संघ ऐनेलिडा Phylum Annelida
ऐनेलिडा शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम लैमाक (Lamarck) द्वारा किया गया। इस संघ के अन्तर्गत खण्डयुक्त जन्तु रखे गए हैं। ऐनेलिडा दो ग्रीक शब्दों Annelus = Ring; eidos = Form से मिलकर बना है। इस असंह के अंतर्गत लगभग 10000 जातियाँ ज्ञात हैं। इस संघ के जन्तुओं में पाये जाने वाले प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं-
- इस संघ में आनेवाले जन्तुओं का शरीर खण्डित लम्बा एवं कृमि के आकार का होता है। प्रत्येक खण्ड वलय (Ring) जैसा होने के कारण इन्हें ऐनेलिडा (Annulus = Ring) कहा जाता है।
- प्राणियों के विकासक्रम में वास्तविक देहगुहा (Coelom) का उदय सर्वप्रथम इन जन्तुओं में ही हुआ।
- ये जन्तु साधारणतः स्वतंत्रजीवी (Free living) होते हैं।
- ये बहुकोशकीय (Multicellular) तथा त्रिस्तरीय (Triploblastic) होते हैं।
- ये द्विपाशिर्वक सममित (Bilaterally symmetrical) तथा सीलोममुक्त (Coelomate) होते हैं।
- इनके शरीर में अनेक खण्ड (Segments) होते हैं।
- इनके शरीर भित्ति (Body wall) में कई परतें होती हैं। बाहर से भीतर की ओर इनके नाम हैं- उच्चर्म (Cuticle), बाह्य त्वचा (Epidermis), वृत्ताकार मांसपेशी (Circular muscle fibre), अनुदैर्घ्य मांसपेशी (Longitudinal muscle fibre) तथा भित्तिलग्न अधिच्छ्द (Parietal layer of coelomic epithelium)।
- इनमें उच्चर्म (Cuticle) बहुत पतला होता है।
- इनके शरीर में छोटे-छोटे काँटेनुमा शूक (Setae) पाए जाते हैं।
- शरीर की दीवार और आहारनाल के बीच की जगह को देहगुहा (Coelom) कहते हैं जो पेट या सेप्टा (septa) द्वारा कई खण्डों में बँटी रहती है। देहगुहा के चारों ओर भ्रूण के मीसोडर्म (Mesoderm) की एक परत होती है।
- इस संघ के जन्तुओं में अंग एवं अंगतंत्र का पूर्ण विकास पाया जाता है।
- इनमें आहारनाल पूर्ण नलिकाकार (Tubular) होता है। आहारनाल के विभिन्न भाग स्पष्ट होते हैं। इनमें रक्त का परिसंचरण बंद रुधिर वाहिनियों के द्वारा होता है।
- इनमें हीमोग्लोबिन रुधिर कणिकाओं में न होकर प्लाज्मा में घुला रहता है।
- इनमें उत्सर्जन वृक्कक (Nephridia) के द्वारा होता है।
- इसमें श्वसन (Respiration) साधारणतः त्वचा (Skin) द्वारा तथा किसी-किसी में क्लोम (Gills) द्वारा होता है।
- इनके तंत्रिका तंत्र में एक जोड़ी पृष्ठीय सेरिब्रल गुच्छिका (Cerebral ganglia) या मस्तिष्क (Brain) एवं एक दोहरी तथा ठोस अधर तंत्रिका रज्जु (Double ventral nerve cord) होती है।
- इस संघ के कुछ जन्तु एकलिंगी तथा कुछ उभयलिंगी होते हैं।
- कुछ जन्तुओं के परिवर्धन काल में एक लार्वा अवस्था होती है, जिसे ट्रोकोफोर (Trochophore) कहते हैं।
उदाहरण: पालीगोर्डियस (Polygordius), नेरीस (Nereis), एफ्रोडाइट (Aphrodite), केंचुआ (Pheretima posthuma), जोंक (Hirudinaria granulosa) आदि।
महत्वपूर्ण तथ्य:
- नेरीस एक समुद्री पॉलीकीट है जो विश्वभर में समुद्रतट पर चट्टानों के नीचे या समुद्री वनस्पतियों के बीच पाया जाता है।
- हिरुडिनेरिया (Hirudinaria) को सामान्यतः जोंक कहते हैं जो अधिकांशतः मीठे जल वाले तालाबों या पोखरों और गड्ढों में पाया जाता है। यह बाह्य परजीवी तथा रक्ताहारी (sanguivorous) होता है। खून चूसते समय जोंक एक प्रकार का प्रतिस्कन्दक निकालती है जो खून को जमने से रोकती है।
- एफ्रोडाइट (Aphrodite) को समुद्री चूहा (Sea mouse) कहा जाता है।
- केचुआ (Earthworm) को किसानों का मित्र, प्रकृति का हलवाहा (Nature’s ploughman) पृथ्वी की आंत (Intestine of earth), एवं मृदा उर्वरता का बैरोमीटर (Barometer of soil fertility) कहते हैं।
- नेरीस को सीपी कृमि (Clamworm) तथा चीर कृमि (Ragworm) भी कहते हैं।