उत्तर हड़प्पा काल: 1800-1200 ई.पू. Post-Harappan Period: 1800-1200 BC
लोगों का विविध दिशाओं में पलायन से सैन्धव सभ्यता का विघटन हुआ। अब विद्वान् यह मानने लगे हैं कि सैन्धव जनों ने अलग-अलग दिशाओं में पलायन कर परवर्ती हड़प्पा सभ्यता को जन्म दिया। परवर्ती हड़प्पा सभ्यता के अवशेष देश के अनेक स्थानों से मिले हैं। ताम्र उपकरणों के साथ जिन संस्कृतियों द्वारा प्रस्तर निर्मित औजारों का प्रयोग किया जाता था उन्हें ताम्र पाषाणिक संस्कृतियों के नाम से अभिहित किया जाता है। विगत दशकों में भारतीय पुरातत्त्व के क्षेत्र में कई अन्वेषण एवं उत्खनन हुए हैं, फलस्वरूप अनेक ताम्र पाषाणिक संस्कृतियों के अस्तित्त्व की जानकारी मिली। यह हड़प्पा की नागरिकोत्तर अवस्था है। यह उपसिंधु संस्कृति के नाम से भी जानी जाती है। युग की दृष्टि से यह ताम्र पाषाण काल में आता है।
विशेषताएँ- एकीकृत माप-तौल की पद्धति टूट गई। एक तरह के मृदभांडों का प्रयोग बंद हो गया। गैरिक मृदभांड एवं लाल व काले मृदभांडों का प्रचलन हड़प्पा मृदभांडों के बदले शुरू हो गया। उसी तरह कांसे का प्रचलन रुक गया। पक्की ईंटों के बदले पुनः कच्चे ईंटों का ही प्रयोग प्रारम्भ हुआ। कुल मिलाकर केन्द्रीकृत ढांचा टूट गया।
उत्तर हड़प्पा स्थल
- गुजरात में रंगपुर, रोजदी और प्रभासपाटन से उत्तर हडप्पा काल के साक्ष्य मिले हैं।
- राजस्थान में उदयपुर के पास अहार नामक स्थान को अहार संस्कृति के नाम से जाना जाता है।
- गिलुंद से पक्की ईंटें प्राप्त हुई हैं जो लगभग 2000 से 1500 ई.पू. के बीच के काल से संबद्ध है।
- राजस्थान में सीसवाल उत्तर हड़प्पा स्थल है।
- हरियाणा के भगवानपुरा नामक स्थल से पकी हुई ईंटों के प्रयोग का साक्ष्य प्राप्त हुआ है। मिताथल और दौलतपुर अन्य स्थल हैं।
- पंजाब में संघोल, चण्डीगढ़, रोपड़ और बाड़ा स्थल पाये गये हैं। बाड़ा से भी पकी ईंटों का प्रमाण मिला है।
- उत्तर प्रदेश में आलमगीरपुर, हुलास, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में लालकिला नामक स्थल से कुछ पकी हुई ईंटों के साक्ष्य मिले हैं।
उपसिंधु संस्कृतियाँ
- हड़प्पा में कब्रिस्तान एच (Cemetry ‘H’) संस्कृति
- चाँहुदाड़ों में झूकर एवं झांगर संस्कृति
- गुजरात के कच्छ एवं काठियावाड़ प्रदेश में चमकीले मृदभांड संस्कृति
- पंजाब में बाड़ा संस्कृति
- मध्य गंगा घाटी और गंगा-यमुना दोआब में ताम्र निधि संस्कृति
- गंगा यमुना दोआब में गैरिक मृदभांड संस्कृति
अन्त में यही कहा जा सकता है कि सैन्धव जन विविध कारणों से अपने मूल स्थान से अन्यत्र प्रस्थान कर गये और पूर्व स्थलों का धीरे-धीरे हृास हो। गया। जो लोग हड़प्पा स्थलों से अन्यत्र बस गये थे वहाँ अपनी प्राचीन सभ्यता की कुछ स्मृतियों को बनाये रखने का प्रयास किया। किन्तु नये स्थानों पर उस उत्कृष्ट तरीके से नगरों का विकास नहीं कर पाये जैसे अपने मूल शहरों का किया था बल्कि उन्होंने छोटी एवं ग्रामीण बस्तियों में रहना प्रारम्भ किया। पश्चिमी भारत के विस्तृत भू-भाग में फैली ऐसी उत्तरजीवी सभ्यतायें भी, अपने अवशेषों को पुराविदों के शोध की विषय वस्तु बनाकर धीरे-धीरे विलुप्त हो गई। प्राचीन सभ्यतायें अधिकांशतः परवर्ती सभ्यताओं को कुछ प्रदान करके ही विलीन होती हैं। दूसरे शब्दों में, प्राचीन सभ्यता का प्रभाव परवर्ती सभ्यता पर आवश्यक रूप से बना रहता है।