पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी से सम्बंधित महत्वपूर्ण तथ्य Important Facts Related to Environment and Ecology
- प्राकृतिक संसाधनों का सर्वे और अन्वेषण देश के पौध संसाधनों की अन्वेषण और आर्थिक महत्व की पौध प्रजातियों की पहचान भारतीय वनस्पति सर्वे करता है। इसकी स्थापना 16 फरवरी, 1890 को हुई थी।
- भारतीय प्राणी विज्ञान सर्वेक्षण (जेडएसआई) देश के लिए उस तरह के सर्वेक्षण, खोज और अनुसंधान में संलग्न है, जिससे देश की समृद्ध जन्तु विविधता के ज्ञान में वृद्धि हो।
- वर्ष 1916 में स्थापित जेडएसआई का मुख्यालय कोलकाता में है और देश के विभिन्न भागों में इसके 16 क्षेत्रीय केन्द्र हैं।
- भारतीय प्राणी विज्ञान ने हाल ही के वर्षों में अपने सर्वेक्षणों और अध्ययन को पांच प्रमुख कार्यक्रमों में समन्वित कर अपनी कार्ययोजना को पुनर्गठित किया है।
- भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआई) पर्यावरण मंत्रालय के अंतर्गत कार्य करने वाला ऐसा संगठन है, जो देश के वन क्षेत्रों और वन संसाधनों से संबंधित सूचना एवं आंकड़े एकत्र करता है। इसके अलावा प्रशिक्षण, अनुसंधान और विस्तारण का कार्य भी यह संगठन करता है। इसकी स्थापना 1 जून, 1981 को की गई थी। इसका मुख्यालय देहरादून में और चार क्षेत्रीय कार्यालय, शिमला, कोलकाता, नागपुर और बेंगलूर में हैं।
- भारत अंतर्राष्ट्रीय उष्णकटिबंधीय इमारती लकड़ी संगठन (आईटीटीओ) का उत्पादक सदस्य है, जिसकी स्थापना 1983 में अंतर्राष्ट्रीय उष्णकटिबंधीय इमारती लकड़ी समझौते के तहत की गई थी। इस समय आईटीटीओ में 59 सदस्य हैं जिनमें 33 उत्पादक और 26 उपभोक्ता सदस्य देश हैं।
- जैवमंडलीय आरक्षित क्षेत्र स्थलीय और तटीय पारिस्थितिकी प्रणाली में आनुवंशिक विविधता बनाए रखने वाले बहुउद्देशीय क्षेत्र हैं।
- अब तक 14 जैवमंडलीय आरक्षित क्षेत्र स्थापित किए जा चुके हैं। ये आरक्षित क्षेत्र हैं: नीलगिरी, नंदादेवी, नोकरेक, ग्रेटनिकोबार, मन्नार की खाड़ी, मानस, सुन्दरवन, सिमलीपाल, डिब्रू, दैखोवा, देहंग, देबंग, पंचमढ़ी, कंचनजंघा और अगस्तमलइ और अचानकमार-अमरकंटक। 14 जैवमंडलीय आरक्षित क्षेत्रों में से 4 को यूनेस्को जैवमंडलीय आरक्षित क्षेत्र के विश्व नेटवर्क पर मान्यता प्रदान की गई है। ये चार क्षेत्र हैं: नीलगिरी, सुंदरवन, मन्नार की खाड़ी और उत्तराखण्ड का जैवमंडलीय आरक्षित क्षेत्र नंदादेवी, शेष जैवमंडलीय आरक्षित क्षेत्रों को विश्व नेटवक में शामिल करने के प्रयास जारी हैं।
- जैवमंडलीय आरक्षित प्रमुख क्षेत्र का संरक्षण वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972, भारतीय वन अधिनियम 1927 और वन संरक्षण अधिनियम 1980 के तहत जारी रहेगा।
- आर्द्रभूमि वह भूक्षेत्र है, जो शुष्क और जलीय इलाके से लेकर कटिबंधीय मानसूनी इलाके में फैली है और यह वह क्षेत्र होता है, जहां उथले पानी की सतह से भूमि ढ़की रहती है।
- पर्यावरण मंत्रालय 1987 से कच्छ वनस्पति संरक्षण कार्यक्रम चला रहा है।
- भारत में कच्छ वनस्पतियां, विश्व का लगभग 5 प्रतिशत हैं और ये तटीय राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में लगभग 4500 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैली हुई हैं। भारत में कच्छ वनस्पतियों के कुल क्षेत्र का आधे से थोड़ा-सा कम पश्चिम बंगाल के सुंदरवन में है।
- भारत में विश्व की कुछ सर्वश्रेष्ठ कच्छ वनस्पतियां हैं। मंत्रालय ने उड़ीसा में राष्ट्रीय कच्छ वनस्पति अनुवांशिक संसाधन केंद्र स्थापित किया है।
- कच्छ वनस्पतियों और प्रवाल भित्तियों की राष्ट्रीय समिति ने चार क्षेत्रों-अंडमान और निकोबार द्वीप, लक्षद्वीप, कच्छ की खाड़ी और मन्नार की खाड़ी में प्रवाल भित्तियों के गहन संरक्षण और प्रबंधन की सिफारिश की है।
- भारतीय प्रवाल भित्ति क्षेत्र लगभग 2,375 वर्ग किलोमीटर है। कठोर और नरम प्रवाल भित्ति के संबंध में बढ़ावा देने के लिए मंत्रालय ने राष्ट्रीय प्रवाल भित्ति अनुसंधान केंद्र, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में पोर्ट ब्लेयर में स्थापित किया है।
- जैविक विविधता संबंधी अंतर्राष्ट्रीय संधि (सीबीडी) पहला समझौता है, जिसमें सभी पहलुओं पर ध्यान दिया गया है। सीबीडी के 184 देश सदस्य हैं, यह आर्थिक विकास के साथ पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है।
- भारत में अनुवांशिक रूप से संशोधित जीवों के विनिमय के लिए खतरनाक सूक्ष्म जीव/अनुवांशिक पर्यावरणीय जीव या कोशिकाओं के विनिर्माण, उपयोग, आयात, निर्यात और भंडारण पर नजर रखने के लिए शीर्ष संस्था- अनुवांशिक इंजीनियरिंग स्वीकृति समिति (जीईएसी) को अधिसूचित किया जा चुका है। जीईएसी ने 42 बीटी काटन संकर बीज कपास उत्पादक नौ राज्यों- आंध्र प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब, राजस्थान और तमिलनाडु में खरीफ 2006 में व्यावसायिक उपयोग के लिए मंजूरी दी।
- रिकन्वीनेंट फार्मा पर डॉ. आर.ए. माशेलकर की अध्यक्षता में एक अंतर-मंत्रालय कार्यदल का गठन किया गया ताकि आर-फार्मा उत्पादों की विनियमन व्यवस्था को आधुनिक बनाया जा सके।
- पर्यावरण को सुधारने में भी वनों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। देश का 6,78,333 वर्ग किमी. क्षेत्र वन क्षेत्र है, जो कुल भौगोलिक क्षेत्र का 64 प्रतिशत है।
- वर्ष 2001 के वन क्षेत्र की तुलना में वर्ष 2003 में कुल 2795 वर्ग किमी. वन क्षेत्र की वृद्धि हुई।
- वन रिपोर्ट 2003 के अनुसार, देश में कच्छ वनस्पतियां (मैंग्रोव) 4461 वर्ग किमी. (14 प्रतिशत) में पाई जाती है। अत्यधिक सघन कच्छ वनस्पतियो का क्षेत्रफल 1162 वर्ग किमी. (26.05 प्रतिशत), कम सघन कच्छ वनस्पतियो का क्षेत्रफल 1657 वर्ग किमी. (37.14 प्रतिशत) और खुली कच्छ वनस्पतियों का क्षेत्रफल 1642 वर्ग किमी. (36.81 प्रतिशत) है।
- देश में कुल वृक्ष-आच्छदित क्षेत्रफल 99,896 वर्ग किमी. है (70 प्रतिशत आच्छदित राष्ट्रीय क्षेत्र के साथ) जो देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 04 प्रतिशत है।
- भारत उन कुछ देशों में से है जहां 1894 से ही वन नीति लागू है। इसे 1952 और 1988 में संशोधित किया गया।
- वनों और वन जीवन क्षेत्र के कामकाज की समीक्षा के लिए वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने 7 फरवरी, 2003 को राष्ट्रीय वन आयोग का गठन किया।
- भारतीय वन्य जीव बोर्ड की जनवरी, 2003 में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में हुई बैठक की सिफारिशों के मद्देनजर पर्यावरण और वन मंत्रालय ने फरवरी, 2003 में भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश, बी. एन. कृपाल की अध्यक्षता में राष्ट्रीय वन आयोग का गठन किया।
- राष्ट्रीय वन्य जीवन कार्ययोजना, वन्यजीवन संरक्षण के लिए कार्यनीति और कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत करती है।
- पहली वन्यजीवन कार्ययोजना 1983 को संशोधित करके अब नई वन्यजीवन कार्ययोजना (2002-2016) स्वीकृत की गई है।
- राष्ट्रीय वन्यजीवन बोर्ड (एन बी डब्ल्यू एल) की तीसरी बैठक नई दिल्ली में 19 मार्च, 2006 को हुई। बैठक के महत्वपूर्ण निर्णयों में शेरों के लिए वैकल्पिक स्थान, मोरों की स्थिति का मूल्यांकन के लिए सर्वे, लाल जंगली मुर्गियों के संरक्षण के लिए कार्य योजना और संरक्षित क्षेत्र से बाहर आर्द्रभूमि की पहचान और संरक्षण शामिल हैं।
- वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972 में 2006 में संशोधन कर उसमें राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण का गठन शामिल किया गया। अधिसूचना के बाद नवंबर, 2006 में प्राधिकरण की पहली बैठक हुई थी।
- प्रोजेक्ट टाइगर परियोजना का आरंभ 1973 में हुआ था जिसका उद्देश्य बाघों का सर्वांगीण रूप से संरक्षण करना था। अब इसका नाम बदलकर ‘राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकार’ कर दिया गया है।
- फरवरी, 1992 में हाथी परियोजना भी शुरू की गई।
- राज्य सरकारों द्वारा 28 हाथी अभयारण्य अधिसूचित किए गए और उड़ीसा में वैतरणी और दक्षिण उड़ीसा और उत्तर प्रदेश में गंगा यमुना के लिए स्वीकृति प्रदान की गई।
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम में 1992 में संशोधन कर देश में चिड़ियाघर के प्रबंधन पर निगरानी के लिए केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण स्थापित किया गया है।
- प्राणी कल्याण विभाग जुलाई, 2002 में वन एवं पर्यावरण मंत्रालय का अंग बना।
- फरीदाबाद, बल्लभगढ़ में राष्ट्रीय प्राणी कल्याण संस्थान की स्थापना की गई। यह संस्थान पशुओं के कल्याण और पशु रोग विज्ञान के लिए प्रशिक्षण और जानकारी देता है।
- पर्यावरण प्रभाव आकलन की प्रक्रिया को वैधानिक बनाने के लिए, पर्यावरण प्रभाव आकलन को विकास की 32 श्रेणियों के लिए आवश्यक बना दिया गया।
- पारदर्शिता सुनिश्चित करने, वनों की स्थिति और पर्यावरणीय संबंधी मंजूरी के लिए फरवरी, 1999 में http://enfor.nic.in नाम से एक वेबसाइट शुरू की गई।
- मंत्रालय ने छह क्षेत्रीय कार्यालय (शिलांग, भुवनेश्वर, चंडीगढ़, बंगलौर, लखनऊ और भोपाल में) भी स्थापित किए हैं।
- पर्यावरण (सुरक्षा) अधिनियम, 1986 के अंतर्गत अप्रैल 1993 में जारी एक गजट अधिसूचना के जरिए जल (प्रदूषण-नियंत्रण व रोकथाम) अधिनियम, 1974 या वायु (प्रदूषण-नियंत्रण व रोकथाम) अधिनियम, 1981 या दोनों के तहत मंजूरी और खतरनाक अपशिष्ट (प्रबंधन व निर्वाह) नियम, 1989 के तहत प्रदूषण उत्पन्न करने वाली लाइसेंस की इच्छुक इकाइयों के लिए पर्यावरण संबंधी वक्तव्य पेश करना अनिवार्य बना दिया गया।
- राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता निगरानी कार्यक्रम, एन.ए.एम.पी. के अंतर्गत चार वायु प्रदूषकों के रूप में, सल्फर डाईऑक्साइड (SO2), नाइट्रोजन ऑक्साइड (NO), स्थगित विविक्त पदार्थ (ससपेंडेड पार्टिकुलेट मैटर),(एसपीएम) और अंत:श्वसनीय स्थगित विविक्त पदार्थ (रिस्पाइरेवल संस्पेंडिड पार्टिकुलर मैटर) के रूप में सभी स्थानों पर नियमित निगरानी के लिए पहचान की गई है।
- इसके अलावा अंत: श्वसनीय सीमा व अन्य विषैले पदार्थ और बहुचक्रीय गंधीय हाइड्रोकार्बन पर निगरानी रखी जा रही है।
- ऑटो ईंधन नीति के अनुसार नए वाहनों के लिए भारत-II मानक समस्त देश में 1 अप्रैल 2005 से लागू किया है। लेकिन, दोपहिया और तिपहिया वाहनों को छोड़कर नये वाहनों के लिए यूरो-III मानक को 11 नगरों में 1 अप्रैल 2005 से लागू किया गया है। भारत-II, यूरो-III, और यूरो-V उत्सर्जन मानकों की पूर्ति के लिए उतनी गुणवत्ता का पेट्रोल और डीजल उपलब्ध कराया जा रहा है।
- केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के अंतर्गत एक स्वायत्त संस्था है।
- जल (प्रदूषण नियंत्रण व रोकथाम) अधिनियम, 1974 के प्रावधानों के अंतर्गत सितंबर, 1974 में बोर्ड की स्थापना की गई।
- अत्यधिक प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों के 17 वर्गों की पहचान कर ली गई है। ये हैं- सीमेंट, ताप-बिजली संयंत्र, शराब बनाने वाले कारखाने, चीनी, उर्वरक, समन्वित लौह व इस्पात उद्योग, तेल शोधनशालाएं, लुगदी और कागज उद्योग, पेट्रो-रसायन उद्योग, कीटनाशक, चर्म शोधनशालाएं, बुनियादी औषध और भेषज निर्माण उद्योग, रंजक और उसके मध्यवर्तियों का निर्माण उद्योग, कस्टिक सोडा तथा जस्ता, तांबा और एल्युमिनियम प्रगलन उद्योग।
- मंत्रालय ने तीन अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशनों के लिए भी प्रमुख भूमिका निभाई है। ये तीन अधिवेशन बैसेल, रोटरडम और स्कॉटहोम में हुए। बैसेल के अधिवेशन में खतरनाक पदार्थों का एक देश की सीमा से दूसरे देश की सीमा में लाना, ले जाना तथा इसके निष्पादन पर चर्चा की गई, जबकि रोटरडम अधिवेशन में चुनिंदा खतरनाक रसायनों एवं कीटनाशकों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के संदर्भ में पहले से सूचित सहमति प्रक्रिया के बारे में चर्चा की गई। स्टॉकहोम अधिवेशन, एजेंडा में बने रहने वाले कार्बनिक प्रदूषकों के संबंध में था।
- राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना का उद्देश्य प्रदूषण रोकथाम योजनाओं को लागू कर देश में स्वच्छ पानी के मुख्य स्रोतों के पानी की गुणवत्ता में सुधार लाना है। इस कार्यक्रम के तहत अब तक 20 राज्यों के 160 शहरों, 34 नदियों को शामिल किया जा चुका है।
- राष्ट्रीय वनारोपण और पारिस्थितिकी विकास बोर्ड (एन.ए.ई.बी.) की स्थापना 1992 में की गयी थी।
- पारिस्थितिकी विकास बल की स्थापना 1980 में एक ऐसी येोजना के रूप में हुई जिसे रक्षा मंत्रालय के जरिए ऐसे भू क्षेत्रों के पारिस्थितिकी पुर्नस्थापन के लिए लागू किया गया।
- संयुक्त वन प्रबंधन (जेएफएम) प्रकोष्ठ की स्थापना 1998 में, जे एफ एम कार्यक्रम की निगरानी और नीति निर्धारण के लिए हुई थी।
- जीबी पंत हिमालयी पर्यावरण एवं विकास संस्थान (जीबीपीआईएचईडी) अल्मोड़ा, जिसकी स्थापना मंत्रालय द्वारा 1988 में मंत्रालय के स्वायत्तशासी शोध एवं विकास संस्थान के रूप में हुई थी।
- वानिकी, अनुसंधान संस्थान और केन्द्र जो अपने संबद्ध पारिस्थितिकी जलवायु क्षेत्रों में अनुसंधान के लिए जिम्मेदार हैं- वन अनुसंधान संस्थान, देहरादून; 2. बंजर वन अनुसंधान संस्थान, जोधपुर; 3. वर्षा वन अनुसंधान संस्थान, जोरहाट; 4. लकड़ी विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान, बंगलौर:5. उष्णकटिबंधीय वन संस्थान, जबलपुर; 6. वन आनुवांशिकी तथा वृक्ष प्रजनन संस्थान, कोयम्बटूर; 7. हिमालयन वन अनुसंधान केन्द्र, शिमला; 8. बन उत्पादकता केन्द्र, रांची; 9. सामाजिक वानिकी और पारिस्थितिकी पुनर्सथापना संस्थान, इलाहाबाद; 10. वानिकी अनुसंधान तथा मानव संसाधन विकास संस्थान, छिंदवाड़ा। इसके अलावा भारतीय प्लाईवुड उद्योग अनुसंधान संस्थान, बंगलौर, मंत्रालय के अन्तर्गत एक स्वायत्त संस्थान है।
- वन्य जीवन अनुसंधान के क्षेत्र में भारतीय वन्य जीवन संस्थान (देहरादून) और सलीम अली पक्षी विज्ञान तथा प्राकृतिक इतिहास केन्द्र (कोयम्बटूर) वन्यजीवन संबंधी अनुसंधान कर रहे हैं।
- राष्ट्रीय प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय की स्थापना नई दिल्ली में 1978 में की गयी थी।
- मैसूर, भोपाल व भुवनेश्वर में तीन क्षेत्रीय प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय खोले गये हैं।
- देहरादून स्थित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वानिकी अकादमी में भारतीय वन सेवा के अधिकारियों को व्यावसायिक प्रशिक्षण दिया जाता है। भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआई) वन विभाग के कर्मचारियों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करता है, जिसमें वानिकी क्षेत्र में दूरसंवेदी तकनीक के उपयोग के विभिन्न पहलुओं का प्रशिक्षण दिया जाता है।
- राष्ट्रीय पर्यावरण नीति 2006 तैयार हो गयी है।
- इको मार्क योजना मंत्रालय द्वारा 1991 में आरंभ की गयी थी, जिसका उद्देश्य उन पर्यावरण-अनुकूल उपभोक्ता उत्पादों को लेबल करना है जो भारतीय मानक केन्द्र (बीआईएस) की गुणवत्ता आवश्यकताओं के अतिरिक्त कुछ पर्यावरण परिणामों का भी अनुकरण करते हैं।
- ग्लोबल मंत्रीस्तरीय पर्यावरण फोरम (जीएमईएफ) की बैठक फरवरी, 2007 में कन्या के नैरोबी में हुई थी।
- मंत्रालय ने मांट्रियल संधि प्रस्ताव और इसके प्रस्ताव और इसके भारत में ओजोन परत नष्ट करने वाले पदार्थों के चरणबद्ध ढंग से समाप्त करने वाले कार्यक्रम को लागू करने के लिए आवश्यक कदम उठाने व देख-रेख करने के लिए ओजोन प्रकोष्ठ को एक राष्ट्रीय संस्थान के रूप में स्थापित किया है।
- ओजोन परत को सुरक्षित रखने के लिए सत्तर के दशक के आरंभ में विश्वव्यापी प्रयास किए गए थे, जिनके चलते ओजोन परत को नष्ट करने वाले पदार्थों (ओडीएस) पर 1985 में वियाना समझौता हुआ और 1987 में मॉट्रियाल संधि प्रस्ताव पारित हुआ। भारत, मांट्रियाल संधि प्रस्ताव में लंदन संशोधन के साथ 1992 में शामिल हुआ।