विद्युत धारा के प्रभाव Effects of Electric Current
प्रवहमान विद्युत् धारा के मुख्यतः निम्नलिखित प्रभाव हैं- चुम्बकीय प्रभाव, ऊष्मीय प्रभाव, रासायनिक प्रभाव एवं प्रकाशीय प्रभाव।
चुम्बकीय प्रभाव
जब भी किसी चालक से विद्युत् धारा का प्रवाह होता है, तो चालक के चारों ओर एक चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है। सन् 1812 ई० में कोपेनहेगन निवासी ऑर्स्टेड (Oersted) ने एक प्रयोग के द्वारा पता लगाया कि यदि किसी धारावाही तार के समीप चुम्बकीय सूई रखी जाए, तो यह विचलित हो जाती है। चूंकि चुम्बकीय सूई केवल चुम्बकीय क्षेत्र में ही विचलित होती है, अतः स्पष्ट है कि विद्युत्-धारा चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करती है। इसे ही विद्युत् का चुम्बकीय प्रभाव कहते हैं।
चुम्बकत्व की दिशा संबंधी नियम
चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा मैक्सवेल के कॉर्क-स्क्रू नियम, पलेमिंग के दाहिने हाथ के नियम आदि से दी जाती है।
मैक्सवेल का कॉक-स्क्रू नियम Maxwell’s Cork-screw Law
यदि एक काग पेंच की हाथ में ले कर इस तरह से घुमाया जाए कि वह धारा की दिशा में आगे की ओर बढ़े, तो अँगूठे की गति की दिशा चुम्बकीय बल रेखाओं की धनात्मक दिशा बताती है।
फ्लेमिंग के दाहिने हाथ का नियम Fleming’s Right Hand Rule
जिस तार से होकर धारा बहती है उस तार के ऊपर यदि दाहिने हाथ को रखकर अँगूठे तथा पहली दो ऊँगलियों को इस तरह फैलाया जाय कि वे एक-दूसरे के समकोणिक दिशा में हों और यदि तर्जनी (fore finger) धारा की दिशा तथा बीच वाली ऊँगली सूई की विक्षेपित दिशा बतावें, तो अँगूठे की दिशा चुम्बकीय बल की दिशा बताती है।
लॉरेन्ज बल Lorentz Force
जब किसी चुम्बकीय क्षेत्र में कोई आवेशित कण गति करता है, तो उस पर एक बल आरोपित होता हैं, जिसे लॉरेन्ज बल कहते हैं। यह बल कण के आवेश, उसकी चाल तथा चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता के अनुक्रमानुपाती होता है।
इस बल की दिशा कण की गति के लम्बवत् तथा चुम्बकीय क्षेत्र के लम्बवत् होती है। बल का परिमाण महत्तम तब होता है, जब कण चुम्बकीय क्षेत्र के लम्बवत् गति करता है और यह बल न्यूनतम (शून्य) तब होता है जब कण चुम्बकीय क्षेत्र के अनुदिश गति करता है।
बल का व्यंजक-
[latex]F=qvB\sin { \theta }[/latex] [जहाँ q = कण का आवेश, v = कण की चाल, B = चुम्बकीय क्षेत्र, θ = कण के वेग v एवं चुम्बकीय क्षेत्र B के मध्य का कोण]
बल F की दिशा फलेमिंग के बाये हाथ के नियम (Fleming’s Left Hand Rule) से भी ज्ञात की जा सकती है।
विद्युत-चुम्बक Electromagnet
यदि किसी बेलनाकार वस्तु के चारों ओर विद्युत्रोधी तार (insulated wire) को लपेट दिया जाए, तो इसे परिनालिका (solenoid) कहते हैं। बेलनाकार वस्तु को उसका क्रोड़ (core) कहते हैं। नर्म लोहे के क्रोड़ वाली परिनालिका विद्युत् चुम्बक कहलाती है। इनका उपयोग डायनमो, ट्रांसफॉर्मर, विद्युत् घंटी, तार-संचार, टेलीफोन, अस्पताल आदि में होता है। नर्म लोहा से अस्थायी चुम्बक बनता है। विद्युत् चुम्बक द्वारा उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता निम्न बातों पर निर्भर करती है-
- परिनालिका के फेरों (turns) की संख्या: यदि फेरों की संख्या अधिक है, तो चुम्बकीय क्षेत्र भी तीव्र होगा।
- क्रोड़ पदार्थ की प्रकृति: यदि क्रोड़ नर्म लोहे का है, तो चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता अधिक होती है।
- धारा का परिमाण: धारा का परिमाण जितना अधिक होगा, क्षेत्र उतना तीव्र होगा।
एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र में स्थित धारावाही चालक पर बल-यदि L लम्बाई के चालक में I धारा प्रवाहित हो रही हो तथा वह B चुम्बकीय क्षेत्र में रखा गया हो, तो उस पर लगने वाला बल-
F= BIL sine θ [जहाँ θ = धारा की दिशा तथा चुम्बकीय क्षेत्र के बीच बनने वाला कोण ।]
यदि θ = 0° तो sin θ = sin 0° = 0 अत: F= 0
अर्थात् यदि धारावाही चालक तार चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा में हो, तो उस पर कोई बल नहीं लगेगा।
यदि θ = 90° तब sin 90° = 1
अर्थात् यदि धारावाही चालक तार चुम्बकीय क्षेत्र के लम्बवत् दिशा में हो, तो उस पर लगने वाला बल महत्तम होगा।
चुम्बकीय फ्लक्स Magnetic Flux
चुम्बकीय क्षेत्र में रखी हुई किसी सतह के लम्बवत् गुजरने वाली कुल चुम्बकीय रेखाओं की संख्या को उस सतह का चुम्बकीय फ्लक्स कहते हैं। चुम्बकीय फ्लक्स की SI इकाई वेबर (wb) है।
चुम्बकीय क्षेत्र Magnetic Field
चुम्बकीय क्षेत्र की परिभाषा किसी बिन्दु पर चुम्बकीय फ्लक्स के पद में भी दी जाती है यथा प्रति इकाई क्षेत्रफल से लम्बवत् गुजरने वाली चुम्बकीय फ्लक्स उस बिन्दु का चुम्बकीय क्षेत्र कहलाता है।
चुम्बकीय क्षेत्र का मात्रक Unit of Strength of Magnetic Field
चुम्बकीय क्षेत्र का SI मात्रक टेसला (T) होता है।
1 टेसला – 1 वेबर / मीटर2
चुम्बकीय क्षेत्र को गॉस में भी व्यक्त किया जाता है।
(1 गॉस = 10-4 टेसला)
SI unit of strength of mag. field.
1 Tesla (T) = 1 NA-1m-1
= 1 wbm-2 है
= 104 Gauss
सरलरेखी धारावाही चालक के कारण चुम्बकीय क्षेत्र: एक धारावाही चालक अपने चारों ओर एक क्षेत्र उत्पन्न कर लेता है। एक लम्बे एवं सीधे तार में, जिसमें I धारा प्रवाहित हो रही है, r दूरी पर स्थित बिन्दु पर चुम्बकीय क्षेत्र (B) का मान निम्नलिखित सूत्र से प्राप्त होता है–
[latex]B=2\times { 10 }^{ -7 }\frac { I }{ r }[/latex] न्यूटन/एम्पीयर मीटर
धारामापी Galvanometer
विद्युत् परिपथ में विद्युत् धारा की उपस्थिति बताने वाले यंत्र को धारमापी कहते हैं। इसमें एक कुंडली होती है, जो चुम्बकीय ध्रुव खंडों के मध्य स्थित होती है। कुंडली से एक संकेतक जुड़ा रहता है, जो एक अर्द्धवृत्ताकार स्केल पर घूमकर धारा की उपस्थिति बताता है। इस यंत्र से 10-6 एम्पियर तक की विद्युत् धारा को मापा जा सकता है।
शंट Shunt
शंट एक अत्यन्त ही कम प्रतिरोध वाला तार होता है। शंट उच्च धाराओं से धारामापी की रक्षा करता है, क्योंकि यह मुख्य धारा का अधिकांश भाग अपने अन्दर होकर प्रवाहित कर दता है। शंट का प्रतिरोध कम होने से शंटयुक्त धारामापी का कुल प्रतिरोध भी बहुत कम होता जाता है।
आमीटर Ammeter
धारामापी के समानान्तर क्रम में शंट लगाकर आमीटर बनाया जाता है। इसकी सहायता से विद्युत् धारा का मान एम्पियर में ज्ञात किया जाता है। एक आदर्श आमीटर का प्रतिरोध शून्य होना चाहिए। आमीटर को विद्युत्-परिपथ के श्रेणीक्रम में लगाया जाता है।
वोल्टमीटर Voltmeter
धारामापी के श्रेणीक्रम में एक उच्च प्रतिरोध लगाकर वोल्टमीटर बनाया जाता है। इसकी सहायता से दो बिन्दुओं के बीच विभवान्तर ज्ञात किया जाता है। इसकी उन दो बिन्दुओं के बीच समानान्तर क्रम में जोड़ते हैं, जिनके बीच विभवान्तर ज्ञात करना होता है। वोल्टमीटर का प्रतिरोध बहुत अधिक होता है। एक आदर्श वोल्टमीटर का प्रतिरोध अनन्त होना चाहिए।
विद्युत् चुम्बकीय प्रेरण Electromagnetic Induction
यदि किसी बंद परिपथ में गुजरने वाले चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन कर दिया जाय, तो परिपथ में विद्युत् धारा उत्पन्न हो जाती है, विद्युत् धारा उत्पन्न होने की इस घटना को विद्युत् चुम्बकीय प्रेरण कहते हैं। चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन से उत्पन्न विद्युत् धारा को प्रेरित विद्युत् धारा (Induced current) तथा विद्युत वाहक बल (e.m.f.) को प्रेरित विद्युत वाहक बल (Induced e.m.f) कहते हैं। परिपथ में प्रेरित विद्युत् धारा का अस्तित्व तब तक रहता है, जब तक फ्लक्स परिवर्तन होता है। विद्युत् चुम्बकीय प्रेरण का उपयोग हृदय के लिए कृत्रिम पेसमेकर, डायनमो, ट्रांसफॉर्मर आदि बनाने में किया जाता है।
लेंज का नियम Lenz’s Law
प्रेरित विद्युत् वाहक बल की दिशा सदैव ऐसी होती है कि वह उस कारण का विरोध करती है, जिससे इसकी उत्पत्ति हुई है।
स्व-प्रेरण Self Induction
ऐसी घटना जिसमें स्वयं की धारा से उत्पन्न पलक्स में परिवर्तन होने से किसी परिपथ में प्रेरित विद्युत् वाहक बल उत्पन्न हो जाता है, उसे स्वप्रेरण कहते हैं। स्व-प्रेरण को स्वप्रेरण गुणांक (स्व-प्रेरकत्व) द्वारा मापते हैं। इसका मात्रक हेनरी (Henry–H) होता हैI
नोट: किसी कुंडली से सम्बद्ध फ्लक्स उसमें प्रवाहित धारा के अनुक्रमानुपाती होता है।
अन्योन्य प्रेरण Mutual Induction
एक कुंडली में धारा परिवर्तन करके दूसरी कुंडली में प्रेरित विद्युत् वाहक बल उत्पन्न करने की घटना को अन्योन्य प्रेरण कहते हैं।
अन्योन्य प्रेरण गुणांक Coefficient of Mutal Induction
दो कुंडलियों के मध्य अन्योन्य प्रेरण गुणांक, संख्यात्मक दृष्टि से एक कुंडली में उत्पन्न उस प्रेरित विद्युत् वाहक बल के बराबर होता है, जो दूसरी कुंडली में एकांक धारा परिवर्तन की दर के कारण उत्पन्न होता है। अन्योन्य प्रेरण गुणांक या अन्योन्य प्रेरकत्व का मात्रक भी हेनरी होता है। फैराडे के विद्युत्-चुम्बकीय प्रेरण का नियम (Faraday’s Laws of Electromagnetic Induction)
प्रथम नियम: जब किसी कुंडली से सम्बद्ध चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन होता है, तो उस कुंडली में एक प्रेरित विद्युत् वाहक बल उत्पन्न हो जाता है।
द्वितीय नियम: प्रेरित विद्युत् वाहक बल चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन की दर के अनुक्रमानुपाती होता है।
प्रेरित वि० वा० ब० की दिशा ऐसी होती है कि वह अपने उत्पत्ति के मूल कारण का विरोध करता है।
प्रेरित विद्युत् वाहक बल (Induced e.m.f.): चुम्बकीय क्षेत्र में गतिशील चालक के सिरों पर विद्युत् वाहक बल उत्पन्न हो जाता है।
प्रेरित वि० वा० बल का SI मात्रक वोल्ट होता है।
रासायनिक प्रभाव
शुद्ध जल विद्युत् का कुचालक होता है, लेकिन जब जल में किसी धातु के लवण, अम्ल अथवा क्षार घुले रहते हैं, तो ऐसा घोल विद्युत् का सुचालक हो जाता है। ऐसे घोल जिससे विद्युत् धारा गुजर सकती है, विद्युत अपघट्य (Electrolyte) कहलाता है। जब किसी लवण, अम्ल अथवा क्षार घुले जलीय घोल में विद्युत् धारा प्रवाहित की जाती है, तो उसका विद्युत् अपघटन (Electrolysis) होता है, अर्थात् उस विलियन का धनात्मक व ऋणात्मक आयनों में अपघटन (Decomposition) हो जाता है। इस घटना को विद्युत् धारा का रासायनिक प्रभाव कहते हैं। जिस उपकरण में घोल का विद्युत् अपघटन होता है, उसे वोल्टामीटर (voltameter) कहते हैं।
धातु के दो चालक, जो वोल्टामीटर में धारा के प्रवेश (entrance) और निर्गमन (exit) के लिए लगे रहते है, इलेक्ट्रोड (Electrode) कहलाते हैं। जिस इलेक्ट्रोड होकर धारा वोल्टामीटर में प्रवेश करती है, उसे एनोड (Anode) तथा जिससे होकर धारा बाहर निकलती है, उसे कैथोड (Cathode) कहते हैं। अर्थात् वोल्टामीटर के धन इलेक्ट्रोड को एनोड व ऋण इलेक्ट्रोड को कैथोड कहते है। जब विद्युत् अपघट्य में धारा प्रवाहित की जाती है, तो धनायन (Cation) कैथोड की ओर तथा ऋणायन (Anion) एनोड की ओर चलने लगते हैं और उन पर जाकर जमा हो जाते है।
संचायक सेल या द्वितीयक सेल Accumulator or secondary Cell
संचायक सेल में विद्युत् ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा के रूप में जमा किया जाता है और जब सेल को किसी परिपथ से जोड़ दिया जाता है, तब सेल के भीतर एकत्रित रासायनिक ऊर्जा विद्युत् ऊर्जा में धीरे-धीरे परिवर्तित होने लगती है। संचायक सेल दो प्रकार के होते हैं- (i) सीसा संचायक सेल (Lead accumulator cell) (ii) क्षारीय संचायक सेल (Alkaline accumulator cell)
सीसा संचायक सेल Lead Accurnalator Cell
इसमें सीसे की दो पट्टिकाएँ होती हैं। पट्टिकाएँ तनु गंधकाम्ल में डुबी रहती हैं। विद्युत् धारा प्रवाहित करने यानी आवेशन करने पर पानी का विघटन होता है, जिसके कारण हाइड्रोजन कैथोड पर और ऑक्सीजन एनोड पर जमा होता है। ऑक्सीजन ऐनोड पर के सीसे से मिलकर लेड पेरॉक्साइड बनाता है, जो गहरे भूरे रंग का होता है। कुछ देर तक धारा बहने के बाद धारा बन्द कर दी जाती है। इस समय सेल आवेशित हो जाता है एवं इसका विभवान्तर 2 वोल्ट मिलता है।
जब सेल को चालक से जोड़ते हैं, तो बाहरी परिपथ में धारा एनोड से कैथोड की ओर बहती है। इस प्रकार की धारा बहने से हाइड्रोजन लेड पेरॉक्साइड वाली पट्टिका की ओर जाता है और लेड पेरॉक्साइड को लेड मोनोक्साइड (PbO) में परिवर्तित कर देता है, जो गंधकाम्ल से मिलकर लेड सल्फेट तथा जल बनाता है। जल के निर्माण से तनु गंधकाम्ल का विशिष्ट घनत्व घट जाता है, जिससे सेल अनावेशित हो जाती है।
पूर्णरूपेण आवेशित रहने पर सेल का वि० वा० बल 2.2 वोल्ट सीसा संचायक सेल और अनावेशित रहने पर इसका वि० वा० बल 1.8 वोल्ट हो जाता है। सेल के अनावेशन की स्थिति को सल्फेटिंग कहते हैं। सल्फेटिंग की स्थिति सेल से अत्यधिक धारा निकालने पर तथा सेल को अनावेशित दशा में बहुत समय तक रहने पर उत्पन्न होती है।
क्षारीय संचायक सेल AIkaline Accumulator Cell
इस सेल को एडिसन या निफे (Ni – Fe) सेल भी कहते हैं। इस सेल में काँच के बर्तन में पोटाशियम हाइड्रॉक्साइड का गाढ़ा (concentrated) घोल रहता है। इस सेल का एनोड इस्पात का जालीदार फ्रेम होता है, जिसमें निकेल हाइड्रॉक्साइड तथा निकेल के छीलन (filings) एकान्तर क्रम से तहों (layers) में जमे रहते हैं। दूसरा प्लेट रंध्रयुक्त (porus) इस्पात का होता है, जिसमें लौह ऑक्साइड (Iron-oxide) का बारीक चूर्ण भरा रहता है। यह प्लेट कैथोड का काम करता है।
सेल का आवेशन Charging of Cell
जब सेल को आवेशित करने के लिए इसमें बाहरी स्रोत से विद्युत् धारा प्रवाहित की जाती है, तो विद्युत् अपघटन से पोटाशियम के आायन (K+) कैथोड पर तथा हाइड्रोक्सिल आयन (OH–) एनोड पर एकत्रित होते हैं (आवेशन के दौरान)।
इस तरह सेल द्रवित हो जाता है और विपरीतात्मक वि० वा० ब० प्रभावशाली और स्थायी हो जाता है। अब इस सेल को किसी विद्युतीय परिपथ में रखा जाता है, तो इससे धारा बहती है तथा इसके एनोड तथा कैथोड पर क्रमशः K+ एवं OH–मुक्त होते हैं (अनावेशन के दौरान)।
पूर्णरूपेण आवेशित होने पर इस सेल का विद्युत् वाहक बल 1.35 वोल्ट तथा अनावेशित होने पर इसका वि० वा० ब० 0.9 वोल्ट हो जाता है। इस सेल का आन्तरिक प्रतिरोध 0.1 ओम होता है ।
सेल की दक्षता Efficiency of a Cell
किसी सेल की दक्षता सेल द्वारा किए गए लाभदायक कार्य उसी सेल के द्वारा किए गए कुल कार्य का अनुपात है।
विद्युत्-अपघटन के उपयोग:
(i) धातु का निष्कर्षण (Extraction of metals): एलुमिनियम, सोडियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम आदि धातु विद्युत्-अपघटन से प्राप्त होते हैं। इन्हीं धातुओं का इलेक्ट्रोड बना रहता है और जब इस धातु के नमक वाले घोल से विद्युत् की धारा प्रवाहित की जाती है, तो शुद्ध धातु कैथोड पर एकत्रित हो जाता है।
(ii) विद्युत्-अपघटन से विश्लेषण (Analysisby Electrolysis): विद्युत्-अपघटन के सिद्धान्त से कुछ यौगिकों (Compounds) को विश्लेषित किया जाता है। इस विधि से HCI, HCN, आदि के बनावट (composition) का पता लगाया जाता है।
(iii) विद्युत्-लेपन या कलई करना (Electro-Plating): विद्युत्-अपघटन के सिद्धान्त से किसी धातु की पतली परत (layer) किसी दूसरी धातु पर चढ़ायी जाती है। जिस धातु पर परत चढ़ाना रहता है, उसका कैथोड और जिस धातु का परत चढ़ाना रहता है उसका ऐनोड बनाया जाता है। इन दोनों को विद्युत्-अपघटन के द्रव में रखकर एक विद्युतीय सेल (Electrolytic Cell) तैयार किया जाता है। इस सेल से जब विद्युत् की धारा प्रवाहित की जाती है, तो ऐनोड वाले धातु से धातु घोल में घुलकर कैथोड वाले धातु पर जमा होता जाता है और इस तरह से कुछ देर के बाद इस धातु की कैथोड वाले धातु पर एक पतली परत जम जाती है। इस क्रिया के लिए प्रायः सोना, चाँदी, ताम्बा, निकेल और क्रोमियम धातु लिया जाता है।
(iv) विद्युतीय-मुद्रण (Electro-typing): आजकल बड़े-बड़े प्रेसों में अच्छी तरह काम करने के लिए टाइप बनाकर ताँबे के वोल्टामीटर में कैथोड की जगह पर रख दिया जाता है। ऐसा करने से इस पर ताँबे की एक परत जम जाती है। इससे छपाई अच्छी होती है।
(v) विद्युतीय संचायक (Electrolytic condenser): ऐसे संचक में एलुमिनियम के दो इलेक्ट्रोड रहते हैं। इसमें बोरिक एसिड, ग्लिसरिन और अमोनिया जल का मिश्रण विद्युत्-अपघटन द्रव के रूप में रहता है। जब इस तरह द्रव से होकर विद्युत्-धारा प्रवाहित की जाती है तब एनोड पर एलुमिनियम हाइड्रॉक्साइड की परत बन जाती है। यह परत दोनों प्लेटों के बीच पराविद्युत् (Di-electric) का कार्य करती है।
(vi) धातुओं का शुद्धिकरण (Purification of Metals): इसके लिए अशुद्ध धातु का एनोड और शुद्ध धातु का कैथोड बनाया जाता है। अशुद्ध धातु का घोल के रूप में विद्युत्-अपघटन द्रव बनाया जाता है। जब इस अशुद्ध धातु के घोल से होकर धारा प्रवाहित की जाती है, तो इसमें से शुद्ध धातु निकलकर कैथोड वाले शुद्ध धातु पर जमा होता है। इस तरह से ताँबा का शुद्धिकरण 99.99% तक किया जा सकता है।
उष्मीय प्रभाव
चालक का प्रतिरोध धारा बहने में रुकावट डालता है, जिससे गतिशील इलेक्ट्रॉन निरन्तर चालक के परमाणुओं से टकराते हैं तथा इस प्रक्रिया में अपनी ऊर्जा चालक के परमाणुओं को स्थानान्तरित करते हैं। इसके कारण चालक का ताप बढ़ जाता है। चालक के ताप बढ़ने की इस घटना को विद्युत् धारा का ऊष्मीय प्रभाव कहते हैं। किसी चालक में विद्युत् धारा द्वारा उत्पन्न ऊष्मा
H = I2Rt जूल (SI पद्धति में)
जहाँ,
H = उत्पन्न ऊष्मा,
I = चालक में बहने वाली धारा,
R = चालक का प्रतिरोध,
r = धारा बहने का समय
H = I2Rt में विद्युत् धारा द्वारा उत्पन्न ऊष्मा के जो नियम सम्मिलित है, वे जूल के नियम (Joule’s Laws) कहलाते हैं, जो निम्नांकित हैं-
(i) यदि किसी चालक का प्रतिरोध नियत रहता है, तो उसमें नियत समय में उत्पन्न ऊष्मा धारा के वर्ग के समानुपाती होती है। अर्थात् H ∝ I2 जब R एवं t नियत है।
(ii) यदि किसी चालक में बहती हुई धारा का का मान नियत हो, तो किसी निश्चित समय में उत्पन्न ऊष्मा चालक के प्रतिरोध के समानुपाती होती है।
अर्थात् H ∝ R, जब I एवं t नियत है।
(iii) यदि किसी चालक का प्रतिरोध तथा बहती हुई धारा नियत हो, तो उसमें उत्पन्न ऊष्मा समय का समानुपाती होती है।
अर्थात् H ∝ t, जब I एवं R नियत है।
ऊष्मा विद्युत् Thermo Electricity
जब किसी तार को गर्म किया जाता है, तो उससे होकर विद्युत् धारा बहती है। अतः ऊष्मा विद्युत् में किसी तार को गर्म करने से उसमें प्रवाहित विद्युत् धारा का अध्ययन किया जाता है।
सीबेक प्रभाव Seebeck Effect
सीबेक ने दो भिन्न-भिन्न पदार्थों के तारों को उनके दोनों सिरे अलग-अलग मिलाकर दो जंक्शन बनाया, जंक्शनों के तापों में अन्तर रहने पर तारों से होकर विद्युत् धारा प्रवाहित होने लगती है। इसी प्रभाव को सीबेक प्रभाव कहते हैं। इस प्रकार बहने वाली विद्युत् धारा को ऊष्मा-विद्युत् धारा कहते हैं। जिस विद्युत् बाहक बल के कारण यह ऊष्मा विद्युत् धारा बहती है, उसे ऊष्मा विद्युत् वाहक बल (Thermo electro motive force) कहते हैंI
सीबेक ने भिन्न-भिन्न धातुओं के जोड़े (couple) बनाकर अपने प्रभाव को दिखाया । इसने धातुओं की एक ऊष्मा विद्युत् श्रेणी बनाई। इस श्रेणी वाले किन्हीं दो धातुओं से ऊष्मा वैद्युत् युग्म बनाने पर उनमें जो धातु श्रेणी में पहले आता है, उससे धारा श्रेणी में अपने से नीचे वाले धातु की ओर ठंढे जंक्शन होकर प्रवाहित होती है। ऊष्मा विद्युत् श्रेणी के कुछ धातु निम्नलिखित है-
1. ऐन्टीमनी | 2. लोहा | 3. जस्ता | 4. चाँदी |
5. सोना | 6. टिन | 7. सीसा | 8. ताँबा |
9. प्लैटिनम | 10. निकल | 11. बिस्मथ |
ऊपर की तालिका में क्रम संख्या में सीसा से ऊपर वाली धातु यानी ऐन्टीमनी, लोहा, जस्ता, चाँदी, सोना एवं टिन ऊष्मा विद्युतीय ऋणात्मक एवं क्रम संख्या में सीसा से नीचे वाली धातु यानी ताँबा, प्लैटिनम, निकेल एवं बिस्मथ ऊष्मा विद्युतीय धनात्मक है। ऊष्मा वैद्युत् युग्म में एक धातु से दूसरे धातु में धारा को बहने की दिशा का ज्ञान आसानी से A, B और C शब्द से होता है, जैसे A से एण्टीमनी, B से बिस्मथ और C से ठंडा (Cold) यानि Current Flows from A to B through C, गर्म जंक्शन होने पर धारा की दिशा उलट जाती है, जैसे ताँबे एवं लोहे के युग्म में Current Flows from Copper to Iron at the Hot Junction.
पेल्टियर प्रभाव Peltier Effect
पेल्टियर प्रभाव सीबेक प्रभाव का व्युत्क्रम प्रभाव है। जब दो भिन्न-भिन्न धातुओं के जोड़े होकर एक धारा प्रवाहित होती है, तब जंक्शन पर या तो ऊष्मा का उत्पादन होता है या अवशोषण होता है। किसी जंक्शन से होकर यदि एक दिशा में धारा के बहने से ऊष्मा का उत्पादन होता है, दूसरी दिशा में धारा के बहने पर उसी जंक्शन पर ऊष्मा का अवशोषण होता है।
थॉम्सन प्रभाव Thomson Effect
यदि किसी तार के सिरे पर के तापों को नियत रखकर तार के बीच वाले भाग के ताप को बढ़ाया जाता है और साथ-साथ तार से होकर विद्युत् धारा प्रवाहित की जाती है, तो तार का पहला आधा भाग ठंढा और दूसरा आधा भाग गर्म हो जाता है। तार में धारा की दिशा बदल देने पर गर्म एवं ठंढे भाग भी आपस में बदल जाते हैं। इस प्रभाव को थॉम्सन प्रभाव कहते हैं।
उष्मीय प्रभाव पर आधारित Home Appliances Based on Heating Effect
विद्युत् धारा के ऊष्मीय प्रभाव का उपयोग घरेलू उपकरणों जैसे-विद्युत् हीटर, विद्युत् प्रेस, बल्ब, ट्यूब-लाइट आदि में किया जाता है।
विद्युत् हीटर Electric Heater
इसमें प्लास्टर ऑफ पेरिस का बना एक खांचेदार प्लेट होता है, जिसमें मिश्रधातु निक्रोम (निकल एवं क्रोमियम का मिश्रधातु) का एलीमेंट लगा होता है। अत्यधिक प्रतिरोध होने कारण जब इससे विद्युत् धारा गुजारी जाती है, तो यह लाल तप्त हो जाता है और अत्यधिक ऊष्मा देता है। लाल तप्त अवस्था में तार का ताप 800°C से 1000°C तक होता है। एक अच्छे हीटर के एलीमेण्ट की प्रतिरोधकता अधिक होनी चाहिए साथ ही उच्च ताप पर ऑक्सीकरण नहीं होना चाहिए।
विद्युत् प्रेस Electric Iron
घरेलू विद्युत् प्रेस में अभ्रक के ऊपर नाइक्रोम का तार लिपटा हुआ रहता हैं। अभ्रक एक अच्छा प्रतिरोधी है, जो ऊँचे ताप पर भी नहीं पिघलता है। इस प्लेट को इस्पात के उचित आकार के आवरण के अन्दर रखा जाता है। इस आवरण के ऊपर कुचालक पदार्थ का हत्था लगा रहता है। जब तार में धारा प्रवाहित की जाती है तो वह गरम हो जाती है, जिससे आवरण भी गरम हो जाती है, जो कपड़े को प्रेस कर देती है।
विद्युत् बल्ब Electric Bulb
विद्युत् बल्ब का आविष्कार थॉमस एल्वा एडीसन (Thomas Alva Edison) ने किया था। इसमें टंगस्टन धातु का तन्तु (फिलामेंट) लगा होता है। टंगस्टन के ऑक्सीकरण को रोकने के लिए बल्ब के अन्दर निर्वात् कर दिया जाता है। कभी-कभी पूर्णतः निर्वात् न करके उसके अन्दर नाइट्रोजन या आर्गन गैस भर दी जाती है, ताकि उच्च ताप पर टंगस्टन का वाष्पीकरण न हो। उच्च ताप पर टंगस्टन वाष्पीकृत होकर बल्ब की दीवारों को काला कर देता है, जिसे ब्लैकनिंग (Blackening) कहते हैं। टंगस्टन धातु का प्रयोग बल्ब में उसके गलनांक (3500°C) उच्च होने के कारण किया जाता है। धारा प्रवाहित किए जाने पर तन्तु का ताप 1500°C से 2500°C तक हो जाता है। साधारण बल्ब में दी गई विद्युत् ऊर्जा का 5% से 10% भाग ही प्रकाश में परिवर्तित होता है।
ट्यूब लाइट Tube Light
इसमें काँच की एक लम्बी ट्यूब होती है, जिसके अन्दर की दीवारों पर प्रतिदीप्तशील पदार्थ (Fluorescent substances) का लेप चढ़ा रहता है। ट्यूब के अन्दर अक्रिय गैस जैसे आर्गन को कुछ पारे के साथ भर देते हैं। ट्यूब के दोनों किनारों पर बेरियम ऑक्साइड की तहें चढ़े हुए दो तन्तु लगे होते हैं। जब तन्तुओं में धारा प्रवाहित की जाती है, तो इनसे इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित होते हैं, जो ट्यूब में भरी गैस का आयनीकरण करते हैं। आयनीकरण से उत्पन्न आयनों के प्रवाह के फलस्वरूप ट्यूब में धारा बहने लगती है। ट्यूब स्थित पारा गरमी पाकर वाष्पित होता है तथा इससे विद्युत् उत्सर्जन होने के कारण पराबैंगनी किरणे (UV Rays) उत्पन्न होती हैं।
जब ये किरणे ट्यूब की दीवारों पर पुते प्रतिदीप्तशील पदार्थ पर पड़ती है, तो वह उन्हें अवशोषित करके निचली आवृत्ति के दृश्य प्रकाश का उत्सर्जन करती है। ट्यूब में उपयोग किया जाने वाला प्रतिदीप्तशील इस प्रकार लगाया जाता है कि उससे उत्पन्न प्रकाश सूर्य के प्रकाश के समान श्वेत दिखाई पड़ता है। ट्यूब में ऊष्मा ऊर्जा कम उत्पन्न होती है, इसीलिए लगभग 60 से 70% विद्युत् ऊर्जा प्रकाश ऊर्जा में बदल जाती है। इसीलिए ट्यूब की दक्षता बल्ब की तुलना में अधिक होती है। जैसे- एक 40 वाट की टयूब एक 40 वाट की बल्ब की तुलना में 6 से 8 गुना अधिक प्रकाश देती है।