परमाणु अप्रसार संधि Nuclear Non-Proliferation Treaty – NPT
परमाणु अप्रसार (Nuclear Non-Proliferation Treaty-NPT) एक बहुपक्षीय अस्त नियंत्रण समझौता है, जिस पर जुलाई 1968 में समझौता हुआ। एनपीटी मार्च 1970 में प्रभाव में आई। इस संधि की कुछ प्रमुख विशेषताएं निम्नांकित हैं-
⇒ यह संधि परमाणु हथियारों के क्षैतिज (horizontal) प्रसार पर रोक लगाती है। इस के अनुच्छेद 1 और 2 के अंतर्गत परमाणु शक्ति संपन्न देश गैर-परमाणु शक्ति वाले देशों को परमाणु अस्त्र प्राप्त करने में सहायता नहीं दे सकते हैं तथा गैर-परमाणु शक्ति संपन्न देश परमाणु अस्त्र प्राप्त नहीं कर सकते हैं।
⇒ परमाणु शक्ति सुविधाओं के संबंध में यह संधि तकनीक हस्तांतरण को जारी रखने की अनुमति देती है। आईएईए के तत्वावधान में शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिये परमाणु तकनीक के विस्तार के लिये एक सुरक्षा प्रणाली विकसित की गई है। आईएईए को सभी गैर-परमाणु देशों के नागरिक परमाणु कार्यक्रमों में पूर्ण और स्वतंत्र प्रवेश की सुविधा प्राप्त है। यह इन देशों के परमाणु संयंत्रों और सुविधाओं का समय-समय पर निरीक्षण कर सकती है।
⇒ इस संधि का एक महत्वपूर्ण लक्ष्य परमाणु अस्त्रों के ऊर्ध्वगामी (vertical) प्रसार की बढ़ती प्रवृत्ति पर रोक लगाना है। यह हस्ताक्षरकर्ता देशों को परमाणु हथियारों के प्रसार पर रोक लगाने के लिये स्वस्थ्य वातावरण में वार्ताएं आयोजित करने का आदेश देती है। अनुच्छेद 7 परमाणु रहित क्षेत्रों (nuclear freezones) के गठन पर जोर देता है, जबकि अनुच्छेद 8 सदस्य देशों के बीच प्रत्येक पांच वर्ष के अंतराल पर बैठक आयोजित करने का आदेश देता है।
आरंभ में एनपीटी को केवल 25 वर्षों के लिये लागू किया गया था। अतः अप्रैल-मई 1995 में, अर्थात् 25 वर्ष की समाप्ति के बाद, न्यूयार्क में एनपीटी समीक्षा सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसका उद्देश्य एनपीटी के कार्यों की समीक्षा तथा इसके भविष्य का निर्धारण करना था। इस सम्मेलन में संधि की अनिश्चितकाल तक जारी रखने का निर्णय लिया गया। संधि के विस्तार प्रस्ताव की ध्वनि मत से पारित किया गया।
एनपीटी पर आरोप लगाया गया है कि यह परमाणु देशों के द्वारा परमाणु अस्त्रों के धारण को कानूनी मान्यता प्रदान करती है। परमाणु देशों की विदेश नीति एनपीटी व्यवस्था में विश्वास जागृत नहीं करती है। परमाणु संपन्न और परमाणु विपन्न देशों के बीच भेदभाव और असमानता तथा दोषपूर्ण निरीक्षण प्रणाली ने एनपीटी की विश्वसनीयता को और अधिक क्षति पहुंचाई है। इन त्रुटियों के निवारण के उद्देश्य से बाद में एक व्यापक परमाणु परीक्षण नियंत्रण संधि का प्रस्ताव लाया गया। यह कहा जाता है कि एनपीटी व्यवस्था एक ऐसे विश्व के लिये विकसित की गई थी, जो अब अस्तित्व में नहीं है।