मौर्य साम्राज्य Mauryan Empire
मौर्य साम्राज्य (323ई.पू. से 184 ई. पू.)
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मौर्य वंश के प्रमुख शासक
चन्द्रगुप्त मौर्य (322 ई.पू. से 298 ई. पू.)
- चंद्रगुप्त मौर्य ने लगभग 322 ईसा पूर्व मेँ अपने गुरु चाणक्य की सहायता से मगध साम्राज्य के अंतिम शासक घनानंद को पराजित कर मौर्य साम्राज्य की स्थापना की।
- आमतौर पर यह माना जाता है उसका संबंध मोदी ‘मोरिय’ जाति से था, जो एक निम्न जाति थी।
- विशाखदत्त कृत मुद्राराक्षस में चंद्रगुप्त मौर्य के लिए ‘वृषल’ शब्द का प्रयोग हुआ है। वृषाल शब्द से आशय निम्न मूल से है। इसमें चंद्रगुप्त को नंदराज का पुत्र माना गया है।
- चंद्रगुप्त ने पश्चिमोत्तर भारत मेँ तत्कालीन यूनानी शासक निकेटर, जो सिकंदर का सेनापति था को 305 ईसा पूर्व मेँ पराजित कर दिया।
- इस युद्ध का विवरण एप्पियानस नामक यूनानी ने दिया है।
- संधि के बाद सेल्यूकस ने 500 हाथी लेकर बदले मेँ एरिया (हेरात) अराकेसिया (कंधार) जेड्रोसिया एवम् पेरोपनिसडाई (काबुल) के क्षेत्र प्रदान किए।
- सेल्यूकस ने अपनी पुत्री का विवाह चंद्रगुप्त से किया और मेगस्थनीज़ को अपने राजदूत के रुप मेँ उसके के दरबार मेँ भेजा।
- प्लूटार्क का कहना है कि, चंद्रगुप्त ने 6 लाख सैनिकों वाली सेना लेकर संपूर्ण भारत को रौंद डाला और उस पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया। जस्टिन भी इसी प्रकार का विवरण प्रस्तुत करता है।
- चंद्रगुप्त का साम्राज्य उत्तर पश्चिम मेँ ईरान (फारस) से लेकर बंगाल तक, उत्तर मेँ कश्मीर से लेकर दक्षिण में उत्तरी कर्नाटक (मैसूर) तक फैला हुआ था।
- स्मिथ ने चन्द्रगुप्त के साम्राज्य का विवेचन करते हुए लिखा है कि उसके साम्राज्य मेँ आधुनिक अफगानिस्तान, हिंदुकुश घाटी, पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, काठियावाड़, नर्मदा पार के प्रदेश सम्मिलित थे।
- विष्णुगुप्त चंद्रगुप्त का प्रधानमंत्री था, जिसे चाणक्य तथा कौटिल्य के नाम से भी जाना जाता है।
- चाणक्य ने अर्थशास्त्र नामक ग्रंथ की रचना की, जिसमे प्रशासन के नियमो का उल्लेख है।
- चंद्रगुप्त ने के शासनकाल मे सौराष्ट्र के गवर्नर पुष्यगुप्त ने सुदर्शन झील का निर्माण कराया।
- चंद्रगुप्त की दक्षिण भारत की विजयों के बारे मेँ जानकारी तमिल ग्रंथ अहनानूर एवम् मुरनानूर से मिलती है।
- चंद्रगुप्त की बंगाल विजय का उल्लेख महास्थान अभिलेख से प्रकट होता है।
- चन्द्रगुप्त जैन धर्मावलंबी था। उसने जैन मुनि भद्रबाहु से जैन धर्म की दीक्षा ली थी।
- कहा जाता है कि मगध मेँ 12 वर्ष का दुर्भिक्ष (अकाल) पड़ा तो चंद्रगुप्त ने अपने पुत्र सिंहसेन के पक्ष मेँ सिंहासन त्यागकर भद्रबाहु के साथ श्रवणबेलगोला मेँ तपस्या करने के पश्चात 298 ई.पू. में अपना शारीर त्याग दिया।
- यूनानी लेखक जस्टिन ने चंद्रगुप्त को सैण्ड्रोकोट्स कहा है। सैण्ड्रोकोट्स की पहचान चंद्रगुप्त के रुप मेँ पहली बार विलियम जोंस ने की थी।
बिंदुसार (298 ई.पू.-272 ई. पू.)
- चन्द्रगुप्त के उपरांत उसका पुत्र बिंदुसार मौर्य साम्राज्य का शासक बना।
- यूनानी साहित्य में बिन्दुसार को अमित्रोकेट्स या अभित्रघात्र कहा गया है। अभित्रघात्र का अर्थ शत्रुनाशक होता है।
- जैन ग्रंथ राजबलि कथा मेँ बिंदुसार को सिंहसेन कहा गया है।
- बौद्ध ग्रन्थ दिव्यादान के अनुसार बिंदुसार के सासन काल मेँ तक्षशिला मेँ विद्रोह हुआ था, जिसको दबाने के लिए उसने अपने पुत्र अशोक को कहाँ भेजा था।
- स्ट्रेबो के अनुसार सीरिया के शासक एंटियोक्स ने डायमेक्स नामक अपना एक राजदूत बिंदुसार के दरबार मेँ भेजा था।
- प्लिनी के अनुसार शासक तालमी द्वितीय फिलाडेल्फस ने एक राजदूत डायोनिसस को बिंदुसार के दरबार मेँ भेजा था।
- एथेनियस के अनुसार बिन्दुसार ने सीरिया के शासक के पास एक संदेश भेजकर एक दार्शनिक भेजने का आग्रह किया था, जिसे उसने यह कह कर इंकार कर दिया गया कि दार्शनिकों का विक्रय नहीँ किया जा सकता।
- चाणक्य बिंदुसार का प्रधान मंत्री रहा। लामा तारानाथ के अनुसार चाणक्य ने 16 राज्योँ के राजाओं और सामंतोँ का नाश किया और बिंदुसार को पूर्वी समुद्र से पश्चिमी समुद्रपर्यंत भूभाग का राजा बनाया।
- बिंदुसार आजीवक संप्रदाय का अनुयायी था। दिव्यादान से पता चलता है कि राजसभा में आजीवक संप्रदाय का एक ज्योतिषी निवास करता था।
- पुराणों के अनुसार बिन्दुसार ने 24 वर्ष शासन किया, किंतु महाभारत मेँ कहा गया है कि बिन्दुसार ने 27 वर्ष तक राज्य किया।
सम्राट अशोक (273 ई.पू.-232 ई. पू.)
- बिन्दुसार की मृत्यु के उपरांत अशोक मोर्य साम्राज्य का शासक बना।
- एकशासक के रूप में अशोक वोश्व इतिहास मेँ एक विशिष्ट स्थान रखता है।
- सिंहली अनुश्रुति के अनुसार अशोक ने अपने 99 भाइयों का वध कर के मौर्य साम्राज्य का राजसिंहासन प्राप्त किया था।
- राज्याभिषेक बुद्ध के महापरिनिर्वाण के 218 वर्ष बाद हुआ था।
- अभिलेखों एवं साहित्यिक ग्रंथों में उसे देवनामपियद्शी कहा गया है।
- अशोक ने अपने राजाभिषेक के 9वें वर्ष (260 ई.पू.) में कलिंग पर आक्रमण कर के अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया।
- कुछ इतिहासकारों के अनुसार कलिंग को जीतना आवश्यक था, क्योंकि दक्षिण के साथ सीधे संपर्क के लिए एक स्वतंत्र राज्य के समुद्री और स्थल मार्ग पर नियंत्रण होना जरुरी था।
- कौटिल्य के अनुसार कलिंग हाथियों के लिए प्रसिद्द था। इन्हीं हाथियोँ को प्राप्त करने के लिए अशोक ने कलिंग पर आक्रमण किया किया था।
- कलिंग के हाथी गुफा अभिलेख से प्रकट होता है कि अशोक के कलिंग आक्रमण के समय कलिंग पर ‘नंदराज’ नाम का कोई राजा राज्य कर रहा था।
- कलिंग युद्ध तथा उसके परिणामों के विषय मेँ अशोक के 13वें शिलालेख मेँ विस्तृत जानकारी दी गईहै।
- अशोक के अभिलेखों से यह स्पष्ट होता है कि उसका साम्राज्य उत्तर-पश्चिम सीमांत प्रांत (अफगानिस्तान), दक्षिण में कर्नाटक, पश्चिम में कठियावाड़ और पूर्व मेँ बंगाल की खाड़ी तक विस्तृत था।
- पुराणों में अशोक को ‘अशोक वर्धन’ कहा गया है। मौर्य शासक बन्ने से पूर्व वह उज्जैन का गवर्नर रह चुका था।
- व्हेनसांग के अनुसार अशोक ने श्रीनगर की स्थापना की जो वर्तमान मेँ जम्मू कश्मीर की राजधानी है।
- अशोक ने नेपाल मेँ ललित पाटन नमक नगर का निर्माण करवाया था।
- दिव्यादान से पता चलता है कि अशोक के समय तो बंगाल मोर्य सामराज्य का अंग था। व्हेनसांग ने अपनी यात्रा के दौरान बंगाल मेँ अशोक द्वारा निर्मित स्तूप देखा था।
- कल्हण द्वारा रचित ग्रंथ राजतरंगिणी के अनुसार अपने जीवन के प्रारंभ मेँ अशोक शैव धर्म का उपासक था।
- बौद्ध ग्रंथों के अनुसार कलियुग युद्ध के बाद अशोक ने बौद्ध धर्म अपना लिया।
- बौद्ध धर्म दिव्यादान के अनुसार उपयुक्त नामक बौद्ध भिक्षु ने अशोक को बौद्ध धर्म में दीक्षित किया।
- अशोक के बौद्ध होने का सबसे सबल प्रमाण उसके (वैराट-राजस्थान) लघु शिलालेख से प्राप्त होता है, जिसमे अशोक ने स्पष्तः बुद्ध धम्म एवं संघ का अभिवादन किया है।
- अशोक के शासनकाल मेँ 250 धर्मावलंबियोँ को पुनर्गठित करने के लिए बौद्ध परिषद का तीसरा महासम्मेलन (संगीति) का आयोजन किया गया।
- मास्की के लघु शिलालेख मेँ अशोक ने स्वयं को बुद्ध भावय कहा है।
अशोक और उसका धर्म
- कलिंग युद्ध की विभीषिका ने अशोक के मन को बुरी तरह झकझोर दिया, क्योंकि इस युद्ध का कलिंग के लोगोँ पर विनाशकारी प्रभाव पड़ा।
- युद्ध की नृशंसता और व्यापक हिंसा देखकर अशोक का मन पश्चाताप से भर गया। परिणामस्वरूप उसने आक्रमण और विजय की नीति त्यागकर धर्म घोष की नीति का अनुसरण किया।
- अशोक के धर्म का उद्देश्य एक ऐसी मानसिक प्रवृत्ति की आधारशिला रखना था जिसमेँ सामाजिक उत्तरदायित्व को एक व्यक्ति के दूसरे पति के प्रति व्यवहार को पत्र अत्यधिकक महत्वपूर्ण समझा जाए।
- अशोक के धर्म मेँ महिमा की स्वीकृति प्रदान करने समाज की क्रियाकलापोँ मेँ नैतिक उत्थान की भावना का संचार करने का आग्रह था।
- अशोक का धर्म वस्तुतः विभिन्न धर्मोँ का समन्वय है। वह नैतिक आचरणों का एक संग्रह है, ‘जो जियो और जीने दो’ की मूल पद्धति पर आधारित था।
- इसमेँ कोई संदेह नहीँ है कि अशोक का व्यक्तिगत धर्म बौद्ध धर्म ही था। लेकिन यह भी सच है कि अशोक सभी धर्मोँ का आदर करता था और सभी पंथों और सम्प्रदायों के नैतिक मूल्यों के बीच पाई जाने वाली एकता मेँ विश्वास करता था।
- रोमिला थापर ने अशोक के धर्म की तुलना अकबर के दीन-ए-इलाही धर्म से की है। उनके शब्दोँ मेँ अशोक का धर्म औपचारिक धार्मिक विश्वास पर आधारित सद्कार्यों से प्रसूत नैतिक पवित्रता तक ही सीमित नहीँ था, बल्कि वह समाजिक दायित्व बोध से प्रेरित भी था।
- वस्तुत यह कहा जा सकता है कि अपनी प्रजा के नैतिक उत्थान के लिए अशोक ने जिन आचारो की संहिता प्रस्तुत की उसे उसके अभिलेखों में धर्म कहा गया है।
अशोक के उत्तराधिकारी
- अशोक की मृत्यु के बाद मौर्य साम्राज्य की गद्दी पर ऐसे अनेक कमजोर शासक असीन हुए, जो मौर्य साम्राज्य की प्रतिष्ठा को बचा पाने मेँ असमर्थ साबित हुए।
- अशोक के बाद मौर्य साम्राज्य के उत्तराधिकारियों का क्रम इस प्रकार है- मुजाल, दशरथ, सम्प्रति, सलिसुक, देवबर्मन और सतधनवा।
- मौर्य साम्राज्य का अंतिम शासक वृहद्रथ था। जिसकी हत्या करने के पश्चात उसके सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने 105 ई. पू. मेँ शुंग वंश की।
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मौर्य साम्राज्य का पतन
- मौर्य साम्राज्य जैसे विस्तृत साम्राज्य के पतन के लिए किसी एक कारण को जिम्मेदार मानना उचित नहीं होगा। स्पष्ट सभाओं के अभाव मेँ विभिन्न विद्वानोँ ने विभिन्न कारण प्रस्तुत किया है जो इस प्रकार है-
- डी. एन. झा ने मौर्य साम्राज्य के पतन के लिए अशोक की आर्थिक नीतियोँ को जिम्मेदार ठहराया है।
- डी. डी. कौशांबी ने भी मौर्य साम्राज्य के पतन का कारण आर्थिक ही मानते है।
- हेमचन्द्र रॉय चौधरी मौर्य साम्राज्य के पतन के लिए अशोक की शांतिप्रियता और इसकी अहिंसा की नीति को जिम्मेदार मानते हैं।
- रोमिला थापर मौर्य साम्राज्य के पतन के लिए मौर्यकालीन केंद्रीय प्रशासन और उसके अधिकारी तंत्र को जिम्मेदार मानती हैं।
- हरिहर प्रसाद शास्त्री मौर्य शासन के पतन का मुख्य कारण अशोक की धार्मिक नीति को मानते हैं। अशोक का बौद्ध धर्म के प्रति विशेष लगाव था। ब्राह्मणों ने इसका तीव्रता से विरोध किया।
- डॉ बनर्जी डॉ बनर्जी मानते हैँ कि अशोक आदर्शवाद और धार्मिक भावना ने मौर्य सैन्य व्यवस्था और अनुशासन को प्रभावित किया जो मौर्य साम्राज्य के पतन मेँ सहायक सिद्ध हुआ।
मौर्य शासन प्रबंध
केंद्रीय प्रशासन
- मौर्य शासन का सर्वोच्च पदाधिकारी सम्राट था। वह शासन में सम्रज्टी का केंद था तथा कार्यपालिका, व्यवस्थापिका एवं न्यायपालिका का प्रधान था।
- सम्राट को शासन में सहायता प्रदान करने केलिए मंत्रिपरिषद की व्यवस्था थी। प्रमुख मंत्रियों को तीर्थ कहा जाता था।
- कौटिल्य के अर्थशास्त्र के अनुसार 18 तीर्थ थे। सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ या महामात्र मंत्री और पुरोहित थे।
- कौटिल्य ने मौर्य प्रशासन के लिए संप्रंग सिद्धांत का प्रतिपादन किया, जिसमे राजा, अमात्य, मित्र, कोष, दुर्ग, सेना तथा देश शामिल थे।
- मौर्य शासन राजतंत्रात्मक, वंशानुगत, ज्येष्ठाधिकारिता, देव के ग्रंथों तथा निरंकुशता पर आधारित था।
- मौर्य साम्राज्य में केन्द्रीय शासन की व्यवस्था थी। अशोक के अभिलेखोँ से साम्राज्य के 5 प्रांतो मेँ विभक्त होने का संकेत मिलता है एवं केन्द्रीय प्रशासन का प्रान्तों पर नियंत्रण का उल्लेख मिलता है।
- मौर्य कालीन प्रशासन व्यवस्था की अद्भुत व्यवस्था उसकी गुप्तचर व्यवस्था का विकास था।
- अर्थशास्त्र में गुप्तचरों के लिए स्पर्श, चर, गुढ़, पुरुष, तपस्वी, दूत, संस्था और संचार शब्द मिलते हैँ।
प्रांतीय प्रशासन
- सम्राट के लिए इतने विशाल साम्राज्य पर नियंत्रण रखना संभव नहीँ था। प्रशासन की सुविधा के लिए मौर्य साम्राज्य को 5 प्रान्तों मेँ विभाजित किया गया। जो इस प्रकार थे- उत्तरापथ, दक्षिणापथ. अवंतिराष्ट्र, कलिंग और प्राशी, जिनकी राजधानियाँ क्रमशः तक्षशिला, स्वर्णगिरी, उज्जयिनी, होसली और पाटलिपुत्र थीं।
- प्रान्तों का शासन राजवंशीय ‘कुमार’ या ‘आर्यपुत्र’ नामक पधिकारियों द्वारा होता था।
- चंद्रगुप्त के समय प्रांतो की संख्या 4 थी, किंतु अशोक के समय मेँ यह संख्या बढ़कर 5 हो गई। कलिंग प्रान्त को अशोक के समय मौर्य साम्राज्य मेँ सम्मिलित किया गया।
- इन शासित राज्योँ के अतिरिक्त साम्राज्य के अंतर्गत कुछ अर्ध स्व-शासित प्रदेस्श थे जिन पर शासन के लिए स्थानीय राजाओं को मान्यता डी जाती थी। जिनकी गतिविधियों का नियंत्रण अन्तपालों द्वारा किया जाता था।
नगर प्रशासन
- मेगस्थनीज़ के अनुसार नगर प्रशासन 30 सदस्योँ के एक मंडल द्वारा संचालित होता था। जिन्हें 6 समितियों में विभाजित किया गया था।
- नगर मेँ अनुशासन मेँ रखने तथा अपराधी मनोवृत्ति का दमन करने हेतु पुलिस व्यवस्था थी, जिन्हें ‘सक्रिय’ कहा जाता था।
- नगर आयुक्त को एरिस्टोनोमोई कहा जाता था।
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- कौटिल्य के अनुसार नगर का प्रमुख अधिकारी ‘नागरिक’ होता था। नगर निवासियों के जान माल की सुरक्षा तथा नगर प्रशासन से संबंधित नियमो का कार्यांवयन नागरिक का उत्तरदायित्व था।
- महामात्य उच्च अधिकारी थे जो नगर प्रशासन से संबंधित थे।
जिला प्रशासन
- जिले को को विषय या आहार कहा जाता था, जिसका प्रधान विषयपति होता था।
- राजुक की नियुक्ति जनपदो की देखभाल व निरीक्षण के लिए की जाती थी। इनके पास कर संग्रह के साथ-साथ शक्तियाँ न्यायिक शक्तियां भी थीं।
- जिले से जुड़े अन्य अधिकारीयों मेँ प्रादेशिक तथा युक्त या पूत थे, जो क्रमशः जिलाधिकारी (आर्थिक प्रकोष्ठ) और क्लर्क का कम सँभालते थे।
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स्थानीय प्रशासन या ग्राम प्रशासन
- ग्राम मौर्य साम्राज्य की सबसे छोटी इकाई थी जिसका प्रधान ‘ग्रमिक’ कहलाता था। यह राजकीय कर्मचारी नहीँ था, इसका निर्वाचन जनता द्वारा किया जाता था।
- ग्रामिक को ग्राम के ज्येष्ठ व वरिष्ट लोग प्रशासनिक कार्य मेँ सहायता प्रदान करते थे।
- गोप तथा स्थानिक गाँव तथा जिले के प्रशासन के बीच एक मध्यवर्ती स्तर की ईकाई होती थी, ये संबंधित अधिकारी थे।
- ग्रामिक के ऊपर गोप होता था, जिसके अधिकार मे 5-10- ग्राम होते थे, जबकि स्थानिक गोप के ऊपर होता था, जिसके तहत जिले का एक चौथाई क्षेत्र होता था। इन ग्राम पदाधिकारियों पर समाहर्ता नमक अधिकारी का नियंत्रण होता था।
- मौर्य काल में विभिन्न प्रकार के गांवों की चर्चा है –
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सैन्य व्यवस्था
- मौर्यकालीन सैन्य व्यवस्था का प्रधान सम्राट था।
- मौर्य सैन्य व्यवस्था को 5 भागों में विभक्त किया गया था पैदल, अश्व, हाथी, रथ, तथा नौ सेना।
- सैन्य मंत्रालय का प्रधान सेना पति होता था। सैनिकों की नियुक्ति, प्रशिक्षण, वेतन, प्रबंध, अस्त्र-शस्त्र व इसकी आपूर्ति सेनापति का मुख्य कार्य था।
- सैन्य प्रबंध की देखरेख करने वाला अधिकारी ‘अन्तपाल’ कहलाता था। यह सीमांत क्षेत्रों का व्यवस्थापक भी था।
- अर्थशास्त्र में ‘नवाध्यक्ष’ के उल्लेख से मौर्यों के पास नौसेना होने का भी प्रमाण मिलता है।
- खिनी के अनुसार पांच-पांच सदस्यों वाली 6 समितियां सैन्य प्रशासन के लिए जिम्मेदार थीं- 1. पैदल सेना, 2. घुड़सवार, 3. रथ सेना, 4. गज सेना, 5. नौ सेना, 6. रसद विभाग
न्याय व्यवस्था
- मौर्यकालीन न्याय व्यवस्था का सर्वोच्च न्यायधीश था।
- न्याय व्यवस्था कठोर थी। न्याय का उद्देश्य सुधारवादी न होकर आदर्शवादी था।
- मौर्य न्याय व्यवस्था के 4 प्रमुख आधार- धर्म, व्यवहार, चरित्र औए राजाज्ञा थे।
- ग्राम सभा सबसे छोटा न्यायालय था। उनके ऊपर क्रमशः संग्रहण, द्रोणामुख तथा जनपद के न्यायालय थे।
- नागरिक मामलों को हल करने वाले न्यायधीश को व्यवहारिक कहा जाता था।
- ग्राम और सभा सम्राट के न्यायलय के अतिरिक्त बीच के सभी न्यायलय धर्मस्थीय और कण्टकशोधन में विभक्त होते थे।
- धर्मस्थीय न्यायालय नागरिकों के पारस्परिक मामलों का निपटारा करते थे, जबकि राज्य तथा नागरिकों के मध्य होने वाले विचारों के निर्णय करने वाले न्यायलय कण्टकशोधन कहलाते थे।
- कुवचन, मान-हानि, मार-पीट सम्बन्धी मामले भी धर्मस्थीय न्यायालय में लाये जाते थे, जिन्हें पाक पारुष्य या दण्ड पारुष्य कहा जाता था।
मौर्यकालीन समाज
- मौर्यकालीन सामाजिक संरचना की जानकारी मुख्यतः कौटिल्य के अर्थशास्त्र और मेगास्थनीज के विवरणों से मिलती है।
- मौर्यकालीन समाज वर्ण व्यवस्था पर आधारित था। श्रेष्ठता की दृष्टि से क्रमशः ब्राह्मणों और वैश्यों का समाज में सम्मान था, किन्तु शूद्रों की स्थिति निम्नतर थी।
- बौध साहित्य में भी 4 वर्णों की सूची मिलती है।, जिसमे क्षत्रिय, ब्राह्मण, वैश्य और शूद्र का उनके अवरोही क्रम में उल्लेख है।
- अर्थशास्त्र में सभी चारों वर्णों के लोगों का सेना में भर्ती होने का उल्लेख है।
- स्त्रियों में पर्दा प्रथा और सती प्रथा का उल्लेख नहीं मिलता है।
- अर्थशास्त्र के अनुसार विवाह के लिए स्त्री की उम्र 12 वर्ष तथा पुरुष की उम्र 16 वर्ष बताई गयी है।
- स्त्रियों को पुनर्विवाह व नियोग की अनुमति थी।
- कौटिल्य ने स्त्रियों के विवाह विच्छेद (तलाक्) की अनुमति दी है। तलाक् के लिए कौटिल्य ने ‘मोक्ष’ शब्द का प्रयोग किया है।
- समाज में वैश्यावृत्ति की प्रथा प्रचलित थी, जिसे राजकीय संरक्षण प्रदान किया गया था।
- मेगास्थनीज और स्ट्रेबो के अनुसार भारत में दास प्रथा नहीं थी, लेकिन कौटिल्य ने नौ प्रकार के दासों का वर्णन किया है।
- मेगास्थनीज कहता है कि अपनी जाती से बाहर किसी को भी विवाह करने की अनुमति नहीं थी और ना ही पेशा बदला जा सकता था। दार्शनिक और ब्राह्मण इसके अपवाद थे।
- कौटिल्य के अनुसार मौर्यकाल की एक महत्वपूर्ण सामाजिक घटना थी, जिसके अंतर्गत दासों को बड़े पैमाने पर कृषि कार्यों में लगाया गया था।
- प्रवहण एक सामूहिक समारोह होता था, जिसमे भोज्य व पेय पदार्थों का प्रचुरता से प्रयोग होता था।
मौर्यकालीन अर्थव्यवस्था
- मौर्यकालीन अर्थव्यवस्था कृषि पशुपालन और वाणिज्य पर आधारित थी, जिन्हें सम्मिलित रुप से ‘वार्ता’ के नाम से जाना जाता था।
- राज्य की भूमिका पर राजा का स्वामित्व होता था। इसका उल्लेख मेगास्थनीज, स्ट्रेबो एवं एरियन ने भी किया है।
- कृषि मौर्य काल का प्रमुख व्यवसाय था। कृषि राज्य की आय का प्रमुख स्रोत था।
- राजकीय भूमि की व्यवस्था करने वाला प्रधान अधिकारी सीता धाम कहलाता था।
- राज्य को सिंचाई का पाबंध करना पड़ता था और वह उसके बदले में कर वसूलता था। सिंचाई के लिए अलग से उपज का 1/5/ से 1/3 भाग कर के रूप में लिया जाता था।
- जूनागढ अभिलेख से चंद्रगुप्त के गवर्नर पुष्यगुप्त द्वारा सौराष्ट्र में निर्मित झील का उल्लेख मिलता है।
- भूमिकर और सिचाईं कर को मिलाकर किसान को उपज का लगभग ½ भाग देना पड़ता था।।
- मौर्य कालीन उद्योग व्यापार उन्नत था। सूती वस्त्रों के प्रमुख केंद्र वाराणसी, वत्स, महिस्मति, पुन्द्रू और कलिंग थे।
- विदेशी व्यापार मुख्यतः यूनान, रोम, फ़्रांस, लंका, सुमात्रा, जावा, मिस्र, सीरिया तथा बोर्नियों द्वीपों से होता था।
- व्यापारी श्रेणियां संगठित थी। इनका मुखिया ‘श्रेष्ठिन’ कहलाता था। इनके ऊपर एक महाभेदी होता था, जो आपसी विवादों का हल करता था।
- मौर्य काल मेँ सोने, चांदी तथा तांबे के सिक्कों का प्रचलन था।
मौर्यकालीन कला संस्कृति
- मौर्यकाल में कला एवं संस्कृति के क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति हुई।
- मौर्य कला का विकास राजकीय संरक्षण में हुआ|, जिसके अंतर्गत राजप्रसाद, स्तम्भ, गुफा विहार, स्तूप आदि आते थे।
- लोक कलाएं राजकीय संरक्षण से मुक्त थीं, इसके अंतर्गत पक्ष न्याथिनी की मूर्तियाँ बनायीं जाती थीं।
- मौर्यकालीन राजकीय कला का एक प्रसिद्द उदाहरण चन्द्रगुप्त का पटना में स्थित राजप्रसाद है, जिसके बारे में पाटियान का कहना है की यह मानवीय कृति नहीं है, बल्कि देवताओं द्वारा बनायीं गयी है।
- अशोक के समय में चट्टानों को काटकर कंदरामों के निर्माण द्वारा वस्तु कला की एक नई शैली का आरंभ किया गया।
- स्तूप, मौर्य कालीन भारत की वास्तुकला की महत्वपूर्ण दें है। बौद्ध अनुश्रुति के अनुसार अशोक ने 4000 स्तूपों का निर्माण करवाया।
- मथुरा के पास मिली एक यथा मूर्ति, बेसनगर की स्त्री मूर्ति और दीदारगंज से मिली मूर्तियाँ मौर्य मूर्तिकला की दृष्टि से उल्लेखनीय हैं।
- मौर्यकालीन मृदभांड, जिन्हें उत्तरी काले पॉलिशदारमृदभांड कहा जाता है, कला की उत्कृष्टता के प्रतीक हैं।
- मौर्यकाल की अद्भुत कला के असाधारण नमूनों में से एक ‘एकाश्म स्तंभ’ है, जो एक ही पत्थर से बनाया गया है और जिसकी ऊंचाई कई मीटर है।
- रामपुरवा से प्राप्त वृषभ मूर्ति में गति, सजीवता एवं लालिप्त परिलक्षित होता है। यह मौर्य कालीन कला की अनुपम देन है।
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स्मरणीय तथ्य
- मौर्य काल में साधारण जनता की भाषा पालि थी। इसलिए अशोक ने अपने सभी अभिलेख इसी भाषा में उत्कीर्ण करवाए।
- यूनानी और लैटिन लेखकों ने पाटलिपुत्र को ‘पालिब्रोथा’ के रूप में उल्लिखित किया है।
- अशोक के अभिलेखों की तुलना इराकी शासक डेरियस-I से की जाती है।
- मेगस्थनीज ने भारत में खात गातियों या वर्गों का उल्लेख किया है, जिसमे किसानों की संख्या सर्वाधिक थी।
- अशोक के कलिंग अभिलेख से पता चलता है की प्रान्तों में हो रहे अत्याचारों से वह बड़ा ही चिंतित था।
- अर्थशास्त्र में 18 अधिकरण तथा 180 प्रकरण हैं।
- संभ्रात घरों की स्त्रियों को प्रायः अनिष्कासिनी कहा गया है।
- मौर्य शासन काल में वस्त्र उद्योग एक महत्वपूर्ण उद्योग था और राज्यों द्वारा संचालित होता था।
- मनुस्मृति तथा अर्थशास्त्र से पता चलता है की शूद्रों को संपत्ति का अधिकार प्राप्त था।
- एरियन ने पाटलिपुत्र में स्थित चन्द्रगुप्त के राजप्रसाद को ‘सूसा’ और ‘एकबतना’ के प्रसादों से सुन्दर बताया है।
- स्तम्भो में सर्वाधिक महत्वपूर्ण अशोक द्वारा निर्मित सारनाथ का सिंह स्तंभ है, जिसके शीर्ष पर 4 सिंह एक-दुसरे से पीठ सटाये बैठे हैं।
- मेगास्थनीज की कृति ‘इंडिका’ है, जबकि मुद्राराक्षस की रचना विशाखदत्त द्वारा की गयी है।
- मास्की शिलालेख में अशोक के नाम की खोज 1915 में बीडन द्वारा की गयी है।
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