राष्ट्रीय आंदोलन-1919-1939 ई. National Movement 1919-1939 AD.
राष्ट्रवाद के पुनः जीवंत होने के कारण
- युद्धोपरांत उत्पन्न हुई आर्थिक कठिनाइयां।
- विश्वव्यापी साम्राज्यवाद से राष्ट्रवादियों का मोहभंग होना।
- रूसी क्रांति का प्रभाव।
मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार
प्रांतों में द्वैध शासन
- प्रशासनिक कार्यों के संचालन हेतु दो सूचियां- आरक्षित एवं हस्तांतरित।
- आरक्षित सूची के अधीन सभी विषयों का संचालन कार्यकारिणी परिषद की सहायता से गवर्नर द्वारा
- हस्तांतरित सूची के अधीन सभी विषयों का संचालन व्यवस्थापिका सभा के मंत्रियों द्वारा।
- गवर्नर, गवर्नर-जनरल एवं भारत सचिव को सभी मसलों में हस्तक्षेप करने के असीमित अधिकार।
- मताधिकार में वृद्धि, शक्तियों में भी वृद्धि।
- गवर्नर-जनरल द्वारा 8 सदस्यीय कार्यकारिणी परिषद की सहायता से कार्यों का संचालन-जिसमें तीन भारतीय थे।
- प्रशासनिक हेतु दो सूचियां- केंद्रीय एवं प्रांतीय।
- द्विसदनीय केंद्रीय व्यवस्थापिका- केंद्रीय व्यवस्थापिका सभा, निम्न सदन तथा राज्य परिषद, उच्च सदन।
- दोष
- द्वैध शासन व्यवस्था अत्यंत जटिल एवं अतार्किक थी।
- केंद्रीय कार्यकारिणी, व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी नहीं थी।
- सीमित मताधिकार।
दक्षिण अफ्रीका में गांधीजी की गतिविधियां (1893-1914)
- नटाल भारतीय कांग्रेस का गठन एवं इण्डियन आोपीनियन नामक पत्र का प्रकाशन।
- पंजीकरण प्रमाणपत्र के विरुद्ध सत्याग्रह।
- भारतियों के प्रवसन पर प्रतिबंध लगाये जाने के विरुद्ध सत्याग्रह।
- टाल्सटाय फार्म की स्थापना।
- पोल टेक्स तथा भारतीय विवाहों को अप्रमाणित करने के विरुद्ध अभियान।
- गांधीजी को आंदोलन के लिये जनता के शक्ति का अनुभव हुआ, उन्हें एक विशिष्ट राजनीतिक शैली, नेतृत्व के नये अंदाज और संघर्ष के नये तरीकों को विकसित करने का अवसर मिला।
भारत में गांधीजी की प्रारंभिक गतिविधियां
- चम्पारन सत्याग्रह (1917) – प्रथम सविनय अवज्ञा।
- अहमदाबाद मिल हड़ताल (1918) – प्रथम भूख हड़ताल।
- खेड़ा सत्याग्रह (1918) – प्रथम असहयोग।
- रॉलेट सत्याग्रह (1918) – प्रथम जन-हड़ताल।
खिलाफत-असहयोग आंदोलन
तीन मांगें-
- तुर्की के साथ सम्मानजनक व्यवहार।
- सरकार पंजाब में हुयी ज्यादतियों का निराकरण करे।
- स्वराज्य की स्थापना।
प्रयुक्त की गयीं तकनीकें
सरकारी शिक्षण संस्थाओं, सरकारी न्यायालयों, नगरपालिकाओं, सरकारी सेवाओं, शराब तथा विदेशी कपड़ों का बहिष्कार, राष्ट्रीय शिक्षण संस्थाओं एवं पंचायतों की स्थापना एवं खादी के उपयोग को प्रोत्साहन, आंदोलन के द्वितीय चरण में कर-ना अदायगी कार्यक्रम ।
कांग्रेस का नागपुर अधिवेशन (दिसम्बर 1920): कांग्रेस ने संवैधानिक तरीके से स्वशासन प्राप्ति के अपने लक्ष्य के स्थान पर शांतिपूर्ण एवं न्यायोचित तरीके से स्वराज्य प्राप्ति को अपना लक्ष्य घोषित किया।
चौरी-चौरा कांड (5 फरवरी, 1922)- क्रुद्ध भीड़ द्वारा हिंसक घटनायें-जिसके फलस्वरूप गांधीजी ने अपना आदोलन वापस ले लिया।
स्वराज्यवादी एवं अपरिवर्तनवादी
गांधी द्वारा आंदोलन वापस ले लिये जाने के पश्चात स्वराज्यवादी व्यवस्थापिकाओं में प्रवेश के पक्षधर थे। इनका मत था कि व्यवस्थापिकाओं में प्रवेश कर वे सरकारी मशीनरी को अवरुद्ध कर देंगे तथा भारतीय हितों की वकालत करेंगे। अपरिवर्तनकारी, संक्रमण काल में रचनात्मक कार्यक्रमों को चलाये जाने के पक्षधर थे।
1920 के दशक में नयी शक्तियों का अभ्युदय
- मार्क्सवादी एवं समाजवादी विचारों का प्रसार।
- भारतीय युवा वर्ग का सक्रिय होना।
- मजदूर संघों का विकास ।
- कृषकों के प्रदर्शन ।
- जातीय आंदोलन।
- क्रांतिकारी आतंकवाद का समाजवाद की ओर झुकाव।
हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन एवं हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन की गतिविधियां-
- स्थापना-1924
- काकोरी डकैती-1925
- पुनर्संगठित-1928
- सैन्डर्स की हत्या-1928
- केंद्रीय विधान सभा में बम विस्फोट-1929
- वायसराय की ट्रेन को जलाने का प्रयास-1929
- पुलिस मुठभेड़ में चंद्रशेखर आजाद की मृत्यु-1931
- भगतसिंह, राजगुरु एवं सुखदेव को फांसी-1931
बंगाल में क्रांतिकारी गतिविधियां
- कलकत्ता के पुलिस कमिश्नर की हत्या का प्रयास-1924
- सूर्यसेन के चटगांव विद्रोही संगठन द्वारा चटगांव डकैती-1930
साम्प्रदायिकता के विकास के कारण
- सामाजिक-आर्थिक पिछड़ापन- उपनिवेशी शासन द्वारा रियायतों एवं संरक्षण की नीति का साम्प्रदायिकता के विकास हेतु ईधन के रूप में प्रयोग।
- अंग्रेजी शासकों की ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति।
- इतिह्रास लेखन का साम्प्रदायिक चरित्र।
- सामाजिक-धार्मिक आंदोलनों का पार्श्व प्रभाव।
- उग्रराष्ट्रवाद का पार्श्व प्रभाव।
- बहुसंख्यक समुदाय की साम्प्रदायिक प्रतिक्रिया।
साइमन कमीशन
साइमन कमीशन को वर्तमान सरकारी व्यवस्था, शिक्षा के प्रसार तथा प्रतिनिधि संस्थानों के अध्यनोपरांत यह रिपोर्ट देनी थी कि भारत में उत्तरदायी सरकार की स्थापना कहां तक लाजिमी है तथा भारत इसके लिये कहां तक तैयार है। भारतीयों को कोई प्रतिनिधित्व न दिये जाने के कारण भारतीयों ने इसका बहिष्कार किया।
नेहरू रिपोर्ट
- भारतीय संविधान का मसविदा तैयार करने की दिशा में भारतीयों का प्रथम प्रयास।
- भारत की औपनिवेशिक स्वराज्य का दर्जा दिये जाने की मांग।
- पृथक निर्वाचन व्यवस्था का विरोध, अल्पसंख्यकों हेतु पृथक स्थान आरक्षित किये जाने का विरोध करते हुये संयुक्त निर्वाचन पद्धति की मांग।
- भाषायी आधार पर प्रांतों के गठन की मांग।
- 19 मौलिक अधिकारों की मांग।
- केंद्र एवं प्रांतों में उत्तरदायी सरकार की स्थापना की मांग।
कांग्रेस का कलकत्ता अधिवेशन- दिसम्बर 1928
सरकार को डोमिनियन स्टेट्स की मांग को स्वीकार करने का एक वर्ष का अल्टीमेटम, मांग स्वीकार न किये जाने पर सविनय अवज्ञा आदोलन प्रारंभ करने की घोषणा।
कांग्रेस का लाहौर अधिवेशन दिसम्बर- 1929
- पूर्ण स्वराज्य को कांग्रेस ने अपना मुख्य लक्ष्य घोषित किया।
- कांग्रेस ने सविनय अवज्ञा आदोलन प्रारंभ करने का निर्णय लिया।
- 26 जनवरी 1930 को पूरे राष्ट्र में प्रथम स्वतंत्रता दिवस मनाया गया।
दांडी मार्च – 12 मार्च-6 अप्रैल, 1930
- बंगाल में नमक सत्याग्रह प्रारंभ
आंदोलन का प्रसार
- पश्चिमोत्तर प्रांत में खुदाई खिदमतगार द्वारा सक्रिय आंदोलन।
- शोलापुर में कपड़ा मजदूरों की सक्रियता।
- धारासाणा में नमक सत्याग्रह।
- बिहार में चौकीदारी कर-ना अदा करने का अभियान।
- बंगाल में चौकीदारी कर एवं यूनियन बोर्ड कर के विरुद्ध अभियान।
- गुजरात में कर-ना अदायगी अभियान।
- कर्नाटक, महाराष्ट्र एवं मध्य प्रांत में वन कानूनों का उल्लंघन।
- असम में ‘कनिंघम सरकुलर’ के विरुद्ध प्रदर्शन।
- उत्तर प्रदेश में कर-ना अदायगी अभियान।
- महिलाओं, छात्रों, मुसलमानों के कुछ वर्ग, व्यापारी-एवं छोटे व्यवसायियों दलितों, मजदूरों एवं किसानों की आंदोलन में सक्रिय भागेदारी।
प्रथम गोलमेज सम्मेलन नवंबर 1930-जनवरी 1931
- कांग्रेस ने भाग नहीं लिया।
गांधी-इरविन समझौता- मार्च 1931
- कांग्रेस, सविनय अवज्ञा आदोलन वापस लेने तथा द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने हेतु सहमत।
कांग्रेस का कराची अधिवेशन -मार्च 1931
- गांधीजी और इरविन के मध्य हुये दिल्ली समझौते का अनुमोदन, अल्पसंख्यकों के मुद्दे पर अधिवेशन में गतिरोध पैदा हो गया।
द्वितीय गोलमेज सम्मेलन -दिसम्बर 1931
- ब्रिटेन के दक्षिणपंथी गुट द्वारा भारत को किसी तरह की रियासतें दिये जाने का विरोध।
- अल्पसंख्यकों को संरक्षण दिये जाने के प्रावधानों पर सम्मेलन में गतिरोधान दिसम्बर 1931 से अप्रैल 1934 तक सविनय अवज्ञा आदोलन का द्वितीय चरण।
साम्प्रदायिक निर्णय
- दलित वर्ग के लोगों को प्रथक प्रतिनिधित्व।
- राष्ट्रवादियों ने महसूस किया कि यह व्यवस्था राष्ट्रीय एकता के लिये गंभीर खतरा है।
- गांधीजी का आमरण अनशन (सितम्बर 1932) तथा पूना समझौता ।
भारत सरकार अधिनियम, 1935
- प्रस्तावित- एक अखिल भारतीय संघ, केंद्र में द्विसदनीय व्यवस्थापिका, प्रांतीय स्वायत्तता, विधान हेतु 3 सूचियाँ- केन्द्रीय, प्रांतीय एवं, समवर्ती।
- केंद्र में प्रशासन हेतु विषयों का सुरक्षित एवं हस्तांतरित वर्ग में विभाजन।
- प्रांतीय व्यवस्थापिका के सदस्यों का प्रत्यक्ष निर्वाचन।
- 1937 के प्रारंभ में प्रांतीय व्यवस्थापिकाओं हेतु चुनाव संपन्न। कांग्रेस द्वारा बंबई, मद्रास, संयुक्त प्रांत, मध्यभारत, बिहार, उड़ीसा एवं पश्चिमोत्तर प्रांत में मंत्रिमंडलों का गठन।
- अक्टूबर-1939 द्वितीय विश्व युद्ध से उत्पन्न परिस्थितियों के कारण कांग्रेस मत्रिमंडलों ने त्यागपत्र दिये।