भौतिक विज्ञान के बल व गति सम्बन्धी नियम Laws of Physics For Force And Motion
हमारे चारो ओर ठोस तरल एवं गैसीय तीनों अवस्थाओं में पाए जाने वाले पदार्थों को भौतिक वस्तुएं कहतें हैं, इन भौतिक वस्तुओं अथवा द्रव्य की संरचना तथा उनमे होने वाली क्रियाओं के अध्ययन को भौतिक विज्ञान कहतें हैं, भौतिकवेत्ता प्रकाश को भी द्रव्य का एक रूप मानते हैं।
भौतिक विज्ञान के महत्वपूर्ण आधारभूत सिद्धांत
बल व गति सम्बन्धी नियम
1. किसी स्थिर वस्तुको चल्य्मन करने अथवा उसकी गति को बदलने के लिए बल लगाना आवश्यक है। स्वतंत्र अवस्था में एक समान गति के लिए किसी बल की आवश्यकता नहीं है, बिना बल लगाये, किसी वस्तु की अपने आप गति परिवर्तन न करने की प्रवृत्ति को जडत्व (Inertia) कहा जाता है।
2. वह वाह्य करक जिसके प्रभाव से किसी वस्तु की स्थिर अथवा गतिमान दशा में परिवर्तन हो जाता है अथवा परिवर्तन का प्रयास किया जाता है, बल (Force) कहलाता है।
3. जितना अधिक बल किसी वस्तु पर लगाया जायेगा उतना ही अधिक त्वरण उसमे उत्पन्न होता है और समान बल लगाने से अधिक द्रव्यमान वाली वस्तु में कम और कम द्रव्यमान वाली वस्तु में अधिक त्वरण उत्पन्न होता है, इस प्रकार किसी वस्तु में उत्पन्न होने वाला त्वरण उस पर लगाये गए बल के समानुपाती तथा उसके द्रव्यमान के व्युत्क्रमानुपाती होता है, बल का परिमाण वस्तु के द्रव्यमान तथा उत्पन्न त्वरण का गुणनफल के व्युत्क्रमानुपाती होता है, बल का परिमाण वस्तु के द्रव्यमान तथा उत्पन्न त्वरण का गुणनफल होता है।
4. किसी वस्तु के द्रव्यमान और वेग के गुणनफल को संवेग (Momentum) कहा जाता है। बल लगाने से किसी वस्तु के वेग में परिवर्तन होता है, अतः संवेग में भी परिवर्तन होता है। किसी वस्तु के संवें में परिवर्तन की दर अर्थात (प्रति सेकेण्ड होने वाले संवेग परिवर्तन)उस पर लगाये गए बल के समानुपाती होती है और उस बल की दिशा में होती है।
5. प्रत्येक बल के विपरीत दिशा में उसके बराबर परिमाण की प्रतिक्रिया बल लगता है।
6. यदि किसी वस्तु पर बल लगाने से उसकी आकृति में परिवर्तन आ जाये और बल हटाने पर वस्तु पूर्व स्थिति में आ जाये तो वस्तु के इस गुण को प्रत्यास्थता (Elasticity) कहते हैं।
दो या अधिक वस्तुओं के एक समूह में जो परस्पर संपर्क में हों, यदि कोई परस्पर क्रिया-प्रतिक्रिया होती है, जैसे आपस में टक्कर होना, तो उनके संवेगों का कुल वेग सदैव स्थिर रहता है, यदि किसी एक वस्तु का संवेग घटता है, तो अन्य का उतने ही परिमाण से बढ़ जाता है और कुल योग उतना ही बना रहता है। यह संवेग संरक्षण (Conservation Of Momentum) कहलाता है। इस प्रकार किसी वस्तु का संवेग तब तक अपरिवर्तित रहता है, जब तक वस्तु अथवा वस्तुओं के निकाय पर कोई वाह्य बल आरोपित न हो।
कुछ बल प्रकृति में सदैव उपस्थित रहते है और निरंतर कार्यरत रहते हैं।
गुरुत्वाकर्षण बल Gravitational Force
ब्रहमांड में प्रत्येक वस्तु, प्रत्येक दूसरी वस्तु को अपनी और आकर्षित करती है, आकर्षण का यह बल उन वस्तुओं के द्रव्यमान के गुणनफल के समानुपाती होता है और उनके बीच दूरी के वर्ग का व्युत्क्रमानुपाती होता है। या बल एक दुर्बल बल होता है। इसी के अनुसार पृथ्वी भी प्रत्येक वस्तु को अपनी ओर आकर्षित करती है। यह बल हमें स्पष्ट अनुभव होता है। इसे गुरुत्व बल (Gravity) कहा जाता है।
स्थैतिक विद्युत बल Electrostatic Force
दो विद्युत् आवेशमय वस्तुओं के बीच परस्पर आकर्षण अथवा प्रतिकर्षण बल कार्य करता है, यह बल उन दोनों आवेशों के गुणनफल के समानुपाती तथा उनके बीच की दुरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है। एकसमान आवेश वाली वस्तुएं परस्पर प्रतिकर्षित होती हैं और विपरीत आवेशयुक्त वस्तुओं में परस्पर आकर्षण होता है।
संसजन बल Cohesive Force वस्तु के अणु अकर्ष बल के कारण एक दुसरे से सटे रहते हैं, इसे संसजन बल कहा जाता है, ठोस वस्तुओं के अणुओं में अधिक ससंजन होता है,जिससे वह अपना आकार नहीं बदल सकती। द्रव के अणुओं में ठोस वस्तुओं की अपेक्षा कम संसजन होता है, जिससे यह अपना आकार सुगमतापूर्वक बदल सकता है।
आसंजन बल Adhesive Force आकर्षण बल विभिन्न द्रव्यों को चिपकाये रहता है। इसे आसंजन बल तथा इस घटना कोआसंजन कहा जाता है। आसंजन के कारण कागज के टुकड़े, लिफाफे आदि लेई या गोंड से च्पिकाए जाते हैं। लकड़ी के दो टुकड़ो की जुड़ाई सरेस से तथा ईंट की जुद्दै गरे से किया जाना भी आसंजन बल का उदाहरण है।
अभिकेन्द्रीय बल Centripetal Force जिस बल के कारण किसी गतिशील वस्तु में वृत्ताकार पथ के केंद्र की और भागने की प्रवृत्ति रहती है, उसे अभिकेन्द्रीय बल कहा जाता है।
अपकेन्द्रीय बल Centrifugal Force जिस बल के कारण किसी गतिशील वस्तु में, केंद्र से दूर भागने की प्रवृत्ति होती है उसे अपकेन्द्रीय बल कहा जाता है।
पृष्ठ तनाव Surface Tension द्रवों की सतह में अणुओं के संसजन बल के कारण एक विशिष्ट गुण पाया जाता है, जिसके कारण द्रव की सतह ऐसा व्यवहार करती है मानों या एक तानी हुई रबड़ की झिल्ली हो, इस बल के कारण द्रवों की सतह में सिकुड़-सिकुड़ कर कम से कम क्षेत्रफल प्राप्त करने की प्रवृत्ति होती है।
केशिकात्व Capillarity
जब हम एक बारीक़ सुराख़ वाली नली (केशिका नली) को किसी द्रव में इस प्रकार सीधा खड़े रखते हैं की इसका एक सिरा द्रव की सतह के नीचे रहे और दूसरा ऊपर, तो प्रायः द्रव इस नली में कुछ ऊंचाई तक चढ़ जाता है। यदि नली कम लम्बाई की होगी, तो द्रव अधिक से अधिक इसके उपरी सिरे तक चढ़ता है, किन्तु बाहर निकल कर गिरता नहीं है। द्रवों का केशनली में इस प्रकार चढ़ना या नीचे गिरना केशिकात्व कहलाता है, यह घटना द्रव व नली के बीच परस्पर आसंजन एक कारण होती है।
दाब Pressure
किसी बल के द्वारा ईकाई क्षेत्रफल पर लगने वाले धक्के (Thrust) को दाब कहते हैं।
द्रवों में दाब
द्रव सभी दिशाओं में दाब लगते है, द्रवों द्वारा ऊपर की और लगाया गया बल, उत्प्लावन बल (Upthrust Or Buoyant Force) कहलाता है।
किसी द्रव अथवा गैस के प्रवाह की गति यदि बढ़ जताई है, तो उसका दाब कम हो जाता है, और गति कम होने पर बढ़ जाता है।