मानव शरीर- मांसपेशियाँ Human Body- Muscles

हमारे शरीर का ढांचा अस्थियों का बना हुआ है। यह ढांचा या ककाल हमारे शरीर को साधे रहता है, इसे निश्चित आकृति और दृढ़ता प्रदान करता है तथा आंतरिक अंगों की रक्षा करता है। जन्म के समय बच्चे के शरीर में 300 अस्थियां होती हैं। लेकिन युवा होते-होते इनकी संख्या 206 रह जाती है, क्योंकि कुछ अस्थियां एक-दूसरे से जुड़ जाती हैं। हमारे सिर में 29 अस्थियां (Bones) और प्लेटें होती हैं। मेरुदण्ड या रीढ़ की हड्डी 33 कशेरुकाओं से मिलकर बनी हैं, लेकिन जैसे-जैसे मानव शैशवावस्था को पार करता जाता है, इनकी संख्या कम होती जाती है और कुछ कशेरुकाएं आपस में जुड़ जाती हैं, जिससे इनकी संख्या 26 रह जाती है। छाती में दोनों ओर बारह-बारह पसलियां (Ribs) होती हैं। हाथ की अंगुलियों में 15 अस्थियां होती हैं। टांग के ऊपर के हिस्से की अस्थि सबसे लंबी (लगभग 48 सेमी.) होती है। इसे फीमर (Femur) कहते हैं। पैरों (Feet) में 52 अस्थियां होती हैं।

हमारा अस्थि-पंजर ह्रदय, फेफड़ों, मस्तिष्क आदि जैसे कोमल और महत्वपूर्ण अंगों की रक्षा करता है तथा मांसपेशियों को आधार प्रदान करता है। कंकाल सांस लेने वाले तथा सुनने वाले अंगों के निर्माण तथा उनके कार्य-संपादन में सहायक होता है।

जीवित अवस्था में अस्थि के चारों ओर एक पेरीओस्टियम झिल्ली होती है। सभी अस्थियां अंदर से खोखली होती हैं। इनमें रक्तवाहिनियां होती हैं, जो हड्डियों को पोषक तत्व पहुंचाती हैं। आम तौर पर हड्डियां रेशेदार ऊतकों से ढकी रहती हैं जोड़ों के आखिरी सिरे कार्टिलेज से ढके रहते हैं। एक हड्डी, दूसरी हड्डी से लिगामेंट (Ligament) ऊतकों द्वारा जुड़ी होती है। मांसपेशियां, टेण्डन (Tendon) नामक ऊतकों द्वारा जुड़ी होती है। कुछ हड्डियां लंबी और बहुत मजबूत होती हैं तथा कुछ चपटी और मजबूत होती हैं। लंबी हड्डियां कार्टिलेज से तथा चपटी हड्डियां झिल्ली से आरंभ होती हैं। हड्डियां मुख्यत: कैल्सियम और फॉस्फोरस से बनी होती हैं। इनके अतिरिक्त भी इनमें कुछ दूसरे पदार्थ, जैसे-प्रोटीन, कोलेजन आदि होते हैं।

संधियाँ

शरीर में दो या दो से अधिक अस्थियां या उपास्थियां जहां मिलती हैं, उस स्थान को संधि या जोड़ कहते हैं। अधिकांश जोड़ किसी-न-किसी प्रकार की गति प्रदान करते हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी हैं, जो गति प्रदान नहीं करते। मुख्य रूप से शरीर में तीन प्रकार की संधियां होती हैं- चल संधि (Movable Joint), विसर्पी संधि (Gliding Joint) तथा अचल संधि (Immovable Joint)

  1. चल संधि: इन जोड़ों द्वारा हम इच्छानुसार गति कर सकते हैं। संधि में मिलने वाली हड्डियों के सिरों पर उपास्थि (Cartilage) की टोपी चढ़ी होती है, जो गद्दे का काम करती है। ये संधियां कई प्रकार की होती हैं, जैसे- बॉल और सॉकेट संधि (Ball and Socket Joint), कब्ज़ा संधि (Hinge Joint), कोनेदार संधि (Angular joint) तथा धुरीय संधि (Pivot Joint)
  2. विसर्पी संधि: इस जोड़ पर दो अस्थियां मुड़ती नहीं हैं, बल्कि एक-दूसरे पर फिसलती हैं। रीढ़ की हड्डी के कशेरुक विसर्पी संधि से ही जुड़े होते हैं।
  3. अचल संधि: जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, इनमें किसी प्रकार की गति नहीं होती। दो अस्थियों के बीच में कार्टिलेज नहीं होता। दांतों के जबड़े और खोपड़ी के जोड़ अचल संधि की श्रेणी में आते हैं।

मांसपेशियाँ

मांसपेशियां शरीर के ऐसे मांसल ऊतक (Meary tissue) हैं, जो शारीरिक अंगों को गति प्रदान करते हैं। शरीर की सभी गति क्रियाएं, मांसपेशियों के संकुचन के कारण होती हैं। मानव शरीर में लगभग 639 पेशियां होती हैं। पुरुष में उसके कुल भार का लगभग 42 प्रतिशत वजन पेशियों का होता है। महिलाओं में उसके कुल भार का लगभग 35 प्रतिशत पेशियां होती हैं।


मांसपेशियां तीन प्रकार की होती हैं- अरेखित या अनैच्छिक पेशियां (Unstriped or Involuntary muscle), हृदयपेशियां (Cardiac muscle) तथा रेखित या ऐच्छिक (Striped or voluntary muscle)। अधिकांश पेशियां तंतुओं से बनी होती हैं।

अरेखित या अनैच्छिक पेशियां: ये पेशियां स्वत: फैलती और सिकुड़ती रहती हैं। इनके ऊपर इच्छा का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। इसलिए इन्हें अनैच्छिक पेशियां कहते हैं। ये मूत्राशय, आहार-नाल तथा रक्तवाहिनियों आदि की दीवारों में पाई जाती हैं।

हृदयपेशियां: ये पेशियां हृदय की दीवारों में होती हैं। इनमें अरेखित तथा रेखित दोनों पेशियों के गुण पाए जाते हैं, परंतु स्वभाव से ये अनैच्छिक होती हैं। ये पेशियां पूरे जीवन बिना रुके निरंतर काम करती रहती ह।

रेखित या ऐच्छिक पेशियां: ये पेशियां हमारी इच्छानुसार सिकुड़ती हैं इसलिए इन्हें ऐच्छिक पेशियां कहते हैं। ये अस्थियों में लगी रहती हैं और शरीर के समस्त हिलने-डुलने की क्रिया इन्हीं के द्वारा होती है। उदाहरण के लिए टांगों की पेशियों द्वारा हम चलते-फिरते और दौड़ते हैं। हाथों की पेशियों द्वारा हम वस्तुओं को पकड़ते हैं तथा दूसरे काम करते हैं।

स्तनधारी के अंत:ककाल में पाए जाने वाली विभिन्न संधियाँ
संधि की किस्म सामान्य लक्षण उदाहरण कार्य

1. अचल/सीवन

अस्थियों के बीच में रेशेदार योजी ऊतक की एक पतली परत होती है, जो उन्हें अपनी स्थिति में मज़बूती से बनाए रखती है। करोटि-अस्थियों के बीच में सैक्रम और श्रेणिमेखला ईलियमों के बीच में; श्रेणि- मेखला की विभिन्न अस्थियों के बीच में।

शरीर को मज़बूती और अबलंब प्रदान करती है अथवा उन नाजुक संरचनाओं को सुरक्षा प्रदान करती है जो किसी प्रकार की विकृति सहन नहीं कर सकते।

2. अंशत: गतिशील

अस्थियाँ एक-दूसरे से अलग-अलग दबी रहती हैं।  

क. विसर्पी (gliding)

  कशेरुकाओं के बीच की संधियाँ, कलाई और टखने के अस्थियों की संधियाँ

अस्थियां सीमित रूप में एक-दूसरे के ऊपर फिसल जाती हैं। सामूहिक रूप से इन अस्थियों में व्यापक परिसर में गति होती है और पाद-अस्थियों को बल प्रदान करती हैं। इस प्रकार की संधि से सिर दायीं-बायीं और घूम सकता है।

ख. परिघूर्णी/घूर्णनी/ घुराग्र (pivot)

ऐटलस और एक्सिस कशेरुकाओं के बीच की संधि

3. मुक्त रूप से गतिशील सिनोवियल

अस्थियों की संधि-सतह उपास्थि से ढकी होती है और दोनों अस्थियों के बीच में सिनोवियल गुहा होती है, जिसमें सिनोवियल तरल भरा होता है।    
क. हिंज (hinge) आपेक्षिक रूप से केवल कुछेक पेशियाँ ही इस संधि को चलाती हैं। कोहनी, घुटना और ऊँगलियों की संधियाँ भारी भार उठाने में समर्थ

केवल एक ही समतल में एक ही अक्ष पर गति हो सकती है।

ख. कंदुक-खल्लिका (ball & socket)

इस संधि वाली अस्थियों पर विभिन्न पेशियाँ लगी होती हैं। कंधा और कूल्हे की  अस्थियों की संधियाँ ज्यादा भार उठाने में असमर्थ।

सभी समतलों में गति हो सकती है, और साथ ही कुछ सीमा तक घूर्णन भी हो सकता है।

महत्वपूर्ण तथ्य

·         माँस पेशियाँ 3 प्रकार की होती हैं –

1.   अरेखित अथवा अनैच्छिक पेशियाँ

2.   हृदय पेशियाँ

3.   रेखित अथवा ऐच्छिक पेशियाँ

·         मानव शरीर में लगभग 650 पेशियाँ होती हैं।

·         नर मानव में उसके सम्पूर्ण भार का लगभग 42 प्रतिशत वजन पेशियों का होता है।

·         स्त्रियों में उनके सकल भार का लगभग 35 प्रतिशत वजन पेशियों का होता है।

·         अरेखित या अनैच्छिक पेशियां- ये पेशियां स्वत: फैलती और सिकुड़ती रहती हैं। इनके ऊपर इच्छा का कोई प्रभाव नहीं पड़ता इसलिए इन्हें अनैच्छिक पेशियाँ कहते हैं। ये मूत्राशय, आहार नाल, रक्त वाहिनियों आदि की दीवारों पर पायी जाती हैं।

·         सार्कोलाजी या मायोलाजी में पेशियों का अध्ययन किया जाता है।

·         आस्टियोलाजी में कंकाल तन्त्र का अधययन किया जाता है।

·         हीमैटोलॉजी में रूधिर व रुधिर रोगों का अधययन किया जाता है।

·         एन्जिओलॉजी (ANGIOLOGY) में परिसंचरण तंत्र का अध्ययन, ऑरगैनोलॉजी में अंग विज्ञान का अध्ययन किया जाता है।

·         सिन्डस्मोलाजी में कंकाल सन्धियों एवं स्नायुओं का अध्ययन।

·         शरीर के भाग में सामान्यत: 40 प्रतिशत भाग मांस पेशियों का होता है।

·         मानव शरीर में छोटी-बड़ी 63 प्रतिशत मांसपेशियां होती हैं। इनमें सबसे बड़ी कृल्हे की मांसपेशी है जिसे ग्लूटियस मैक्सीमस कहते हैं। यह जांघ का फैलाने का काम करती है।

·         मानव शरीर की सबसे छोटी मांसपेशी का नाम स्टेपिडियम है यह मध्यकान की स्टेप्स नामक श्रवण अस्थि को नियंत्रित रखती है और कुल 0.127 सेमी. की होती है।

अरेखित पेशी व रेखित पेशी में अन्तर
अरेखित पेशी रेखित पेशी
1.   यह लम्बाई में लगभग आधा मिमी. होती है।

2.   यह स्वत: फैलती व सिकुड़ती है, अतः अनैच्छक पेशी भी कहलाती है।

3.   इनकी प्रत्येक कोशिका में केवल एक केन्द्रक पाया जाता है।

4.   पट्टियाँ नहीं पायी जाती हैं।

5.   इसमें थकान का अनुभव नहीं होता है।

6.   ये अस्थियों से जुड़ी नहीं रहती हैं और चिकनी पेशी कहलाती हैं।

ये मूत्राशय, आहारनाल व रक्त वाहिनियों की भित्ति में पायी जाती हैं।

7.

1.   ये बेलनाकार होती हैं।

2.   ये लम्बाई में 2-4 सेमी. तक लम्बी होती हैं।

3.   ये जन्तु की इच्छा के अनुसार फैलती एवं सिकुड़ती हैं, अत: ऐच्छिक पेशियां भी कहलाती हैं।

4.   प्रत्येक कोशिका में अनेक केन्द्रक पाये जाते हैं।

5.   गहरी तथा हल्की पट्टियां पायी जाती हैं।

6.   इसमें थकान का अनुभव होता है।

7.   ये अस्थियों से जुड़ी रहती हैं और इसलिए कंकाल पेशी भी कहलाती हैं।

8.   ये हड्डियों से जुड़ी रहती है और फैल तथा सिकुड़ कर उन्हें गति करती हैं।

 

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