फारसी साहित्य और मुस्लिम शिक्षा Persian Literature and Islamic Education
दिल्ली के सुल्तान एवं अमीर तथा प्रान्तों के मुस्लिम शासक एवं सरदार स्वभावत: फारसी में साहित्यिक कायों को प्रोत्साहित करते थे क्योंकि वे इसे अच्छी तरह समझते थे। अमीर खुसरो ने गर्व के साथ घोषित किया कि दिल्ली मध्य एशिया के प्रसिद्ध विश्वविद्यालय नगर बुखारा की बौद्धिक प्रतिद्वन्द्विनी बन गयी। भारत के तत्कालीन मुस्लिम शासक उन फारसी विद्वानों का संरक्षण किया करते थे, जो मगोलों के आक्रमणों के दबाव के कारण एशिया के भिन्न-भिन्न भागों से भागकर उनके दरबारों में एकत्र होते थे। उन्होंने दिल्ली, जालंधर, फूीरोज़ाबाद तथा अन्य स्थानों में मुस्लिम शिक्षा के लिए संस्थाएँ स्थापित कीं। उन्होंने पुस्तकालय स्थापित किए जिनमे सबसे महत्वपूर्ण दिल्ली राजकीय पुस्तकालय था, जिसका पुस्तकालयाध्यक्ष जलालुद्दीन खल्जी द्वारा नियुक्त किया गया अमीर खुसरो था। उन्होंने मुस्लिम साहित्य परिषदों की वृद्धि में भी योग दिया। सबसे प्रसिद्ध भारतीय विद्वान्, जिसने इस युग में फारसी में लिखा था, अमीर खुसरो था। इस लेखक ने काफी लिखा। उसकी प्रतिभा काव्य, गद्य तथा संगीत में प्रस्फुटित हुई तथा उसे विधाता ने लम्बा जीवन प्रदान किया। वह सर्वप्रथम बलबक के शासन-काल में प्रसिद्धि को प्राप्त हुआ तथा सुल्तान के ज्येष्ठ पुत्र शाहजादा मुहम्मद का शिक्षक था। आगे चलकर वह अलाउद्दीन खल्जी का राजकवि बना। उसे ग्यासुद्दीन तुगलक का संरक्षण भी प्राप्त था।। 1324-1325 ई. में उसकी मृत्यु हुई। उस काल का एक दूसरा कवि, जिसकी ख्याति भारत के बाहर मानी जाती थी, शेख नज्मुद्दीन हसन था, जो हसए दिहलवी के नाम से प्रसिद्ध था।
पहला खल्जी शासक विद्या का संरक्षण करना नहीं भूला। उसका उत्तराधिकारी अलाउद्दीन भी इसका (विद्या का) उत्साही मित्र मालूम पड़ता है। बरनी हमें बतलाता है कि- सबसे आश्चर्यजनक वस्तु जो लोगों ने अलाउद्दीन के राज्यकाल में देखी वह सभी जातियों के महान् पुरुषों, प्रत्येक विज्ञान के विज्ञ तथा प्रत्येक कला के विशेषज्ञों की बहुतायत। दिल्ली राजधानी इन अद्वितीय महामेधावी पुरुषों की उपस्थिति से बगदाद की ईर्ष्या, काहिरा की प्रतिद्वन्द्विनी तथा कुस्तुनतुनिया की समकक्ष बन गयी थी। धर्मनिष्ठ एवं शिक्षित विद्वान् निजामुद्दीन औलिया तथा बहुत से अन्य विद्वान इसी राज्यकाल में हुए। ग्यासुद्दीन तुगलक भी विद्वानों को प्रोत्साहन देता था। अपनी काल्पनिक योजनाओं के बावजूद मुहम्मद-बिन-तुगलक जो स्वयं गुण-सम्पन्न व्यक्ति था, कवियों, नैयायिकों, दार्शनिकों तथा वैद्यों का धड़ल्ले से रक्षण करता था तथा उनके साथ अपने राज दरबार में वादविवाद किया करता था। उसके समय के साहित्यिक व्यक्तियों में सबसे प्रमुख मौलाना मुईनुद्दीन उमरानी था, जिसने हुसैनी, तलखीस तथा मिफताह पर भाष्य लिखे। फीरोज शाह ने, जो स्वयं फतुहाते-फीरोजशाही का लेखक था, शिक्षा के लिए बहुत उत्साह दिखलाया तथा बहुत-से कालेज स्थापित किये, जिनके साथ मस्जिदें लगी हुई थीं। उसके समय के विद्वान् पुरुषों में सबसे प्रसिद्ध थे काजी अब्दुल मुकतदिर शानिही, मौलाना ख्वाजगी तथा अहमद थानेश्वरी। लोदियों में सुल्तान सिकन्दर स्वयं कवि था तथा विद्या को बहुत प्रोत्साहन देता था।
बहमनी राज्य तथा दूसरे स्वतंत्र मुस्लिम वंशों- जैसे बीजापुर, अहमदनगर, गोलकुण्डा, मालवा, जौनपुर, बंगाल तथा मुल्तान तक-के वंशों के अधिकतर शासक भी विद्या के संरक्षक थे।
मुस्लिम लेखकों ने अध्ययन की एक वैसी शाखा में अपना कौशल दिखलाया, जिसकी हिन्दू अपेक्षाकृत उपेक्षा करते थे। उन्होंने सुन्दर गद्य में बहुत-से प्रथम श्रेणी के ऐतिहासिक ग्रंथ लिखे। इस प्रकार का एक ग्रंथ मिन्हाजुद्दीन की तबकाते-नासिरी है, जो इस्लामी जगत् का सामान्य इतिहास है तथा जिसका नामकरण उसके एक आश्रयदाता सुल्तान नसिरुद्दीन के नाम पर हुआ था। अमीर खुसरो की ऐतिहासिक मसनवियाँ महत्त्वपूर्ण सूचनाओं से भरी हुई हैं और खासकर उसकी तारीखे अलाई, अलाउद्दीन खल्जी के राज्यकाल के पहले कुछ वर्षों के दिलचस्प वर्णन से परिपूर्ण है।
इस युग का सबसे प्रसिद्ध इतिहासकार जियाउद्दीन बरनी था, जो मुहम्मद बिन तुगलक तथा फ़ीरोज शाह का समकालीन था। उस समय के दो और महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक ग्रंथ थे- शम्से-सिराज अफीफ की तारीखे-फीरोज़ शाही, जो फ़ीरोज शाह के राज्यकाल में लिखी गयी तथा यहिया बिन अहमद सरहिन्दी की तारीखे-मुबारक शाही, जो मुहम्मद बिन तुगलक की मृत्यु के लगभग अस्सी वर्षों के बाद लिखी गयी तथा जिसका बाद के लेखकों ने धडल्ले से इस्तेमाल किया।