संगम काल में राजनैतिक व्यवस्था Political System During Sangam Period
राज्य एक प्रकार के कुल राज्य संघ थे। इस प्रकार के राज्य का उल्लेख अर्थशास्त्र में भी हुआ है। संगमयुगीन शासन राजतंत्रात्मक तथा वंशानुगत था। राजा को मन्नम, वेन्दन राजा का मुख्य आदर्श दिग्विजय प्राप्त करना, प्रजा को संतान रूप में स्वीकार करना तथा पक्षपात रहित होकर शासन करना था। सभा के लिए संगम साहित्य में मनरम शब्द मिलता है, जिसका शाब्दिक अर्थ है भवन। इससे संबंधित दूसरा शब्द पोडियाल मिलता है, जिसका अर्थ है सार्वजनिक स्थल। मनरम के अर्थ में अवैय शब्द भी मिलता है। राजा अपनी सभा में (नालवैय) में प्रजा की कठिनाइयों पर विचार करता था। सर्वोच्च न्यायालय भी मनरम कहलाता था। राजा के जन्मदिन को पेरूनल कहा जाता था। राजमहल में एक विशेष प्रथा थी जो करलमारम या कादिमारस कहलाती थी। इसके अंतर्गत प्रत्येक शासक अपनी शक्ति के प्रतीक में अपने राजमहल में महान् वृक्ष रखते थे। पुरनानुरू में चक्रवर्ती राजा की अवधारणा मिलती है। राजकीय दरबार में सांस्कृतिक कार्यक्रमों पर विशेष ध्यान दिया जाता था। गायकों के गाने के साथ नर्तकियाँ नाचती थीं और उन्हें पानर या विडैयालिवर कहा जाता था। राजा की सहायता के लिए अधिकारियों का एक समूह होता था जो 5 समूहों में विभाजित था।
- मंत्री-अमैईयच्चार- प्रधानमंत्री या मंत्री
- पुरोहित-पुरोहितार– धार्मिक विभाग
- सेनापतियार- सेनाविभाग
- दुत्तार- विदेशी विभाग
- गुप्तचर (ओरार)
राज्य मंडलों में विभाजित था, मंडल नाडू या जिला में विभाजित था, नाडू उर या गाँव में विभाजित था। समुद्र तटीय कस्बों को पतिनम कहा जाता था। बड़े गाँव पेरूर, छोटे गाँव सिरूर और पुराने गाँव मुडूर कहलाते थे।
भू-राजस्व प्रशासन- राजकीय आय का मुख्य स्रोत कृषि था। तमिल प्रदेश अपनी उर्वरता के लिए प्रसिद्ध था। कावेरी डेल्टा बहुत उपजाऊ था। आबूर किलार के अनुसार एक हाथी बैठने की जगह में 7 व्यक्तियों का भोजन मिल सकता था। एक अन्य कवि के अनुसार एक बेली भूमि में एक सहस्त्र कलम चावल पैदा होता था। कृषि कर करई या कदमई कहलाता था। भूमि की पैमाइश के लिए मा और बेलि पैमानों का प्रयोग होता था। सामन्तों के द्वारा दिया गया अंश या युद्ध से प्राप्त लूट को इरई कहा जाता था। सीमा शुल्क उलगू या उल्कू कहलाता था। यह वाणिज्य एवं व्यापार की उत्तमता का सूचक है। अतिरिक्त कर या जबरन वसूल किया गया कर इराबू था। राजा को दिया गया उपहार पदु कहलाता था। युद्ध गौरव का विषय था। प्रत्येक शासक के पास पेशेवर सैनिक होते थे, जो पक्षेय कहलाते थे। इसका अर्थ विनाशक होता हैं युद्ध में वीरगति प्राप्त करना शुभ माना जाता था। युद्ध भूमि में वीरगति प्राप्त करने वाले सैनिकों की स्मृति में शिलापट्ट लगाये जाते थे। इसे विराकल या नडुक्कल कहा जाता था।