राष्ट्रीय औषध नीति National Drug Policy
सरकार ने अपनी नई औषधि नीति, फरवरी 2002 में घोषित की। इस नई औषधि नीति के अंतर्गत पूर्व में मूल्य नियंत्रित 74 मूल या आधारीय औषधियों (बल्क इग्स) की संख्या घटा कर 38 कर दी गई है।
ऐसा माना जाता है कि सरकार ने मूल औषधियों को मूल्य-नियंत्रित करने, न करने के तीन मानदंड निर्धारित कर रखे हैं। पहला तो यह कि, संबंधित औषधि का वार्षिक व्यापार 25 करोड़ रुपये से अधिक (31 मार्च, 2001 की स्थिति के अनुसार) होना चाहिए तथा इसके संरूपण का बाजार-हिस्सा 50 प्रतिशत या इससे अधिक होना चाहिए तभी कोई औषधि मूल्य-नियंत्रण के दायरे में शामिल की जा सकती है, लेकिन यदि उस औषधि का बाजार-हिस्सा 50 प्रतिशत से कम है, तो उसे इस सूची से बाहर रखा जाएगा। दूसरे यह कि, यदि किसी मूल औषधि का वार्षिक व्यापार 10 से 25 करोड़ रुपये के बीच है, लेकिन उसका बाजार-हिस्सा 90 प्रतिशत या उससे अधिक है, तो उसे इस सूची में शामिल कर लिया जाएगा, तथा; तीसरे, अगर किसी मूल औषधि का वार्षिक व्यापार 10 करोड़ से नीचे है, तो उसे मूल्य-नियंत्रण की सूची से बाहर रखा जाएगा।
नई औषधि नीति के अंतर्गत यदि किसी औषधि के मूल्य में स्फीति दर से 5 प्रतिशत अधिक वृद्धि होती है तो सरकार उस औषधि कपनी से जवाब-तलब कर सकती है। नीति के अनुसार विटामिनों, एस्प्रिन तथा सिप्रोफ्लोक्सासिन को मूल्य-नियंत्रण से मुक्त कर दिया गया है। जबकि मैक्सफोर्मिन, नोरफ्लोक्सिन, सालबटामोल सल्फेट, इब्यूप्रोफेन, सिनारबिन, पेंटाज़ोसिन, बीसाकोडिल क्लोरोफेनार्मिन तथा स्ट्रेप्टोमाइसिन उन नई औषधियों में शामिल हैं, जिन पर मूल्य-नियंत्रण लागू किया गया है। नियंत्रित-सूची में बनी रहने वाली मूल औषधियों में तपेदिक रोधी रिफापिसिन, बेटामेथाज़ोन तथा एमिनासिन सल्फेट के नाम भी हैं।
नई औषधि नीति सरकार द्वारा गठित दो समितियों की रिपोर्टों पर आधारित है। इनमें से एक थी-औषधिमूल्य नियंत्रण समीक्षा समिति (डी.पी.सी.आर.सी.),तथा; दूसरी, औषधीय शोध एवं विकास समिति (पी.आर.डी.सी.)। इसके अध्यक्ष थे सी.एस.आई.आर. (काउंसिल फॉर साइंटिफिक एंड रिसर्च) के महानिदेशक आर.ए.माशेलकर,जबकि मूल्य नियंत्रण समिति के अध्यक्ष रसायन तथा पेट्रोरसायन विभाग के सचिव थे। ये दोनों समितियां 1999 भंगठित की गई थीं।