आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2013 Criminal Law (Amendment) Act, 2013

राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी द्वारा आपराधिक कानून (संशोधन) विधेयक-2013 पर 3 अप्रैल, 2013 को हस्ताक्षर कर दिए गए। इसके साथ ही देश में महिलाओं के प्रति अपराधों के लिए सख्त सजा सुनिश्चित करने का कानून देश भर में लागू हो गया। महिलाओं के प्रति यौन अपराधों के लिए कड़ी सजाओं के लिए आपराधिक कानून (संशोधन) विधेयक 2013 को 19 मार्च, 2013 को लोकसभा और 21 मार्च, 2013 को राज्यसभा द्वारा पारित किया गया था। ऐसे किसी कानून की मांग दिल्ली में 16 दिसंबर, 2012 को चलती बस में मेडिकल की एक छात्रा के साथ सामूहिक बलात्कार के पश्चात् व्यापक तौर पर की गई थी। सरकार ने दिसंबर, 2012 में ही ऐसे कानून में किए जाने वाले प्रावधानों की संस्तुति के लिए सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति जे.एस. वर्मा की अध्यक्षता में समिति का गठन किया था जिसकी संस्तुतियों के आधार पर राष्ट्रपति ने अनुच्छेद 143 के तहत् एक अध्यादेश जारी किया और उसी अध्यादेश को कुछ संशोधनों के साथ कानूनी स्वरूप प्रदान किया गया। आलोच्य कानून के द्वारा लैंगिक अपराधों से जुड़े भारतीय दण्ड संहिता, भारत परमन संहिता, आपराधिक प्रक्रिया संहिता कानूनों में संशोधन किया गया।

नए कानून में बलात्कार की परिभाषा को व्यापक बनाते हुए इसके लिए सख्त सजा का प्रावधान किया गया है। बलात्कार के मामले में पीड़ित की मौत हो जाने या उसके स्थायी रूप से मृतप्राय हो जाने की स्थिति में मौत की सजा का प्रावधान भी इस कानून में किया गया है। सामूहिक बलात्कार के मामले में दोषियों के लिए धारा 376ए के तहत् सजा की अवधि न्यूनतम 20 वर्ष रखी गई है, जो आजीवन कारावास तक हो सकती है। कानून में सहमति से यौन संबंध बनाने की उम्र 18 साल तय की गयी है। महिलाओं का पीछा करने एवं तांक-झांक पर कड़े दण्ड का प्रावधान किया गया है। ऐसे मामलों में पहली बार में गलती हो सकती है, इसलिए इसे जमानती रखा गया है, लेकिन दूसरी बार ऐसा करने पर इसे गैर-जमानती बनाया गया है। तेजाबी हमला करने वालों के लिए 10 वर्ष की सजा का भी कानून में प्रावधान किया गया है। इसमें पीड़ित को आत्मरक्षा का अधिकार प्रदान करते हुए तेजाब हमले की अपराध के रूप में व्याख्या की गई है। साथ ही यह भी प्रावधान किया गया है कि सभी अस्पताल बलात्कार या तेजाब हमला पीड़ितों को तुरंत प्राथमिक सहायता या निःशुल्क उपचार उपलब्ध कराएंगे और ऐसा करने में विफल रहने पर उन्हें सजा का सामना करना पड़ेगा।

कानून में कम से कम सात साल की सजा का प्रावधान किया गया है जो प्राकृतिक जीवन काल तक के लिए बढ़ायी जा सकती है और यदि दोषी व्यक्ति पुलिस अधिकारी, लोकसेवक, सशस्त्र बलों या प्रबंधन या अस्पताल का कर्मचारी है तो उसे जुर्माने का भी सामना करना होगा। कानून में भारतीय साक्ष्य अधिनियम में संशोधन किया गया है जिसके तहत बलात्कार पीड़िता को, यदि वह अस्थायी या स्थायी रूप से मानसिक या शारीरिक रूप से अक्षम हो जाती है तो उसे अपना बयान दुभाषिये या विशेष एजुकेटर की मदद से न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष दर्ज कराने की भी अनुमति दी गई है। इसमें महिला अपराध की सुनवाई बंद करने तथा कार्यवाही की वीडियोग्राफी करने का भी प्रावधान किया गया है। इस कानून में महिलाओं के विरुद्ध अपराध की एफआईआर दर्ज नहीं करने वाले पुलिस कर्मियों को दण्डित करने का भी प्रावधान है।

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जस्टिस वर्मा पैनल की स्वीकार की गई अनुशंसाएं: हालांकि जस्टिस वर्मा पैनल की कई सिफारिशों को स्वीकार किया गया है लेकिन कुछ सिफारिशों को नजरअंदाज भी किया गया है। स्वीकार की गई सिफारिशें निम्न प्रकार हैं-

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इस प्रकार जस्टिस वर्मा पैनल की कई सिफारिशों को अधिनियम में संशोधित या हूबहू शामिल किया गया है।


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