आदिम जनजाति समूहों के लिए योजना Scheme for Primitive Tribal Groups
आदिम जनजाति समूहों के लिए योजना
वर्ष 1998-99 में इन समूहों के समूचे विकास के लिए केंद्रीय क्षेत्र की योजना शुरू की गई। इस योजना के तहत् अन्य किसी योजना में शामिल नहीं की गई परियोजनाएं/गतिविधियां शुरू करने के लिए समन्वित जनजातीय विकास परियोजनाओं, जनजातीय शोध संस्थानों और गैर-सरकारी संगठनों को वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई जाती है।
जनजातीय क्षेत्रों में व्यावसायिक प्रशिक्षण
इस योजना का उद्देश्य जनजातीय युवाओं में रोजगार/स्वरोजगार के अवसर प्राप्त करने के लिए कौशल विकसित करना है। केंद्रीय क्षेत्र की योजना के रूप में इसका प्रारंभ वर्ष 1992-93 में किया गया था। योजनाको राज्य सरकारों, केंद्रशासित प्रदेशों के प्रशासन, संस्थानों या संगठनों के जरिए सरकार स्थानीय निकाय, सहकारी समितियों और गैर-सरकारी संगठनों द्वारा लागू किया जाता है। प्रत्येक छात्रावास व्यवसायिक प्रक्स्हीं केंद्र की क्षमता 100 है जिसमें 50 लोगों के लिए छात्रावास की सुविधा भी शामिल है। क्षेत्र में उपलब्ध रोजगार केंद्र पांच व्यावसायिक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम चलाता है। प्रत्येक जनजातीय बालक/बालिका को उनकी रुचि के दो कार्यो का प्रशिक्षण दिया जाता है। प्रत्येक पाठ्यक्रम की अवधि तीन महीने है। प्रशिक्षु को छह माह बाद उपनगरीय क्षेत्र के एक प्रशिक्षक शिल्पी से छह माह के लिए संबद्ध कर दिया जाता है। इससे वह प्राप्त प्रशिक्षण का व्यावहारिक प्रयोग कर सकता है। प्रत्येक पाठ्यक्रम के लिए यह अवधि तीन महीने की है। इसमें प्रशिक्षुको मासिक स्टाइपेंड और प्रशिक्षण सामग्री उपलब्ध कराई जाती है।
जनजातीय बालिकाओं की शिक्षा
जनजातीय महिलाओं की साक्षरता दर बढ़ाने के उद्देश्य से वर्ष 1992-93 में पहली से पांचवीं कक्षा तक की बालिकाओं के लिए आवासीय विद्यालयों की स्थापना के लिए इस योजना की शुरुआत की गई। इस योजना का कार्यान्वयन राज्य सरकार के स्वायत्तशासी निकायों और स्वैच्छिक संगठनों के जरिए किया जाता है।
वित्तीय वर्ष 2009 के प्रारंभ में इस योजना का पुनर्मूल्यांकन कर इसे नया नाम कम साक्षरता वाले जिलों में जनजातीय बालिकाओं में शिक्षा का सुदृढ़ीकरण दिया गया। इसमें उन जिलों को शामिल किया गया जहां वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार जनजातीय जनसंख्या 25 प्रतिशत या उससे अधिक है और जनजातीय महिला साक्षरता दर 35 प्रतिशत से नीचे है। चुने हुए 54 जिलों के अतिरिक्त ऐसी ही स्थिति वाले ब्लॉक और पीटीजी क्षेत्र भी योजना में शामिल हैं। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों की योजना में प्राथमिकता दी गई है। सर्वशिक्षा अभियान, कस्तूरबा गांधी विद्यालय या शिक्षा विभाग की अन्य योजनाओं के तहत् चलाए जा रहे विद्यालयों के बालिका छात्रावासों के लिए इस योजना के तहत् मंत्रालय वित्तीय सहायता प्रदान कराता है। जहां इस प्रकार के विद्यालय नहीं हैं, वहां विद्यालय व छात्रावास सहित पूरे परिसर को शामिल किया जाता है। निःशुल्क शिक्षा के साथ ही जनजातीय बालिकाओं को आवास, वर्दी, पुस्तकें, भोजन का पैसा और इनसेंटिव दिया जाता है। इसके अतिरिक्त शैक्षिक परिसर संचालित करने वाले संगठन को व्यवसायिक/कौशल विकास प्रशिक्षण भी देना होता है।
अनुसूचित जनजातियों के छात्रों को उच्च एवं अग्रिम तकनीकी ज्ञान इसके लिए राजीव गाँधी नेशनल फेलोशिप के अंतर्गत, प्रत्येक वर्ष लगभग 650-750 शोधार्थियों को फेलोशिप दी जाती है। इसके अतिरिक्त विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं इंजीनियरिंग में अध्ययन करने के लिए छात्रवृति दी जाती है। ऐसी ही एक योजना जनजातीय मामलों के मंत्रालय ने 2007-08 में प्रारंभ की जिसमें स्नातक एवं परास्नातक स्तर परजनजाति मेधावी छात्रों के लिए छात्रवृत्ति की व्यवस्था है। इस छात्रवृति योजना के अंतर्गत 127 उच्चस्तरीय सरकारी और निजी क्षेत्र के संस्थान मान्यता प्राप्त हैं जो प्रबंधन, चिकित्सा, इंजीनियरिंग, कानून और वाणिज्यिक पाठ्यक्रम संचालित कर रहे हैं। प्रति वर्ष 635 छात्रवृतियों की सीमा के साथ ही प्रत्येक संस्थान को पांच छात्रवृतियां स्वीकृत की गई हैं। जनजातीय विद्यार्थी की सभी स्रोतों से पारिवारिक आय 2 लाख रुपए प्रतिवर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए।
अनुसूचित जनजातियों के भ्रमण की विशेष योजना
अनुसूचित जनजातियों के लिए भ्रमण की एक नई योजना शुरू की गई है। इसका उद्देश्य यह है कि ये लोग देश के विकसित क्षेत्रों का दौरा करके, जानकारी हासिल कर सकें और अनुभवों का आदान-प्रदान करें।
वनों पर जनजातियों के अधिकार को मान्यता
अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन्य निवासी (वन अधिकार को मान्यता) अधिनियम, 2006 के तहत वनों में रहने वाली अनुसूचित जनजाति और अन्य वन निवासियों के वनों पर अधिकार को मान्यता दी गई है। ये लोग पीढ़ियों से इन वनों में रह रहे थे लेकिन औपनिवेशिक काल के दौरान वनों पर इनके अधिकार को समाप्त कर दिया गया और स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद इस ऐतिहासिक भूल को दोहराया गया और उनके साय अन्याय हुआ। यह अधिनियम 31 दिसंबर, 2007 को अधिसूचित किया गया।
- इस अधिनियम को कार्यान्वयन हेतु 1 जनवरी,१008 को नामांकित किया गया। इसके तहत् राज्य सरकारों द्वारा जिला स्तरीय समिति और राज्य स्तर की निगरानी समिति का गठन किया गया।
- सभी राज्यों से अधिनियम के प्रावधानों के कार्यान्वयन के लिए नोडल अधिकारी नामित करने का अनुरोध किया गया है। राज्यों में निम्नलिखित तथ्यों को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कदम उठाने का अनुरोध किया गया है-
- जागरूकता कार्यक्रमों, मुद्रित सामग्री जैसे क्षेत्रीय भाषाओं में पोस्टरों के जरिए अधिनियम के उद्देश्य, प्रावधानों तथा प्रक्रिया और नियमों की जानकारी देना।
- अधिनियमों और नियमों का सभी क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद तथा प्रकाशन व सभी ग्राम सभाओं, वन अधिकार समितियों और पंचायती राज, ग्रामीण विकास, जनजातीय एवं समाज कल्याण व वन विभागों सहित सभी सरकारी विभागों में इनका वितरण।
- राज्य के अधिकारियों, नागरिक प्रतिनिधियों और गैर-सरकारी संगठनोंको अभिमुख करना, जिससे वे जागरूकता कार्यक्रमों में सहायता कर सकें।
- उपमंडल तथा जिला स्तरीय समितियों को अधिनियमित व नियमों के उद्देश्य, प्रावधानों व प्रक्रियाओं के प्रति संवेदनशील बनाना।
अधिनियम के अनुसार, वन अधिकारों और भूमि अधिकारों के वितरण की पहचान का उत्तरदायित्व राज्य सरकार पर है। अधिनियम के कार्यान्वयन के लिए अधिसूचित नियमों के तहत् सभी राज्य सरकारों को निर्देश दिया गया है कि वे अनुसूचित जनजाति तथा अन्य परंपरागत वननिवासी (वन अधिकारों को मान्यता) अधिनियम, 2006 के अनुसार वन अधिकारों से संपन्न करने का कार्य शीघ्र पूरा कर लें।