संगम काल Sangam Period
प्रायद्वीपीय भारत का धुर दक्षिणी भाग जिसे तमिलकम् प्रदेश कहा जाता था कृष्णा एवं तुगभद्रा नदियों के मध्य स्थित था। ईसा की प्रारम्भिक शताब्दी से बहुत पहले (ई.पू. 500 के लगभग) वहाँ अनेक छोटे-छोटे राज्य थे। इनमें चेर, चोल तथा पाण्ड्य राज्य विशेष उल्लेखनीय हैं। अशोक के दूसरे एवं तेरहवें शिला लेख में चोल-पाण्ड्य राज्यों को सीमावर्ती राज्यों की सूची में रखा गया है। कलिंग के शासक खारवेल के हाथीगुम्फा अभिलख में ग्यारहवें वर्ष (ई.पू. 165) में तमिल राज्यों के संघ को विनष्ट करने का विवरण आया है। किन्तु इन उल्लेखों से दक्षिण के बारे में विशेष जानकारी नहीं मिलती।
प्राचीन दक्षिण भारत के तमिल प्रदेश की राजनैतिक, सामाजिक एवं आर्थिक अवस्था का बोध तमिल साहित्य से होता है। प्राचीनतम तमिल ग्रन्थ संगम साहित्य के नाम से प्रसिद्ध है। संगम तमिल कवियों का संघ अथवा सममेलन था जो संभवत: राजा या सरदार के प्रश्रय में आयोजित होता था। इन परिषदों अथवा संगमों पर ब्राह्मण कवियों का वर्चस्व था जो सर्वप्रथम पाण्ड्य राजाओं के संरक्षण में आयोजित की जाने लगी थीं। श्रीनिवास आयंगर ने लिखा है कि- तमिल साहित्य का इतिहास अवश्य ही संगम से शुरू होता है। परम्परा हमें बताती है कि पुराने समय में तीन संगम हुआ करते थे।
संगम तमिल कवियों का एक संघ अथवा सम्मेलन था जो सम्भवत: नरेश या सामन्त के आश्रय में समय-समय पर आयोजित होता था। यह अधिकारिक रूप से नहीं कहा जा सकता कि ये संगम कब या कितने समय के अन्तराल में आयोजित होते थे और इनकी कुल संख्या कितनी थी किन्तु संगम में सम्मिलित होने वाले कवियों की अनेक महत्त्वपूर्ण रचनाएँ उपलब्ध हैं। जिनके द्वारा उस युग के राजनैतिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक जीवन की महत्त्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध होती है।
इस प्रकार तमिल कवियों के संगम पर आधारित प्राचीनतम तमिल साहित्य संगम साहित्य कहलाता है और वह युग जिसके विषय में इस साहित्य द्वारा जानकारी उपलब्ध होती है, संगम युग कहलाता है। संगम साहित्य का संकलन नौ खण्डों में उपलब्ध है। इन संकलनों में 102 आत नामा लेखों के अतिरिक्त 473 कवियों (जिनमें कुछ महिलाएँ भी हैं) की 2279 कविताएँ संकलित हैं। कविता के अंत में टिप्पणी में उसके रचयिता का नाम, रचना का अवसर तथा अन्य विवरण दिए गए हैं।
संगम काल की जानकारी के लिए उपर्युक्त साहित्य अत्यन्त उपयोगी है। इसके अतिरिक्त इस युग की जानकारी के लिए अन्य साहित्यिक स्रोत मगस्थनीज का वर्णन (इसमें पांड्य राजाओं की अनेक उपलब्धियों का वर्णन है। उन्हें मदुरा में अनेक संगम स्थापित करने का श्रेय दिया गया है), पेरीपल्स तथा पिल्नी तथा स्ट्रैबो का विवरण मुख्य हैं। इसके अतिरिक्त पुरातात्विक स्रोत हैं- 1. अशोक के अभिलेख, 2. हाथीगुम्फा अभिलेख, 3. कच्छयुक्त एवं कच्छविहीन कब्रें, 4. 10वीं शताब्दी के प्रारंभ में पाए गए अभिलेख। इसमें पांड्य राजाओं की अनेक उपलब्धियों की चर्चा की गई है। उन्हें मदुरा में अनेक संगम स्थापित करने का श्रेय दिया गया है।