बाबर Babur
भारत में मुगल वंश का संस्थापक सम्राट: 1483-1530
ज़हीर-उद्दीन-मुहम्मद (Zahir-udDin Muhammad) एक चगताई तुर्क था, जिसे हम बाबर ( बाघ या Tiger) के नाम से भी जानते हैं। उसके ‘बाबर’ नाम का उल्लेख फिरदौसी के शाहनामा में कई बार किया गया है। बाबर एक निडर साहसी सिपाही, कवि और रोज़नामचा रखनेवाला (अपनी डायरी लिखने वाला) व्यक्ति था। तुर्की भाषा में लिखी गयी तुजु-ए-बाबरी (Tuzu-i-Babri) या बाबरनामा (Baburnama), जिसमें बाबर के जीवन के संस्मरण लिखें गए है, इसे बाबर ने जीवन भर अपने साथ रखा और यह किताब साहित्य के इतिहास में एक महान कार्य है। सम्राट अकबर के शासन काल में (1589-90), एक मुगल दरबारी, अब्दुल रहीम ख़ानख़ाना द्वारा बाबरनामा का फारसी में अनुवाद किया गया था।
बाबर के पिता उम्र शेख मिर्जा, मध्य एशिया के पांच रियासतों में से एक फ़रगना के प्रमुख थे। वह चंगेज खान और तैमूर के वंशज थे। 1494 में अपने पिता की मृत्यु के बाद, बाबर मात्र 11 वर्ष की उम्र में ही फ़रगना का प्रमुख बना। जल्द ही बाबर पर उसके चाचाओं ने हमला कर दिया, परन्तु वह इस हमले से बच गया और सन 1497 में उसने समरकंद पर कब्ज़ा कर लिया, जो की मध्य एशिया का दिल माना जाता था। इसी समय उसके कुछ विद्रोही सैनिकों ने फ़रगना पर अधिकार कर लिया और बाबर फ़रगना पर पुनः अधिकार करने के लिए वापस लौटा, परन्तु उसकी सेना ने उसका साथ नहीं दिया और समरकंद और फ़रगना दोनों उसके हाथ से निकल गए। 1501 में उसने समरकंद पर पुनः कब्ज़ा कर लिया पर जल्द ही उज़्बेक ख़ान मुहम्मद शायबानी ने उसे हरा दिया। 1511 में उसने मध्य एशिया के कुछ हिस्सों पर फिर से कब्ज़ा कर लिया, परन्तु उसके बाकी जीवन में मध्य एशिया को पुनः जीतना और सत्तारूढ़ होना, उसके जीवन का सपना ही रह गया।
समरक़न्द (Samarqand) उज़बेकिस्तान का एक शहर है। मध्य एशिया में स्थित यह नगर ऐतिहासिक और भौगोलिक दृष्टि से एक महत्वपूर्ण शहर रहा है। इस नगर का महत्व रेशम मार्ग पर पश्चिम और चीन के मध्य स्थित होने के कारण बहुत अधिक था। बीबी ख़ानिम की मस्जिद’ इस शहर की सबसे प्रसिद्ध इमारत है। 2001 में यूनेस्को ने इस 2750 साल पुराने शहर को विश्व धरोहर स्थलों की सूची में शामिल किया।1369 ई. में तैमूर ने इसे अपना निवास स्थान बनाया। यहाँ तैमूर के प्राचीन महल हैं। ईसापूर्व 329 में सिकंदर महान ने इस नगर पर आक्रमण किया था। 1221 ई. में इस शहर ने चंगेज़ ख़ान के हमले का भी सामना किया। 18वीं शताब्दी के प्रारंभ में यह चीन का भाग रहा। फिर बुख़ारा के अमीर के अंतर्गत रहा और अंत में सन् 1868 ई. में रूसी साम्राज्य का भाग बन गया। |
समरकंद को खोने के बाद बाबर 3 वर्षो तक मध्य एशिया के आस-पास भटकता रहा। इस बीच उसने अपना ध्यान अपनी सेना को मजबूत करने पर लगाया। 1504 ने उसने हिन्दुकुश की पहाड़ियों को पार करके काबुल पर कब्ज़ा कर लिया। 1507 में उसने कंधार के कुछ हिस्सों पर कब्ज़ा कर लिया। काबुल में बाबर ने तुर्क आग्नेयास्त्रों को अपनाया और एक शक्तिशाली शासक बन गया। तुर्क, फारसियों, और उज़बेक के बीच समरकंद पर सत्ता के लिए संघर्ष के कारण बाबर ने भारत की और कूच किया।
1519 में उसने खैबर दर्रे से होते हुए, सिन्धु नदी को पार किया और पंजाब में चेनाब नदी के किनारे तक आ गया। यहाँ से लौटने से पहले बाबर ने काफी धन एकत्रित कर लिया था। 1520 में उसने बदख़्शान और 1522 में कंधार पर कब्जा कर लिया। 1524 में उसने लाहौर के कुछ हिस्सों पर अपना नियंत्रण कर लिया। इसके बाद बाबर ने दिल्ली की और कूच किया, इस समय इब्राहीम लोदी दिल्ली का सुल्तान था।
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पानीपत का प्रथम युद्ध first great battle of Panipat (21 अप्रैल, 1526)
दौलत खां, जो उस समय पंजाब का सूबेदार था, उसने बाबर को दिल्ली पर हमला करने के लिए आमंत्रित किया। बाबर खुद भी भारत की सम्पन्नता से आकर्षित था। पानीपत के मैदान में इब्राहीम लोदी और बाबर की सेनाओं के बीच युद्ध हुआ। बाबर की सेना इब्राहिम लोदी की सेना के सामने बहुत छोटी थी। पर सेना में संगठन के अभाव में इब्राहिम लोदी यह युद्ध बाबर से हार गया। इसके बाद दिल्ली की सत्ता पर बाबर का अधिकार हो गया और उसने सन 1526 में मुगलवंश की नींव डाली। इस युद्ध में बाबर ने उज्बेकों और तुर्कों की तोपों की ‘तुलगमा युद्ध पद्धति’ को अपनाया। इस युद्ध में लूटे गए धन को बाबर ने अपने सैनिक अधिकारियों, नौकरों एवं सगे सम्बन्धियों में बाँट दिया। सम्भवत: इस बँटवारे में हुमायूँ को वह कोहिनूर हीरा प्राप्त हुआ, जिसे ग्वालियर नरेश ‘राजा विक्रमजीत’ से छीना गया था। भारत विजय के ही उपलक्ष्य में बाबर ने प्रत्येक क़ाबुल निवासी को एक-एक चाँदी का सिक्का उपहार स्वरूप प्रदान किया और उसकी इस उदारता के कारण उसे ‘कलन्दर’ की उपाधि दी गई थी। पानीपत विजय के बाद बाबर ने कहा, ‘काबुल की ग़रीबी अब फिर हमारे लिए नहीं।
27 अप्रैल तक उसने दिल्ली और आगरा पर कब्ज़ा लिया और इसी दिन शासक के रूप में उसके नाम का खुतबा पढ़ा गया।
इधर राणा सांगा के नेतृत्व में राजपूत काफी संगठित तथा शक्तिशाली हो चुके थे। राजपूतों ने एक बहुत बड़े क्षत्र पर अपना अधिकार कर लिया था और वे दिल्ली पर भी अपने अधिकार करना चाहते थे। इधर बाबर भी यह जनता था की राणा सांगा के होते हुए वह कभी भी भारत पर अपना अधिकार नहीं कर पायेगा। फलस्वरूप बाबर और राणा सांगा के बीच खानवा का युद्ध लड़ा गया।
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खानवा का युद्ध (17 मार्च, 1527)
दोनों सेनाओं के मध्य 17 मार्च, 1527 ई. को युद्ध आरम्भ हुआ। इस युद्ध में राणा सांगा का साथ मारवाड़, अम्बर, ग्वालियर, अजमेर, हसन ख़ाँ मेवाती, बसीन चंदेरी एवं इब्रहिम लोदी का भाई महमूद लोदी दे रहे थे। राणा सांगा की सेना बाबर की सेना से काफी बड़ी थी और राजपूतों का जीतना निश्चित लग रहा था। परन्तु इसी समय बाबर ने अपने सैनिकों के उत्साह को बढ़ाने के लिए शराब पीने और बेचने पर प्रतिबन्ध की घोषणा कर शराब के सभी पात्रों को तुड़वा दिया और खुद भी शराब न पीने की कसम ली। उसने मुसलमानों से ‘तमगा कर (एक प्रकार का व्यापारिक कर)’ न लेने की घोषणा की। इससे बाबर के सैनिकों का मनोबल काफी बढ़ गया था और इसी समय तोमरों ने भी राणा सांगा का साथ छोड़ दिया। इनके बीच निर्णायक युद्ध फ़तेहपुर सीकरी के पास खानवा नामक स्थान पर हुआ। इस युद्ध में राणा सांगा की हार हुई। इसके साल भर बाद किसी मंत्री द्वारा ज़हर खिलाने कारण राणा सांगा की मौत हो गई और बाबर की सबसे बड़ी चिंता ख़त्म हो गई।
बाबर ने अंतिम महान युद्ध 6 मई 1529 को लड़ा था, जब था वह घाघरा की लड़ाई जीती थी। इस युद्ध में उसने बंगाल के शासक नुसरत शाह को हराया और नुसरत शाह ने बाबर की संप्रभुता को स्वीकार करते हुए उससे संधि कर ली।
इस प्रकार बाबर ने अफगान शासन को प्रतिस्थापित करके, पहले मुग़ल शासक के रूप में मुग़ल वंश की नींव डाली। बाबर अपने शराब और अफीम से सजे आयोजनों के लिए प्रसिद्द था। हालाँकि बाबर एक अच्छा प्रशासक नहीं था, परन्तु उसने बड़ी संख्या में महलों, स्नानों, उद्यान और डाकखानों का निर्माण कराया, जिससे माध्यम से उसने दूर के क्षेत्रों के साथ संपर्क बनाए रखा। वह राज्य के दिवालिया, अपने सैनिकों और अधिकारियों के प्रति लापरवाह और उदार था। बाबर ने धार्मिक सहिष्णुता को भी अपनाया और अपने बेटों की शादियाँ हिन्दू राजपूत राजकुमारियों से भी की। 29 जनवरी, 1528 ई. को बाबर ने ‘चंदेरी के युद्ध’ में वहाँ के सूबेदार ‘मेदिनी राय’ को परास्त किया। इस युद्ध में उसने जिहाद का नारा दिया। उसने मेदिनी राय की दो पुत्रियों का विवाह ‘कामरान’ एवं ‘हुमायूँ’ से कर दिया। उसने अपने शासन में राजपूतों को भी शामिल किया। बाबर ने सड़कों की माप के लिए ‘गज़-ए-बाबरी’ का प्रयोग भी किया।
अपने पुत्र हुमायुं के बीमार पड़ने पर उसने अल्लाह से हुमायुँ को स्वस्थ्य करने तथा उसकी बीमारी खुद को दिये जाने की प्रार्थना की थी। इसके बाद बाबर का स्वास्थ्य बिगड़ता चला गया और अंततः वो 1530 में 48 वर्ष की उम्र में बाबर की आगरा में मौत हो गयी। बाद में उसे काबुल में ले जाकर दफनाया गया। कुछ इतिहासकारों के अनुसार उसे पहले आगरा में दफनाया गया था, परन्तु उसकी मौत के 9 वर्ष बाद शेरशाह सूरी ने उसकी इच्छा के अनुसार उसकी कब्र को काबुल ले जाकर बाग-ए-बाबर में दफनाया। अयोध्या में बाबरी मस्जिद (बाबर की मस्जिद) भारत के ताकतवर साम्राज्य के संस्थापक की स्मृति में बनवायी गयी थी ।