अकबर के नवरत्न Navratnas of Akbar

विद्या और विद्वानों के संरक्षण के लिए सुविख्यात सम्राट् अकबर के दरबार में नौ विशेष प्रतिभाशाली व्यक्ति थे। इन व्यक्तियों का सामूहिक नाम नौ रत्न था। ये नौ रत्न इस प्रकार थे- अबुल फज़ल, बीरबल, टोडरमल, भगवानदास, मानसिंह, तानसेन, अब्दुर्रहीम खानखान, मुल्ला दो प्याजा तथा फैजी। इन नौ रत्नों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है-

अबुल फज़ल Abul Fazal

अबुल फज़ल का जन्म 1550 ई. में हुआ था। वह उस युग के सुप्रसिद्ध सूफी शेख मुबारक का पुत्र था। वह साहित्य, इतिहास तथा दर्शन शास्त्र का अधिकारी विद्वान् था। दीन-ए-इलाही के गठन तथा उसके संचालन में उसकी मुख्य भूमिका रहती थी। वाद-विवाद में उसे पराजित करना कठिन था। सम्राट् अकबर के अन्तरंग दरबारियों में उसका विशेष महत्त्व था। अपनी योग्यता के कारण वह 20 मनसबदार से उठकर पाँच हजार मनसबदार की स्थिति में पहुँच गया था। वह एक अच्छा लेखक था। अकबरनामा तथा आइने अकबरी उसकी कालजयी रचनाएँ हैं। इन रचनाओं में उस युग के इतिहास की महत्त्वपूर्ण जानकारी मिलती है। उसकी लेखन-शक्ति का अन्य परिचय उसके पत्रों से मिलता है जो इंशा-ए-अबुल के नाम से प्रकाशित हो चुके हैं। वह विद्वान् इतिहासकार और लेखक होने के साथ ही योग्य राजदूत और सेनानायक भी था। किन्तु अकबर के मित्र और कृपापात्र इस प्रतिभासम्पन्न व्यक्ति का 1602 ई. में शहज़ादे सलीम के कहने पर वीर सिंह बुन्देला ने हत्या कर दी। उसकी मृत्यु से अकबर को गहरा आघात लगा था। उस अवसर पर सम्राट् अकबर ने कहा था कि- सलीम ने अबुल फज़ल की हत्या क्यों कराई। यदि वह कहता तो मैं उसको राज सिंहासन स्वयं दे देता।

राजा बीरबल Raja Birbal

बीरबल का जन्म 1528 ई. में हुआ था। डॉ. आशीवादी लाल श्रीवास्तव के अनुसार उसका जन्म-स्थान मध्य प्रदेश के ओरछा नामक स्थान था। बीबल का जन्म एक ब्राह्मण कुल में हुआ था। उसका वास्तविक नाम महेशदास था। सम्राट् की सेवा में आने के कुछ वर्षों बाद अकबर का परम मित्र बन गया तथा अकबर के कृपा पाँच दरबारी विदूषक के रूप में सुप्रसिद्ध हो गया। अपनी प्रत्युत्पन्नमति, वाक् पटुता, चतुराई, स्वामिभक्ति तथा स्वाभाविक योग्यताओं के कारण उसने अकबर के नवरत्नों में स्थान प्राप्त कर लिया। उसमें हास्य रस और हाजिरजवाबी का अप्रतिम गुण था। इस गुण पर आधारित उसके चुटकुले आज भी बड़े चाव से सुने सुनाए जाते हैं। बीरबल 2000 का मनसबदार था। सम्राट् ने 1586 ई. में उसे न्याय-विभाग का उच्चाधिकारी नियुक्त किया था तथा उसे राजा की पदवी से विभूषित किया था। 1586 ई. में युसूफजाइयों के विरुद्ध लड़ते हुए उसकी मृत्यु हो गई। अबुल फज़ल तथा बदायूंनी के अनुसार उसकी मृत्यु पर अकबर को काफी शोक पहुँचा था। इस प्रसंग में एक बात ध्यान देने योग्य है कि अकबर द्वारा स्थापित दीन-ए-इलाही को मानने वाला बीरबल एकमात्र हिन्दू था

राजा टोडरमल Raja Todar Mal

टोडरमल अकबर के नवरत्नों में से एक थे। वे आधुनिक उत्तर प्रदेश के निवासी थे। प्रारम्भ में उन्होंने शेरशाह सूरी के यहाँ नौकरी की। सूरवंश के अन्त के उपरान्त वह अकबर की सेवा में आ गए। 1562 ई. में एक महत्त्वपूर्ण पद पर पहुँच गए। 1572 ई. में उसकी नियुक्ति गुजरात प्रदेश के दीवान के रूप में हुई। शासन के विभिन्न पदों पर रहने के कारण टोडरमल को शासन की अनेक सूक्ष्म बातों का ज्ञान हो गया था। टोडरमल वित्तीय मामलों के विशेषज्ञ थे, अतएव अकबर ने उन्हें अपना अर्थमंत्री नियुक्त किया। अकबर के शासन-काल में भूमि-बन्दोबस्त तथा मालगुजारी व्यवस्था में जो महत्त्वपूर्ण सुधार किए गए, उसके सूत्रधार टोडरमल थे। इन सुधारों के लिए अकबर के साथ टोडरमल का भी नाम लिया जाता है।


मानसिंह Raja Man Singh- मानसिंह भारमल का पौत्र था। उसने अनेक महत्त्वपूर्ण युद्धों में भाग लिया था। कहा जाता है कि हिन्दुओं के प्रति अकबर के दृष्टिकोण को अधिक उदार बनाने में मानसिंह का महत्त्वपूर्ण योगदान था।

मियां तानसेन Miyan Tansen- अकबर के नौ रत्नों में तानसेन का महत्त्वपूर्ण स्थान था। वह भारतीय संगीत के महान् ज्ञाता थे तथा संगीत-जगत के सरताज थे। ऐसा कहा जाता है कि वे पहले हिन्दू थे, बाद में मुसलमान बन गए थे। उन्होंने अनेक राग-रागनियों का आविष्कार किया। मियाँ की टोढ़ीमियाँ की मल्हारमियाँ की सारंगदरबारी कान्हड़ा जैसे राग आज भी पारम्परिक या क्लासिकल म्यूज़िक के अत्यन्त महत्त्वपूर्ण राग माने जाते हैं।

अब्दुर्रहीम खानखाना Abdul Rahim Khan-I-Khana

अब्दुर्रहीम खान-खाना बैरम खाँ का पुत्र था तथा जहाँगीर का शिक्षक था। उसने तुर्की भाषा में प्रणीत बाबरनामा का फारसी में अनुवाद किया। वह फारसी, अरबी, तुर्की ही नहीं प्रत्युत संस्कृत, हिन्दी तथा राजस्थानी का भी ज्ञाता था। उसके दोहे आज भी हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि के रूप में जन-जन की वाणी में मुखरित हो रहे हैं। अब्दुर्रहीम खानखाना तथा इस युग के महाकवि में घनिष्ठ सम्बन्ध था और दोनों में पत्र-व्यवहार चलता रहता था। अकबर ने उनकी विद्वत्ता से प्रभावित होकर उन्हें खानखाना की उपाधि से विभूषित किया था।

मुल्ला दो प्याजा Mullah Do Piaza

मुल्ला दो प्याजा अरब का रहने वाला था। हुमायूँ के समय वह भारत आया था। भोजन के समय दो प्याजा अधिक पसन्द होने के कारण, अकबर उसे दो प्याजा के नाम से सम्बोधित करता था। अपनी योग्यता और सम्राट् के प्रति निष्ठा के कारण वह भी अकबर के नौरत्नों में से एक बन गया था।

अबुल फैजी Abul Faizi

इतिहासकार अबुल फजल का बड़ा भाई था। अकबर के दरबार मे वह राजकवि के रूप में पदासीन था। दीन-ए-इलाही का वह कट्टर समर्थक था।

फकीर अज़ुद्दीन Fakir Aziao-Din- यह एक सूफी फकीर और अकबर के एक प्रमुख सलाहकार थे।

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