दलहन: चना Pulses: Chickpea- Cicer arietinum
शाकाहारी भोजन में दालें प्रोटीन का महत्वपूर्ण स्रोत हैं। दलहन फसलों के पौधों की एक और विशेषता यह होती है कि इनकी जड़ों में उपस्थित कुछ विशेष तत्व भूमि की उर्वरता बनाए रखते हैं और वायुमण्डलीय नाइट्रोजन को अपनी ओर खींचते हैं। भारत में दालों की प्रति हेक्टेयर उपज-क्षमता बहुत ही कम है और यह मानसून पर निर्भर करता है। दालों की खेती उच्च वर्षा वाले क्षेत्रों में होती है और बहुत कम ही ऐसी किस्में हैं, जिनकी उत्पादक- क्षमता अधिक है।
चना
यह एक प्रमुख दलहन फसल है, जो कुल दलहन-क्षेत्र के एक-तिहाई क्षेत्र में उत्पादित होता है और कुल दलहन फसल में इसकी भागीदारी 40 प्रतिशत की है। मैदानी क्षेत्र में, सिंचाई-रहित क्षेत्र में साधारणतः यह एक रबी फसल है। उत्तरी भारत में सम्पूर्ण भारत का लगभग 90 प्रतिशत चना-उत्पादन-क्षेत्र है और कुल चने का 95 प्रतिशत उत्पादन इन्हीं क्षेत्रों में होता है।
पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र मुख्य चना-उत्पादक राज्य हैं। चने की खेती सामान्यतः शुष्क फसल के रूप में रबी के मौसम में होती है। बुआई एवं फली लगने के समय वर्षा चने की फसल के लिए बहुत ही हानिकारक होती है।
चने का उत्पादन पृथक् एवं मिश्रित कृषि के रूप में भी होता है। मिश्रित कृषि के रूप में इसे गेहूं, जौ, सरसों आदि के साथ उपजाया जाता है। इसके खेत का निर्माण ठीक उसी प्रकार किया जाता है, जिस प्रकार गेहूं के लिए। चने की फसल की महत्वपूर्ण किस्में हैं- जी. 130, एच. 208, एच. 355, टी. 3, आर.एस. 10, चफ्फा, अन्नगिरि आदि।