुरणन काल को समंजित (adjust) किया जा सकता है। व्याख्यान हॉल या सिनेमा हॉल में अनावश्यक अनुरणन को रोकने के लिए हॉल की दीवारें खुरदरी (rough) बनाई जाती हैं, अथवा उन्हें मोटे संरन्ध्र (porous) परदों से ढंक दिया जाता है। इससे ध्वनि अवशोषित हो जाती है और मूल ध्वनि साफ सुनाई पड़ती है। फर्श पर भी इसी उद्देश्य से कालीन बिछाई जाती है। बादलों का गर्जन भी अनुरणन का एक उदाहरण है।
मैक संख्या एवं प्रघाती तरंगे (Mach number and Shock waves): किसी माध्यम में किसी पिंड की चाल तथा उसी माध्यम में ताप व दाब की उन्ही परिस्थितियों में ध्वनि की चाल के अनुपात को उस वस्तु की उस माध्यम में मैक संख्या कहते हैं, अर्थात्
मैक संख्या = किसी माध्यम में पिंड की चाल / उसी माध्यम में ध्वनि की चाल वायुयान की चाल को मैक संख्या में मापा जाता है। यदि मैक संख्या का मान 1 है, तो इसका अर्थ है पिण्ड की चाल ध्वनि की चाल के बराबर है; यदि मैक संख्या का मान 2 है, तो इसका अर्थ है पिण्ड की चाल ध्वनि की चाल का दोगुना है, आदि। यदि मैक संख्या 1 से अधिक है, तो पिंड की चाल पराध्वनिक (supersonic) कहलाती है। यदि मैक संख्या 5 से अधिक है, तो चाल अतिपराध्वनिक (Hypersonic) कहलाती है। जब पिंड की चाल पराध्वनिक हो जाती है, तो वह अपने पीछे माध्यम में एक शंक्वाकार विक्षोभ छोड़ता जाता है। इस विक्षोभ के संचरण को ही प्रघाती तरंग (shock waves) कहते हैं। जब कोई पराध्वनिक विमान किसी ऊँची इमारत के ऊपर से गुजरती है, तो उसके द्वारा उत्पन्न प्रघाती तरंगों के भवन से टकरा जाने के कारण काफी क्षति पहुँचती है। |
2. ध्वनि का अपवर्तन Refraction of Sound
ध्वनि तरंगे एक माध्यम से दूसरे माध्यमं में जाती हैं, तो उनका अपवर्तन हो जाता है, अर्थात् वे अपने पथ से विचलित हो जाती है। ध्वनि के अपवर्तन का कारण है- विभिन्न माध्यमों तथा विभिन्न तापों पर ध्वनि की चाल का भिन्न-भिन्न होना। ध्वनि के अपवर्तन के कुछ परिणाम हैं- दिन में ध्वनि का केवल ध्वनि स्रोत के पास के क्षेत्रों में ही सुनाई देना और रात्रि में दूर-दूर तक सुनाई देना।
दिन के समय सूर्य की गर्मी के कारण पृथ्वी के समीप की वायु परतों का ताप ऊपर की परतों की अपेक्षा अधिक होता है। जिसके कारण पृथ्वी के समीप की वायु की परतों का घनत्व कम होता है, अर्थात् ये परतें विरल (rare) माध्यम का कार्य करती हैं तथा जैसे-जैसे ऊपर जाते हैं ताप कम होने के कारण परतों का घनत्व अधिक होता जाता है, अर्थात् ये परतें सघन (dense) माध्यम का कार्य करती हैं। अतः पृथ्वी पर स्थित ध्वनि स्रोत P से ध्वनि तरंगें, अभिलंब PS की ओर झुकती जाती हैं (चित्र-1) तथा पृथ्वी से दूर हटती जाती हैं। फलतः पृथ्वी पर केवल P के आस-पास ही ध्वनि सुनाई देती है। इसके विपरीत रात्रि के समय पृथ्वी की सतह ठंढी होती है, जिसके कारण इसके समीप की वायु-परतों का घनत्व ऊपरवाली परतों की अपेक्षा अधिक होता है, जिससे पृथ्वी की समीप की परतें सघन माध्यम व ऊपर वाली परतें विरल माध्यम का काम करती हैं, फलस्वरूप स्रोत P से चलने वाली ध्वनि तरंगें धीरे-धीरे अभिलंब से दूर हटती जाती हैं तथा पृथ्वी पर वापस लौट जाती हैं। यही कारण है कि हमें रात्रि में या ठण्डी वाले दिनों में ध्वनि दूर तक अधिक स्पष्ट सुनाई देती है।
3. प्रणोदित कम्पन Forced Vibration
कम्पन करने वाली वस्तु पर यदि कोई बाह्य आवर्त बल (external periodic force) लगाया जाये जिसकी आवृत्ति वस्तु की स्वाभाविक आवृत्ति से कम्पन करने की चेष्टा करती है, किन्तु शीघ्र ही वस्तु आरोपित बल की आवृत्ति से स्थिर आयाम के कंपन करने के लिए बाध्य हो जाती है, तो बाह्य आवर्त बल के प्रभाव में वस्तु द्वारा उत्पन्न इस कम्पन को प्रणोदित कम्पन कहा जाता है।
(a) अनुनाद (Resonance): अनुनाद प्रणोदित कम्पन की ही एक स्थिति है। अनुनाद में प्रणोदित कम्पनों की आवृत्ति वस्तु की स्वाभाविक आवृत्ति के बराबर होती है। अर्थात् यदि बाह्य आवर्त बल की आवृत्ति वस्तु की स्वाभाविक आवृति के बराबर हो, तब कम्पन अनुनाद (Resonance) कहलाता है। सन् 1939 ई० में संयुक्त राज्य अमेरिका का टैकोमा पुल यांत्रिक अनुनाद के कारण ही क्षतिग्रस्त हो गया था। उच्च गति की पवन पुल के ऊपर कम्पन करने लगी जो पुल की स्वाभाविक आवृत्ति के लगभग बराबर आवृत्ति की थी। इससे पुल के कम्पन अनुनाद की स्थिति में पहुँच गया, फलस्वरूप पुल के कम्पन के आयाम में लगातार वृद्धि होने के कारण पुल टूट गया। सैनिकों को पुल पार करने का प्रशिक्षण अनुनाद से बचने के लिए ही दिया जाता है। किसी पुल को कम्पन कर सकने वाला निकाय माना जा सकता है, जिसके लिए स्वाभाविक आवृति का एक निश्चित मान होगा। यदि सैनिकों के नियमित पड़ने वाले कदमों की आवृति पुल की आवृति के बराबर हो जाए, तो अनुनाद की स्थिति आ जाएगी और पुल में अधिक आयाम के कम्पन उत्पन्न हो जाएँगे। इससे पुल टूटने का खतरा उत्पन्न हो जाएगा। इसी कारण पुल पार करते समय सैनिकों की टुकड़ी कदम मिलाकर नहीं चलती।
हमारा रेडियो भी अनुनाद के सिद्धान्त पर ही कार्य करता हैं। किसी रेडियो सेट को समस्वरित (tune) करने के लिए रेडियो की धारिता के मान को तब तक बदला जाता है, जब तक कि विद्युत् की वह आवृति न प्राप्त हो जाए जितनी आवृत्ति आ रहे ध्वनि संकेत की है। एण्टीना में छोटे विभवांतर या वि० वा० बल उत्पन्न किए गए होते हैं, जो समस्वरित परिपथ के आयाम के बराबर का आयाम बना सके।
4. ध्वनि का व्यतिकरण Interference of Sound
जब समान आवृत्ति या आयाम की दो ध्वनि-तरंगें एक साथ किसी बिन्दु पर पहुँचती हैं, तो उस बिन्दु पर ध्वनि ऊर्जा का पुनः वितरण हो जाता है। इस घटना को ध्वनि का व्यतिकरण कहते हैं।
यदि दोनों तरंगें उस बिन्दु पर एक ही कला (phase) में पहुँचती हैं, तो वहाँ ध्वनि की तीव्रता अधिकतम होती है। इसे सम्पोषी (Constructive) व्यतिकरण कहते हैं। यदि दोनों तरंगें विपरीत कला में पहुँचती हैं, तो वहाँ पर तीव्रता न्यूनतम होती है। इसे विनाशी (Destructive) व्यतिकरण कहते हैं।
5. ध्वनि का विवर्तन (Diffraction of Sound): ध्वनि का तरंगदैर्घ्य 1 मी० की कोटि का होता है। अतः जब इसी कोटि का कोई अवरोध ध्वनि के मार्ग में आता है, तो ध्वनि अवरोध के किनारे से मुड़कर आगे बढ़ जाती है। इस घटना को ध्वनि का विवर्तन कहते हैं। यही कारण है कि बाहर से आने वाली ध्वनि दरवाजों, खिड़की आदि पर मुड़कर हमारे कानों तक पहुँच जाती है।
6. वायु-स्तम्भों का कम्पन
स्वरक (Tone): सरल आवर्त गति से जो ध्वनि उत्पन्न होती है, वह स्वरक कहलाती है।
स्वर (Note): आवर्त गति से जो ध्वनि उत्पन्न होती है, वह उस ध्वनि उत्पादक का स्वर कहलाती है।
संनादी तथा अधिस्वरक Harmonics and Overtones
किसी स्वर में उपस्थित अधिक आवृत्ति वाले स्वरक (tones) को अधिस्वरक (Over Tone)कहते हैं। जब अधिस्वरकों की आवृतियाँ मूल स्वरक की यथार्थं अपवर्त्य (exact multiple) तो ये संनादी (Harmonics) के नाम से पुकारी जाती हैं।