अंतर्राष्ट्रीय कृषि विकास कोष International Fund for Agricultural Development – IFAD
कृषि विकास हेतु एक अंतरराष्ट्रीय कोष की स्थापना का प्रस्ताव सर्वप्रथम 1974 के विश्व खाद्य सम्मेलन में रखा गया। कोष की स्थापना से सम्बद्ध समझौतों को प्लेनीपोटेंटियरीज (Plenipotentiaries) के संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में स्वीकार किया गया तथा नवंबर 1977 से यह समझौता लागू हो गया। कोष ने अपना कार्य दिसंबर 1977 से आरंभ किया। कोष का मुख्यालय रोम में स्थित है तथा इसमें 160 सदस्य देश शामिल हैं।
अंतरराष्ट्रीय कृषि विकास कोष का उद्देश्य खाद्य उत्पादन, भंडारण एवं वितरण को बढ़ाने वाले कार्यक्रमों तथा परियोजनाओं के वित्त पोषण हेतु निवेश कोषों को विकासशील देशों की ओर प्रवाहमान करना है। यह कृषि एवं ग्रामीण विकास हेतु बहुपक्षीय संसाधन उपलब्ध कराने वाला एकमात्र संगठन है। यह खाद्य उत्पादन बढ़ने, रोजगार उपलब्ध कराने, कुपोषण घटने तथा गरीबों व् भूमिहीनों के लिए अतिरिक्त आय सृजित करने वाले कार्यक्रमों एवं योजनाओं को समर्थन प्रदान करता है।
कोष द्वारा अनुदान या ऋणों के माध्यम से सदस्य देशों या उनकी भागीदारी वाले अंतरसरकारी संगठनों को वित्त उपलब्ध कराया जाता है। ऋण 3 प्रकार के होते हैं- अति रियायती ऋण (जिन्हें 40 वर्षों में चुकाना होता है तथा इस पर कोई ब्याज आरोपित नहीं होती बल्कि 0.75 प्रतिशत की दर से वार्षिक सेवा शुल्क देना पड़ता है); मध्यवर्ती अवधि वाले ऋण (ये 20 वर्षों में चुकाये जा सकते हैं तथा इन पर अस्थिर ब्याज दर के 50 प्रतिशत के बराबर की ब्याज दर आरोपित होती है), तथा; सामान्य ऋण (यह 15 से 18 वर्षों में चुकाया जाता है तथा इस पर अस्थिर ब्याज दर के 100 प्रतिशत के बराबर ब्याज दर लगती है) । संदर्भित ब्याज दरों का निर्धारण वार्षिक रूप से कोष के कार्यकारी बोर्ड द्वारा किया जाता है।
कृषि विकास कोष द्वारा विश्व बैंक, क्षेत्रीय विकास बैंक एवं वित्तीय अभिकरण तथा अन्य संयुक्त राष्ट्र अभिकरणों के साथ मिलकर कार्य किया जाता है।
नियंत्रणकारी परिषद, कार्यकारी बोर्ड तथा सचिवालय इस कोश के प्रमुख अंग हैं। नियंत्रणकारी परिषद नीति-निर्माता निकाय है, जिसमें सभी सदस्यों का एक-एक प्रतिनिधि शामिल होता है। इसकी बैठक वर्ष में एक बार होती है तथा जरूरत के अनुसार विशेष बैठक भी आयोजित की जा सकती है। परिषद द्वारा दो-तिहाई बहुमत के आधार पर चार वर्षीय कार्यकाल हेतु कोष के अध्यक्ष का चुनाव किया जाता है। परिषद की कुछ शक्तियों का प्रयोग 18 सदस्यीय कार्यकारी बोर्ड द्वारा किया जाता है। इस बोर्ड में विकसित देशों के छह, तेल उत्पादक देशों के छह तथा गैर-तेल उत्पादक एवं विकासशील देशों के छह प्रतिनिधि शामिल होते हैं। बोर्ड द्वारा कोष के सामान्य कायाँ को सम्पन्न किया जाता है तथा ऋणों व अनुदानों को स्वीकृति दी जाती है। कोष का अध्यक्ष ही बोर्ड का प्रधान होता है। निर्णय भारित मतदान प्रणाली के आधार पर किये जाते हैं कोष के अंतर्गत 6 कार्यकारी निकाय शामिल हैं- वित्तीय सेवा प्रभाग, वैयक्तिक सेवा प्रभाग, परियोजना प्रबंधन विभाग, आर्थिक एवं नियोजन विभाग, सामान्य मामलों का विभाग तथा वैधानिक सेवा प्रभाग ।