भारत के गवर्नर जनरल तथा वायसरॉय Governor General and Viceroy of India
बंगाल के गवर्नर Governor of Bengal | |
लार्ड क्लाइव Lord Clive | 1757 से 1760 एवं 1765 से 1767 |
बंगाल के गवर्नर जनरल Governor General of Bengal | |
वारेन हेस्टिंग्स Warren Hastings | 20 अक्टूबर 1773 से 1 फ़रवरी 1785 |
सर जॉन मैकफर्सन Sir John Macpherson (कार्यवाहक) | 1 फ़रवरी 1785 से 12 सितंबर 1786 |
लार्ड कार्नवालिस Lord Cornwallis | 12 सितंबर 1786 से 28 अक्टूबर 1793 |
सर जॉन शोर John Shore | 28 अक्टूबर 1793 से 18 मार्च 1798 |
सर अलर्ड क्लार्क Sir Alured Clarke (कार्यवाहक) | 18 मार्च 1798 से 18 मई 1798 |
लार्ड वेलेजली Lord Wellesley | 18 मई 1798 से 30 जुलाई 1805 |
लार्ड कार्नवालिस Lord Cornwallis | 30 जुलाई 1805 से 5 अक्टूबर 1805 |
सर जॉर्ज बारलो Sir George Barlow | 10 अक्टूबर 1805 से 31 जुलाई 1807 |
लार्ड मिंटो Lord Minto | 31 जुलाई 1807 से 4 अक्टूबर 1813 |
मार्क्विस हेस्टिंग्स Marquess Of Hastings | 4 अक्टूबर 1813 9 जनवरी 1823 |
जॉन ऐडम्स John Adam (कार्यवाहक) | 9 जनवरी 1823 से 1 अगस्त 1823 |
लार्ड एमहर्स्ट Lord William Amherst | 1 अगस्त 1823 से 13 मार्च 1828 |
विलियम बटरवर्थ बेले William Butterworth Bayley (कार्यवाहक) | 13 मार्च 1828 से 4 जुलाई 1828 |
लार्ड विलियम बैंटिक Lord William Bentinck | 4 जुलाई 1828 से 1833 |
भारत के गवर्नर जनरल Governor-General of India | |
लार्ड विलियम बैंटिक Lord William Bentinck | 1833 से 20 मार्च 1835 |
सर चार्ल्स मेटकॅाफ Lord Metcalfe | 20 मार्च 1835 से 4 मार्च 1836 |
लार्ड ऑकलैंड Lord Auckland | 4 मार्च 1836 से 28 फ़रवरी 1842 |
लार्ड एलनबरो Lord Ellenborough | 28 फ़रवरी 1842 से जून 1844 |
विलियम विल्बरफोर्स बर्ड William Wilberforce Bird | जून 1844 से 23 जुलाई 1844 |
लार्ड हार्डिंग Lord Hardinge | 23 जुलाई 1844 से 12 जनवरी 1848 |
लार्ड डलहौजी Lord Dalhousie | 12 जनवरी 1848 से 28 फ़रवरी 1856 |
लार्ड कैनिंग Lord Canning | 28 फ़रवरी 1856 से 1 नवम्बर 1858 |
भारत के वायसराय Viceroy Of India | |
लार्ड कैनिंग Lord Canning | 1 नवम्बर 1858 से 21 मार्च 1862 |
लार्ड एल्गिन Lord Elgin | 21 मार्च 1862 20 नवम्बर 1863 |
सर रॉबर्ट नेपियर Sir Robert Napier (कार्यवाहक) | 21 नवम्बर 1863 से 2 दिसम्बर 1863 |
सर विलियम डेनिसन Sir William Denison | 2 दिसम्बर 1863 से 12 जनवरी 1864 |
सर जॉन लॉरेंस Sir John Lawrence, Bt | 12 जनवरी 1864 से 12 जनवरी 1869 |
लार्ड मेयो Lord Mayo | 12 जनवरी 1869 से 8 फ़रवरी 1872 |
सर जॉन स्ट्रेची Sir John Strachey (कार्यवाहक) | 9 फ़रवरी 1872 से 23 फ़रवरी 1872 |
द लॉर्ड नेपियर The Lord Napier (कार्यवाहक) | 24 फ़रवरी 1872 से 3 मई 1872 |
लार्ड नार्थब्रुक Lord Northbrook | 3 मई 1872 से 12 अप्रैल 1876 |
लार्ड लिटन Lord Lytton | 12 अप्रैल 1876 से 8 जून 1880 |
लार्ड रिपन Lord Ripon | 8 जून 1880 से 13 दिसम्बर 1884 |
लार्ड डफरिन Lord Dufferin | 13 दिसम्बर 1884 से 10 दिसम्बर 1888 |
लार्ड लैंसडाउन Lord Lansdowne | 10 दिसम्बर 1888 से 11 अक्टूबर 1894 |
लार्ड एल्गिन Lord Elgin | 11 अक्टूबर 1894 से 6 जनवरी 1899 |
लार्ड कर्जन Lord Curzon | 6 जनवरी 1899 से 18 नवम्बर 1905 |
लार्ड मिन्टों द्वितीय Lord Minto II | 18 नवम्बर 1905 से 23 नवम्बर 1910 |
लॉर्ड हार्डिंग द्वितीय Lord Hardinge II | 23 नवम्बर 1910 से 4 अप्रैल 1916 |
लार्ड चेम्सफोर्ड Lord Chelmsford | 4 अप्रैल 1916 से 2 अप्रैल 1921 |
लार्ड रीडिंग Lord Reading | 2 अप्रैल 1921 से 3 अप्रैल 1926 |
लार्ड इरविन Lord Irwin | 3 अप्रैल 1926 से 18 अप्रैल 1931 |
लॉर्ड विलिंगडन Lord Willingdon | 18 अप्रैल 1931 से 18 अप्रैल 1936 |
लार्ड लिनलिथगो Lord Linlithgow | 18 अप्रैल 1936 से 1 अक्टूबर 1943 |
लार्ड वेवेल Lord Wavell | 1 अक्टूबर 1943 से 21 फ़रवरी 1947 |
लार्ड माउंटबेटेन Lord Mountbatten | 21 फ़रवरी 1947 से 15 अगस्त 1947 |
भारतीय संघ के गवर्नर-जनरल Governors-General of the Union of India | |
लार्ड माउंटबेटेन Lord Mountbatten | 15 अगस्त 1947 से 21 जून 1948 |
चक्रवर्ती राजगोपालाचारी Chakravarti Rajagopalachari | 21 जून 1948 से 26 जनवरी 1950 |
पाकिस्तान के गवर्नर Governor-General of Pakistan | |
मुहम्मद अली जिन्ना Muhammad Ali Jinnah | 15 अगस्त 1947 से 11 सितंबर 1948 |
ख्वाजा नज़ीमुद्दीन Khawaja Nazimuddin | 14 सितंबर 1948 से 17 अक्टूबर 1951 |
गुलाम मुहम्मद Ghulam Muhammad | 17 अक्टूबर 1951 से 6 अक्टूबर 1955 |
इस्कंदर मिर्जा Iskander Mirza | 6 अक्टूबर 1955 से 23 मार्च 1956 |
बंगाल के गवर्नर
लार्ड क्लाइव Lord Clive or Robert Clive (1757-1760 ई. एवं 1765-1767 ई.)
लार्ड क्लाइव को भारत में अंग्रेजी शासन का जन्मदाता माना जाता है। ईस्ट इंडिया कम्पनी ने क्लाइव को 1757 में बंगाल का गवर्नर नियुक्त किया था। क्लाइव ईस्ट इंडिया कम्पनी द्वारा भारत में नियुक्त होने वाला प्रथम गवर्नर था। 1757 में क्लाइव के नेतृत्व में प्लासी का युद्ध (Battle of Plassey) लड़ा गया, जिसने भारत में अंग्रेजी शासन की स्थापना के द्वार खोल दिये।
बंगाल के गवर्नर के रूप में क्लाइव ने अपने दूसरे कार्यकाल में बरार के युद्ध के बाद, मुग़ल सम्राट शाह आलम द्वितीय से संधि की। 1764 में बक्सर के ऐतिहासिक युद्ध के समय वन्सिटार्ट (1760-1765) बंगाल का गवर्नर था। इलाहाबाद की संधि के बाद क्लाइव ने बंगाल में ‘द्वैध शासन’ की नींव रखी। क्लाइव के बाद, द्वैध शासन के दौरान वेरेल्स्ट (1767-1769) और कार्टियर (1769-1772) बंगाल के गवर्नर रहे। द्वैध शासन के दौरान क्लाइव ने कंपनी के अधिकारीयों में व्याप्त भ्रष्टाचार दूर करने के लिए ‘सोसाइटी ऑफ़ ट्रेड’ की स्थापना की।
बंगाल के गवर्नर जनरल Governor General of Bengal
वारेन हेस्टिंग्स Warren Hastings (1772-1785 ई.)
1772 में कार्टियर के बाद वारेन हेस्टिंग्स को बंगाल का गवर्नर बनाया गया। इसने बंगाल में चल रहे द्वैध शासन को समाप्त करके बंगाल का शासन ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन कर दिया। 1773 के रेग्युलेटिंग एक्ट के द्वारा वारेन हेस्टिंग्स को बंगाल का प्रथम गवर्नर गेनरल बनाया गया। वारेन हेस्टिंग्स ने कलकत्ता को बंगाल की राजधानी बनायीं, और इसे कलकत्ता को भारत में अंग्रेजी साम्राज्य की राजधानी घोषित की। वारेन हेस्टिंग्स ने 1776 में कानून सम्बन्धी एक संहिता का निर्माण कराया, जिसे ‘ए कोड ऑफ़ जेन्टू (A Code of Gentoo Laws)’ कहा जाता है। जो भारतीय संस्कृत ग्रन्थ विवादार्णवसेतु (vivadarnavasetu) का अंग्रेजी अनुवाद था।
वारेन हेस्टिंग्स के समय एक समृद्ध ब्राह्मण नन्द कुमार पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर मुकदमा चलाया गया। वारेन हेस्टिंग्स के समय में प्रथम आंग्ल-मराठा युद्ध, एवं द्वितीय आंग्ल-मैसूर (1780-1784) युद्ध हुआ। वारेन हेस्टिंग्स के समय में ही पिट्स इंडिया एक्ट (Pitt’s India Act) पारित हुआ, जिसके द्वारा बोर्ड ऑफ़ कंट्रोल की स्थापना हुई। जिसके द्वारा ब्रिटिश क्राउन का कम्पनी के भारत पर शासन, पर नियंत्रण स्थापित हो गया। वारेन हेस्टिंग्स के 1785 में इंग्लैण्ड वापस जाने के बाद मैक्फर्सन फरवरी 1785 से सितम्बर 1786 तक बंगाल का गवर्नर रहा। पिट एक्ट के विरोध में इस्तीफ़ा देकर जब वारेन हेस्टिग्स फ़रवरी, 1785 ई. में इंग्लैण्ड पहुँचा, तो बर्क द्वारा उसके ऊपर महाभियोग लगाया गया। ब्रिटिश पार्लियामेंट में यह महाभियोग 1788 ई. से 1795 ई. तक चला, परन्तु अन्त में उसे आरोपों से मुक्त कर दिया गया।
लार्ड कार्नवालिस Lord Cornwallis or Charles Cornwallis (1786-1793 ई.)
भारत में कार्नवालिस को एक निर्माता और सुधारक के रूप में याद किया जाता है। कार्नवालिस को ‘सिविल सेवा का जनक’ भी कहा जाता है। कार्नवालिस के कलेक्टर के अधिकारों को सुनिश्चित किया और उनके वेतन का निर्धारण किया। कार्नवालिस ने भारत में ब्रिटेन से भी पहले पुलिस वयवस्था की स्थापना की, इस कारण इस पुलिस वयवस्था का जनक भी माना जाता है। कार्नवालिस ने प्रशासनिक वयवस्था को व्यवस्थित करने के लिए 1793 में कुछ नियम बनाये, जिसे कार्नवालिस कोड के नाम से भी जाना जाता है, जिसके अंतर्गत न्यायपालिका एवं कार्यपालिका की शक्तियों का विभाजन किया जाता है।
कार्नवालिस के समय में 1790 से 1792 ई. में तृतीय आंग्ल-मैसूर (Anglo-Mysore War) युद्ध हुआ। 1793 में कार्नवालिस ने बंगाल, बिहार और उड़ीसा में भूमि कर से सम्बंधित स्थाई बंदोबस्त (Permanent Settlement) लागू किया। 1805 में गाजीपुर में कार्नवालिस की मृत्यु हो गयी, और वहीँ उसे दफना दिया गया। इसकी याद में बने मकबरे को लाट साहब का मकबरा भी कहते हैं।
सर जॉन शोर John Shore or Lord Teignmouth (1793-1798 ई.)
कार्नवालिस की मृत्यु के बाद जॉन शोर बंगाल का गवर्नर जनरल बना। इसके कार्यकाल की सबसे खारदा का युद्ध था, जो मराठों और निजाम के बीच 1795 में लड़ा गया। जॉन शोर ने अहस्तक्षेप की नीति अपनायी। इसके कार्यकाल में अंग्रेज अधिकारीयों ने इसका विरोध किया और स्थिति अनियंत्रित हो गयी, जिस कारण इसे 1798 में इंग्लैण्ड वापस बुला लिया गया।
लार्ड वेलेजली Lord Wellesley or Richard Wellesley (1798-1805 ई.)
लार्ड वेलेजली ने भारत में शांति की नीति को छोड़कर केवल युद्ध की नीति का पालन किया, और अपनी साम्राज्य विस्तार की नीति को अपनाते हुए भारतीय राज्यों को ब्रिटिश शासन की परिधि में लाने के लिए सहायक संधि प्रणाली का प्रयोग किया। वेलेजली के समय में हैदराबाद, मैसूर, तंजौर, अवध, जोधपुर, जयपुर, बूंदी, भरतपुर और पेशावर ने सहायक संधि पर हस्ताक्षर किये। वेलेजली के कार्यकाल में चौथा आंग्ल-मैसूर युद्ध हुआ, जिसमे टीपू सुल्तान को हराने के पश्चात् वेलेजली ने मैसूर पर अधिकार कर लिया। वेलेजली ने पेशवा के साथ बेसिन की संधि की, तथा 1803-1805 के दौरान द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध हुआ। वेलेजली की विस्तार की नीति के तहत पंजाब और सिंध को छोड़कर लगभग सम्पूर्ण भारत कंपनी के प्रभाव क्षेत्र में आ गया। वेलेजली के ही कार्यकाल में टीपू सुल्तान ने नेपोलियन से संपर्क कर अंग्रेजों को भारत से निकलने की योजना बनायीं थी।
सर जॉर्ज बारलो Sir George Barlow (1805-1807 ई.)
वेलेजली के बाद कार्नवालिस को पुनः 1805 में बंगाल का गवर्नर जनरल बना कर भेजा गया, परन्तु तीन महीने बाद अक्टूबर 1805 में कार्नवालिस की मृत्यु हो गयी। कार्नवालिस की मृत्यु के बाद सर जॉर्ज बारलो को बंगाल का गवर्नर जनरल बनाया गया।
सर जॉर्ज बारलो ने वेलेजली के विपरीत अहस्तक्षेप की नीति अपनायी। बारलो के कार्यकाल में 1806 वेल्लोर में सिपाहियों ने विद्रोह किया। सर जॉर्ज बारलो ने धेलकर के साथ राजपुरघाट की संधि 1805 में की।
लार्ड मिंटो Lord Minto or 1st Earl of Minto (1807-1813 ई.)
लार्ड मिंटो ने रणजीत सिंह (Ranjit Singh) के साथ अमृतसर की संधि की, तथा उन्हें सतलज नदी ना पर करने के लिए मजबूर कर दिया। मिंटो ने मैल्कम को ईरान तथा एल्फिन्स्टन को काबुल भेजा। मिंटो के ही कार्यकाल में चार्टर अधिनियम पारित हुआ। लार्ड मिंटो ने फ्रांसीसियों पर आक्रमण कर बोरबन और मॅारीशस के द्वीपों पर कब्ज़ा कर लिया।
मार्क्विस हेस्टिंग्स Marquess Of Hastings (1813-1823 ई.)
हेस्टिंग्स के कार्यकाल में आंग्ल नेपाल युद्ध (1814-1816 ई.) में हुआ, इस युद्ध में उसने नेपाल को पराजित करने के बाद उसने नेपाल के साथ संगौली की संधि की। संगौली की संधि के द्वारा काठमांडू में एक ब्रिटिश रेजिडेंट रखना स्वीकार किया गया और इस संधि के द्वारा अंग्रेजों को शिमला, मसूरी, रानीखेत, एवं नैनीताल प्राप्त हुए। हेस्टिंग्स के ही कार्यकाल में तृतीय आंग्ल-मराठा युद्ध (1818-1818 ई.) हुआ, और 1818 में हेस्टिंग्स ने पेशवा का पद समाप्त कर दिया।
1817-1818 ई. में ही इसने पिंडारियों का दमन किया, जिसके नेता चीतू, वासिल मोहम्मद तथा करीम खां थे। हेस्टिंग्स ने 1799 में प्रेस पर लगाये गए प्रतिबंधों को समाप्त कर दिया। इसके कार्यकाल में 1822 में बंगाल में रैयत के अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए बंगाल काश्तकारी अधिनियम पारित किया गया। वास्तव में मार्क्विस हेस्टिंग्स के ही कार्यकाल में भारत में ब्रिटिश सत्ता को प्रभावी ढंग से स्थापित किया गया था।
लार्ड एमहर्स्ट Lord William Amherst (1823-18-28 ई.)
लार्ड विलियम एमहर्स्ट के कार्यकाल में आंग्ल-बर्मा युद्ध (first Burmese war, 1824-1826 ई.) हुआ। इस युद्ध में बर्मा को पराजित करने के बाद इसने बर्मा के साथ यांद्बू की संधि की, और बर्मा ने हर्जाने के रूप में ब्रिटेन को एक करोड़ रुपये दिये। लार्ड एमहर्स्ट ने 1824 में कलकत्ता में गवर्नमेंट संस्कृत कालेज की स्थापना की। लार्ड एमहर्स्ट ने भरतपुर के दुर्ग पर अधिकार किया तथा बैरकपुर में हुए विद्रोह को दबाया।
भारत के गवर्नर जनरल Governor-General of India
लार्ड विलियम बैंटिक Lord William Bentinck or Lord William Henry Cavendish-Bentinck (1828-1835 ई.)
लार्ड विलियम बैंटिक भारत में किये गए सामाजिक सुधारों के लिए विख्यात है। बैंटिक ने कोर्ट ऑफ़ डायरेक्टर्स की इच्छाओं के अनुसार भारतीय रियासतों के प्रति तटस्थता की नीति अपनायी। इसने ठगों के आतंक से निपटने के लिए कर्नल स्लीमैन को नियुक्त किया। बैंटिक ने 1829 में सटी प्रथा पर प्रतिबन्ध लगा दिया, इसके बाद उसने शिशु-वध पर भी प्रतिबन्ध लगाया। बैंटिक के कार्यकाल में देवी-देवताओं को नर बलि देने की प्रथा का भी अंत कर दिया गया।
बैंटिक के कार्यकाल में अपनायी गयी मैकाले की शिक्षा पद्धति ने भारत के बौद्धिक जीवन को उल्लेखनीय ढंग से प्रभावित किया, इस प्रकार लार्ड विलियम बैंटिक का भारत के शिक्षा के खेत्र में भी महत्वपूर्ण स्थान है।
सर चार्ल्स मेटकॅाफ Lord Metcalfe or Charles Metcalfe (1835-1836 ई.)
बैंटिक के बाद, चार्ल्स मेटकॅाफ को भारत का गवर्नर जनरल बनाया गया। चार्ल्स मेटकॅाफ में भारत में समाचार पत्रों पर लगे प्रतिबंधों को समाप्त कर दिया, इस कारण इसे प्रेस का मुक्तिदाता भी कहा जाता है।
लार्ड ऑकलैंड George Eden, 1st and last Earl of Auckland (1836-1842 ई.)
लार्ड ऑकलैंड के कार्यकाल में प्रथम आंग्ल-अफगान युद्ध (first Anglo-Afghan, 1838-1842 ई.) हुआ। 1838 में ऑकलैंड ने रणजीत सिंह और अफगान के शासक शाहशुजा से मिलकर त्रिपक्षीय संधि की।
आकलैण्ड को भारत में शिक्षा एवं पाश्चात्य चिकित्सा पद्धति के विकास और प्रसार के लिए जाना जाता है। आकलैण्ड के कार्यकाल में बम्बई और मद्रास मेडिकल कालेजों की स्थापना की गयी। आकलैण्ड ने शेरशाह द्वारा बनवाई गयी ग्रान्ड-ट्रंक रोड की मरम्मत करवायी।
लार्ड एलनबरो Lord Ellenborough or Edward Law, 1st Earl of Ellenborough (1842-1844 ई.)
लार्ड एलनबरो के समय में प्रथम आंग्ल-अफगान युद्ध का अंत हुआ, और 1843 में सिंध का ब्रिटिश राज्य में विलय कर दिया गया। लार्ड एलनबरो के ही कार्यकाल में दास-प्रथा पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया।
लार्ड हार्डिंग Henry Hardinge, 1st Viscount Hardinge (1844-1848 ई.)
लार्ड हार्डिंग के कार्यकाल में प्रथम आंग्ल-सिख युद्ध (1845) हुआ, जो लाहौर की संधि द्वारा समाप्त हुआ। लार्ड हार्डिंग को प्राचीन स्मारकों के संरक्षण के लिए जाना जाता है, और इसने उन इमारतों की सुरक्षा के लिए प्रबंध भी किया। लार्ड हार्डिंग ने सरकारी नौकरियों में नियुक्ति के लिए अंग्रेजी शिक्षा को प्राथमिकता दी।
लार्ड डलहौजी James Broun-Ramsay, 1st Marquess of Dalhousie (1848-1856 ई.)
लार्ड डलहौजी एक एक कट्टर उपयोगितावादी एवं साम्राज्यवादी था, लेकिन डलहौजी को उसके सुधारों के लिए भी जाना जाता है। डलहौजी के कार्यकाल में 1851-1852 में द्वितीय आंग्ल-बर्मा युद्ध लड़ा गया और 1852 में बर्मा के पिगु राज्य को ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया गया।
डलहौजी ने व्यपगत के सिद्धांत (doctrine of lapse) को लागू किया, जिसके अनुसार जिन भृत्य रजवाड़ो का कोई उत्तराधिकारी नहीं होगा वे ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन आ जायेंगे। व्यपगत के सिद्धांत द्वारा ब्रिटिश शासन में सतारा (1848), जैतपुर वा संभलपुर (1849), बघाट (1850), उदयपुर (1852), झाँसी (1853), नागपुर (1854) का विलय कर दिया गया। डलहौजी ने 1856 में अवध पर कुशासन का आरोप लगाकर उसका ब्रिटिश शासन में विलय कर दिया।
डलहौजी के कार्यकाल में ही भारत में रेलवे और संचार प्रणाली का विकास हुआ। इसके कार्यकाल में भारत में दार्जिलिंग को सम्मिलित कर लिया गया। लार्ड डलहौजी के कार्यकाल में वुड का निर्देश पत्र (Wood’s dispatch) आया,, जिसे भारत में शिक्षा सुधारों के लिए ‘मैग्नाकार्टा’ कहा जाता है। इसने 1854 में नया डाकघर अधिनियम (Post Office Act) पारित किया, जिसके द्वारा भारत में पहली बार डाक टिकटों का प्रचलन प्रारंभ हुआ। डलहौजी के समय में भारतीय बंदरगाहों का विकास करके, इन्हें अन्तर्राष्ट्रीय वाणिज्य के लिये खोल दिया गया। लार्ड डलहौजी के समय में ही हिन्दू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम भी पारित हुआ।
भारत के वायसराय Viceroy Of India
लार्ड कैनिंग Charles Canning or 1st Earl Canning (1858-1862 ई.)
कैनिंग 1856 से 1858 तक भारत का गवर्नर जनरल था। लार्ड कैनिंग भारत का अंतिम गवर्नर जनरल भी था। 1858 में ब्रिटिश संसद द्वारा पारित अधिनियम द्वारा इसे भारत का प्रथम वायसराय बनाया गया। लार्ड कैनिंग के कार्यकाल की सबसे महत्वपूर्ण घटना 1857 का विद्रोह था। 1857 के विद्रोह के पश्चात् बहादुर शाह को रंगून निर्वासित कर दिया गया।
कैनिंग के कार्यकाल में IPC, CPC तथा CrPC जैसी दण्डविधियों को पारित किया गया। कैनिंग के समय में ही लंदन विश्वविद्यालय की तर्ज पर 1857 में कलकत्ता, मद्रास, और बम्बई विश्वविद्यालयों की स्थापना की गई। 1861 का भारतीय परिषद् अधिनियम कैनिंग के समय में ही पारित हुआ।
कैनिंग के कार्यकाल में ही भारतीय इतिहास का प्रसिद्द नील विद्रोह भी हुआ।
कैनिंग के कार्यकाल के बाद द अर्ल ऑफ एल्गिन (मार्च,1862 से नवम्बर,1863), सर रॉबर्ट नेपियर (नवम्बर,1863 से दिसम्बर,1863) और सर विलियम डेनिसन (दिसम्बर,1863 से जनवरी,1864) भारत के कार्यवाहक वायसराय रहे।
सर जॉन लॉरेंस Sir John Lawrence, Bt (1864-1869 ई.)
जॉन लॉरेंस ने अफगानिस्तान में हस्तक्षेप न करने की नीति का पालन किया, इसके कार्यकाल में यूरोप के साथ संचार वयवस्था (1869-1870) कायम की गयी। जॉन लॉरेंस के ही कार्यकाल में कलकत्ता, बम्बई और मद्रास में उच्च न्यायालयों की स्थापना की गयी। इसके कार्यकाल में पंजाब में काश्तकारी अधिनियम पारित किया गया।
लार्ड मेयो Richard Bourke or The Earl of Mayo (1869-1872 ई.)
लार्ड मेयो के कार्यकाल में भारतीय सांख्यिकीय बोर्ड का गठन किया गया। मेयो के समय में ही सर्वप्रथम 1871 में भारत में जनगणना की शुरुआत हुई। मेयो ने कृषि और वाणिज्य के लिए एक पृथक विभाग की स्थापना की। अजमेर, राजस्थान में इसने मेयो कालेज (Mayo College, 1875) की भी स्थापना की। 1872 में अंडमान द्वीप के दौरे के दौरान शेर अली अफरीदी नमक एक कैदी ने लार्ड मेयो की हत्या कर दी।
लार्ड मेयो की मौत के बाद सर जॉन स्ट्रेची (फरवरी,1872 से फरवरी,1872) और द लॉर्ड नेपियर (फ़रवरी,1872 से मई,1872) तक भारत के कार्यवाहक वायसराय रहे।
लार्ड नार्थब्रुक Lord Northbrook (1872-1876 ई.)
Thomas Baring or 1st Earl of Northbrook
लार्ड नार्थब्रुक के समय में पंजाब में कूका आन्दोलन हुआ। नार्थब्रुक ने 1875 में बड़ौदा के शासक गायकवाड को पदच्युत कर दिया।
नार्थब्रुक के कार्यकाल में प्रिंस ऑफ़ वेल्स एडवर्ड तृतीय की भारत यात्रा 1875 में संपन्न हुई।
लार्ड लिटन Lord Lytton (1876-1880 ई.)
Robert Bulwer-Lytton, 1st Earl of Lytton
लार्ड लिटन के कार्यकाल में प्रथम दिल्ली दरबार का आयोजन किया गया और एक राज-अधिनियम पारित करके 1877 में ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया को ‘कैसर-ए-हिन्द’ की उपाधि से विभूषित किया गया। लिटन के कार्यकाल में 1878 में वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट (Vernacular Press Act) पारित किया गया, जिसके कारण कई स्थानीय भाषाओँ के समाचार पत्र आदि को ‘विद्रोहात्मक सामग्री’ के प्रकाशन का आरोप लगाकर बंद कर दिया गया। इसके समय में शस्त्र एक्ट 1878 पारित हुआ, जिसमे भारतीयों को शस्त्र रखने और बेचने से रोका गया।
लिटन जिस वर्ष भारत का वायसराय बनकर आया उसी साल 1876 में दक्षिण भारत में भयंकर अकाल पड़ा, तथा 1878 में स्ट्रेची के नेतृत्व में अकाल आयोग का गठन किया गया। लिटन ने सिविल सेवा में प्रवेश की उम्र 21 वर्ष से घटा कर 19 वर्ष कर दी। लिटन के कार्यकाल में द्वितीय आंग्ल-अफगान युद्ध (1878-1880) हुआ।
इन सबके बावजूद लिटन एक प्रख्यात लेखक और कवि था, जो अपनी रचनाएँ ओवेन मेरिडिथ (Owen Meredith) के नाम से लिखता था। इसकी प्रसिद्द कविता के रूप में कहानी ‘लूसिले (Lucile)’ है। लिटन के दामाद एडविन लुटियन (Edwin Lutyens), ने नई दिल्ली के निर्माण में प्रमुख भूमिका निभाई है।
लार्ड रिपन Lord Ripon (1880-1884 ई.)
George Robinson, 1st Marquess of Ripon
1881 में लार्ड रिपन के समय में प्रथम कारखाना अधिनियम पारित हुआ। 1882 में लार्ड रिपन ने वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट को रद्द कर दिया, जिस कारण इसे प्रेस का मुक्तिदाता कहा जाता है। रिपन के समय में 1882 में शिक्षा के क्षेत्र में सर विलियम हंटर की अध्यक्षता में हंटर आयोग (Hunter Commission) का गठन हुआ और 1882 में स्थानीय शासन प्रणाली की शुरुआत हुई। 1883 में इल्बर्ट बिल (Ilbert Bill) विवाद, रिपन के समय में ही पारित हुआ, जिसमे भारतियों को भी यूरोपीय कोर्ट में जज बनने का अधिकार दे दिया गया था।
लार्ड डफरिन Lord Dufferin (1884 – 1888 ई.)
Frederick Hamilton-Temple-Blackwood, 1st Marquess of Dufferin and Ava
लार्ड डफरिन के ही कार्यकाल में 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की गई। डफरिन के समय में तृतीय आंग्ल-बर्मा युद्द हुआ और बर्मा को भारत में मिला लिया गया। लार्ड डफरिन के समय में अफगानिस्तान की उअत्तरी सीमा का निर्धारण किया गया। इसके कार्यकाल में बंगाल (1885), अवध (1886) और पंजाब (1887) किराया अधिनियम पारित हुआ।
लार्ड लैंसडाउन Lord Lansdowne (1888 – 1893 ई.)
Henry Petty-Fitzmaurice, 5th Marquess of Lansdowne
1893 में लार्ड लैंसडाउन के कार्यकाल में भारत (अब पाकिस्तान, 2640 किमी.) तथा अफगानिस्तान के बीच सीमा रेखा का निर्धारण हुआ, जिसे डूरंड रेखा (Durand Line) के नाम से जाना जाता है। इस रेखा का निर्धारण ब्रिटिश अधिकारी सर मोर्टीमर डूरंड (Sir Mortimer Durand) और अफगान अमीर अब्दुर रहीम खान (Abdur Rahman Khan) के बीच हुआ। लार्ड लैंसडाउन के समय में 1891 में एज ऑफ़ कन्सेंट बिल (Age of Consent Act) पारित हुआ, जिसके अंतर्गत एक व्यक्ति के यौन कृत्यों के लिए सहमति की उम्र बढ़ा दी गयी, जिसमे लड़कियों की यौन सहमती की उम्र 10 वर्ष से बढाकर 12 वर्ष कर दी गयी। इससे कम उम्र में यौन सम्बन्ध बनाने पर इसे बलात्कार माना गया, चाहे वे विवाहित ही क्यों न हों। लैंसडाउन के समय में मणिपुर के टिकेन्द्रजीत के नेतृत्व में विद्रोह हुआ जिसे आसानी से दबा दिया गया।
लार्ड एल्गिन Lord Elgin (1894 – 1899 ई.)
Victor Bruce, 9th Earl of Elgin
लार्ड एल्गिन के कार्यकाल में भारत में क्रांतिकारियों की शुरुआत हुई, और पूना के चापेकर बंधुओं (Chapekar brothers) दामोदर हरी चापेकर, बालकृष्ण हरी चापेकर और वसुदेव हरी चापेकर ने ब्रिटिश प्लेग कमिश्नर, डब्ल्यू. सी. रैंड (W. C. Rand) को गोली मारकर भारत की प्रथम राजनीतिक हत्या की। लार्ड एल्गिन के समय में ही भारत में देशव्यापी अकाल पड़ा, जिसमे करीब 45 लाख लोगों की मौत हुई। एल्गिन ने हिन्दुकुश पर्वत के दक्षिण में चित्राल राज्य के विद्रोह को दबाया।
लार्ड कर्जन Lord Curzon (1899 – 1905 ई.)
George Curzon, 1st Marquess Curzon of Kedleston
लार्ड कर्जन के कार्यकाल में सर एण्ड्रयू फ़्रेजर की अध्यक्षता में एक पुलिस आयोग का गठन किया गया, इस आयोग की अनुशंसा पर प्रान्तीय पुलिस की स्थापना व केन्द्रीय गुप्तचर विभाग की स्थाना (C.I.D.) की भी स्थापना की गई। कर्जन के समय में उत्तरी पश्चिमी सीमावर्ती प्रान्त (North West Frontier Province) की स्थापना भी की गयी। शैक्षिक सुधारों के अन्तर्गत कर्ज़न ने 1902 ई. में सर टॉमस रैले (Sir Thomas Ralley) की अध्यक्षता में विश्वविद्यालय आयोग का गठन किया। कर्जन के समय में 1904 में प्राचीन स्मारक संरक्षण अधियम पारित हुआ, जिसके द्वारा भारत में पहली बार ऐतिहासिक इमारतों की सुरक्षा एवं मरम्मत की ओर ध्यान देने के लिए भारतीय पुरातत्त्व विभाग की स्थापना हुई। कर्ज़न ने 1901 ई. में सर कॉलिन स्कॉट मॉनक्रीफ (Sir Colin C. Scott-Moncrieff) की अध्यक्षता में एक सिंचाई आयोग का भी गठन किया।
कर्जन के समय में भारत में भयानक अकाल भी पड़ा, जिससे करीब 60-90 लाख लोगों के मरने का अनुमान लगाया गया। 1899-1990 ई. में पड़े अकाल व सूखे की स्थिति के विश्लेषण के लिए सर एण्टनी मैकडॉनल (Antony MacDonnell) की अध्यक्षता में एक अकाल आयोग का गठन किया गया।
लॉर्ड कर्ज़न के समय में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कार्य था – 1905 ई. में बंगाल का विभाजन, जिसके बाद भारत में क्रांतिकारी गतिविधियों का सूत्रपात हो गया।
1905 ई. में लॉर्ड कर्ज़न ने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया।
लार्ड मिन्टों द्वितीय Lord Minto II (1905 – 1910 ई.)
Gilbert Elliot-Murray-Kynynmound, 4th Earl of Minto
लार्ड मिंटो के कार्यकाल में 1906 में मुस्लिम लीग (All-India Muslim League) की स्थापना हुई। इसके कार्यकाल में 1906 में कांग्रेस का सूरत का अधिवेशन हुआ जिसमे कांग्रेस का विभाजन हो गया, जिसका 1916 के लखनऊ अधिवेशन में पुनः एकीकरण हुआ। लॉर्ड मिण्टो के समय में मॉर्ले-मिंटो सुधार अधिनियम (Morley-Minto Reforms, 1909 ई.) पारित हुआ, जिसमे सरकार में भारतीय प्रतिनिधित्व में मामूली बढ़ोत्तरी हुई और हिन्दुओं और मुसलमानों के लिए अलग निर्वाचक मण्डल बनाया गया। इसके कार्यकाल में खुदीराम बोस (Khudiram Bose) को फांसी दे दी गयी, जिसने प्रफुल्लकुमार चाकी (Prafulla Chaki) के साथ मिलकर कलकत्ता के मॅजिस्ट्रेट किंग्जफोर्ड (Kingsford) की बग्घी पर बम फेंका था। मिंटो के ही कार्यकाल 1908 में बालगंगाधर तिलक को 6 वर्ष की सजा सुनाई गयी थी, क्योंकि तिलक ने क्रान्तिकारी प्रफुल्ल चाकी और खुदीराम बोस के बम हमले का समर्थन किया था, और इन्हें बर्मा की जेल में भेज दिया गया।
लार्ड मिंटो के समय में अंग्रेजों ने बांटो और राज करो की नीति औपचारिक रूप से अपना ली थी।
लॉर्ड हार्डिंग द्वितीय Lord Hardinge II (1910 – 1916 ई.)
Charles Hardinge, 1st Baron Hardinge of Penshurst
लार्ड हार्डिंग के समय सन 1911 में जॉर्ज पंचम के आगमन पर दिल्ली दरबार का आयोजन किया गया, साथ ही बंगाल विभाजन को रद्द कर दिया गया। 1911 में ही बंगाल से अलग करके बिहार और उड़ीसा नाम से नए राज्यों का निर्माण हुआ।
हार्डिंग के कार्यकाल में भारत की राजधानी को कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित कर दिया गया। हार्डिंग के समय में ही सन 1914 में प्रथम विश्व युद्ध प्रारंभ हुआ, जिसके लिए वह भारत का समर्थन पाने में सफल रहा। हार्डिंग के समय में 1913 में फ़िरोजशाह मेहता ने बाम्बे क्रानिकल एवं गणेश शंकर विद्यार्थी ने प्रताप का प्रकाशन किया। हार्डिंग के कार्यकाल में तिलक ने अप्रैल 1915 में और एनी बेसेंट ने सितम्बर 1915 में होमरूल लीग की स्थापना की। 1916 ई. में पंडित महामना मदन मोहन मालवीय ने बनारस हिन्दू की स्थापना की और लॉर्ड हार्डिंग को बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय का कुलपति भी नियुक्त किया गया।
लार्ड चेम्सफोर्ड Lord Chelmsford (1916 – 1921 ई.)
Frederic Thesiger, 1st Viscount Chelmsford
इसके कार्यकाल में तिलक और एनी बेसेंट ने अपने होमरूल लीग के आन्दोलन की शुरुआत की। 1916 में कांग्रेस और मुस्लिम लीग में एक समझौता हुआ जिसे लखनऊ पैक्ट के नाम से जाना जाता है, जिसके अंतर्गत मुसलमानों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्रों तथा जिन प्रान्तों में वे अल्पसंख्यक थे, वहां पर उन्हें अधिक प्रतिनिधित्व देने की वयवस्था की गयी। इसके समय में ही भारत में शौकत अली, मुहम्मद अली और मौलाना अबुल कलम आजाद द्वारा खिलाफत आन्दोलन (khilafat movement) की भी शुरुआत की गयी, जिसे बाद में गाँधी द्वारा चलाये गए असहयोग आन्दोलन (noncooperation Mmovement) का भी समर्थन भी मिला। 1920 में ही मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल कालेज (सैयद अहमद खान द्वारा 1875 में स्थापित) अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय बना।
चेम्सफोर्ड के कार्यकाल में, सर सिडनी रौलट की अध्यक्षता में एक कमेटी नियुक्त करके रौलेट एक्ट (Rowlatt Acts) मार्च 1919 में पारित किया गया, जिससे मजिस्ट्रेटों को यह अधिकार मिल गया कि वह किसी भी संदेहास्पद स्थिति वाले व्यक्ति को गिरफ्तार करके उस पर मुकदमा चला सकता था।
चेम्सफोर्ड के समय में ही 1919 में जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड हुआ। इसके समय में भारत सरकार अधिनियम, 1919 ई. व मॉण्टेग्यू-चेम्सफ़ोर्ड सुधार (Montagu-Chelmsford reforms) लाया गया। 1916 ई. में पूना में महिला विश्वविद्यालय की स्थापना तथा 1917 ई. में शिक्षा पर सैडलर आयोग (Sadler Commission) की नियुक्ति लॉर्ड चेम्सफ़ोर्ड के समय में ही की गई।
लार्ड रीडिंग Lord Reading (1921 – 1926 ई.)
Rufus Isaacs, 1st Marquess of Reading
लॉर्ड रीडिंग के समय में गाँधी जी का भारतीय राजनीति में पूर्णरूप से प्रवेश हो चुका था। लार्ड रीडिंग के कार्यकाल में 1919 का रौलेट एक्ट वापस ले लिया गया। रीडिंग के समय में ही केरल में 1921 में मोपला विद्रोह (Moplah Rebellion) हुआ, जो खिलाफत आन्दोलन का ही एक रूप था, जिसके नेता वरीयनकुन्नाथ कुंजअहमद हाजी, सीथी कोया थंगल और अली मुस्लियर थे। लार्ड रीडिंग के ही कार्यकाल में 5 फरवरी 1922 को चौरी-चौरा की घटना हुई, जिसकी वजह से गाँधी जी ने अपना असहयोग आन्दोलन वापस ले लिया।
लार्ड रीडिंग के समय में 1921 में प्रिन्स ऑफ़ वेल्स (Prince of Wales) का भारत आगमन भी हुआ। जिसका कांग्रेस द्वारा बहिष्कार किया गया और पुरे भारत में भूख हड़ताल का भी आयोजन किया गया। लार्ड रीडिंग के कार्यकाल एम. एन. रॉय (Manabendra Nath Roy) द्वारा दिसम्बर 1925 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (Communist Party of India, CPI) का भी गठन किया गया। 1922 में चितरंजन दास, नरसिंह चिंतामन केलकर और मोतीलाल नेहरू ने मिलकर स्वराज पार्टी (Congress-Khilafat Swarajaya Party) का गठन किया। लार्ड रीडिंग के कार्यकाल में दिल्ली और नागपुर विश्वविद्यालयों की भी स्थापना हुई।
लार्ड इरविन Lord Irwin (1926 – 1931 ई.)
Edward Frederick Lindley Wood, 1st Earl of Halifax
इरविन के कार्यकाल के दौरान गाँधी जी ने 12 मार्च, 1930 ई. में सविनय अवज्ञा आन्दोलन (Civil Disobedience Movement) की शुरुआत की। इरविन के कार्यकाल में 1919 ई. के गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट की समीक्षा करने के लिए, 1928 में साइमन कमीशन (Simon Commission) नियुक्त किया गया, जिसके सभी सदस्य अंग्रेज होने के कारण इसका विरोध किया गया। साइमन कमीशन के अध्यक्ष सर जॉन साइमन (Sir John Simon) थे, और इसके एक सदस्य क्लीमेंट एटली (Clement Attlee) भी थे, जो बाद में इंग्लैंड के प्रधानमंत्री बने, जिनके कार्यकाल में 1947 में भारत और पाकिस्तान को स्वतंत्रता मिली।
लार्ड इरविन के कार्यकाल में मोतीलाल नेहरु ने नेहरु रिपोर्ट पेश की, जिसमे भारत को अधिशसी राज्य (dominion status) का दर्जा देने की बात कही गयी। कांग्रेस ने 1930 ई. में महात्मा गांधी के नेतृत्व में सत्याग्रह आन्दोलन शुरू किया और अपने कुछ अनुयायियों के साथ दांडी यात्रा करके नमक कानून तोडा। इरविन के समय में लंदन में ब्रिटिश सरकार और गाँधी जी के बीच प्रथम गोलमेज सम्मलेन (Round Table Conferences.) हुआ। मार्च 1931 में गाँधी और इरविन के बीच गाँधी-इरविन समझौता (Gandhi-Irwin Pact) हुआ, जिसके बाद गाँधी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन (Civil Disobedience Movement) वापस ले लिया।
इरविन के कार्यकाल में 1929 में, पब्लिक सेफ्टी बिल और लाला लाजपत रॉय की हत्या के विरोध में दिल्ली के असेम्बली हॉल में भगत सिंह और उनके साथियों ने बम फेंका। लार्ड इरविन के कार्यकाल में ही 1929 में प्रसिद्ध लाहौर षड्यंत्र एवं स्वतंत्रता सेनानी जतिनदास की 64 दिन की भूख हड़ताल के बाद जेल में मृत्यु हो गयी थी। इरविन ने खनन और भू-विज्ञान के विकास के लिए इंडियन स्कूल ऑफ़ माइंस, धनबाद (Indian School of Mines Dhanbad) की स्थापना भी की।
लॉर्ड विलिंगडन Lord Willingdon (1931 – 1936 ई.)
Freeman Freeman-Thomas, 1st Marquess of Willingdon
लॉर्ड विलिंगडन के कार्यकाल में 1931 में. द्वितीय गोलमेज सम्मेलन और 1932 में तृतीय गोलमेज सम्मेलन का आयोजन लन्दन में हुआ। जिसमे भारत का प्रतिनिधित्व कांग्रेस की तरफ से गाँधी जी ने किया था। विलिंगडन के समय में 1932 में देहरादून में भारतीय सेना अकादमी (Indian Military Academy, IMA) की स्थापना की गयी। 1934 में गाँधी जी ने दोबारा सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू किया।
1935 में गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट पारित किया गया, एवं 1935 में ही बर्मा को भारत से अलग कर दिया गया। विलिंगडन के समय में ही भारतीय किसान सभा की भी स्थापना की गयी।
महात्मा गाँधी एवं अम्बेडकर के बीच 24 सितम्बर, 1932 ई. को पूना समझौता हुआ।
लार्ड लिनलिथगो Lord Linlithgow (1938-1943 ई.)
Victor Hope, 2nd Marquess of Linlithgow
1939 में सुभाष चन्द्र बोस ने कांग्रेस छोड़कर फॉरवर्ड ब्लाक नाम की अलग पार्टी का गठन कर लिया, क्योंकि कांग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में सुभाष चन्द्र बोस के दोबारा अध्यक्ष चुने जाने का गाँधी जी ने विरोध किया था। 22 दिसम्बर, 1939 में भारतीयों को द्वितीय विश्व युद्ध में सम्मिलित किये जाने के विरोध में प्रांतीय कांग्रेसी मंत्रिमंडलों ने इस्तीफा दे दिया, इस दिन को मुस्लिम लीग ने मुक्ति दिवस के रूप में मनाया। लार्ड लिनलिथगो के समय में ही पहली बार मुस्लिम लीग द्वारा 1940 में पाकिस्तान की मांग की गयी। 1942 ई. में क्रिप्स मिशन (cripps mission) भारत आया।
1940 में कांग्रेस ने व्यक्तिगत असहयोग आन्दोलन प्रारंभ किया। लार्ड लिनलिथगो के कार्यकाल में गाँधी जी ने करो या मरो का नारा देते हुए भारत छोड़ो आन्दोलन की शुरुआत की।
लार्ड वेवेल Lord Wavell (1943 – 1947 ई.)
Archibald Wavell, 1st Earl Wavell
1945 में लार्ड वेवेल ने शिमला में एक समझौते का आयोजन किया, जिसे शिमला समझौता या वेवेल प्लान के नाम से जाना गया। वेवेल के समय में 1946 में नौसेना का विद्रोह हुआ था। 1946 में अंतरिम सरकार का गठन किया गया।
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली ने 20 फरवरी, 1947 को भारत को स्वतंत्र करने की घोषणा कर दी।
लार्ड माउंटबेटेन Lord Mountbatten (1947 – 1948 ई.)
Louis Mountbatten, 1st Earl Mountbatten of Burma
लॉर्ड माउंटबेटन भारत का अंतिम वायसराय था। लॉर्ड माउंटबेटन ने 3 जून, 1947 को भारत के विभाजन की घोषणा की। 4 जुलाई, 1947 को ब्रिटिश संसद में भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम प्रस्तुत किया गया, जिसे 18 जुलाई, 1947 को पारित करके भारत की स्वतंत्रता की घोषणा कर दी गयी। भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम द्वारा भारत को विभाजन करके भारत और पाकिस्तान नाम के दो राज्यों में बाँट दिया गया।
15 अगस्त, 1947 को भारत स्वतंत्र हो गया।
1979 में आइरिश रिपब्लिकन आर्मी के आतंकवादियों ने माउण्ट बेटेन के नाव में बम लगाकर उनकी हत्या कर दी।
चक्रवर्ती राजगोपालाचारी Chakravarti Rajagopalachari
भारत की स्वतंत्रता के बाद 1948 में चक्रवर्ती राजगोपालाचारी को स्वतंत्र भारत का प्रथम गवर्नर जनरल नियुक्त किया गया।