संसदीय प्रक्रिया संबंधी महत्वपूर्ण प्रावधान Parliamentary Procedure: Important Provisions
संसद विभिन्न प्रावधानों या व्यवस्थाओं द्वारा संसदीय प्रक्रिया को चलाती और व्यवस्थित करती है, जो इस प्रकार है-
प्रश्न काल: संसद के दोनों सदनों में प्रत्येक बैठक के पहले घंटे के समय को प्रश्न काल कहा जाता है। प्रायः इस काल में मंत्रियों से प्रश्न किए जाते हैं।
शून्य काल: संसद के दोनों सदनों में प्रश्न काल के ठीक बाद का समय सामान्यतः शून्य काल के नाम से जाना जाता है। अक्सर यह 5 से 15 मिनट तक चलता है। इस काल में उठाये गये मामलों के संदर्भ में नियमों का कोई विशेष प्रावधान नहीं है। इस काल में सभी सदस्यों को बोलने का समान अवसर दिया जाता है।
तारांकित प्रश्न: इन प्रश्नों का सदन में मौखिक उत्तर दिया जाता है। सदस्यों द्वारा ऐसे प्रश्नों के अनुपूरक प्रश्न भी पूछे जा सकते हैं। ऐसे प्रश्नों की तारांकित प्रश्न इस कारण कहा जाता है कि इन पर तारांक लगाकर इनका विभेद किया जाता है।
अतारांकित प्रश्न: ऐसे प्रश्नों को अतारांकित प्रश्न इसलिए कहा जाता है क्योंकि इन पर तारांक नहीं लगा होता। ऐसे प्रश्नों का उत्तर लिखित रूप से दिया जाता है न कि तारांकित प्रश्नों के उत्तर की तरह मौखिक रूप से, जिस कारण इन पर अनुपूरक प्रश्न नहीं पूछे जा सकते।
अल्प सूचना प्रश्न: अविलंब लोक महत्व के किसी मामले के बारे में प्रश्न के मौखिक उत्तर के लिए सूचना पूरे दस दिन से कम अवधि में दी जा सकती है। उल्लेखनीय है कि ऐसे प्रश्न की सूचना देने वाले सदस्य को अल्प-सूचना पर प्रश्न पूछने के कारण संक्षेप में बताने होते हैं।
आधे घंटे की चर्चा: किसी ऐसे प्रश्न से उत्पन्न होने वाले मामलों पर जिसका उत्तर सदन में दिया जा चुका हो, आधे घंटे की चर्चा लोक सभा में सप्ताह में तीन दिन, अर्थात् सोमवार, बुधवार और शुक्रवार को, बैठक के अंतिम आधे घंटे में की जा सकती है। राज्यसभा में ऐसी चर्चा सभापति द्वारा इस प्रयोजन के लिए नियत किसी दिन की जा सकती है। महत्वपूर्ण है की किसी ऐसी चर्चा का विषय पर्याप्त लिक महत्त्व का होना चाहिए जो हाल के किसी तारांकित, अतारांकित या अल्प सूचना प्रश्न का विषय रहा हो और जिसके उत्तर के किसी तथ्यात्मक मामले का स्पष्टीकरण करना आवश्यक हो।
अल्पकालीन चर्चा: इसके अंतर्गत दोनों सदनों में आम महत्व के विषय पर ध्यान आकृष्ट किया जाता है, जिसे किसी भी परिस्थिति में टाला नहीं जा सकता है। लोकसभा अध्यक्ष सप्ताह में दो दिन इस चर्चा के लिए समय निर्धारित कर सकता है। प्रायः विषय का चुनाव कार्य मंत्रणा समिति करती है।
ध्यानाकर्षण प्रस्ताव: इसमें अध्यक्ष या सभापति की स्वीकृति से कोई सदस्य अति सार्वजनिक महत्व के किसी मामले की ओर मंत्री का ध्यान दिलाता है अथवा उससे संबंधित प्रश्न करता है तो इसे ध्यानाकर्षण प्रस्ताव कहते हैं। प्रस्ताव के पश्चात् सम्बद्ध मंत्री तत्काल संक्षिप्त वक्तव्य दे सकता है अथवा बाद में वक्तव्य देने के लिए समय की मांग कर सकता है। इस प्रस्ताव की सूचना लोकसभा महासचिव को देनी होती है। उसके पश्चात् लोकसभा तथा सम्बद्ध मंत्री को भी एक प्रति दी जाती है।
स्थगन प्रस्ताव: यह प्रस्ताव सरकार के विरुद्ध निंदा प्रस्ताव होता है। यह प्रस्ताव किसी सदस्य द्वारा गंभीर सार्वजनिक महत्व के विषयों पर सदन का ध्यान आकर्षित करने के लिए किया जाता है, जिस विषय पर तत्काल विचार न किए जाने पर घातक परिणाम हो सकते हैं। स्थगन प्रस्ताव पर विचार करने के लिए शाम के चार बजे का समय निर्धारित किया गया है।
निंदा प्रस्ताव: निंदा प्रस्ताव विरोधी दल के नेता या अन्य सदस्यों द्वारा सरकारी नीतियों की आलोचना करने के लिए पेश किया जाता है। प्रस्ताव नियमानुसार है या नहीं यह फैसला लोकसभा अध्यक्ष करता है। इसके लिए सदन की अनुमति अपेक्षित नहीं होती है। निंदा प्रस्ताव पारित हो जाने पर सरकार को त्यागपत्र देना पड़ सकता है।
काम रोको प्रस्ताव: किसी सार्वजनिक महत्व के विषय परविचार करने के लिए यदि कोई सदस्य सदन की वर्तमान कार्यवाही की बंद करने का प्रस्ताव रखता है तो उसे काम रोको प्रस्ताव कहते हैं। यह प्रस्ताव प्रश्न काल के समाप्त होने के बाद सदन के किसी भी सदस्य द्वारा पेश किया जा सकता है।
विशेषाधिकार प्रस्ताव: यदि किसी मंत्री द्वारा सही तथ्यों को प्रकट नहीं किया जाता है अथवा गलत सूचना दी जाती है तो इससे विशेषाधिकार भंग होता है तो कोई भी सदस्य इस विशेषाधिकार प्रस्ताव को संसद में पेश कर सकता है।
स्थानापन्न प्रस्ताव: जब किसी प्रस्ताव के स्थान पर उसके विकल्प के रूप में दूसरा प्रस्ताव पेश किया जाता है तो उसे स्थानापन्न प्रस्ताव कहते हैं।
मूल प्रस्ताव: मूल प्रस्ताव एक पूर्णं स्वतंत्र प्रस्ताव है, जो सदन। के अनुमोदन के लिए पेश किया जाता है और इस ढंग से बनाया गया होता है कि उससे सदन के फैसले की अभिव्यक्ति हो सके।
गैर-सरकारी विधेयक
लोगों के प्रतिनिधियों की लोक महत्व के विभिन्न मामलों पर अपने विचार व्यक्त करने का अवसर प्रदान करने और सरकार को कार्यक्रम एवं नीतियों के निर्माण के लिए राजी करने की दृष्टि से संसद के नियमों एवं प्रक्रियाओं में गैर-सरकारी सदस्यों द्वारा भी विधान की शुरुआत करने का उपबंध किया गया है। गैर-सरकारी सदस्यों द्वारा लाए जाने वाले विधेयकों पर चर्चा करने से सदन की समस्याओं को समझने का और उनके सभी पहलुओं पर विचार करने का अवसर मिलता है। इससे एक लाभ यह होता है कि सरकार यदि आवश्यक समझे तो उस विषय पर व्यापक विधेयक स्वयं ला सकती है। गैर-सरकारी सदस्यों के विधेयकों के लिए नियत दिन को पेश किए जाने वाले सभी विधेयक उस दिन की गैर-सरकारी सदस्यों की कार्य-सूची में सम्मिलित किए जाते हैं।
गत वर्षों में आज तक लोक सभा एवं राज्य सभा में केवल 14 गैर-सरकारी विधेयक पारित हो सके हैं।
राज्यसभा एवं लोकसभा की तुलनात्मक स्थिति | |
राज्यसभा | लोकसभा |
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14 गैर-सरकारी पारित विधेयक |
14वीं लोकसभा में 300 निजी विधेयक प्रस्तुत किए गए, जिसमें से मात्र 4 प्रतिशत पर चर्चा की गई, 96 प्रतिशत बिना किसी चर्चा के व्यपगत हो गए। वर्ष 2013 की स्थिति के अनुसार, संसद ने 14 निजी सदस्य विधेयक पारित किए हैं। इनमें से 6 विधेयक केवल 1956 में पारित किए गए और अंतिम गैर-सरकारी सदस्य पारित विधेयक उच्चतम न्यायालय (आपराधिक अपीलीय क्षेत्राधिकार विस्तार) विधेयक, 1968 था, जो 9 अगस्त, 1970 से अधिनियम बना। वर्ष 1970 से कोई भी गैर-सरकारी सदस्य विधेयक संसद द्वारा पारित नहीं किया गया।
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