राष्ट्रीय वन नीति National Forest Policy
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद वर्ष 1952 में पहली बार राष्ट्रीय वन नीति की घोषणा की गई। इस नीति के अनुसार, वनों से अधिकतम आय प्राप्त करना सरकार का मुख्य लक्ष्य हो गया। सरकार की वन नीति के कारण ही वर्ष 1952 से वर्ष 1981 के बीच कृषि फसलों के अंतर्गत क्षेत्र 1187.5 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 1429.4 लाख हेक्टेयर हो गया। कृषि फसलों के अन्तर्गत क्षेत्र में 242 लाख हेक्टेयर की यह वृद्धि ग्रामीण अंचल में स्थित वनाच्छादित भूमि को वृक्षविहीन करके प्राप्त की गई।
वन नीति, 1952 को वर्ष 1988 में संशोधित किया गया। संशोधित वन नीति, 1988 का मुख्य आधार वनों की सुरक्षा, संरक्षण और विकास है। इस नीति के मुख्य लक्ष्य हैं-
- पारिस्थितिकीय संतुलन के संरक्षण और पुनस्र्थापन द्वारा पर्यावरण स्थायित्व की कायम रखना,
- प्राकृतिक सम्पदा का संरक्षण,
- नदियों, झीलों और अन्य जलधाराओं के मार्ग के क्षेत्र में भूमि कटाव और मृदा अपरदन पर नियंत्रण,
- व्यापक वृक्षारोपण और सामाजिक वानिकी कार्यक्रमों के माध्यम से वन और वृक्षों के आच्छादन में वृद्धि,
- ग्रामीण और आदिवासी जनसंख्या के लिए ईंधन की लकड़ी, चारा तथा अन्य छोटी-मोटी वन्य उपज आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु कदम उठाना,
- राष्ट्रीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वनोत्पादों में वृद्धि
- वनोत्पादों के उचित उपयोग को प्रोत्साहन देना और लकड़ी का अनुकूल विकल्प ढूंढना
- वन संरक्षण हेतु जन-सहभागिता में वृद्धि के लिए उचित कदम उठाना