वसा Fats
वसा शरीर को ऊर्जा प्रदान करने वाला प्रमुख खाद्य पदार्थ होता है। वसा के अणु ग्लिसरॉल तथा वसा अम्ल के संयोग से बनते हैं। कार्बोहाइड्रेट की तरह वसा भी कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के यौगिक हैं परन्तु इसमें कार्बोहाइड्रेट की तुलना में ऑक्सीजन की मात्रा कम होती है। यह जल में पूर्णतः अघुलनशील होता है लेकिन यह कार्बनिक घोलकों में घुलनशील होता है। क्षार द्वारा इसका पायसीकरण (Emulsification) हो सकता है।
वसा के प्रकार: वसा को उनके स्रोत के आधार पर दो प्रमुख वर्गों में बाँटा जा सकता है-
- जन्तु वसा तथा 2. वनस्पति वसा
जन्तु वसा दूध, पनीर, अण्डा तथा मछली में पाया जाता है जबकि वनस्पति वसा वनस्पति तेलों में उपलब्ध होता है। वनस्पति तेल अखरोट, बादाम, मूंगफली, नारियल, सरसों, तिल, सूरजमुखी इत्यादि से प्राप्त होते हैं।
वसा सामान्यतः 20°C ताप पर ठोस अवस्था में होते हैं, परन्तु यदि वे इस ताप पर द्रव अवस्था में हों, तो उन्हें तेल (Oil) कहते हैं।
वसा अम्ल दो प्रकार के होते हैं- संतृप्त तथा असंतृप्त। असंतृप्त वसा अम्ल, मछली के तेल तथा वनस्पति तेलों में मिलते हैं। नारियल का तेल एवं ताड़ का तेल (Palm oil) संतृप्त वनस्पति तेलों के उदाहरण हैं। अधिकतर असंतृप्त वसा जन्तु वसा होते हैं। यह सामान्य ताप पर ठोस होता है। जैसे- मक्खन (Butter)। एक ग्राम वसा के पूर्ण ऑक्सीकरण से 9.3 k cal ऊर्जा मुक्त होती है। सामान्यतः एक वयस्क व्यक्ति को 20-30% ऊर्जा वसा से प्राप्त होनी चाहिए। मनुष्य के आहार में मक्खन तथा घी जैसे संतृप्त वसा की मात्रा कम होनी चाहिए क्योंकि संतृप्त वसा आसानी से कोलेस्टेरॉल में परिवर्तित हो जाती है। इससे धमनी कठिन्य (Arteriosclerosis), उच्च रक्तचाप, तथा हृदय सम्बन्धी विकार उत्पन्न हो जाते हैं।
वसा के कार्य-
(a) वसा ठोस रूप में शरीर को ऊर्जा प्रदान करती है।
(b) यह त्वचा के नीचे जमा होकर शरीर के ताप को बाहर निकलने से रोकती है।
(c) यह खाद्य पदार्थ में स्वाद उत्पन्न करती है तथा आहार को रुचिकर बनाती है।
(d) यह शरीर के विभिन्न अंगों की चोटों से बचाती है।
(e) यह प्रोटीन के स्थान पर शरीर को ऊर्जा प्रदान करती है।
वसा के स्रोत: वसा का मुख्य स्रोत दूध, माँस, मछली, मक्खन, मूंगफली का तेल, घी आदि है।
वसा की कमी से होने वाले विकार: मानव शरीर में वसा की कमी से त्वचा रूखी हो जाती है, वजन में ह्रास होता है तथा शरीर का विकास अवरुद्ध हो जाता है। वसा की अधिकता से शरीर स्थूल हो जाता है, जिससे हृदय सम्बन्धी रोग, उच्च रक्तचाप इत्यादि हो जाता है।