संघ प्रोटोजोआ Phylum Protozoa

प्रोटिस्टा जगत


संघ प्रोटोजोआ (Phylum Protozoa):

प्रोटोजोआ दो शब्दों Protos = First, Zoon = Animal से मिलकर बना है। प्रोटोजोआ शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम गोल्डफस (Goldfus) ने 1820 ई. में किया। प्रोटोजोआ सबसे आदिकालीन एवं सबसे साधारण जन्तु हैं। ये एककोशिकीय (Unicellular) तथा सूक्ष्मदर्शीय (Microscopic) जंतु होते हैं। इस संघ में लगभग 30,000 जातियाँ (species) हैं। इस संघ के जन्तुओं के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं-

  • ये जन्तु अत्यन्तं सूक्ष्म (001 mm से 5.0 mm) और एककोशिकीय (Unicellular) होते हैं।
  • ये स्वतंत्रजीवी, सहजीवी (Symbiotic) या सहभोजी (Commensal) या परजीवी (Parasites) होते हैं।
  • इनके शरीर का जीवद्रव्य (Protoplasm) बाह्यद्रव्य और अन्तः द्रव्य में विभेदित रहता है।
  • इस संघ के जन्तुओं में पोषण (Nutrition) मुख्यतः प्राणी समभोजी (Holozoic), मृतोपजीवी (Saprophytic or saprozoic), पादपसमभोजी (Holophytic) या परजीविता (Parasitic) विधि द्वारा होता है।
  • इस संघ के जन्तुओं के शरीर में कोई ऊतक (Tissue) या अंग (Organ) नहीं होता है। इसमें पायी जाने वाली आकृतियों को अंगक (Organelles) कहते हैं, क्योंकि वे शरीर के हिस्से होते हैं। इसलिए प्रोटोजोआ को ‘जीवद्रव्य के स्तर पर गठित (Protoplasmic level of body organisation) जंतु कहते हैं।
  • इस संघ के जंतुओं में प्रचलन (Locomotion) कूटपाद (Pseudopodia), कशाभिका (Flagella) या यक्ष्माभिका (Cilia) द्वारा होता है।
  • इस संघ के जन्तुओं के एककोशिकीय शरीर में रसधानियाँ (vacuoles) एवं संकुचनशील रसधानियाँ (Contractile vacuoles) पाई जाती हैं।
  • इस संघ के जन्तु एक केन्द्रकीय या बहुकेन्द्रकीय होते हैं। इस संघ के जन्तुओं में श्वसन तथा उत्सर्जन की क्रियाएँ शरीर की बाहरी सतह के रास्ते विसरण (Diffusion) क्रिया द्वारा होती है।
  • इस संघ के जन्तुओं में प्रजनन अलिंगी (Asexual) तथा लिंगी (sexual) दोनों विधियों द्वारा सम्पन्न होता है। अलिंगी प्रजनन (Asexual reproduction) द्विविभाजन (Binary fission), बहुविभाजन (Multiple fission) या मुकुलन (Budding) द्वारा तथा लिंगी प्रजनन (Sexual reproduction) नर तथा मादा युग्मकों के समागम (Conjugation) से होता है।
  • प्रतिकूल वातावरण (Unfavourable condition) से सुरक्षा के लिए इनमें परिकोष्ठन (Encystment) की व्यापक क्षमता होती है।
  • इनका शरीर नग्न या पोलिकिल (Pollicle) द्वारा ढंका रहता है। कुछ जन्तु कठोर खोल में बन्द रहते हैं।

उदाहरण– अमीबा (Amoeba), एण्टअमीबा हिस्टोलिटिका (Entamoeba Histolytica), एण्टअमीबा कोलाई (Entamoeba coli), एण्टअमीबा जिंजीवैलिस (Entamoeba gingivalis), ट्रिपैनोसोमा गैम्बिएन्स (Trypanosoma gambiense), लीशमैनिया डोनोवानी (Leishmania donovani), प्लैजमोडियम (Plasmodium), पैरामीशियम कॉडेटम (Paramecium caudatum), यूग्लीना (Euglena) आदि।

महत्वपूर्ण तथ्य:

  • अमीबा का अर्थ है-‘बदलना’। प्रोटियस (Proteus) ग्रीस का एक समुद्र देवता (sea God) है जिनको शरीर का आकार बदलने की विशेष क्षमता है, इसलिए अमीबा का वैज्ञानिक अमीबा प्रोटियस (Amoeba proteus) रखा गया है।
  • एण्टअमीबा हिस्टोलिटिका परजीवी के कारण मनुष्य में पेचिश (Amoebic dysentery) होती है।
  • एण्टअमीबा कोलाई मनुष्य के बृहदंत्र (Colon) में रहता है तथा जीवाणुओं को खाता है। यह कभी भी रक्त कोशिकाओं या अन्य ऊतकों को नहीं खाता है। अत: यह हानिकारक नहीं होता है।
  • एण्टअमीबा जिंजीवैलिस परजीवी द्वारा मनुष्य में पायरिया (Pyarrhoea) रोग होता है।
  • ट्रिपैनोसोमा गैम्बियेन्स मनुष्य के रुधिर में पाया जाता है। इस परजीवी से मनुष्य में सुषप्ति रोग (sleeping sickness) होता है। जब ये रुधिर प्रवाह में रहते हैं तब मनुष्य को गैम्बियन ज्वर (Gambian fever) हो जाता है। इस ज्वर से मनुष्य में कमजोरी हो जाती है, चेतना गायब हो जाती है तथा रक्त कम हो जाता है।
  • लीशमैनिया डीनोवानी का पता 1903 ई. में इंग्लैंड में लीशमैन (Leishman) एवं मद्रास (चेन्नई) में डीनोवान (Donovan) द्वारा लगाया गया था। इसलिए इसका नाम लीशमैनिया डोनोवानी (Leishmania donovani) रखा गया। इसके कारण मनुष्य में कालाजार (Kalazar) नामक रोग होता है। यह रोग भारत, पूर्वी एशिया तथा भूमध्यसागरीय (Mediterranean) देशों में होता है।
  • मनुष्य एवं अन्य स्तनधारियों में मलेरिया ज्वर प्लैजमोडियम के द्वारा ही उत्पन्न होता है।
  • पैरामीशियम कॉडेटम का आकार बहुत कुछ चप्पल से मिलता-जुलता है। अतः इसे चप्पल जंतु (Slipper animalcule) भी कहते हैं।
  • यूग्लीना को हरा प्रोटोजोआ (Green protozoa) कहा जाता है।

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