राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निपटान आयोग National Consumer Disputes Redressal Commission
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अंतर्गत, राष्ट्रीय आयोग का गठन वर्ष 1988 में किया गया। इसका अध्यक्ष भारत के उच्चतम न्यायालय का कार्यकारी या सेवानिवृत्त न्यायाधीश होता है। इसमें 10 सदस्य होते हैं।
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 एक कल्याणकारी सामाजिक विधान है जो उपभोक्ताओं के अधिकारों को निर्धारित करता है और इन्हें अपना प्रोत्साहन एवं संरक्षण प्रदान करता है। यह भारत में इस प्रकार का प्रथम एवं एकमात्र अधिनियम है, जिसने आम उपभोक्ता को कम खर्चीला एवं शिकायत का तीव्र निपटान हेतु सक्षम बनाया।
सस्ता, तीव्र एवं संक्षिप्त उपभोक्ता शिकायत निपटान हेतु प्रत्येक जिले, राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर अर्द्ध-न्यायिक निकाय गठित किए गए हैं जिन्हें क्रमशः जिला फोरम, राज्य उपभोक्ता शिकायत निपटान आयोग एवं राष्ट्रीय उपभोक्ता शिकायत निपटान आयोग कहा जाता है। मौजूदा समय में 629 जिला फोरम एवं 35 राज्य आयोग हैं। राष्ट्रीय स्तर पर एक एनसीडीआरसी है। इसका कार्यालय नई दिल्ली है।
उपभोक्ता फोरम की प्रक्रियाएं प्रकृति में संक्षिप्त होती हैं। उपभोक्ता को जल्द से जल्द आराम दिलाने का भरसक प्रयास किया जाता है। यदि कोई उपभोक्ता जिला फोरम के निर्णय से संतुष्ट नहीं है, तो वह राज्य आयोग में अपील कर सकता है। राज्य आयोग के फैसले के विरुद्ध उपभोक्ता राष्ट्रीय आयोग में जा सकता है।
राष्ट्रीय आयोग को सभी राज्य आयोगों पर प्रशासनिक नियंत्रण की शक्तियां प्रदान की गई हैं।
राष्ट्रीय आयोग को निम्न के संबंध में निर्देश जारी करने की शक्ति प्रदान की गई है-
- मामले की सुनवाई में एक समान प्रक्रिया अपनाने
- एक पार्टी द्वारा दूसरी पार्टी को सौंपे जाने वाले दस्तावेज प्रस्तुत कराना
- दस्तावेजों को तीव्र अनुमति; और
- आमतौर पर राज्य आयोगों एवं जिला फोरमों के कार्यकरण की निगरानी यह सुनिश्चित करने के लिए करना कि आयोग उनकी अर्द्ध-न्यायिक स्वतंत्रता में बिना किसी हस्तक्षेप के अधिनियम के उद्देश्यों एवं लक्ष्यों को भली-भांति पूरा करें।