मुबारक शाह: 1421-1434 ई. Mubarak Shah: 1421-1434 AD.
मुबारक शाह, जिसे उसके पिता खिजिर खाँ ने मृत्युशैय्या पर अपना उत्तराधिकारी मनोनीत किया था, उसकी मृत्यु के दिन ही दिल्ली के सरदारों की सहमति से दिल्ली के राजसिंहासन पर बैठा। उसी के शासन-काल में यहिया बिन अहमद सरहिन्दी ने अपनी तारीखे-मुबारकशाही लिखी, जो इस काल के इतिहास के लिये एक बहुमूल्य साधन है। पर उसका शासन-काल भी, उसके पिता के शासनकाल की तरह ही, घटना-शून्य तथा उदासी से भरा है। उपद्रवों का शमन करने के अभिप्राय से दण्ड देने वाले कुछ आक्रमणों के अतिरिक्त, जिनमें सुल्तान को विवश होकर अपनी सेना के साथ जाना पड़ा, कुछ भी वर्णन करने योग्य महत्त्व की बात नहीं है। यह भटिंडा एवं दोआब में विद्रोहों को दबाने तथा एक सीमित क्षेत्र से बकाया कर वसूल करने में समर्थ हुआ। पर वीर खोकर अत्याधिक शक्तिशाली बनते गये तथा उसे कई बार तंग किया। उनका नायक जसरत दिल्ली राज्य के विध्वंस पर उनकी प्रभुता स्थापित करने की निश्चित रूप से आकांक्षा रखता था। दिल्ली दरबार में हिन्दू सरदार अपना प्रभाव बढ़ा रहे थे। 19 फरवरी, 1434 ई. को यमुना के किनारे मुबारकाबाद नामक एक नये आयोजित नगर के निर्माण के अधीक्षण के लिये जाते समय सुल्तान, असन्तुष्ट वजीर सखरुलमुल्क के नेतृत्व में कुछ मुस्लिम एवं हिन्दू सरदारों द्वारा संगठित एक षड्यंत्र का शिकार बन गया।