कांग्रेस के गठन से पूर्व की राजनीतिक संस्थायें Political Institutions Before The Formation Of The Congress
19वीं शताब्दी के पूर्वाध में भारत में जिन राजनीतिक संस्थाओं की स्थापना हुयी उनका नेतृत्व मुख्यतः समृद्ध एवं प्रभावशाली वर्ग द्वारा किया गया। इन संस्थाओं का स्वरूप स्थानीय या क्षेत्रीय था। इन्होंने विभिन्न याचिकाओं एवं प्रार्थना-पत्रों के माध्यम से ब्रिटिश संसद के समक्ष निम्न मांगें रखीं-
- प्रशासनिक सुधार
- प्रशासन में भारतीयों की भागीदारी को बढ़ावा
- शिक्षा का प्रसार
किंतु 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में देश में जिन राजनीतिक संस्थाओं का गठन हुआ उसका नेतृत्व मुख्यतः मध्य वर्ग के द्वारा किया गया। इस वर्ग के विभिन्न लोगों जैसे-वकीलों, डाक्टरों, पत्रकारों तथा शिक्षकों इत्यादि ने इन राजनीतिक संगठनों को शसक्त नेतृत्व प्रदान किया इन सभी ने सक्षम नेतृत्व प्रदान कर इन संस्थाओं की मांगों को परिपूर्णता एवं प्रासंगिकता प्रदान की।
बंगाल में राजनीतिक संस्थाएं
बंगाल में राजनीतिक आंदोलनों के सबसे पहले प्रवर्तक थे राजा राममोहन राय। वे पाश्चात्य विचारों से प्रभावित व्यक्ति थे। उन्होंने ही सर्वप्रथम अंग्रेजों का ध्यान भारतीय समस्याओं की ओर आकृष्ट किया। ऐसा माना जाता है कि 1836 के चार्टर एक्ट की अनेक उदारवादी धारायें उन्हीं के प्रयत्नों का परिणाम थीं। लेकिन बंगाल में सर्वप्रथम राजनीतिक संगठन बनाने का श्रेय उनके सहयोगियों को मिला, जब उन्होंने 1836 में बंगभाषा प्रकाशक सभा का गठन किया।
जुलाई 1838 में जमीदारों के हितों की सुरक्षा के लिये जमींदारी एसोसिएशन जिसे लैंडहोल्डर्स एसोसिएशन के नाम से भी जाना जाता था, का गठन किया गया। जमींदारी एसोसिएशन भारत की पहली राजनीतिक सभा थी, जिसने संगठित राजनीतिक प्रयासों का शुभारम्भ किया। इसने ही सर्वप्रथम अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिये संवैधानिक प्रदर्शन का मार्ग अपनाया।
1843 में एक अन्य राजनीतिक सभा बंगाल ब्रिटिश इण्डिया सोसायटी बनायी गयी, जिसका उद्देश्य लोगों में राष्ट्रवाद की भावना जगाना तथा राजनीतिक शिक्षा को प्रोत्साहित करना था। सोसायटी, ब्रिटिश शासन के प्रभाव से समाज के सभी वर्ग के लोगों की कठिनाइयों एवं दुखों पर विचार कर उनके समाधान ढूंढ़ने का प्रयत्न करती थी।
1851 में जमींदारी एसोसिएशन तथा बंगाल ब्रिटिश इंडिया सोसायटी का आपस में विलय हो गया तथा एक नयी संस्था ब्रिटिश इंडियन एसोसिएशन का गठन हुआ। इसने ब्रिटेन की संसद को एक प्रार्थना पत्र भेजकर अपील की कि उसके कुछ सुझावों को कम्पनी के नये चार्टर में सम्मिलित किया जाये। जैसे-
- लोकप्रिय उद्देश्यों वाली पृथक विधायिका की स्थापना
- उच्च वर्ग के नौकरशाहों के वेतन में कमी
- नमक कर, आबकारी कर एवं डाक शुल्क में समाप्ति
एसोसिएशन के इन सुझावों को आंशिक सफलता मिली, जब 1853 के अधिनियम द्वारा गवर्नर जनरल की विधायी परिषद में कानून निर्माण में सहायता देने के लिये 6 नये सदस्यों को मनोनीत करने का प्रावधान किया गया।
1866 में दादाभाई नौरोजी ने लंदन में ईस्ट इण्डिया एसोसिएशन का गठन किया। इसका उद्देश्य भारत के लोगों की समस्याओं और मांगों से ब्रिटेन को अवगत कराना तथा भारतवासियों के पक्ष में इंग्लैण्ड में जनसमर्थन तैयार करना था। कालांतर में भारत के विभिन्न भागों में इसकी शाखायें खुल गयीं।
1875 में शिशिर कुमार घोष ने इण्डियन लीग की स्थापना की, जिसका उद्देश्य लोगों में राष्ट्रवाद की भावना जागृत करना तथा राजनीतिक शिक्षा को प्रोत्साहन देना था। शीघ्र ही इण्डियन लीग का स्थान इण्डियन एसोसिएशन ऑफ़ कलकत्ता ने ले लिया। इसकी स्थापना 1876 में हुई। सुरेंद्रनाथ बनर्जी एवं आनंद मोहन बोस इसके प्रमुख नेता थे। ये दोनों ब्रिटिश इंडियन एसोसिएशन की संकीर्ण एवं जमींदार समर्थक नीतियों के विरुद्ध थे। इंडियन एसोसिएशन आफ कलकत्ता, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पूर्ववर्ती संस्थाओं में से एक महत्वपूर्ण संस्था थी। इसके प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार थे-
- तत्कालीन राजनीतिक व्यवस्था के संदर्भ में सशक्त जनमत तैयार करना।
- एक साझा राजनीतिक कार्यक्रम हेतु भारतवासियों में एकता की स्थापना करना ।
एसोसिएशन की शाखाएं बंगाल के अनेक स्थानों तथा बंगाल से बाहर भी कई स्थानों पर खोली गयीं। एसोसिएशन ने निम्न आय वर्ग के लोगों को आकृष्ट करने के लिए अपनी सदस्यता शुल्क काफी कम रखी।
बंबई में राजनीतिक संस्थाएं
बंबई में सर्वप्रथम राजनीतिक संस्था बाम्बे एसोसिएशन थी, जिसका गठन 26 अगस्त 1852 को कलकत्ता ब्रिटिश इंडिया एसोसिएशन के नमूने पर किया गया। इसका उद्देश्य भेदभावपूर्ण सरकारी नियमों के विरुद्ध सरकार को सुझाव देना तथा विभिन्न बुराइयों को दूर करने हेतु सरकार को ज्ञापन देना था।
1867 में महादेव गोविंद रानाडे ने पूना सार्वजनिक सभा बनायी। जिसका उद्देश्य सरकार और जनता के मध्य सेतु का कार्य करना था। 1885 में बाम्बे प्रेसीडेंसी एसोसिएशन बनायी गयी। जिसका श्रेय सैय्यद बदरुद्दीन तेय्यबाजी, फिरोजशाह मेहता एवं के टी. तेलंग की है।
मद्रास में राजनीतिक संस्थाएं
कलकत्ता की ब्रिटिश इंडिया एसोसिएशन की शाखा के रूप में मद्रास नेटिव एसोसिएशन का गठन किया गया किंतु यह ज्यादा प्रभावी न हो सकी।
मई 1884 में एम. वीराराघवाचारी, बी. सुब्रह्मण्यम अय्यर एवं पी.आनंद चारलू ने मद्रास महाजन सभा का गठन किया। इस सभा का उद्देश्य स्थानीय संगठन के कायों को समन्वित करना था।
कांग्रेस से पूर्ववर्ती अभियान
भारतीय राजनीतिक परिदृश्य पर अखिल भारतीय कांग्रेस के अभ्युदय से पूर्व इन राजनीतिक संस्थाओं ने अनेक आंदोलन या अभियान किये। जो इस प्रकार हैं-
- 1875 में कपास पर आयात शुल्क आरोपित करने के विरोध में।
- सरकारी सेवाओं के भारतीयकरण हेतु (1878-79) में।
- लार्ड लिटन की अफगान नीति के विरोध में।
- शस्त्र अधिनियम (1878) के विरोध में।
- वर्नाकुलर प्रेस एक्ट (1878) के विरोध में।
- स्वयंसेवक सेना में प्रवेश के अधिकार के समर्थन में।
- ‘प्लांटेशन लेबर’ एवं ‘इंन्लैंड इमिग्रेशन एक्ट’ के विरोध में।
- इलबर्ट बिल के समर्थन में।
- राजनीतिक प्रदर्शनों हेतु अखिल भारतीय कोष की स्थापना के समर्थन में।
- ब्रिटेन में भारत का समर्थन करने वाले दल के लिये मतों हेतु।
- भारतीय सिविल सेवा में प्रवेश की न्यूनतम आयु कम करने के समर्थन में।
इण्डियन एसोसिएशन ने इस संबंध में अखिल भारतीय प्रदर्शन किया। इसे ही ‘भारतीय सिविल सेवा प्रदर्शन’ के नाम से भी जाना जाता है।