राजभाषा Official Language
भारत एक बहुभाषी देश है। भाषा की विविधता भारतीय समाज की विलक्षणता है। यहां भिन्न-भिन्न क्षेत्रों की जनता भिन्न-भिन्न भाषा का प्रयोग करती है। भाषागत विविधता कोई बुरी बात नहीं है, किंतु इससे एकता बढ़ाने में थोड़ी कठिनाई अवश्य होती है। यदि एक ऐसी सम्पर्क भाषा हो जो विविध भाषा-भाषी लोगों को एकता के सूत्र में बांध सके तो इस समस्या का निवारण सुगमता से हो सकता है।
उल्लेखनीय है कि, सम्पूर्ण भारत में लगभग 1652 से भी अधिक भाषाओं का प्रयोग किया जाता है जिनमें से 63 भाषाएं गैर-भारतीय हैं। प्रारंभ में संविधान द्वारा 14 भाषाओं को स्वीकार किया गया, जिनके नाम इस प्रकार हैं- असमिया, बंगाली, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, कश्मीरी, मलयालम, मराठी, उड़िया, पंजाबी, तमिल, तेलुगु संस्कृत एवं उर्दू। सिंधी भाषा को संविधान के इक्कीसवें संशोधन (1967) के द्वारा आठवीं अनुसूची में स्थान दिया गया। संविधान में सिंधी भाषा को सम्मिलित करने के पश्चात् भारत के संविधान में राजभाषाओं की संख्या 15 हो गयी थी। अगस्त 1992 में संविधान के 71वें संशोधन के द्वारा कोंकणी, मणिपुरी और नेपाली को भी सम्मिलित कर लिया गया। संविधान के 92वें संशोधन अधिनियम, 2003 के व्यवस्थापन के पश्चात् संविधान की आठवीं अनुसूची में चार नई भाषाएं डोगरी, बोड़ो, मैथिली एवं संथाली को शामिल किया गया जिसके परिणामस्वरूप कुल अनुसूचित भाषाओं की संख्या 22 हो गई है।
इन 22 भाषाओं में हिंदी यह दावा कर सकती है कि 46 प्रतिशत लोग उसका प्रयोग करते हैं। हिंदी में उर्दू और हिंदुस्तानी सम्मिलित है। सभी प्रादेशिक भाषाओँ में हिंदी बोलने और समझने वालों की संख्या सर्वाधिक है इसलिए हिंदी को संघ की राजभाषा के रूप में विहित किया गया है और यह सिफारिश की गई कि हिंदी का विकास इस प्रकार से किया जाए कि वह भारत की सामासिक संस्कृति के समस्त तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके और उसमें 8वीं अनुसूची में विनिर्दिष्ट भाषाओं में प्रयुक्त अभिव्यक्तियों को आत्मसात् किया जाए (अनुच्छेद-351)।
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संघ की राजभाषा Language of The Union
संघ के शासकीय कार्यों के लिए एक भाषा (हिंदी) विहित की गई है किंतु प्रादेशिक भाषाई समूहों की सुविधा हेतु संविधान के अंतर्गत राज्य विधानमण्डलों (अनुच्छेद-345) तथा राष्ट्रपति (अनुच्छेद-347)को हिंदी से भिन्न एक अथवा अधिक भाषाओं को राज्यों के शासकीय व्यवहार में प्रयोग हेतु मान्यता प्रदान करने संबंधी अधिकार प्रदान किया गया है। यह प्रावधान राज्य विधानमण्डल के बहुमत के अथवा राज्य की अधिकांश जनता के इस अधिकार को मान्यता प्रदान करते हैं कि वे अपने द्वारा बोली जाने वाली भाषा की राज्य के भीतर शासकीय कार्यों हेतु मान्यता दिलाएं। इस प्रावधान का परिणाम राजभाषा से सम्बन्धित संवैधानिक प्रावधानों में जटिलता के रूप में सामने आया। संविधान के भाग-17 में उल्लिखित अनुच्छेद-343 और 344 के अनुसार, संघ की राजभाषा के संबंध में दिए गए उपबंध इस प्रकार हैं-
- संविधान के अनुच्छेद-343(1) के अनुसार, संघ की राजभाषा हिंदी होगी और इसकी लिपि देवनागरी होगी।
- भारतीय संघ के शासकीय प्रयोजनों हेतु प्रयुक्त किए जाने वाले अंकों का स्वरूप भारतीय अंकों का अंतरराष्ट्रीय स्वरूप होगा।
- संविधान के अनुच्छेद-343(2) के अनुसार, कार्यालय संबंधी कार्यों में अंग्रेजी का प्रयोग 15 वर्ष तक अर्थात् 25 जनवरी, 1965 तक जारी रहेगा, परन्तु इस अवधि के भीतर राष्ट्रपति हिंदी का प्रयोग साथ-साथ किए जाने का अधिकार प्रदान कर सकते हैं।
- अनुच्छेद-343(3) के अनुसार निर्धारित किये गए पंद्रह वर्षों के उपरांत भी संसद किन्हीं विशिष्ट प्रयाजनों के लिए अंग्रेजी का प्रयाग जारी रखने की अनुमति प्रदान कर सकती है।
राजभाषा आयोग
अनुच्छेद-344 के अनुसार, राष्ट्रपति द्वारा राजभाषा से संबंधित कुछ विषयों के संदर्भ में सलाह देने के लिए एक आयोग और एक संसदीय समिति की नियुक्ति का उपबंध है। राजभाषा आयोग का गठन संविधान के प्रारंभ से 5 वर्ष की समाप्ति पर और उसके बाद प्रत्येक दस वर्ष की समाप्ति पर करने की व्यवस्था है। राष्ट्रपति द्वारा राजभाषा आयोग का गठन आठवीं अनुसूची में निर्दिष्ट विभिन्न भाषाओं का प्रतिनिधित्व करने वाले लोगों से किया जाता है।
आयोग का यह कर्तव्य होगा कि वह राष्ट्रपति को निम्नलिखित विषयों के संदर्भ में सिफारिश करे-
- संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए हिंदी भाषा का अधिकाधिक प्रयोग।
- संघ के सभी या किन्हीं शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा के प्रयोग पर निर्बंधन।
- उच्चतम न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों में प्रयोग की जाने वाली भाषा।
- प्रयोग किए जाने वाले अंकों का रूप।
- संघ की राजभाषा तथा संघ और किसी राज्य के बीच या एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच पत्रादि की भाषा।
आयोग से यह अपेक्षा की गई कि वह भारत की औद्योगिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक उन्नति का और लोक सेवाओं के संबंध में अहिंदी भाषी क्षेत्र के लोगों के न्यायसंगत दावों और हितों का सम्यक ध्यान रखेगा। आयोग की सिफारिशों पर संसद के दोनों सदनों की एक संयुक्त संसदीय समिति द्वारा विचार किया जाएगा, जिनमें 20 सदस्य लोकसभा के होंगे और 10 राज्यसभा के सदस्य होंगे जो क्रमशः लोक सभा एवं राज्य सभा के सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा निर्वाचित होगे।
अनुच्छेद-349 के अनुसार भाषा संबंधी किसी विधेयक या संशोधन की अनुमति तभी दी जाएगी जब इस समिति की रिपोर्ट पर राष्ट्रपति विचार कर ले।
प्रथम राजभाषा आयोग का गठन
सर्वप्रथम राजभाषा आयोग का गठन 1955 में बी.जी. खेर की अध्यक्षता में किया गया था। उसने अपनी रिपोर्ट 1956 में प्रस्तुत की, जिसमें उसने निम्नलिखित संस्तुतियां प्रस्तुत कीं-
- संविधान के अंतर्गत राजभाषा के सम्बन्ध में एक समेकित योजना का खाका खींचा गया है, जिसके भीतर राजभाषा में आवश्यकतानुसार समायोजन किया जा सकता है।
- विभिन्न प्रादेशिक भाषाएं राज्यों में प्रशासकीय कार्यों के माध्यम के रूप में शीघ्रता से अंग्रेजी का स्थान ले रही हैं।
- 1965 तक अंग्रेजी को मुख्य राजभाषा के रूप में और हिंदी को उप-राजभाषा के रूप में चलना चाहिए। 1965 के पश्चात् हिंदी संघ की प्रमुख राजभाषा हो जाएगी और अंग्रेजी केंद्रीय राजभाषा के रूप में चलती रहेगी।
- संघ के किसी प्रयोजन हेतु अंग्रेजी के प्रयोग पर कोई निर्बंधन नहीं लगाया जाना चाहिए और अनुच्छेद-343 के खण्ड (3) के निर्बंधनों के अनुसार 1965 के पश्चात् संसद द्वारा विनिर्दिष्ट प्रयोजनों हेतु, जब तक आवश्यक हो, तब तक अंग्रेजी के प्रयोग का उपबंध किया जाना चाहिए।
संयुक्त संसदीय समिति द्वारा रिपोर्ट पर विचार करने के उपरांत राष्ट्रपति ने 27 अप्रैल, 1960 की एक आदेश जारी किया, जो इस प्रकार है–
- वैज्ञानिक, प्रशासनिक एवं कानूनी साहित्य संबंधी हिंदी शब्दावली तैयार करने के लिए तथा अंग्रेजी कृतियों का हिंदी में अनुवाद करने के लिए दो स्थायी आयोगों का गठन किया जाए।
- संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं के माध्यम के रूप में अंग्रेजी का प्रयोग चलता रहे और बाद में वैकल्पिक माध्यम के रूप में हिंदी का प्रचलन प्रारंभ किया जाए।
- संसदीय विधान कार्य अंग्रेजी में चलता रहेगा किंतु इसके प्रमाणिक हिंदी अनुवाद की व्यवस्था की जाए।
राजभाषा अधिनियम, 1963
संविधान के अनुच्छेद-348 के खंड (3) तथा प्रथम राजभाषा आयोग की रिपोर्ट के आधार पर संसद द्वारा राजभाषा अधिनियम, 1968 बनाया गया। इस अधिनियम के उपबंध इस प्रकार हैं-
- संघ के राजकीय प्रयोजनों तथा संसद में प्रयोग के लिए अंग्रेज़ी 15 वर्ष के बाद भी जारी रहेगी।
- केंद्रीय अधिनियमों, राष्ट्रपति के प्राधिकार से प्रकाशित राजपत्रों आदि का हिंदी अनुवाद उसका हिंदी में प्राधिकृत पाठ समझा जाएगा।
- राज्य सरकार के अधिनियमों तथा उस राज्य के राज्यपाल द्वारा प्रख्यापित अध्यादेशों का हिंदी में अनुवाद, हिंदी भाषा में उसका प्राधिकृत पाठ समझा जाएगा।
- नियत दिन से ही या तत्पश्चात् किसी भी दिन से किसी राज्य का राज्यपाल, राष्ट्रपति की पूर्व सम्मति से, अंग्रेजी भाषा के अतिरिक्त हिंदी या उस राज्य की राजभाषा का प्रयोग, उस राज्य के उच्च न्यायालय द्वारा पारित या दिए गए किसी निर्णय, डिक्री या आदेश के प्रयोजनों के लिए प्राधिकृत कर सकेगा और जहां कोई निर्णय, डिक्री या आदेश (अंग्रेजी भाषा से भिन्न) ऐसी किसी भाषा में पारित किया या दिया जाता है वहां उसके साथ-साथ उच्च न्यायालय के प्राधिकार से निकाला गया अंग्रेजी भाषा में उसका अनुवाद भी होगा।
- संघ तथा अहिंदी भाषी राज्यों के बीच पत्रादि के प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी का ही प्रयोग होगा और यदि हिंदी तथा अहिंदी भाषी राज्यों के बीच पत्रादि के लिए हिंदी का प्रयोग किया जाए तो ऐसे पत्रादि के साथ उसका अंग्रेजी अनुवाद भी होना चाहिए।
इसके अतिरिक्त इस अधिनियम में यह व्यवस्था की गई है कि कुछ विशेष कार्यो, यथा- प्रस्ताव, सामान्य आदेश, अधिसूचना, नियम, प्रेस विज्ञप्ति प्रशासकीय रिपोर्ट, लाइसेंस, परमिट एवं समझौते इत्यादि में हिंदी और अंग्रेजी दोनों का प्रयोग अनिवार्य होगा।
प्राधिकृत पाठ (केंद्रीय विधि) अधिनियम 1973
वर्ष 1973 में संसद द्वारा प्राधिकृतपाठ (केंद्रीय विधि) अधिनियम, 1978 बनाकर यह उपबंध किया गया कि जब किसी केंद्रीय विधि का (हिंदी से भिन्न) किसी भाषा में अनुवाद, राष्ट्रपति के प्राधिकार से भारतीय राजपत्र में प्रकाशित किया जाता है तो वह उस भाषा में उसका प्राधिकृत पाठ समझा जाएगा। संविधान सभा द्वारा अंगीकृत किया गया संविधान अंग्रेजी में था। संविधान सभा के अध्यक्ष ने अपने प्राधिकार से उसका हिंदी अनुवाद तैयार कराया था। संविधान सभा के सदस्यों ने उस पर हस्ताक्षर भी किये थे। संविधान के उस अनुवाद को अद्यतन करके उसे प्राधिकृत पाठ घोषित करने के लिए 58वें संशोधन अधिनियम, 1987 द्वारा संविधान के अनुच्छेद-394ए में अंतःस्थापित किया गया है। अनुच्छेद-394ए के खंड (2) के अनुसार, उस हिंदी पाठ का वही अर्थ लगाया जाएगा जो अंग्रेजी के मूल पाठ में विहित है। यदि अर्थ लगाने में कोई असुविधा उत्पन्न होगी तो राष्ट्रपति उपयुक्त पुनरीक्षण कराएगा।
स्थायी आयोग
राजभाषा आयोग ने शब्दावली के विकास के लिए दी स्थायी आयोगों की नियुक्ति की सिफारिश की थी। उपर्युक्त सिफारिश को क्रियान्वित करने के लिए राष्ट्रपति ने 27 अप्रैल, 1960 को एक आदेश जारी किया।
वर्ष 1961 में दो स्थायी आयोगों की स्थापना की गई और समय-समय पर इनका पुनर्गठन भी किया जाता रहा है। विधि शब्दावली के विकास और केंद्रीय अधिनियमों के हिंदी और अन्य भाषाओं में प्राधिकृत पाठ के प्रकाशन के लिए गठित आयोग की राजभाषा (विधायी) आयोग नाम दिया गया था। वर्ष 1976 में राजभाषा (विधायी) आयोग को समाप्त कर दिया गया और इसके कृत्य भारत सरकार के विधायी विभाग को सौंप दिए गए। दूसरा आयोग, वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली आयोग शिक्षा मंत्रालय के अधीन कार्य कर रहा है।
- अनुच्छेद-344 के प्रावधानों के अनुसार राजभाषा आयोग का गठन प्रत्येक 10 वर्ष के अंतराल पर किया जाता है।
- प्रथम राजभाषा आयोग की नियुक्ति 1955 में बी.जी. खेर की अध्यक्षता में हई थी।
- राजभाषा अधिनियम, 1963 के अनुसार संघ एवं गैर-हिंदी भाषी राज्यों के पत्र-व्यवहार हेतु हिंदी का प्रयोग किए जाने पर उस पत्र के साथ उसका अंग्रेजी अनुवाद भी अनिवार्य रूप से होना चाहिए।
राज्य की भाषा
अनुच्छेद-345 के अनुसार किसी राज्य का विधानमंडल विधि द्वारा, उस राज्य में प्रयोग होने वाली भाषाओं में से किसी एक या अधिक भाषाओं की या हिन्दी को उस राज्य के सभी या किन्हीं शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग की जाने वाली भाषा के रूप में प्रयोग कर सकता है। जब तक राज्य का विधान मंडल, विधि द्वारा, अन्यथा उपबंध न करे तब तक राज्य के भीतर उन शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाता रहेगा, लेकिन राज्य और संघ के बीच तथा दो राज्यों के बीच विचारों का आदान-प्रदान प्राधिकृत भाषा में ही होना चाहिए।
अनुच्छेद-347 के अनुसार यदि किसी राज्य की जनसंख्या का पर्याप्त भाग किसी विशेष भाषा की उस प्रदेश के कार्यालय संबंधी कार्यो में प्रयोग करने की मांग करता है तो राष्ट्रपति उस राज्य में सर्वत्र या उसके किसी भाग में शासकीय प्रयोजन के लिए उस भाषा की मान्यता देने का उपबंध कर सकता है।
अनुच्छेद-29 में मौलिक अधिकारों के साथ कुछ सांस्कृतिक अधिकार भी दिए गए हैं, जिसके अनुसार राष्ट्रपति उस विशेष प्रादेशिक भाषा को उस प्रदेश के कार्यालय संबंधी कार्यों में प्रयोग करने की अनुमति दे सकता है। यह केंद्र द्वारा नियंत्रित होगा कि एक राज्य के बहुसंख्यक अल्पसंख्यकों की भाषा के आधार पर परेशान न कर सकें।
संविधान द्वारा स्पष्ट रूप से राज्यों की राजभाषा के सम्बन्ध में घोषणा नहीं की गई है। अनुच्छेद-345 में राज्यों को यह शक्ति प्रदान की गई है कि वे राज्य में प्रयोग होने वाली भाषाओं में से किसी एक अथवा अधिक की अथवा हिंदी को राज्य की राजभाषा के रूप में अंगीकार कर सकेंगे। ऐसा करने के लिए विधि का अधिनियमन अत्यावश्यक है। अधिकांश बड़े-बड़े राज्यों ने राज्य की प्रमुख भाषा की ही अपनी राजभाषा का स्तर प्रदान किया है। उदाहरणार्थ महाराष्ट्र (मराठी), तमिलनाडु, (तमिल) एवं उत्तर प्रदेश (हिंदी)। पंजाब एवं गुजरात ने क्रमशः पंजाबी एवं गुजराती के साथ हिंदी को भी राजभाषा स्वीकार किया है। इनके अतिरिक्त पूर्वोत्तर के कुछ राज्य ऐसे भी हैं, जिन्होंने अंग्रेजी को राजभाषा के रूप में अंगीकार किया है। ये राज्य हैं- नागालैण्ड, मिजोरम, मेघालय एवं अरुणाचल प्रदेश। उल्लेखनीय है कि, किसी विशिष्ट भारतीय भाषा की राजभाषा घोषित करने से अंग्रेजी का प्रयोग निषिद्ध नहीं हो जाता तथा अंग्रेजी में लिखित कोई आदेश अथवा कार्यवाही अविधिमान्य नहीं हो जाती।
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न्यायालय की भाषा
भारतीय संविधान के अनुच्छेद-348 के अंतर्गत विशेष रूप यह उपबंधित किया गया है कि यदि संसद निर्णय कर ले तो पंद्रह वर्ष की अवधि के बाद भी निम्नलिखित प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग होता रहेगा-
- उच्चतम न्यायालय और प्रत्येक उच्च न्यायालयों की सभी कार्यवाहियों में अंग्रेजी भाषा का प्रयोग होगा।
- संविधान द्वारा जारी किये गए सभी नियमों, विनियमों, आज्ञाओं, अध्यादेशों और उप-विधियों के प्राधिकृत मूल भी अंग्रेजी में होंगे।
लेकिन किसी राज्य का राज्यपाल, राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से उच्च न्यायालय की कार्यवाहियों में हिंदी भाषा के प्रयोग की या उस राज्य के शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयुक्त किसी भाषा के प्रयोग को प्राधिकृत कर सकेगा, किंतु निर्णय, डिक्रियां तथा आदेश अंग्रेजी में ही दिए जाते रहेंगे, किन्तु यह तब तक अंग्रेजी में होते रहेंगे जब तक संसद इसे विधि द्वारा पारित न करे दे।
1963 के अधिनियम में यह प्रावधान है कि कतिपय दशाओं में राज्य के अधिनियमों आदि का हिंदी अनुवाद भी दिया जाएगा।
लोक शिकायतों की भाषा
अनुच्छेद-350 का एक अति महत्वपूर्ण उपबंध है कि न केवल किसी नागरिक को अपितु प्रत्येक व्यक्ति को अधिकार है कि वह किसी शिकायत को दूर कराने के लिए संघ या राज्य के किसी प्राधिकारी या अधिकारी को, यथास्थिति, संघ में या राज्य में प्रयुक्त किसी भी भाषा में अभ्यावेदन कर सकता है। अतएव कोई भी सरकारी विभाग, एजेंसी या अधिकारी किसी अभ्यावेदन को लेने से इस आधार पर इन्कार नहीं कर सकता कि वह राजभाषा में नहीं है।
विशेष निर्देश
संविधान में राजभाषा के साथ-साथ अन्य भाषायी अल्पसंख्यकों के हितों की सुरक्षा के लिए कुछ विशेष उपबंध अधिकथित किए गए हैं।
राजभाषा के संदर्भ में यह निर्देश दिया गया है कि हिंदी भाषा का विकास और प्रसार इस प्रकार किया जाए कि वह भाषा भारत की सामासिक संस्कृति के सभी तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके। संघ को यह भी निर्देश दिया गया है कि हिंदी की प्रकृति में हस्तक्षेप किए बिना और आठवीं अनुसूची में विनिर्दिष्ट अन्य भाषाओं के प्रयुक्त रूप, शैली और पदों को आत्मसात करते हुए और इस संबंध में संस्कृत को सर्वाधिक महत्व देते हुए हिंदी को समृद्ध करे।
अनुच्छेद-351 के अनुसार हिंदी की शब्दावली को समृद्ध करने के लिए संस्कृत भाषा में अनुसंधान के लिए एक पृथक् शाखा खोली जानी चाहिए। इनका कार्यतीव्र गति से होना चाहिए और जो शब्दावलियां निकाली जाएं उन्हें जनता को अल्प मूल्य पर दिया जाना चाहिए। इस संस्था की स्थापना से संस्कृत के विद्वानों को रोजगार प्राप्त होगा और संस्कृत के अध्ययन को प्रोत्साहन भी मिलेगा।
अन्य भाषाओं के प्रयोग की रक्षा के लिए संविधान द्वारा दिए गए विशेष निर्देश
- अनुच्छेद-350 के अनुसार कोई भी व्यक्ति अपनी शिकायत को दूर करने के लिए संघ या राज्य के किसी भी अधिकारी या प्राधिकारी की संघ या राज्य में प्रयोग होने वाली किसी भी भाषा में आवेदन कर सकता है।
- अनुच्छेद-350(क) में राज्य के भीतर के प्रत्येक स्थानीय प्राधिकारी को यह निर्देश दिया गया है कि भाषाई अल्पसंख्यकों के बच्चों की शिक्षा के प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की पर्याप्त सुविधाओं की व्यवस्था करने का प्रबंध करे और राष्ट्रपति किसी राज्य को ऐसे निर्देश दे सकेगा जिन्हें वह ऐसी सुविधाओं का प्रबंध सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक या उचित समझता है।
- अनुच्छेद-350 (ख) में यह उपबंध है कि राष्ट्रपति भाषाई अल्पसंख्यकों के लिए एक विशेष अधिकारी नियुक्त करेगा। यह अधिकारी संविधान के अधीन भाषाई अल्पसंख्यक वर्गों के लिए उपबंधित रक्षोपायों से संबंधित सभी विषयों का अन्वेषण करेगा और उन विषयों के संबंध में राष्ट्रपति के समक्ष प्रतिवेदन प्रस्तुत करेगा।