पुलने एस एंडी Pulney S. Andy
पुलने एस एंडी (Pulney S. Andy) का जन्म 1831 में त्रिचनापल्ली (Tricinopoly) में हुआ था| 1859 में इंग्लैंड जाने से पहले पुलने एंडी ने मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज में अपनी पढ़ाई पूरी की| पुलने एंडी ब्रिटिश मेडिकल डिग्री के लिए रजिस्टर करने वाले पहले भारतीय छात्र थे| वह रॉयल कॉलेज ऑफ सर्जन की फ़ेलोशिप ली और 1862 में भारत लौट आए| उन्हें 3 मई 1863, कालीकट में बपतिस्मा दिया गया था, लेकिन वह चर्च में शामिल नहीं हुए थे|
राज्य के सचिव की सिफारिश पर, मद्रास सरकार ने टीकाकरण के अधीक्षक के रूप में उसके लिए एक विशेष नियुक्ति दी और मालाबार में उन्हे तैनात किया गया| अपनी अन्य उपलब्धियों के अलावा उन्होने एक “टीकाकरण की सुरक्षात्मक प्रभाव” नाम की पुस्तिका प्रकाशित की जिसे व्यापक रूप से स्वीकार किया गया| उन्होंने एक समाचार पत्र ईस्टर्न स्टार (Eastern Star) संपादित किया, और सामाजिक और राजनीतिक जर्नल कॉस्मोपोलाइट (Cosmopolite) के साथ भी शामिल थे|
अपनी सेवानिवृत्ति के बाद, एंडी को भारत के एक राष्ट्रीय चर्च (National Church Of India-NCI) की स्थापना का विचार आया, इसे “ईसाई धर्म के पहले स्वदेशी आंदोलन” के रूप में भी देखा गया| उनकी इच्छा थी की विभिन्न संप्रदायों को एक चर्च के रूप में संगठित किया जाय, जो की भारतीय संस्कृति और संवेदनशीलता के अनुरूप हो जो स्वतंत्रता, आत्मनिर्भरता और स्व-प्रशासन को प्रोत्साहित करे और वह विदेशी अनुदान पर निर्भर न हो| अपने इस कार्य के लिए उन्होने अपने आप को पूर्ण रूप से समर्पित कर दिया|
NCI के उद्घाटन अवसर पर, सितम्बर 1886 पर 12, उन्होंने कहा; “हमें (भारतीय ईसाइयों) को आलस्य में मुख्यत: यूरोप के लोगों के योगदान धर्मार्थ समर्थन पर निर्भर रहने के बजाय स्वयं को बनाए रखने के बारे में विचार करना चाहिए| हमें अब किसी भी पेशेवर भिखारी की भूमिका नहीं निभानी चाहिए|” पुलने एंडी अपने मिशनरी दोस्तों के साथ समान रूप से स्पष्टवादी थे|
उन्होंने कहा कि हिंदुओं की जटिल सामाजिक और धार्मिक प्रथाओं में ज्ञान का अभाव है और कई अच्छे काम करते हुए चर्च के विकास के लिए अनुकूल भारत में ईसाई धर्म को पेश करने के प्रयासो को विफल माना| उसने कहा था कि एक भारतीय चर्च सभी संप्रदायों की बेहतरीन सुविधाओं के साथ एक सामंजस्यपूर्ण गठबंधन होगा और यह स्कॉटलैंड के पुरोहितों (Scotch Presbyterianism), अँग्रेज़ों के एंगलिकानिस्म (English Anglicanism) और जर्मनी के लुथर्निस्म (German Lutheranism) को प्रतिबिंबित नहीं करेगा|
एक राष्ट्रीय चर्च के विचार को मिशनरियों से या भारतीय ईसाइयों से बहुत कम प्रोत्साहन प्राप्त हुआ| 1900 में प्रकाशन हार्वेस्ट फील्ड अपने समय से आगे रहने के लिए पुलने एंडी दुर्भाग्य बताया था| अपने जीवकाल में वह अपने सपने को पूरा नही कर सके| 1947 तक दक्षिण भारत के चर्च की जगह, एक चर्च के संघ ने ले ली|