आधुनिक भौतिकी Modern Physics

परमाणु संरचना Atomic Structure

प्राचीन काल से ही दार्शनिक मानते रहे हैं कि प्रत्येक पदार्थ छोटे-छोटे कणों से मिलकर बना है। परन्तु इसका कोई प्रायोगिक प्रमाण नहीं था। सन् 1803 ई० में डाल्टन ने बताया कि प्रत्येक पदार्थ छोटे-छोटे कणों से बना होता है, जिन्हें परमाणु (Atom) कहते हैं। डाल्टन ने उस समय बताया कि परमाणु का किसी भी भौतिक अथवा रासायनिक विधि द्वारा विभाजन नहीं किया जा सकता, परन्तु, आगे चलकर परमाणु का भी विभाजन हुआ और विभाजक कणों को पदार्थ का मौलिक कण कहा गया।

मौलिक कण Fundamental Particles

भौतिकी में मूल कण वे कण हैं, जिनकी संरचना किन्हीं और कणों से नहीं हुई है और जिनका विभाजन नहीं किया जा सकता। सन् 1932 ई० से पूर्व तक इलेक्ट्रॉन एवं प्रोटॉन ही केवल मूल कण माने जाते थे। सन् 1932 ई० में चैडविक (Chadwick) द्वारा न्यूट्रॉन नामक आवेशरहित कण की खोज की गयी तब इसकी संख्या तीन हो गई। इसके बाद मूल कणों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई। आज मूल कणों की संख्या 30 से ऊपर पहुँच चुकी है। कुछ प्रमुख मूल कण इस प्रकार हैं-

(1) इलेक्ट्रान Electron

इसकी खोज सन 1897 ई. में जे.जे. थामसन (J.J.Thomson) के द्वारा की गयी थी। उन्हें आधुनिक भौतिकी का जनक (The Father of Modern Physics) कहा जाता है। इलेक्ट्रॉन एक ऋणावेशित मूल कण है तथा परमाणु के नाभिक के चारों ओर विभिन्न ऊर्जा स्तरों वाले कक्षाओं में चक्कर काटते रहते हैं। इस पर 1.6 × 10-19 कृलम्ब ऋण आवेश होता है। इसका द्रव्यमान 9.1 × 10-31 किग्रा होता है। यह एक स्थायी (stable) मूल कण है।

(2) प्रोटॉन Proton


यह एक धनात्मक मूल कण है, जो परमाणु के नाभिक में रहता है। इसकी खोज 1896 ई० में गोल्डस्टीन (Goldstein) ने की थी। इस मूल कण का नामकरण रदरफोर्ड (Rutherford) ने किया। इस पर 1.6 × 10-19 कूलम्ब धन आवेश होता है। इनका द्रव्यमान 1.67 × 10-27 किग्रा० होता है। यह एक स्थायी मूल कण है।

(3) न्यूट्रॉन Neutron

इसकी खोज सन् 1932 ई० में चैडविक (Chadwick) ने की थी। यह एक आवेश रहित मूल कण है, जो परमाणु के नाभिक में रहता है। इसका द्रव्यमान प्रोटान के द्रव्यमान के बराबर होता है। यह एक अस्थायी (unstable) मूल कण है। इसका जीवन काल 17 मिनट होता है। न्यूट्रॉन का उपयोग जीव-विज्ञान एवं चिकित्सा विज्ञान में होता है। आवेश रहित होने के कारण इसका उपयोग नाभिकीय विखंडन में किया जाता है।

(4) पॉजीट्रॉन Positron

इसकी खोज सन 1932 में एण्डरसन (Anderson) ने की थी। यह एक धन आवेशित मूल कण है, जिसका द्रव्यमान व आवेश इलेक्ट्रॉन के बराबर होता है। इसीलिए इसे इलेक्ट्रॉन का एन्टि-कण (Anti-Particle of Electron) भी कहते हैं।

(5) न्यूट्रिनो Neutrino

इसकी खोज सन् 1930 ई० पाउली (Pauli) ने की थी। यह द्रव्यमान व आवेश रहित मूल कण हैं। ये दो प्रकार के होते हैं, न्यूट्रिनो एवं एन्टिन्यूट्रिनो। इनके चक्रण (spin) एक-दूसरे के विपरीत होते हैं।

(6) पाई-मेसॉन π-meson

इसकी खोज सन् 1935 ई० में एच० युकावा (H. Yukavva) ने की थी। यह दो प्रकार की होती है- धनात्मक पाई मेसॉन एवं ऋणात्मक पाई मेसॉन। यह एक अस्थायी मूल कण है। इसका जीवनकाल 10-8 से० होता है। इसका द्रव्यमान इलेक्ट्रॉन के द्रव्यमान का 274 गुना होता है।

(7) फोटॉन Photon

ये ऊर्जा के बंडल (packet) होते हैं, जो प्रकाश की चाल से चलते हैं। सभी विद्युत चुम्बकीय किरणों का निर्माण मूल कण से हुआ है। इनका विराम द्रव्यमान (Rest Mass) शून्य होता है।


नाभिक Nucleus

परमाणु का केन्द्रीय भाग जिसमें परमाणु का कुल धन आवेश और लगभग सभी द्रव्यमान संकेन्द्रित रहता है परमाणु का नाभिक कहलाता है। नाभिक की त्रिज्या 10-12 सेमी० होती है, जबकि परमाणु की त्रिज्या 10-8 सेमी० होती है। नाभिक का घनत्व परमाणु के घनत्व से 10-12 गुना अधिक होता है। चूंकि परमाणु का समस्त द्रव्यमान इसके नाभिक में होता है। इस कारण नाभिक काफी सघन एवं दृढ़ (rigid) होता है।

परमाणु नाभिक की रचना प्रोटॉनों और न्यूट्रॉनों से होती है। जिन नाभिकों में 2, 8, 14, 20, 28, 50 या 82 न्यूट्रॉन अथवा प्रोट्रॉन या 126 अथवा 152 न्यूट्रॉन होते हैं, वह अन्य नाभिकों की तुलना में अधिक स्थायी होते हैं। ये संख्याएँ स्थायित्व संख्याएँ (stability Numbers) कहलाती हैं।

नाभिकीय बल Nuclear Forces

जो आकर्षण बल परमाणु नाभिक में न्यूक्लिऑनों (प्रोटॉनों और न्यूट्रॉनों) को परस्पर बाँधे रहता है, वे नाभिकीय बल कहलाते हैं। समान आवेश के कारण प्रोटॉनों में प्रतिकर्षण होता है, परन्तु इस प्रतिकर्षण के बाबजूद नाभिक स्थायी होता है. क्योंकि नाभिकीय बल प्रतिकर्षण बल से अधिक होता है। नाभिकीय बल केवल 2f-3f(f= fermi) की दूरी तक सक्रिय होते हैं। (1f= 10-15m)

आधुनिक विचारों के अनुसार, नाभिकीय बलों की उत्पत्ति नाभिकीय कण के मध्य मेसॉनों (Mesons) के विनिमय (exchange) से होती है। प्रोटॉन और न्यूट्रॉन के मध्य विद्युत आवेशित मेसॉनों का विनिमय होता है। मेसॉनों के विनिमय से विनिमय बल (exchange force) उत्पन्न होते हैं, जो नाभिकीय कणों को एक-दूसरे से बाँधे रखते हैं।

नाभिकीय स्थायित्व Nuclear Stability

किसी नाभिक का स्थायित्व (stability) उसमें उपस्थित न्यूट्रॉनों (n) और प्रोटानों (p) की संख्या के अनुपात पर निर्भर करता है। जिन नाभिकों में n/p = 1 होता है, वे बहुत स्थायी होते हैं। जब n एवं p का अनुपात 1.5 से अधिक हो जाता है, तो वह नाभिक अस्थायी और रेडियोएक्टिव हो जाता है। परमाणु क्रमांक 83 से ऊपर के परमाणुओं में n/p लगभग 1.5 से 1.6 होता है, फलस्वरूप ये नाभिक रेडियोएक्टिव होते हैं।


समस्थानिक Isotopes

वैसे परमाणु जिसमें प्रोटॉनों की संख्या समान हो, परन्तु न्यूट्रॉनों की संख्या भिन्न हो, तो वे समस्थानिक कहलाते हैं। जैसे- C12, C13, C14, ये कार्बन के तीन समस्थानिक है, जिसमें प्रॉटानों की संख्या तो सभी में 6 है, किन्तु न्यूट्रॉनों की संख्या 6, 7 एवं 8 है। समस्थानिकों के रासायनिक गुण समान होते हैं। एक ही तत्व के दो या दो से अधिक समस्थानिक हो सकते हैं। पोलोनियम के 27 समस्थानिक होते हैं। कुछ समस्थानिक कृत्रिम विधि से भी बनाये जाते हैं, इन्हें रेडियो-समस्थानिक (Radio Isotopes) कहते हैं। कृत्रिम रूप से निर्मित समस्थानिक रेडियोसक्रिय होते हैं तथा विभिन्न प्रकार के रेडियोसक्रिय किरणे उत्सर्जित करते हैं।

समभारी Isobars

कुछ तत्व वैसे होते है, जिनके परमाणुओं का परमाणु भार समान होता है, किन्तु परमाणु संख्या भिन्न होती हैं ऐसे परमाणुओं को समभारी कहा जाता है। समभारी के रासायनिक गुण भिन्न होते हैं। कैल्सियम और ऑर्गन के परमाणु समभारी होते हैं।


द्रव्यमान-उर्जा समतुल्यता Mass Energy Equivalence

आइन्स्टाइन ने क्रव्य्मन और ऊर्जा के बीच एक सम्बन्ध स्थापित किया, जिसे आइन्स्टीन का द्रव्यमान-ऊर्जा सम्बन्ध कहा जाता है। 1905 में आइन्स्टीन ने अपने सापेक्षिकता के सिद्धान्त को प्रतिपादित करके यह सिद्ध किया कि द्रव्यमान एवं ऊर्जा एक-दूसरे से स्वतंत्र नहीं है, बल्कि दोनों एक-दूसरे से संबंधित है तथा प्रत्येक पदार्थ में उसके द्रव्यमान के कारण ऊर्जा भी होती है। सम्पूर्ण नाभिकीय ऊर्जा का मूल स्रोत है-द्रव्यमान का ऊर्जा में परिवर्तन। आईन्स्टीन ने बताया कि प्रत्येक द्रव्यमान (m), ऊर्जा (E) के समतुल्य है E = mc2, जहाँ c निर्वात् में प्रकाश की चाल है, जो 3 × 108 मी०/से० होती है। इस प्रकार 1 किलो ग्राम द्रव्यमान के समतुल्य ऊर्जा 1 × (3 × 108)2 = 9 × 1016 जूल होती है। अतः m किग्रा० द्रव्यमान के लुप्त (disappear) होने पर mc2 जूल ऊर्जा उत्पन्न होती है तथा E जूल ऊर्जा उत्पन्न होने में E/c2 किलोग्राम द्रव्यमान की क्षति (loss) होती है। इससे स्पष्ट है कि जिन अभिक्रियाओं में ऊर्जा उत्पन्न होती है उनमें द्रव्यमान की हानि भी होती है। रासायनिक अभिक्रियाओं में उत्पन्न ऊर्जा अल्प होती है और उसके तुल्य द्रव्यमान की हानि भी नगण्य होती है, इसीलिए यह माना जाता है कि रासायनिक अभिक्रियाओं में द्रव्यमान संरक्षित रहता है। इसके विपरीत नाभिकीय अभिक्रियाओं में द्रव्यमान क्षति अधिक होती है और ऊर्जा भी अधिक विमुक्त (liberate) होती है। इसीलिए नाभिकीय अभिक्रियाएं द्रव्यमान संरक्षण नियम का अनपुालन नहीं करती।


द्रव्यमान क्षति Mass Defect

किसी परमाणु के नाभिक का द्रव्यमान उसमें उपस्थित न्यूट्रॉनों और प्रोटानों के द्रव्यमानों के योग से हमेशा कम होता है। नाभिक के द्रव्यमान में हुई इस कमी को द्रव्यमान क्षति के नाम से जाना जाता है। अतः स्पष्ट है कि जब प्रोटॉन और न्यूट्रॉन मिलकर नाभिक की रचना करते हैं, तो कुछ द्रव्यमान लुप्त हो जाता है। यह लुप्त द्रव्यमान ऊर्जा में परिवर्तित हो जाता है। (i.e., E = Δmc2)

परमाणु द्रव्यमान मात्रक (Atomic mass unit, a.m.u.): कार्बन परमाणु [latex] _{ 6 }^{ 12 }{ C }[/latex] के द्रव्यमान के [latex] \frac { 1 }{ 12 }[/latex]  वें भाग को 1 amu कहते हैं। अतः 1 a.m.u. = 1.66033 × 10-27 kg इसे आजकल एकीकृत परमाणु द्रव्यमान मात्रक (Unified Atomic Mass Unit) कहते हैं और u द्वारा व्यक्त करते हैं। इस मात्रक की समतुल्य ऊर्जा 931 Mev होती हैं। (1 Mev = 1.6 × 10-13 जूल)


बन्धन ऊर्जा Binding Energy

जब प्रोटॉन और न्यूटॉन मिलकर नाभिक की रचना करते हैं, तो कुछ द्रव्यमान लुप्त हो जाता है। यह लुप्त द्रव्यमान ऊर्जा में रूपानान्तरित हो जाता है। अतः न्यूट्रॉन एवं प्रोटॉन के संयोग से किसी नाभिक बनने में जो ऊर्जा विमुक्त (liberate) होती है, उसे नाभिक की बन्धन ऊर्जा कहते हैं। मान लिया कि किसी नाभिक को बनने में Δm द्रव्यमान लुप्त होती है, तो आइन्स्टीन के द्रव्यमान ऊर्जा समतुल्यता के अनुसार ऊर्जा की मात्रा Δmc2 होगी।

नाभिकीय विखंडन Nuclear Fission

वह प्रक्रिया जिसमें कोई भारी नाभिक दो लगभग समान आकार के नाभिकों में टूट जाता है, नाभिकीय विखंडन कहलाता है। हॉन तथा स्ट्रासमैन (Hahn and Strassmann) नामक दो जर्मन वैज्ञानिक ने सबसे पहले यूरेनियम पर न्यूट्रॉनों की बमबारी करके इसके नाभिक को दो खण्डों में विभाजित किया। यूरेनियम-235 के नाभिक के इस विखंडन में बहुत अधिक ऊर्जा उत्सर्जित होती है, इस ऊर्जा को नाभिकीय ऊर्जा कहते हैं। नाभिक के विखंडन से प्राप्त नाभिकों का द्रव्यमान विखंडन से पूर्व के नाभिक के द्रव्यमान से कम होता है। द्रव्यमान में हुई यह कमी, द्रव्यमान-ऊर्जा समीकरण (Mass-Energy Equation) के अनुसार ऊर्जा में परिवर्तित हो जाती है। यूरेनियम-235 का नाभिकीय विखंडन अनेक प्रकार से हो सकता है, उनमें से एक नाभिकीय अभिक्रिया इस प्रकार है-

[latex] _{ 92 }^{ 235 }{ U }\quad +\quad _{ 0 }^{ 1 }{ n }\quad \rightarrow \quad _{ 56 }^{ 141 }{ Ba }\quad +\quad _{ 36 }^{ 92 }{ Kr }\quad +\quad 3_{ 0 }^{ 1 }{ n }[/latex] ऊर्जा (200Mev)

यूरेनियम-235 के नाभिकीय विखंडन के उत्पादों में केवल बेरियम (Ba) और क्रिप्टॉन (Kr) के समस्थानिक ही नहीं किन्तु, अन्य कई तत्वों के समस्थानिक भी प्राप्त होते हैं, जिनकी द्रव्यमान संख्याएँ 72 से 162 के मध्य तथा परमाणु क्रमांक 36 से 58 के मध्य होते हैं। यूरेनियम-235 के एक नाभिक के विखंडित होने पर तीन नए न्यूट्रॉन निकलते हैं। यूरेनियम-235 की नाभिकीय विखंडन अभिक्रिया में लगभग 0.214 amu द्रव्यमान की क्षति होती है, जो 0.214 × 931 = 199.234 = 200 (लगभग) Mev ऊर्जा के तुल्य है।


श्रृंखला अभिक्रिया Chain Reaction

जब यूरेनियम पर न्यूट्रॉनों की बमबारी की जाती है, तो एक यूरेनियम नाभिक के विखंडन पर बहुत अधिक ऊर्जा व तीन नए न्यूट्रॉन उत्सर्जित होते हैं। ये उत्सर्जित न्यूट्रॉन यूरेनियम के अन्य नाभिकों को भी विखण्डित करते हैं। इस प्रकार यूरेनियम नाभिकों के विखंडन की एक श्रृंखला बन जाती है तथा यह श्रृंखला तब तक चलती रहती है, जब तक कि सारा यूरेनियम समाप्त नहीं हो जाता है। श्रृंखला अभिक्रिया दो प्रकार की होती है-

(i) नियंत्रित श्रृंखला अभिक्रिया (controlled chain Reaction): नियंत्रित श्रृंखला अभिक्रिया में विखंडन के दौरान निकलने वाले तीन नए न्यूट्रॉन में से दो को अवशोषित कर लिया जाता है, जिसके कारण यह अभिक्रिया धीरे-धीरे और नियंत्रित तरीके से होती है। यह अभिक्रिया परमाणु भट्टी या परमाणु रिएक्टर (Atomic Reactor) में होती है। इस अभिक्रिया के दौरान निकलने वाली ऊर्जा का उपयोग रचनात्मक कार्य में किया जाता है।

(ii) अनियंत्रित श्रृंखला अभिक्रिया (Uncontrolled Chain Reaction): इस अभिक्रिया में अभिक्रिया के दौरान उत्पन्न होने वाले न्यूट्रॉनों की संख्या पर नियंत्रण नहीं होता है। इस कारण विखंडित होने वाले परमाणुओं की संख्या 1, 3, 9, 27, 81 … के क्रम में बढ़ता जाता है। इस कारण इस अभिक्रिया में ऊर्जा अत्यन्त तीव्र गति से उत्पन्न होती है तथा बहुत कम समय में बहुत अधिक विनाश कर सकती है। इस अभिक्रिया में प्रचंड विस्फोट होता है। परमाणु बम (Atom Bomb) में यही अभिक्रिया होती है।

परमाणु रिएक्टर Atomic Reactor

परमाणु रिएक्टर के द्वारा नाभिकीय ऊर्जा को रचनात्मक कार्यों के प्रयोग में लाया जाता है। यह एक ऐसी युक्ति है, जिसमें यूरेनियम-235 का नियन्त्रित विखंडन कराया जाता है । विखंडन में निकलने वाली ऊष्मा ऊर्जा से पानी का भाप बनाकर टरबाइन चलाया जाता है, जिससे विद्युत् का उत्पादन होता है। प्रथम नाभिकीय रिएक्टर ऐनरिको फर्मी (Enrico Fermi) के निर्देशन में अमेरिका के शिकागो विश्वविद्यालय में सन् 1942 ई० में बनाया गया था। नाभिकीय रिएक्टर में ईधन के रूप में पहले संवर्द्धित यूरेनियम (Enriched Uranium) का प्रयोग किया जाता था। इन दिनों भारत में थोरियम एवं प्लूटोनियम का भी प्रयोग ईंधन के रूप में किया जा रहा है। विखंडन अभिक्रिया में उत्पन्न न्यूट्रॉनों की गति तीव्र होती है। इन न्यूट्रॉनों की गति को मंदित करने के लिए भारी जल (D2O) या ग्रेफाइट का प्रयोग मंदक (Moderator) के रूप में किया जाता है। विखंडन की श्रृंखला अभिक्रिया को नियंत्रित रखने के लिए कैडमियम या बोरॉन की लम्बी छड़ों का उपयोग किया जाता है। ये छड़े नियंत्रक छड़े (Controller Rods) कहलाती हैं। ये छड़े विखंडन में उत्पन्न होने वाले तीन नए न्यूट्रॉनों में से दो को अवशोषित कर लेती हैं, जिससे औसतन एक विखंडन के पश्चात् एक ही विखंडन होता है और विखंडन अभिक्रिया नियंत्रित श्रृंखला अभिक्रिया बनी रहती है। नाभिकीय या परमाणु रिएक्टर के अनेक उपयोग हैं। रिएक्टर से प्राप्त नाभिकीय ऊर्जा पर आधारित विद्युत् गृह (Power House) बनाये जाते हैं। इस प्रकार विद्युत् उत्पादन के लिए कोयले के स्थान पर नाभिकीय ऊर्जा का उपयोग होता है। रिएक्टर से उत्पन्न अनेक प्रकार के रेडियो समस्थानिकों का उपयोग चिकित्सा विज्ञान, कृषि, उद्योग-धन्धे आदि में होता है।

ब्रीडर रिएक्टर Breeder Reactor

ऐसा रिएक्टर जो प्रयुक्त किए गए विखंडनीय पदार्थ की तुलना में अधिक विखंडनीय पदार्थ उत्पन्न करता है, ब्रीडर रिएक्टर कहलाता है, अर्थात् इसमें प्रयुक्त पदार्थ ही और अधिक मात्रा में उत्पन्न किया जाता है। इसमें यूरेनियम-238 से प्लूटोनियम-239 और थोरियम-232 से यूरोनियम-233 प्राप्त होता है ।

भारत तथा अन्य कई देशों में नाभिकीय रिएक्टरों का उपयोग विद्युत् उत्पादन के लिए किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त रिएक्टर से रेडियोएक्टिव समस्थानिक भी प्राप्त होते हैं। रिएक्टर द्वारा यूरेनियम-238 को विखंडन योग्य प्लूटोनियम-239 में परिवर्तित किया जाता है, और तब उसे परमाणु बम के निर्माण में प्रयुक्त किया जा सकता है।

बम Atom Bomb

परमाणु बम को सामान्यतः नाभिकीय बम भी कहा जाता है। इसका सिद्धान्त नाभिकीय विखंडन (Nuclear Fission) पर आधारित है। परमाणु बम को बनाने के लिए यूरेनियम-235 या प्लूटोनियम-239 का प्रयोग किया जाता है। इसमें अनियंत्रित श्रृंखला अभिक्रिया होती है। प्रथम परमाणु बम जे. राबर्ट ओपन होमर द्वारा 1945 ई० में बनाया गया था। परमाणु विस्फोट में वायु का प्रचण्ड झोंका आता है तथा ताप कम-से-कम 107°C तक पहुँच जाता है तथा लाखों वायुमंडलीय दाब के बराबर दाब उत्पन्न होता है। विस्फोट में अन्धा कर देने वाली चमक तथा कई विनाशकारी रेडियोएक्टिव किरणे उत्पन्न होती हैं, जो विस्फोट के काफी समय बाद तक हानिकारक प्रभाव डालती रहती हैं। द्वितीय विश्व युद्ध में अमेरिका द्वारा जापान के विरुद्ध पहली बार परमाणु बम का प्रयोग किया था। प्रथम परमाणु बम (लिटिल बॉय) 6 अगस्त, 1945 ई० को अमेरिकी वायुसैनिक बमवर्षक विमान बी-29 इनोला गे द्वारा हिरोशिमा पर गिराया गया था। इसके तीन दिन बाद ही 9 अगस्त, 1945 ई० को दूसरा परमाणु बम (फैट मैन) जापान के ही नागासाकी शहर पर गिराया गया था। परमाणु बम नाभिकीय ऊर्जा का विनाशक रूप है। 18 मई, 1974 ई० को राजस्थान के पोखरण में भारत ने अपना पहला परमाणु परीक्षण किया जो नाभिकीय विखण्डन पर आधारित था। फिर 11 एवं 13 मई, 1998 ई० को राजस्थान के पोखरण में ही भारत ने पाँच परमाणु परीक्षण किए, जिनमें से एक परीक्षण नाभिकीय विखण्डन (11 मई) एवं चार परीक्षण नाभिकीय संलयन (दो-11 मई को, दो-13 मई को) पर आधारित थे। ध्यातव्य है कि परमाणु परीक्षण परमाणु बम बनाने का पूर्वाभ्यास होता है।

नाभिकीय संलयन Nuclear Fusion

जब दो या दो से अधिक हल्के नाभिक संयुक्त होकर एक भारी नाभिक बनाते हैं, तो इस अभिक्रिया को नाभिकीय संलयन कहते हैं। इस अभिक्रिया में संलयन से प्राप्त नाभिक का द्रव्यमान, इसके पूर्व के नाभिकों के द्रव्यमान से कम होता है। द्रव्यमान में यह कमी आइन्स्टीन के समीकरण E = mc2 के अनुसार ऊर्जा में परिवर्तित हो जाती है। नाभिकीय संलयन अभिक्रिया का एक उदाहरण है-

[latex]_{ 1 }^{ 2 }{ H }\quad +\quad _{ 1 }^{ 3 }{ H }\quad \rightarrow \quad _{ 2 }^{ 4 }{ He }\quad +\quad _{ 0 }^{ 1 }{ n }\quad +\quad[/latex] ऊर्जा (200Mev)

अर्थात् अत्यधिक दाब व अति उच्च ताप (जो सूर्य के केन्द्रीय भाग में स्थित है) पर एक ड्यूटीरियम नाभिक ऍH) एक ट्राइटियम नाभिक [latex]_{ 1 }^{ 2 }{ H }[/latex] से संयुक्त होकर हीलियम नाभिक [latex]_{ 2 }^{ 4 }{ He }[/latex]; अपेक्षाकृत भारी नाभिक, बनाते हैं तथा एक न्यूट्रॉन एवं 17.6 Mev ऊर्जा विमुक्त करते हैं। नाभिकीय संलयन में दो नाभिक संलयित होते हैं, जो धनावेशित रहते हैं। जब ये दोनों नाभिक एक-दूसरे के समीप आते हैं, तो इनके बीच तीव्र प्रतिकर्षण होता है, जिसके कारण नाभिकों को संलयित करना अत्यन्त कठिन कार्य होता है। इन नाभिकों को संलयित करने के लिए करीब 108K उच्च ताप एवं उच्च दाब की आवश्यकता होती है। नाभिकीय संलयन के लिए इतना अधिक उच्च ताप एवं दाब सामान्य परिस्थितियों में पृथ्वी पर उपलब्ध नहीं है। ताप एवं दाब की ये अवस्थाएँ परमाणु बम की विस्फोट से ही प्राप्त हो सकती हैं। अतः पृथ्वी पर नाभिकीय संलयन परमाणु बम के विस्फोट से ही हो सकता है। वर्तमान समय में लेसर प्रकाश द्वारा हाइड्रोजन समस्थानिक को संलयित करने का प्रयास किया जा रहा है। हाइड्रोजन बम एवं सूर्य के ऊर्जा का स्रोत नाभिकीय संलयन प्रक्रिया ही है।

हाइड्रोजन बम Hydrogen Bomb

अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस एवं चीन ऐसे देश हैं, जिन्होंने हाइड्रोजन बम विकसित करने के साथ-साथ उनका परीक्षण भी कर लिया है। 11 मई, 1998 ई० को राजस्थान के पोखरण में भारत ने नाभिकीय संलयन पर आधारित पहला परमाणु परीक्षण किया। 11 मई को किए जाने वाले तीन परीक्षणों में से एक परीक्षण तापीय नाभिकीय अभिक्रिया (हाइड्रोजन बम) पर आधारित था। इससे स्पष्ट है कि भारत ने हाइड्रोजन बम का परीक्षण कर लिया है और उसके पास हाइड्रोजन बम बनाने की क्षमता है। हाइड्रोजन बम का आविष्कार एडवर्ड टेलर ने 1952 ई० में किया। यह नाभिकीय संलयन अभिक्रिया पर आधारित है। संलयन के लिए आवश्यक उच्च ताप एवं दाब की परिस्थितियाँ एक आन्तरिक विखण्डन बम (परमाणु बम) के विस्फोट द्वारा उत्पन्न की जाती है। यह बम परमाणु बम की अपेक्षा 1,000 गुना अधिक शक्तिशाली बम है। इसका मारक क्षेत्रफल परमाणु बम के मारक क्षेत्रफल की तुलना में बड़ा होता है। लेकिन इसका असर परमाणु बम के असर की तुलना में कम समय तक रहता है; पर्यावरण में परमाणु बम का असर लंबे समय तक रहता है और मानव शरीर पर दुष्प्रभाव छोड़ता है। हाइड्रोजन बम से अपार ऊर्जा मुक्त होती है। परन्तु अभी तक इस ऊर्जा को नियंत्रित करके रचनात्मक कार्यों में प्रयुक्त नहीं किया जा सका है, क्योंकि जिस ताप पर संलयन की प्रक्रिया होती है, उस पर परमाणुओं से भी इलेक्ट्रॉन अलग-अलग हो जाते हैं।

सूर्य की ऊर्जा Solar Energy

सूर्य तथा ब्रह्मांड के अन्य तारों की ऊर्जा का स्रोत वहाँ पर होने वाला नाभिकीय संलयन है। सूर्य का अधिकांश भाग हाइड्रोजन (71%) तथा हीलियम (26%) का बना है। सूर्य के केन्द्र का ताप लगभग दो करोड़ डिग्री सेल्सियस है। इतने अधिक ताप पर हाइड्रोजन नाभिकों का संलयन हीलियम नाभिक में होता रहता है, जिससे बहुत अधिक मात्रा में ताप एवं प्रकाश ऊर्जा विमुक्त होती है। सूर्य जिस दर से ऊर्जा उत्सर्जित कर रहा है। उससे अनुमान लगाया जाता है कि वह अभी अगले 1000 करोड़ वर्ष तक इसी दर से ऊर्जा उत्सर्जित करता रहेगा।

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