रसायन विज्ञान: सामान्य परिचय Chemistry: General Introduction
विज्ञान की वह शाखा जिसके अन्तर्गत पदार्थों के भौतिक रसायनिक गुणों, संघटन, संरचना तथा उसमें होने वाले भौतिक एवं रासायनिक परिवर्तनों का अध्ययन होता है, रसायन विज्ञान कहलाता है। केमिस्ट्री शब्द की उत्पत्ति मिस्र देश के प्राचीन नाम कीमिया से हुई है इसका अर्थ है- कालारंग।
लेवासिए (Antoine Lavoisier) को रसायन विज्ञान का जनक माना जाता है।
वर्तमान में रसायन विज्ञान, मानव के भौतिक जीवन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। रसायन विज्ञान, खाद्य फसलों की उत्पादकता में वृद्धि, स्वास्थ्य रक्षा, बीमारियों से बचाव, निर्माण सामग्री एवं अन्य मानवोपयोगी सामग्री के निर्माण एवं रख-रखाव में संलग्न है। मानव जीवन का कोई क्षेत्र ऐसा नहीं हैं, जिसे रसायन विज्ञान प्रभावित न कर रहा हो।
रसायन विज्ञान का विकास
प्रागैतिहासिक मानव ने धीरे-धीरे अपनी आवश्यकता की चीजों का आविष्कार किया था। उसने अपने बचाव के लिए पत्थर के औजार और हथियार बनाए। सींग, हड्डी और चमड़े का उपयोग भी वह करने लगा, लेकिन धातुओं की जानकारी में उसे बहुत समय लगा। सोना संभवत: पहली धातु थी जिसका उपयोग मानव ने सबसे पहले किया था। प्राचीन सभ्यताओं के विकास के इतिहास से पता चलता है कि मिस्र नदी की रेत को धो–छान कर सोने के कणों के रूप में प्राप्त किया जाता था। तब प्रस्तर काल के स्वर्ण आभूषणों के विभिन्न अवशेष उस समय के मानव की कार्यकुशलता और दक्षता के प्रमाण हैं। ईसा से चौदह शताब्दी पूर्व के मिस्री फराह, तूतेनखामेन के कब्र से शुद्ध सोने से बने अनमोल आभूषण और बर्तन प्राप्त हुए थे। फराह के सोने के ताबूत का वजन 110 किग्रा. था।
मिस्र और मेसोपोटेमिया के प्राचीन अवशेषों से जो वस्तुएं प्राप्त हुई हैं, उनमें तांबे की वस्तुएं भी शामिल हैं। ये वस्तुएं 3500 वर्ष पहले तांबे से बनाई गई थी। ऐसा माना जाता है कि सोने के बाद तांबा दूसरी धातु थी, जो मानव ने प्रयोग की।
तांबे के बाद टिन धातु का आविष्कार किया गया। मिस्र में यह धातु लगभग 300 ई.पू. मिश्र धातु के रूप में प्रयोग की जाती थी। मिस्र की खुदाई में ईसा से 1200 वर्ष पहले का टिन से बना गुलदस्ता प्राप्त हुआ है। मिस्र की एक कब्र से ईसा से 1580-1350 वर्ष पहले की बनी टिन की अंगूठी और बोतल मिली है। टिन की वस्तुओं में इन्हें सबसे पुराना माना जाता है।
ईसा से 2500 वर्ष पूर्व कांस्य युग की शुरूआत मिस्र से ही हुई। तांबे की अपेक्षा कांसा अधिक कड़ा होता है। टिन और तांबे के मेल से बनी यह धातु मूर्तियां, बर्तन, गहने, हथियार और औजार बनाने के लिए काम आती थी। मिस्र के एक मकबरे से ईसा से 3300 वर्ष पूर्व बनी कांसे की वस्तुएं मिली हैं। प्राचीन सुमेरियन सभ्यता के केन्द्र मेसोपोटेमिया के स्थान (उर) के नजदीक खुदाई में से कांसे से बने उत्तम नमूने के बर्तन और हथियार प्राप्त हुए हैं, जो 3000 ईसा पूर्व बनाए गये थे। इसी युग की चांदी की वस्तुएं भी प्राप्त हुई हैं। प्रमाणों से पता चलता है कि सुमेरियन सभ्यता के लोग सीसे से चांदी अलग करना जानते थे। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो नगरों की खुदाई में चांदी के आभूषण और बर्तन मिले हैं, जिनमें नर्तकी नामक कांसे की मूर्ति उल्लेखनीय है।
लोहा मनुष्य के हाथ बहुत देर से लगा। शुरू में आकाश से गिरने वाले उल्कापिंडों से लोहा प्राप्त किया जाता था। मिस्र में 3000 ईसा पूर्व लोहा प्राप्त किया जाता था। मिस्र में 3000 ईसा पूर्व लोहा गलाने की भट्टियां बन चुकी थी। चिओप के पिरामिड में 2900 ईसा पूर्व लोहे के औजार मिले हैं। मिस्र में लोहे की कमी थी, वहाँ के लोग एशिया माइनर के काले सागर के चारों ओर बसे हित्तियों के देश से लोहा प्राप्त करते थे, जो लोहे की वस्तुएं बनाने में कुशल थे।
असीरिया के लोग भी 1400 ईसा पूर्व लोहे का व्यापक इस्तेमाल करने लगे थे। भारत में लोहे का उपयोग 900 से 500 ईसा पूर्व माना गया है। दिल्ली में कुतुबमीनार के पास एक लौह स्तम्भ है, जो सन् 415 में बनाया गया था। इसमें 99.72 प्रतिशत लोहा है। इसकी ऊंचाई 8 मीटर और वजन 7 टन है। इसमें आज तक जंग नहीं लगा। चीन में लोहे का उपयोग ईसा से लगभग 500 वर्ष पूर्व शुरू हो चुका था।
मिस्र से प्राप्त प्राचीन वस्तुओं में कुछ सीसे की वस्तुएं भी है। इनमें सीसे की एक मूर्ति 6,000 वर्ष पुरानी है। इससे सिद्ध होता है कि सीसे का सबसे पहले इस्तेमाल करने वाले संभवत: मिस्रवासी ही थे। भारत में ईसा से 300-200 वर्ष पहले की कुछ मुद्राएं प्राप्त हुई हैं, जो सीसे की हैं। काफी बाद से रोमन और यूनानी सभ्यताओं के युग में सीसे का विविध रूपों में इस्तेमाल किया गया।
मिस्रवासियों और मेसोपोटेमिया के निवासियों ने धातु कर्म की विभिन्न विधियों को विकसित किया था। इस प्रकार रसायन-विज्ञान की ओर मानव अपना पहला कदम बढ़ा चुका था। मिट्टी के बर्तन तो मानव बहुत पहले बनाने लगा था, लेकिन उन्हें चिकना और चमकदार बनाने की कला धातुओं का ज्ञान होने के बाद ही विकसित हुई। 4000-3000 ईसा पूर्व सुमेर तथा मिस्रवासियों ने तांबे के यौगिकों का इस्तेमाल करके नीले या हरे रंग के चमकदार बर्तन बनाने शुरू किए। प्राप्त अवशेषों से ज्ञात हुआ है। कि उसी जमाने में कांच का निर्माण भी शुरू हो गया था। ईसा से लगभग 2500 वर्ष पहले मिस्रवासी, क्षार और स्फटिक को पिघलाकर कांच बनाते थे। मिस्र से यह ज्ञान प्राचीन सुमेरियन सभ्यता तक पहुंचा। आभूषण और रंगीन कांच के बर्तनों को देखने से पता चलता है कि वे नीले रंग का एक यौगिक कांच पर लगाया करते थे। इसे सिलिका तथा मैकाइट को चूने के साथ गर्म करके बनाया जाता था। चीन में यह कला ईसा से 600 वर्ष पूर्व पहुंची। चमकदार चीनी मिट्टी के बर्तन चीन में ही पहले-पहल बनाए गये।
मिस्रवासी ईसा से 1700-1500 वर्ष पूर्व नीले रंग के लिए नील की खेती किया करते थे। क्रीट में समुद्री मोलस्क से बैंगनी रंग प्राप्त किया जाता था। उस जमाने में कई प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल भी किया जाता था। कपड़ों को रंगने के लिए वे रंगों में धातु के यौगिक का रंगबंधक के रूप में इस्तेमाल करते थे। उस जमाने के मिस्र में सुन्दरियां एन्टीमोनाइट को अपने चेहरे पर पाउडर को रूप में लगाया करती थीं।
मिस्रवासी हजारों वर्ष पहले जौ से शराब बनाया करते थे। भारत में ईसा से 1000 वर्ष पूर्व सोमरस का प्रचलन था। प्राचीन काल के लोगों को अनेक रासायनिक यौगिकों का ज्ञान था। वे समुद्री पानी को वाष्पीकृत करके नमक बनाना जानते थे। चूने का पत्थर जलाकर चूना बनाना भी उन्हें आता था। पोटाश, शोरा, फिटकरी, गंधक, कार्बन, इत्र, तारपीन के तेल आदि का इस्तेमाल भी उस जमाने में किया जाता था। उस काल में प्राकृतिक वस्तुओं से औषधियां भी बनाई जाती थीं। ईसा से लगभग 2000 वर्ष पूर्व का एक औषधियों का बॉक्स बर्लिन के संग्रहालय में सुरक्षित रखा हुआ है।
मिस्र के प्राचीन निवासियों के बने रंगीन कांच और टाइलों के रंग आज भी उतने ही चमकदार हैं, जितने वे उस समय रहे होंगे; टाइलों पर बने रंगीन चित्र इस बात का प्रमाण है कि वे लोग ऐसे पदाथों को बनाना जानते थे, जिनमें रसायन के ज्ञान की आवश्यकता होती है। रोम के निवासी सीमेंट बनाना जानते थे। सीमेंट का जमना एक रासायनिक प्रक्रिया है। भारत में रसायन विज्ञान का अध्ययन प्राचीन काल से ही धातुशास्त्र और आयुर्वेद की सहायक विद्या के रूप में होता था। वैदिक काल में भारतीयों को धातु का ज्ञान था।
प्राचीन काल की वस्तुओं को देखने से पता चलता है कि उस जमाने में रसायन विज्ञान की नींव पड़ चुकी थी। यद्यपि उन लोगों का ज्ञान अधूरा था, लेकिन उसी ज्ञान के आधार पर हम विकास के मार्ग पर आगे बढ़े हैं।
कीमियागरी
कीमियागरी, रसायन विज्ञान का आरंभिक रूप था। कीमियागर सस्ती धातुओं को सोने में परिवर्तित करने की खोज में थे। सोने के अलावा दो और वस्तुएं थीं, जिन्हें वे अपनी प्रयोगशालाओं में बनाना चाहते थे। वे एक ऐसा पेय बनाना चाहते थे, जिसे पीने से बूढ़े लोग जवान हो जाएं और जो उसे एक बार पी ले, वह अमर हो जाए। दूसरा, वे एक ऐसे द्रव की खोज में थे, जिसमें सभी पदार्थ घुल जाएं।
प्राचीन मिस्र में सस्ती धातुओं से कृत्रिम सोना बनाना, रंग तथा रंगने की कला को विकसित करना आदि विज्ञान के मुख्य क्षेत्र थे। ईसा से 331 पूर्व मिस्र में एलेक्जेन्ड्रिया नगर की स्थापना हुई और यहीं से यूनानी-मिस्र रसायन विद्या से कीमियागरी की शुरूआत हुई। मिस्री लोगों द्वारा लिखी गई इस कला से संबंधित विषय-वस्तु को कीमिया कहते थे।
रसायन विज्ञान की शाखाएं
अकार्बनिक रसायन: इसमें कार्बनिक यौगिकों को छोड़कर शेष सभी तत्त्वों और उनके यौगिकों के बनाने की विधि, गुण-धर्म, उपयोग एवं संघटन का अध्ययन किया जाता है।
कार्बनिक रसायन: इसमें कार्बन व उसके यौगिकों का अध्ययन किया जाता है।
- भौतिक रसायन Physical Chemistry: इसमें भौतिक अभिक्रियाओं के नियमों तथा सिद्धांतों का अध्ययन किया जाता है।
- विश्लेषणात्मक रसायन Analytical Chemistry: इसमें पदाथों की पहचान तथा उनकी मात्रा निर्धारित करने का अध्ययन किया जाता है।
- औद्योगिक रसायन Industrial Chemistry: इसमें पदार्थों का व्यापारिक मात्रा में निर्माण करने वाले उद्योगों से सम्बन्धित नियमों, अभिक्रियाओं, विधियों आदि का अध्ययन किया जाता है।
- जीव रसायन Bio-Chemistry: इसमें जीवधारियों में होने वाली रासायनिक अभिक्रियाओं तथा प्राणियों तथा वनस्पतियों से प्राप्त पदाथों का अध्ययन किया जाता है।
- कृषि रसायन Agricultural Chemistry: इसमें कृषि से सम्बन्धित रसायनों का अध्ययन होता है।
- औषधि रसायन Pharmaceutical Chemistry: इसमें प्राणियों के प्रयोग में आने वाली औषधियों, उनके संघटन व बनाने की विधियों का अध्ययन किया जाता है।
- नाभिकीय रसायन Nuclear Chemistry: इसमें नाभिकीय क्रियाओं, रेडियो एक्टिव तत्व तथा इनके अनुप्रयोगों का अध्ययन होता है।