सहकारी समितियां Co-Operative Societies

भारत में सहकारी आंदोलन को आंरभ हुये नौ दशक हो चुके हैं। इन वर्षों में यह आंदोलन विश्व का सबसे बड़ा सहकारी आंदोलन बन गया है। भारत में इसका आरंभ 1904 में फेड्रिक निकल्सन द्वारा सहकारी ऋण समिति की स्थापना किये जाने के साथ हुआ था। ऋण क्षेत्र से आरंभ हुआ यह आंदोलन आवास, उपभोक्ता वस्तुओं के उचित मूल्य पर विपणन, विधायन क्षेत्रों और कृषि में उन्नत तरीकों को अपनाने, चकबंदी, क्रय-विक्रय इत्यादि क्षेत्रों में विस्तारित हो चुका है।

भारत में आयोजन के कर्णधारों ने सहकारिता को ग्रामीण क्षेत्र विशेषकर दलितों के विकास की कुंजी के रूप में माना था। समतामूलक, आत्मनिर्भर और न्यायपूर्ण सामाजिक व्यवस्था की नींव ग्रामीण स्वशासन, शिक्षा और आपसी सहयोग पर आधारित शोषण रहित सहकारिता पर ही रखी जा सकती है। सहकारिता की स्थापना लोकतांत्रिक आधार पर की गयी थी और इसके अंतर्गत निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के गुणों को समन्वित करने का प्रयास किया गया था। पांचवीं पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत कहा गया था,- सहकारिता, आपसी सहयोग की प्रेरणा और सिद्धांतों के संस्थानीकरण को प्रदर्शित करती है। इसके अंतर्गत व्यक्ति की स्वतंत्रता और अवसर को वृहत-स्तरीय संगठन और प्रबंध के लाभों के साथ सम्मिश्रित किया जा सकता है। देश की वर्तमान परिस्थितियों में, वांछित सामाजिक-आर्थिक परिवर्तनों के लिए सहकारिता सुविधाजनक साधन है।

भारत में सहकारिता का विकास

भारत में सहकारिता का आरंभ ब्रिटिश-राज के समय में हुआ था। 1901 में सहकारी समितियों के संगठन और उनकी सफलता की संभावनाओं की पड़ताल के लिए ऐडवर्ड ला की अध्यक्षता में एक समिति बनाई गई थी। ऐडवर्ड ला समिति की सिफारिशों को आधार बना कर सहकारी साख अधिनियम, 1904पारित किया गया परंतुशीघ्र ही इसकी कमियां उजागर होने लगीं और 1912 में नया अधिनियम पारित किया गया। 1904 के अधिनियम में प्राथमिक सहकारी समितियों की सहायता के लिए किसी केंद्रीय संस्था की स्थापना नहीं की गई थी। जिसके कारण यह विधान ग्रामीण क्षेत्र की बढती आवश्यकताओं को सहकारिता आन्दोलन के माध्यम से पूरा करने में असफल रहा। 1919 में सहकारिता को केंद्रीय सूची से हटा कर प्रांतीय सूची में स्थानांतरित कर दिया गया ताकि राज्य क्षेत्रीय वातावरण और सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों के अनुसार सहकारी आंदोलन को आगे बढ़ा सकें। सहकारी आंदोलन के विकास में 1935 में भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना एक महत्वपूर्ण पड़ाव था। द्वितीय विश्व युद्ध के काल में जहां किसानों की आर्थिक स्थिति में, प्राथमिक वस्तुओं के मूल्यों में वृद्धि के कारण सुधार हुआ वहीं सहकारिता आंदोलन को भी बल मिला। इस काल में, सहकारिता समितियों की संख्या, सदस्य संख्या, पूंजी एवं संचित राशि में तीव्र वृद्धि हुई। सहकारिता आंदोलन आरंभ के साठ वर्ष में अधिक सफल नहीं रहा। किंतु बाद के काल में सरकार एवं भारतीय रिजर्व बैंक के सहयोग से इस आंदोलन को बल प्राप्त हुआ।

सहकारी समितियों का कानूनी एवं संवैधानिक दर्जा

भारत सरकार ने सहकारी समितियों के लिए कुछ राष्ट्रीय नीतियों की घोषणा की है। इन नीतियों का उद्देश्य सहकारी समितियों की हर संभव आवश्यक सहायता सुनिश्चित कराना है ताकि वे अपने कार्य, स्वायत्तता, स्वःनिर्भरता, और लोकतांत्रिक प्रबंधन संस्थानों के माध्यम से कार्य कर सकें।

केंद्र सरकार ने समितियों की आवश्यक स्वायत्तता प्रदान करने के लिए बहुस्तरीय राज्य सहकारी समिति अधिनियम, 1984 में संशोधन कर नया अधिनियम बहुस्तरीय राज्य सहकारी समिति अधिनियम,2002 बनाया है। इस अधिनियम के तहत्, राज्य बहुस्तरीय सहकारी समितियों को प्रकार्यात्मक स्वायत्तता और लोकतांत्रिक प्रबंधन प्रदान करना है। यह अधिनियम राष्ट्रीय स्तर की सहकारी समितियों/संघीय, और बहु-राज्यीय सहकारी समितियों द्वारा लागू किया जायेगा। इससे आशा व्यक्त की गई कि, यह एक प्रतिरूप की तरह कार्य करने तथा राज्य सहकारी नियमों में सुधार लायेगा।


एनसीडीसी (NCDC) अधिनियम, 1962 में संशोधन करके एनसीडीसी सुधार अधिनियम, 2002 लाया गया है, जिसका विस्तार, कर, खाद्य सामग्री, उद्योगों के समान, कार्यक्रमों के संचालन तथा अन्य क्रिया-कलापों की सामग्रियों को इसमें शामिल किया गया है। इसके कार्यक्रम हैं- जल संरक्षण, पशुदेख-भाल, स्वास्थ्य, बीमारियों की रोकथाम, कृषि बिमा और कृषि साख और ग्रामीण स्वच्छता, अव्यवस्था, गंदे पानी की निकास नली तथा परनालों की मरम्मत। मई 2006 में लोकसभा में सहकारी नीतियों को सुदृढ़ और शक्तिशाली बनाने के लिए, 106वां संविधान संशोधन विधेयक पेश किया गया।

संविघान (सत्तानबेवां संशोधन) अधिनियम, 2011

राज्य के इस अधिनियम के तहत, सामाजिक और आर्थिक न्याय और विकास के फल का एकसमान वितरण सुनिश्चित करने के प्रयास के तौर पर बृहद पैमाने पर सहकारी समितियों की संवृद्धि पर विचार किया गया। विस्तार के बावजूद, गुणात्मक संदर्भ में इनका निष्पादन यथोचित स्तर का नहीं रहा है। राज्यों के सहकारिता सोसायटी अधिनियम में सुधार करने की आवश्यकता पर विचार करते हुए, कई मौकों पर राज्य सरकारों से परामर्श किया गया और राज्य सहकारिता मंत्रियों के साथ बैठकें की गई। संविधान में संशोधन करने की एक बलवती जरूरत महसूस की गई ताकि सहकारी समितियों को अनावश्यक बाह्य हस्तक्षेप से मुक्त रखा जा सके और उनका स्वायत्त संगठनात्मक स्वरूप और लोकतांत्रिक कार्यकरण भी सुनिश्चित हो सके।

परिणामस्वरूप, संविधान (111वां संशोधन) विधेयक, 2011, संसद के दोनों सदनों में पारित होने के बाद, 12 जनवरी, 2012 को राष्ट्रपति की स्वीकृति मिलने पर संविधान (97वां संशोधन) अधिनियम, 2011 हो गया। अधिनियम ने सहकारी समितियों के गठन के अधिकार को मूल अधिकार बना दिया है। अधिनियम सहकारी समितियों के प्रबंधन की जिम्मेदारी सुनिश्चित करता है एवं कानून के उल्लंघन के लिए निरोध प्रदान करता है।

संशोधन अधिनियम ने भारतीय सहकारिता आंदोलन के परिमाणात्मक बढ़ोतरी के बजाय गुणात्मक पहलू को उजागर किया है। इस अधिनियममें सहकारी समितियों के अलोक्तान्त्रतिक कृत्यों, जवाबदेही का आभाव का अभाव और पेशेवर प्रबंधन तथा निम्न उत्पादकता पर विशेष ध्यान दिया गया है।

अधिनियम ने भारतीय संविधान के भाग III का संशोधन किया है जिससे अनुच्छेद 19 में, खण्ड (1) के, उपखण्ड (ग) में, या संघ, शब्द के बाद या सहकारी समितियां शब्द जोड़ा गया है। संविधान के भाग IV में, अनुच्छेद 43क के बाद अनुच्छेद 43ख जोड़ा गया है जो प्रावधान करता है कि राज्य सहकारी समितियों के स्वैच्छिक संगठन, स्वायत्त कार्यकरण, लोकतांत्रिक नियंत्रण तथा पेशेवर प्रबंधन को बढ़ाने का प्रयास करेगा।

संविधान के भाग 9क के बाद एक नया भाग जिसे भाग 9ख (अनुच्छेद 243 यज-243 यन) कहा गया है, जोड़ा गया है जो सहकारी समितियों संबंधी परिभाषाएं; सहकारी समितियों का समावेशन; बोर्ड के सदस्यों एवं इसके पदाधिकारियों की संख्या एवं पदावधि; बोर्ड के सदस्यों का चुनाव; बोर्ड एवं अंतरिम प्रबंधन का निलम्बन; सहकारी समितियों के लेखाओं का अंकेक्षण; जनरल बॉडी बैठक का आयोजन; सूचना प्राप्त करने का अधिकार, रिटर्न फाइल करने; अपराध एवं दंड; बहु-राज्य सहकारी समितियों पर अनुप्रयोग; संघ शासित प्रदेशों पर अनुप्रयोग एवं वर्तमान विधि की निरंतरता का प्रावधान करता है।

परिभाषाएं: 243 यज इस भाग में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,–

  1. प्राधिकृत व्यक्ति से अनुच्छेद 243 यथ के अधीन व्यक्ति से अभिप्रेत है;
  2. बोर्ड से एक सहकारी समिति का निदेशक मण्डल या शासकीय निकाय, किसी भी नाम द्वारा पुकारा जाए, अभिप्रेत है, जिसे समिति के मामलों का निदेशन एवं नियंत्रण का प्रबंधन सौंपा गया है;
  3. सहकारी समिति किसी राज्य में वर्तमान में प्रवृत्त सहकारी समितियों से संबंधित किसी विधि के अधीन पंजीकृत या पंजीकृत समझी जाने वाली समिति से अभिप्रेत है;
  4. बहु-राज्य सहकारी समिति उद्देश्यों के परिप्रेक्ष्य में एक राज्य तक सीमित नहीं है, से अभिप्रेत है, तथा ऐसी सहकारी समितियों से सम्बद्ध उस समय प्रवृत्त विधि के अधीन पंजीकृत है या समझी जाती है;
  5. पदाधिकारी एक सहकारी समिति के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सभापति, उपसभापति, सचिव या कोषाध्यक्ष तथा किसी सहकारी समिति के बोर्ड द्वारा चुने गए किसी अन्य व्यक्ति से अभिप्रेत है;
  6. कुलसचिव बहु-राज्य सहकारी समितियों के संबंध में केंद्र में राज्य विधानसभा द्वारा निर्मित विधि के अधीन राज्य सरकार द्वारा सहकारी समितियों के लिए नियुक्त कुलसचिव से अभिप्रेत है;
  7. राज्य अधिनियम राज्य विधानमण्डल द्वारा निर्मित किसी विधि से अभिप्रेत है;
  8. राज्य स्तरीय सहकारी समिति एक सहकारी समिति का कार्यक्षेत्र पूरे राज्य तक व्याप्त होना तथा राज्य विधानमण्डल द्वारा निर्मित किसी विधि में इसे परिभाषित करने से अभिप्रेत है।

सहकारी समितियों का समावेशन

243 यझ. इस भाग के उपबंधों के अधीन रहते हुए, राज्य विधानमंडल, विधि द्वारा, सहकारी समितियों के समावेशन, विनियमन तथा समापन से संबंधित उपबंध बना सकेगी जो की स्वैच्छिक संगठन, लोकतांत्रिक सदस्य-नियंत्रण, सदस्य आर्थिक सदस्य-आर्थिक सहभागिता तथा स्वायत्त कार्यकरण के सिद्धांत पर आधारित होगी।

बोर्ड के सदस्यों एवं इसके पदाधिकारियों की संख्या एवं पदावधिः 243 यञ

  • बोर्ड में निदेशकों की इतनी संख्या होगी जिसका एक राज्य विधानमंडल द्वारा बनाई गयी विधि द्वारा, उपबंध किया जाए।

परंतु एक सहकारी समिति के निदेशकों की अधिकतम संख्या 21 से अधिक नहीं होगी।

आगे उपबंध किया गया है की राज्य विधानमंडल, विधि द्वारा, प्रत्येक सहकारी समिति के बोर्ड में एक सीट अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के लिए तथा दो सीट महिलाओं के लिए आरक्षित कर सकेगा जिसमें व्यक्ति सदस्य के तौर पर होंगे तथा सदस्यों में इस वर्ग या श्रेणी के व्यक्ति होंगे।

  • बोर्ड के चुने गए सदस्यों एवं इसके पदाधिकारियों की पदावधि चुनाव की तिथि से पांच वर्ष होगी तथा पदाधिकारियों की पदावधि बोर्ड के काल के समान होगी:

परन्तु यदि बोर्ड का कार्यकाल इसके वास्तविक कार्यकाल का आधे से भी कम रह गया हो, जिस वर्ग के सदस्य के संबंध में उत्पन्न हुई आकस्मिक रिक्ति को उसी वर्ग के लिए नामांकन जारी करके उस रिक्ति को भर सकेंगे।

  • राज्य विधानमण्डल, विधि द्वारा, सहकारी संस्था का सदस्य बन्ने वाले व्यक्ति के लिए बैंकिंग, प्रबंधन, वित्त या ऐसी संस्था के बोर्ड के सदस्य के तौर पर कार्य करने के लिए आवश्यक किसी भी अन्य क्षेत्र में विशेषज्ञता के संबंध में उपबंध करेगा:

परन्तु ऐसी सहकारी संस्था के सदस्यों की संख्या प्रथम उपबंध के खंड(1) में उल्लिखित 21 निदेशकों के अतिरिक्त दो से अधिक नहीं होगी,

आगे उपबंध किया गया है की ऐसे सहयोगी सदस्यों को अपनी क्षमता के अधीन सहकारी समिति के किसी भी चुनाव में मताधिकार नहीं होगा; यह भी उपबंध किया गया है कि सहकारी समिति का कार्यकारी निदेशक भी बोर्ड के सदस्यों में शामिल होगा और ऐसे सदस्यों को प्रथम उपबंध के खंड (1) में उल्लिखित निदेशकों की समग्र संख्या की गणना के उद्देश्य में शामिल नहीं किया जाएगा।

बोर्ड के सदस्यों का चुनावः 243 यट

  1. राज्य विधानमण्डल द्वारा बनाई गई विधि में किसी बात के होते हुए भी, बोर्ड के कार्यकाल की समाप्ति से पूर्व नए बोर्ड का चुनाव संपन्न कराया जाएगा ताकि सुनिश्चित हो कि कार्यकाल समाप्त होने वाले बोर्ड के जाने पर बोर्ड के नए चयनित सदस्य तुरंत कार्यभार संभाल सकें।
  2. सहकारी समिति के सभी चुनावों के आयोजन एवं निर्वाचक नामावली तैयार करने के नियंत्रण, निदेशन एवं पर्यवेक्षण की शक्ति ऐसी प्राधिकारी या निकाय में निहित होगी, जैसा विधि द्वारा राज्य विधानमंडल उपबंधित करे

परन्तु राज्य विधानमंडल, विधि द्वारा, ऐसे चुनावों के आयोजन के लिए प्रक्रिया एवं निर्देशों को मुहैया करा सकेगा।

बोर्ड एवं अंतरिम प्रबंधन का निलम्बन: 243 यठ

उस समय प्रवृत्त कानून में किसी बात के होते हुए भी, किसी बोर्ड को छह माह से अधिक की अवधि के लिए हटाया या निलम्बन में नहीं रखा जाएगा: परंतु बोर्ड को हटाया या निलम्बन में रखा जा सकता है यदि-

  • इसके निरंतर अनुपस्थित रहने पर, या
  • अपने दायित्वों के निर्वहन में चूक या लापरवाही; या
  • बोर्ड ने सहकारी संस्था या इसके सदस्य के हित में कोई पक्षपातपूर्ण कार्य किया हो; या
  • बोर्ड के संविधान या कार्यों में गतिरोध हो; या
  • खंड(2) के अनुच्छेद 243यट के तहत् राज्य विधानमण्डल द्वारा, विधि द्वारा, प्राधिकृत की गई निकाय या प्राधिकरण राज्य अधिनियम के उपबंधों के अनुरूप चुनावों का आयोजन करने में असफल हो गया हो:

आगे उपबंध किया गया है कि ऐसी किसी सहकारी समिति के बोर्ड को हटाया या निलम्बन में नहीं रखा जाएगा जहां सरकारी हिस्सेदारी या ऋण या वित्तीय सहायता या सरकार द्वारा किसी प्रकार की गारंटी नहीं दी होगी।

यह भी उपबंध किया गया है कि यदि सहकारी समिति बैंकिंग व्यवस्था करती है, तो बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 के उपबंध इस पर भी लागू होगे।

यह भी उपबंधित किया गया है कि यदि एक सहकारी समिति, बहु-राज्य सहकारी समिति से भिन्न, बैंकिंग व्यवसाय करती है, तो इस खंड के प्रावधान प्रभावी होंगे जैसाकि छह माह शब्द के लिए होता है, एक वर्ष शब्द को प्रतिस्थापित कर दिया गया है।

बोर्ड को हटाए जाने की स्थिति में, ऐसी सहकारी समिति के कार्यों के प्रबंध हेतु नियुक्त किए गए प्रशासक खंड(1) में उल्लिखित किए गए समय सीमा में चुनाव आयोजन की व्यवस्था करेंगे तथा चुनकर आए बोर्ड को प्रबंधन सोंपेगा।

राज्य का विधानमंडल, विधि द्वारा, प्रशासक की सेवा शर्तों के लिए उपबंध कर सकेगा।

सहकारी समितियों के लेखाओं का अंकेक्षण: 243 यड.

  1. राज्य का विधानमंडल, विधि द्वारा, सहकारी समितियों द्वारा अनुरक्षित लेखाओं के बारे में उपबंध कर सकेगा और ऐसे लेखाओं का प्रत्येक वित्तीय वर्ष में कम-से-कम एक बार अंकेक्षण करना होगा।
  2. राज्य का विधानमण्डल, विधि द्वारा, अंकेक्षक और अंकेक्षण फर्म की न्यूनतम योग्यताएं तथा अनुभव निर्धारित करेगा जो सहकारी समितियों के लेखाओं के अंकेक्षण के लिए अर्ह होंगी।
  3. प्रत्येक सहकारी समिति का अंकेक्षण सहकारी समिति के सामान्य निकाय द्वारा नियुक्त और खंड (2) में संदर्भित अंकेक्षक या अंकेक्षण फर्म द्वारा किया जाएगा।

परंतु ऐसे अंकेक्षक या अंकेक्षण फर्म की नियुक्ति राज्य सरकार द्वारा अनुमोदित या इस कार्य हेतु राज्य सरकार द्वारा प्राधिकृत प्राधिकरण द्वारा अनुमोदित पैनल से होगी।

  1. प्रत्येक सहकारी समिति के लेखाओं का अंकेक्षण, जिस वित्तीय वर्ष से वे सम्बद्ध है, वित्तीय वर्ष की समाप्ति के छह माह के भीतर हो जाना चाहिए।
  2. सर्वोच्च सहकारी समिति के लेखाओं की अंकेक्षण रिपोर्ट, जैसा कि राज्य अधिनियम द्वारा परिभाषित किया गया हो, राज्य के विधानमंडल के समक्ष इस रीति से रखी जाएगी, जैसी राज्य विधानमंडल द्वारा, विधि द्वारा, उपबंध किया गया हो।

जनरल बॉडी बैठक का आयोजन: 243 यढ

राज्य का विधानमंडल, विधि द्वारा, उपबंध करेगा की प्रत्येक सहकारी समिति की वार्षिक जनरल बॉडी बैठक कार्यों के संपादन के लिए वित्तीय वर्ष की समाप्ति के छह माह के भीतर आयोजित की जाएगी जैसाकि इस विधि में उपबंध किया गया हो।

सूचना प्राप्त करने का सदस्य का अधिकार: 243 यण

  1. राज्य का विधानमंडल, विधि द्वारा, सहकारी समिति के प्रत्येक सदस्य को सहकारी समिति के दैनंदिन कार्यों से अवगत रखने के लिए, सुनिश्चित करेगा।
  2. राज्य का विधानमण्डल, विधि द्वारा, प्रत्येक सदस्य के लिए बैठकों में न्यूनतम उपस्थिति द्वारा सहकारी समिति के प्रबंधन में सदस्यों की सहभागिता को सुनिश्चित करने का उपबंध कर सकेगा और इस सकेगा और इस विधि के उपबंधों द्वारा सेवाओं के एक न्यूनतम स्तर का उपयोग कर सकेगा।
  3. राज्य का विधानमण्डल, विधि द्वारा, इसके सदस्यों के लिए सहकारी शिक्षा और प्रशिक्षण की व्यवस्था कर सकेगा।

रिटर्न: 248 यत

प्रत्येक सहकारी समिति राज्य सरकार द्वारा प्राधिकृत प्राधिकरण को, प्रत्येक वित्त वर्ष के समाप्त होने के छह माह के भीतर, रिटर्न फाइल करेगी, जिसमें निम्न मामले भी शामिल होंगे, नामतः

  1. इसकी गतिविधियों की वार्षिक रिपोर्ट;
  2. इसके लेखाओं का अंकेक्षित मसौदा;
  3. सहकारी समिति की जनरल बॉडी द्वारा अनुमोदित अधिशेष निपटान योजना;
  4. यदि है तो, सहकारी समिति के उपनियमों में किए गए संशोधन की सूची;
  5. इसकी जनरल बॉडी की बैठक एवं चुनावों के आयोजन के संबंध में तिथि की घोषणा करना; और
  6. अन्य कोई सूचना जिसे कुलसचिव द्वारा राज्य अधिनियम के किसी उपबंध का अनुवर्तन करने में मांगा गया हो।

अपराध एवं दंड: 248 यथ

  1. राज्य का विधानमण्डल, विधि द्वारा, सहकारी समितियों से संबंधित अपराधों और ऐसे अपराधों के लिए दंड के बारे में उपबंध कर सकेगा।
  2. राज्य के विधानमण्डल द्वारा खंड (1) के अधीन बनाई गई विधि में निम्न अधिनियम का कृत्य या अपकृत्य अपराध के तौर पर शामिल होगा, नामतः
  • एक सहकारी समिति या उसका एक अधिकारी या सदस्य जानबूझकर मिथ्या रिटर्न फाइल करता है या असत्य सूचना देता है, या कोई व्यक्ति राज्य अधिनियम के उपबंधों के अधीन प्राधिकृत किए गए व्यक्ति को मांगे जाने पर जानबूझकर कोई सूचना नहीं देता है;
  • कोई व्यक्ति जानबूझकर या बिना किसी उचित कारण के राज्य अधिनियम के उपबंधों के अधीन जारी किए गए किसी सम्मन, प्रार्थना या कानूनी लिखित आदेश की अवज्ञा करता है;
  • कोई नियोक्ता जो, बिना किसी पर्याप्त कारण के, अपने कर्मी के वेतन में से काटी गई रकम को, कटौती की तिथि से चौदह दिनों के भीतर सहकारी समिति को चुकाने में असफल हो गया हो;
  • कोई व्यक्ति या संरक्षक जो जानबूझकर एक सहकारी समिति से सम्बंधित पुर्तकों, लेखाओं, कागजातों, अभिलेखों, नकद, प्रतिभूति एवं अन्य संपदा की संरक्षा की प्राधिकृत व्यक्ति को नहीं सौंपता; और
  • जो कोई, बोर्ड के सदस्यों या पदाधिकारियों के चुनाव से पहले, दौरान या पश्चात् भ्रष्ट तरीका अपनाता है।

बहु-राज्य सहकारी समितियों पर अनुप्रयोग: 243 यद

इस भाग के उपबंध बहु-राज्य सहकारी समितियों पर लागू होगे तथा राज्य विधानमण्डल, राज्य अधिनियम या राज्य सरकार के संशोधन के संदर्भ के अधीन रहते हुए, यह क्रमशः संसद, केंद्रीय अधिनियम या केंद्र सरकार के संदर्भ के तौर पर इसका निर्वचन किया जाएगा।

संघ शासित प्रदेशों पर अनुप्रयोग: 243यध

इस भाग के उपबंध संघ शासित प्रदेशों पर लागू होंगे तथा, संघ शासित प्रदेश में उनके लागू होने पर, विधानसभा न होने पर, यदि राज्य विधानमण्डल का संदर्भ है तो वह अनुच्छेद 239 के अधीन नियुक्त प्रशासक का संदर्भ माना जाएगा, विधान सभा वाले संघ शासित प्रदेश के संबंध में, यह विधान सभा का संदर्भ माना जाएगा।

परंतु राष्ट्रपति, भारत के राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, निदेश कर सकेगा कि किसी संघ प्रदेश या क्षेत्र पर, जैसा कि वह अधिसूचना में उल्लेख करता है, इस भाग के प्रावधान लागू नहीं होगे।

वर्तमान विधि की निरंतरता: 243 यन

इस भाग में किसी बात के होते हुए भी, सहकारी समितियों से संबंधित किसी विधि का कोई प्रावधान संविधान (97वां संशोधन) अधिनियम, 2011 के प्रारंभ से तुरंत पूर्व राज्य में प्रवृत्त है, जो इस भाग के उपबंधों के साथ असंगत हैं, जारी रहेंगे जब तक कि एक सक्षम विधानमण्डल या अन्य सक्षम प्राधिकरण इसे संशोधित या निरसित न कर दे या इसके प्रारंभ को एक वर्ष पूरा हो गया हो, जो भी पहले हो।

अधिनियम सहकारी समितियों के समावेश के लिए राज्य को सशक्त बनाता है। अधिनियम उपबंध करता है कि इस भाग के प्रावधान बहु-राज्य सहकारी समितियों पर लागू होंगे तथा, राज्य विधानमण्डल, राज्य अधिनियम या राज्य सरकार के संशोधन के संदर्भ के अधीन रहते हुए, यह क्रमशः संसद, केंद्रीय अधिनियम या केंद्र सरकार के संदर्भ के तौर पर इसका निर्वचन किया जाएगा। इस भाग के उपबंध संघशासित प्रदेशों पर लागू होगे तथा, संघ शासित प्रदेश में उनके लागू होने पर, विधानसभा न होने पर, यदि राज्य विधानमण्डल का संदर्भ है तो वह अनुच्छेद 289 के अधीन नियुक्त प्रशासक का संदर्भ माना जाएगा, विधानसभा वाले संघ शासित प्रदेश के संबंध में, यह विधानसभा का संदर्भ माना जाएगा। परंतु राष्ट्रपति, भारत के राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, निदेश कर सकेगा कि किसी संघ प्रदेश या क्षेत्र पर, जैसा कि यह अधिसूचना में उल्लेख करता है, इस भाग के प्रावधान लागू नहीं होंगे।

इस प्रकार, अधिनियम भारत में सहकारी समितियों के लोकतांत्रिक, पेशेवर, स्वायत्त एवं आर्थिक रूप से सुदृढ़ तरीके से कार्यकरण को सुनिश्चित करता है। लोकतांत्रिक आधार पर समन्वित व स्थापित सहकारिता आंदोलन ने 2008 में अपने स्थापना के 100 वर्ष पूरे कर लिए। इन 100 वर्षों में यह आंदोलन विश्व का सबसे बड़ा सहकारी आंदोलन बनकर उभरा है। 1908 में स्थापित सहकारिता आंदोलन, आने वाली नई चुनौतियों, तथा वांछित नए सामाजिक परिवर्तनों के लिए मार्ग प्रशस्त कर रहा है।

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