राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम National Cooperative Development Corporation – NCDC
राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम (एनसीडीसी) की स्थापना वर्ष 1963 में संसद के एक अधिनियम द्वारा कृषि मंत्रालय के अंतर्गत एक सांविधिक निगम के रूप में की गई थी।
संगठन एवं प्रबंधन
निगम की नीतियों तथा कार्यक्रमों का निर्माण करने के लिए निगम का प्रबंधन एक व्यापक प्रतिनिधित्व वाली 51 सदस्यीय सामान्य परिषद् में तथा दिन-प्रतिदिन के कार्यकलापों को निष्पादित करने के लिए एक 12 सदस्यीय प्रबंध मंडल में निहित है। अपने प्रधान कार्यालय के अलावा एनसीडीसी अपने 18 क्षेत्रीय/राज्य निदेशालयों के माध्यम से कार्य करता है। प्रबंध निदेशक मुख्य कार्यपालक हैं। विभिन्न कार्यात्मक प्रभाग कार्यक्रमों के कार्यों की देखरेख करते हैं। क्षेत्रीय कार्यालय, परियोजनाओं की पहचान करने/परियोजना की तैयारी करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं तथा इसके कार्यान्वयन की निगरानी करते हैं। परियोजनाओं की पहचान करने/तैयार करने और उनका सफल कार्यान्वयन करने में सहकारिताओं की सहायता करने हेतु एनसीडीसी सहकारिता, संगठन एवं पद्धति, वित्तीय प्रबंधन, प्रबंध सुचना प्रणाली, चीनी, तिलहन, वस्त्र, फल, एवं सब्जी, डेरी, कुक्कुटपालन एवं पशुधन, मत्स्यपालन, हथकरघा, सिविल इंजीनियरिंग, रेफ्रीजरेशन एवं प्रिजर्वेशन के क्षेत्र में तकनीकीय और प्रबंधकीय सक्षमताओं से सुसज्जित है।
निगम के प्रकार्य एवं दायित्व
कृषि उत्पादों, खाद्यान्नों, कुछेक अन्य अधिसूचित वस्तुओं अर्थात उर्वरकों, कीटनाशियों, कृषि मशीनरी, लोक, साबुन, मिट्टी का तेल, वस्त्र, रबड़ आदि के उत्पादन, प्रसंकरण, विपणन, भंडारण, निर्यात तथा आयात के कार्यक्रमों का नियोजन, संवर्द्धन तथा वित्त पोषण करना, सहकारिताओं के माध्यम से उपभोक्ता वस्तुओं की आपूर्ति करना तथा कुक्कुटपालन, डेयरी, मछलीपालन, कीटपालन, हथकरघा आदि जैसे आय सृजित करने वाले कार्यकलापों के आलावा लघु वनोपजों के एकत्रण, प्रसंकरण, विपणन भण्डारण तथा निर्यात करना।
एनसीडीसी अधिनियम में आगे संशोधन किया गया जिससे विभिन्न प्रकार की सहकारिताओं को सहायता देने हेतु निगम के कार्यक्षेत्र का विस्तरण हुआ तथा इसके वित्तीय आधार का विस्तारण हुआ। एनसीडीसी अब ग्रामीण औद्योगिक सहकारी क्षेत्रों तथा जल संरक्षण, सिंचाई तथा लघु सिंचाई, कृषि-बीमा, कृषि-ऋण, ग्रामीण स्वच्छता, पशुस्वास्थ्य आदि जैसी ग्रामीण क्षेत्रों की कुछेक अधिसूचित सेवाओं हेतु परियोजनाओं का वित्तपोषण कर सकता है।
प्राथमिक तथा माध्यमिक स्तर की सहकारी समितियों का तथा एक राज्य से बाहर व्यवसाय करने वाली राष्ट्रीय स्तर की तथा अन्य समितियों को सीधे ऋण तथा अनुदान दिए जाते हैं। निगम अब निर्धारित शर्ते पूरी करने पर अपनी सहायता की विभिन्न स्कीमों के अंतर्गत परियोजनाओं को प्रत्यक्ष वित्तपोषण भी कर सकता है।
वित्त एवं वित्तपोषण
घन के स्रोत
आांतरिक उपचयन बाजार उधार तथा अंतरराष्ट्रीय सहायता समेत भारत सरकार से आबंटन-
जिन उद्देश्यों हेतु सहायता दी जाती है-
- कार्यशील पूंजी वित्त जुटाने हेतु मार्जिन मनी (100% ऋण)
- समितियों के अंशपूंजी आधार का सुदृढ़ीकरण (100% ऋण)
- क्षेत्रीय/राज्य स्तर के विपणन संघ को कार्यशील पूंजी (100% ऋण)
- गोदामों, शीत भंडारों, उपस्कर वित्तपोषण, परिवहन वाहनों, नावों की खरीद एवं अन्य ठोस आस्तियों जैसी ढांचागत सुविधाओं के सृजन हेतु आवधिक ऋण।
- नए कृषि प्रसंस्करण उद्योगों की स्थापना, आधुनिकीकरण/ विस्तारण/पुनस्र्थापन/विविधीकरण हेतु अवधिक एवं निवेश ऋण।
- परियोजना रिपोर्टों/व्यवहार्यता अध्ययनों आदि की तैयारी हेतु सब्सिडी
स्वीकृति की प्रक्रिया/सहायता का संवितरण
एनसीडीसी की सहायता वैयक्तिक लाभोन्मुखी न होकर सहकारिताओं के संस्थागत विकास के निहितार्थ है। एनसीडीसी राज्य सरकारों के प्रयासों को सम्पूरित करता है। राज्य सरकारें निर्धारित स्कीम प्रपत्र में वैयक्तिक समिति/ परियोजना के प्रस्तावों की संस्तुति करते हुए एनसीडीसी को भेजती हैं। समिति निर्धारित शर्तों को पूरा करके सहायता की विभिन्न स्कीमों के अंतर्गत परियोजनाओं हेतु प्रत्यक्ष धन प्राप्त कर सकती है। प्रस्तावों की जाँच-पड़ताल सम्बंधित कार्यात्मक प्रभागों में की जाती है और यदि आवश्यक हो तो स्थल मूल्यांकन किया जाता है। तत्पश्चात् राज्य सरकार/समिति को धन की औपचारिक स्वीकृति संसूचित की जाती है। धन की विमुक्ति, कार्यान्वयन की प्रगति तथा प्रतिपूर्ति के आधार पर निर्भर करती है। ऋणों को वापिस करने की अवधि 3 से 8 वर्ष के बीच होती है। ब्याज की दरें समय-समय पर भिन्न-भिन्न होती हैं।