जिन्ना की चौहद सूत्रीय मांगे Fourteen Points of Jinnah
नेहरु रिपोर्ट में जिन्ना द्वारा प्रस्तुत संशोधन प्रस्ताव
दिसम्बर 1928 में नेहरू रिपोर्ट की समीक्षा के लिये एक सर्वदलीय सम्मेलन का आयोजन कलकत्ता में किया गया। इस सम्मेलन में मुस्लिम लीग की ओर से मुहम्मद अली जिन्ना ने रिपोर्ट के संबंध में तीन संशोधन प्रस्ताव प्रस्तुत किये-
- केंद्रीय विधान मंडल में एक-तिहाई स्थान मुसलमानों के लिये आरक्षित किये जायें।
- वयस्क मताधिकार की व्यवस्था होने तक पंजाब एवं बंगाल के विधानमंडलों में जनसंख्या के अनुपात में मुसलमानों के लिये सीटें आरक्षित की जायें।
- प्रांतों के लिये अवशिष्ट शक्तियों की व्यवस्था की जाये।
मतदान होने पर सम्मेलन में जिन्ना के ये प्रस्ताव ठुकरा दिये गय। परिणामस्वरूप मुस्लिम लीग सर्वदलीय सम्मेलन में अलग हो गई तथा जिन्ना, मुहम्मद शफी एवं आगा खां के धड़े से मिल गये। इसके पश्चात मार्च 1929 में जिन्ना ने अलग से चौदह सूत्रीय मांगें पेश कीं, जिसमें मूलतः नेहरु रिपोर्ट के बारे में उन्होंने अपनी आपत्तियां दुहरायीं।
जिन्ना की चौहद सूत्रीय मांगे-
- संविधान का भावी स्वरूप संघीय हो तथा प्रांतों की अवशिष्ट शक्तियां प्रदान की जायें।
- देश के सभी विधानमण्डलों तथा सभी प्रांतों की अन्य निर्वाचित संस्थाओं में अल्पसंख्यकों को पर्याप्त एवं प्रभावी नियंत्रण दिया जाये।
- सभी प्रांतों को समान स्वायत्तता प्रदान की जाये।
- साम्प्रदायिक समूहों का निर्वाचन, पृथक निर्वाचन पद्धति से किया जाये।
- केंद्रीय विधानमंडल में मुसलमानों के लिये एक-तिहाई स्थान आरक्षित किये जाय।
- सभी सम्प्रदायों को धर्म, पूजा, उपासना, विश्वास, प्रचार एवं शिक्षा की पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान की जाये।
- भविष्य में किसी प्रदेश के गठन या विभाजन में बंगाल, पंजाब एवं उत्तर-पश्चिमी सीमांत प्रांत की अक्षुणता का पूर्ण ध्यान रखा जाये।
- सिन्ध को बम्बई से पृथक कर नया प्रांत बनाया जाये।
- किसी निर्वाचित निकाय या विधानमंडल में किसी सम्प्रदाय से संबंधित कोई विधेयक तभी पारित किया जाए, जब उस संप्रदाय के तिन-चौथाई सदस्य उसका समर्थन करें।
- सभी सरकारी सेवाओं में योग्यता के आधार पर मुसलमानों को पर्याप्त अवसर दिया जाये।
- अन्य प्रांतों की तरह बलूचिस्तान एवं उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रांत में भी सुधार कार्यक्रम प्रारंभ किये जायें।
- सभी प्रांतीय विधानमण्डलों में एक-तिहाई स्थान मुसलमानों के लिये आरक्षित किये जायें।
- संविधान में मुस्लिम धर्म, संस्कृति, भाषा, वैयक्तिक विधि तथा मुस्लिम धार्मिक संस्थाओं के संरक्षण एवं अनुदान के लिए आवश्यक प्रावधान किए जाएं।
- केंद्रीय विधानमण्डल द्वारा भारतीय संघ के सभी राज्यों के सहमति के बिना कोई संवैधानिक संशोधन न किया जाये।
नेहरू रिपोर्ट की संस्तुतियों से न केवल हिन्दू मह्रासभा, लीग एवं सिख समुदाय के लोग अप्रसन्न थे बल्कि जवाहरलाल नेहरू एवं सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व वाला कांग्रेस का युवा वर्ग भी इससे खिन्न था। कांग्रेस के युवा वर्ग का मानना था कि रिपोर्ट में डोमिनियम स्टेट्स की मांग स्वतंत्रता प्राप्ति की दिशा में एक नकारात्मक कदम है। इसीलिये सर्वदलीय सम्मेलन में इन्होंने रिपोर्ट के इस प्रावधान पर तीव्र आपत्ति जताई। जवाहरलाल नेहरू एवं सुभाष चंद बोस ने कांग्रेस के इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया तथा संयुक्त रूप से ‘भारतीय स्वतंत्रता लीग‘ का गठन कर लिया।