भारत में परोपकार प्रशासन Charities Administration in India
भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची के तहत् सूची-III की 28 मद के रूप में परोपकार (चेरिटी) एक समवर्ती विषय है, जिसका अर्थ है कि इस विषय पर विधि बनाने की शक्ति केंद्र एवं राज्य दोनों सरकारों को प्राप्त है। यथार्थ में, चेरिटी को प्रारंभिक तौर पर राज्य विषय समझा जाता है यद्यपि वर्तमान में केंद्रीय एवं राज्य दोनों संविधि मौजूद हैं जो गैर-लाभकारी क्षेत्र को प्रशासित करते हैं।
चेरिटी विधि हेतु कोई भी केंद्रीय विधान मौजूद नहीं है। इसके बावजूद अलाभकारी पंजीकरण हेतु तीन पृथक कानून हैं। चेरिटी को एक ट्रस्ट, दान, समाज या गैर-लाभकारी कपनी के रूप में लिया जा सकता है। चेरिटी के विनियमन हेतु दो राष्ट्रीय अधिनियम, सोसायटी एक्ट 1860 और कंपनी अधिनियम 1956 हैं।
गैर-लाभकारी संगठनों के तीन वृहद् स्वरूप हैं- सोसायटी, ट्रस्ट एवं कंपनी अधिनियम के तहत् धारा 25 की कंपनी। एक समाज आवश्यक रूप से लोगों का एक संघ होता है (सात या अधिक लोग) जो एक साझा उद्देश्य की प्राप्ति हेतु एक साथ एकत्रित होते हैं। ऐसे उद्देश्य सामान्यतः चेरिटेबल, वैज्ञानिक एवं साहित्यिक होते हैं। सैद्धांतिक रूप से, एक सोसायटी को पंजीकरण कराने की आवश्यकता नहीं है लेकिन पंजीकरण सोसायटी को कानूनी मान्यता प्रदान करता है और बैंक खाता खुलवाने, क़ानूनी याचिका दायर करने, आय-कर अनुमति प्राप्त करने, संपत्ति की क़ानूनी मान्यता इत्यादि हेतु अपरिहार्य है।
एक सोसायटी का पंजीकरण सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के अंतर्गत होता है। इसके अतिरिक्त विभिन्न राज्यों ने अपने सम्बद्ध अधिनियम बनाए हैं और सोसायटी के कार्यकरण के लिए नियम निर्धारित किए हैं, जिसमें आवश्यक विभाजन, संयुग्यता या विघटन शामिल हैं।
ट्रस्ट गठित किया जाता है, यदि एक व्यक्ति या तो संपत्ति या आय को चेरिटेबल उद्देश्य हेतु रखना चाहता है ताकि आय को लोकोपकारी कार्यों की पूर्ति के लिए समर्पित किया जा सके।
लोकोपकारी न्यास को परोपकारी उद्देश्य की परिभाषा करने की आवश्यकता होती हे, जिसमें निर्धनों की मदद, शिक्षा, चिकित्सा राहत एवं सामान्य जन उपयोगिता के किसी अन्य उद्देश्य का उन्नयन शामिल होता है, जैसाकि आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 2(15) एवं वित्त अधिनियम, 1983 द्वारा संशोधन में शामिल है।
ट्रस्ट में सामान्यतः तीन पक्ष होते हैं- दानकर्ता, ट्रस्टी (न्यासी) एवं लाभार्थी। इसे सामान्यतः ट्रस्ट डीड के माध्यम से सृजित किया जाता है। एक ट्रस्ट निजी या सार्वजनिक, निश्चित या स्वविवेकीय हो सकता है।
एक गैर-लाभकारी कपनी को कपनी अधिनियम, 1956 की धारा 25 के तहत् गठित किया जा सकता है। धारा 25 के तहत् एक कंपनी वाणिज्य, संवर्द्धन, कला, विज्ञान, धर्म लोकोपकार हेतु लोगों का स्वैच्छिक संघ है।
धारा 25 के तहत् कंपनी को अलग कानूनी मान्यता प्राप्त होती है, पूरी तरह से अपने सदस्यों से स्वतंत्र होती है और चिरस्थायी उत्तराधिकार रखती है। जबकि अलाभकारी कपनियांसीमित देयता वाली होती हैं, उन्हें अपने नाम में लिमिटेड शब्द लगाने की आवश्यकता नहीं होती है। कोई भी सदस्य स्वतंत्र रूप से या संयुक्त रूप से कंपनी की इसके अस्तित्व के दौरान संपत्ति में स्वामित्वधिकार का दावा नहीं कर सकता और इसके सदस्यों में लाभ या संपत्ति नहीं बांट सकता। सदस्यता (स्वामित्व) अधिकार हस्तांतरणीय होते हैं। कपनी विधि के अंतर्गत निर्माण एवं विनियमन प्रक्रियाएं बेहद जटिल होती हैं। यद्यपि प्रक्रिया जटिल है, यदि आवश्यक हो तो कपनी के उद्देश्यों में संशोधन किया जा सकता है। अलाभकारी आधार पर सेवा प्रदायन एवं व्यापार संभव है।
चेरिटी प्रशासन में सुधार
चेरिटी प्रशासन में सुधार राज्य एवं केंद्र दोनों स्तरों पर किए गए हैं। राज्य द्वारा समय-समय पर चेरिटेबल संस्थानों में कुप्रबंधन को रोकने हेतु प्रयास किए गए हैं। जबसे परोपकार को राज्य का विषय माना गया है, राज्य सरकार द्वारा परोपकारी संगठनों के प्रशासन में सुधार के बेहद प्रयास किए गए हैं।
कुछ पूर्व प्रयासों में ट्रस्ट सुधार किए गए जिसे तत्कालीन मद्रास सरकार ने हिंदू धार्मिक एवं लोकोपकारी दान पर लागू अधिनियमों की श्रृंखला के रूप में किया गया। अन्य राज्य जहां लोकोपकारी संस्थाओं के कार्यकरण की समय-समय पर समीक्षा गंभीर रूप से की गई, वह महाराष्ट्र था, जहां पर 1950 से 1997 के बीच 25 बार बॉम्बे पब्लिक ट्रस्ट अधिनियम को संशोधित किया गया।
केंद्र स्तर पर, देश में परोपकार की स्थिति मुख्य रूप से आयकर विभाग की चिंता का विषय रही है और अधिकांशतः कर छूट के दुरुपयोग से सम्बद्ध रही है। कई आयोग एवं समितियां कर सुधार के मामले की तफतीश के तौर पर परोपकार की स्थिति का विश्लेषण करती रही हैं। हाल ही के प्रयासों में प्रत्यक्ष कर प्रशासन जांच समिति, 1958-59 को लिया जाता है। इस समिति ने पाया कि आयकर अधिनियम में चेरिटी से सम्बद्ध प्रावधानों के अंतर्गत छद्म चेरिटेबल संगठन के गठन से व्यक्तिगत व्यवसाय के लिए कर छूट ली जाती है। वांचू समिति (प्रत्यक्ष कर जांच समिति), 1972 ने गौर किया कि परोपकार संबंधी प्रावधानों का दुरुपयोग निरंतर जारी है। कर सुधार पर 1992 में गठित राजा चैलया समिति ने भी परीक्षण किया कि परोपकार और लोकोपकारी संगठनों की आड़ में प्रावधानों से बचा जा रहा है। समिति ने प्रक्रियाओं के सरलीकरण एवं विलम्ब के न्यूनीकरण के ढेर सारे सुझाव दिए। समिति ने निष्कर्ष निकाला कि जबकि- परोपकार शायद एक आकर्षक या वांछनीय उद्देश्य है, इस बात का कोई प्रकरण नहीं है कि इसे राजस्व व्यय करके अधिकाधिक आकर्षक बनाया गया हो।
इसी प्रकार, लोक लेखा समिति, 1994-95 ने भी विचार दिया कि ट्रस्ट को कर छूट देने में शामिल राजस्व की मात्रा बेहद अधिक है और तब भी इन ट्रस्टों के वित्तपोषण का किसी भी प्रकार से व्यवस्थित मूल्यांकन नहीं किया जा रहा है।
स्वैच्छिक क्षेत्र से सम्बद्ध कानूनों पर टास्क फोर्स परोपकार संबंधी क्षेत्र के नियमन एवं संवर्द्धन पर शायद अभी तक का सबसे व्यापक विश्लेषण रहा है, जिसका गठन नवम्बर, 2000 में किया गया। टास्क फोर्स ने परोपकार क्षेत्र से सम्बद्ध सभी केंद्रीय अधिनियमों पर विचार किया जिसमें आयकर अधिनियम, 1961; सोसायटी पंजीकरण अधिनियम 1860; एफसीआरए; एवं श्रम कानून शामिल हैं।
भारत में महत्वपूर्ण लोकोपकारी संस्थान हैं- सम्प्रदान; प्लान इंडिया; सेव द गर्ल फाउंडेशन; एशोसिएशन फॉर इण्डियाज डेवलपमेंट; अमेरिकन इण्डियन फाउंडेशन; दीपक फाउंडेशन; इण्डिया हेल्थ इनिशिएटिव; लर्निंग फॉर लाइफ, रूरल डेवलपमेंट फाउंडेशन; संकुर्थी फाउंडेशन; वॉलेन्टियर फॉर रूरल इण्डिया; तेलंगाना डेवलपमेंट फोरम; एग्रीकल्चरल डेवलपमेंट एंड ट्रेनिंग सोसायटी (एडीएटीएस); बोस्को सेवा केंद्र (बीएसएफ); हैंड इन हैंड; मोतीवाला एजुकेशन एंड वेलफेयर ट्रस्ट, हेल्पऐज; गिव वर्ल्ड; हील, लाइफ बिल्डर, सलाम बालक ट्रस्ट, चाइल्ड हेवेन; प्रथम; स्मेरिटन हेल्प; और कम्युनिटी एक्शन फॉर रूरल डेवलपमेंट इत्यादि।
संस्थागत एवं अन्य पक्षों का योगदान
संस्थागत भूमिका
अंतरराष्ट्रीय संस्थागत अभिकरणों ने भारत की विकास प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। विकास के कुछ बेहद अनिवार्य अभिकरण हैं- आईबीआरडी, आईडीए; यूनडीपी, ओईसीडी, एवं अंकटाड जबकि यूएसएआईडी, ईयू, जापान अंतरराष्ट्रीय कॉर्पोरेशन एजेंसी, इत्यादि अन्य अंतरराष्ट्रीय पक्ष हैं।
अंतरराष्ट्रीय पुनर्निर्माण एवं विकास बैंक (आईबीआरडी) का उद्देश्य मध्य आय देशों में निर्धनता कम करना और ऋण, गारंटी, से पोषणीय विकास द्वारा विचारणीय रूप से गरीब देशों की सहायता करना है। विश्व बैंक समूह के मूल संस्थान के रूप में 1944 में स्थापित आईबीआरडी एक सहकारी संगठन की तरह गठित हुआ जिसका लक्ष्य अपने 188 सदस्य देशों के लाभ हेतु संचालित होना था।
अंतरराष्ट्रीय विकास संघ (आईडीए) विश्व बैंक का एक हिस्सा है जो विश्व के निर्धनतम देशों की मदद करता है। वर्ष 1960 में स्थापित आईडीए का उद्देश्य आर्थिक संवृद्धि में वृद्धि एवं असमानता में कमी करने वाले कार्यक्रमों को ऋण एवं अनुदान प्रदान करके निर्धनता में कमी करना और लोगों के जीवन स्तर में सुधार करना है।
बहुपक्षीय निवेश गारंटी अभिकरण (एमआईजीए)
विश्व बैंक समूह का एक सदस्य है। इसका उद्देश्य विकासशील देशों में आर्थिक संवृद्धि में मदद करने, निर्धनता उन्मूलन; एवं मानव जीवन स्तर में सुधार करने के लिए विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) को बढ़ावा देना है।
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी)
समाज के सभी स्तरों पर लोगों की मदद राष्ट्र निर्माण में करता है जिससे राष्ट्र संकट की स्थिति में भी मजबूती से खड़ा रहे और इस प्रकार की संवृद्धि को बढ़ाने एवंबनाए रखने का प्रयास करता है जो प्रत्येक की जीवनगुणवत्ता में सुधार करे। यह मानवाधिकारों के संरक्षण, क्षमता विकास एवं महिला सशक्तिकरण को प्रोत्साहित करता है। इसका केंद्रीकरण राष्ट्रों को निर्धनता उन्मूलन, लोकतांत्रिक शासन, संकट रोकथाम एवं पुनर्स्थापन पोषणीय विकास हेतु पर्यावरण एवं ऊर्जा की चुनौतियों के समाधान हेतु सशक्त बनाना है।
आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (ओईसीडी) का उद्देश्य सदस्य देशों की आर्थिक संवृद्धि, रोजगार, एवंनीति के समन्वय के माध्यम से लोगों के जीवन स्तर में सुधार करना है।
यूनाइटेड नेशन्स कांफ्रेंस ऑन ट्रेड एंड डेवलपमेंट (अंकटाड), की स्थापना 1964 में स्थायी अंतर्सरकारी निकाय के तौर पर की गई, जो संयुक्त राष्ट्र महासभा का एक प्रधान अंग है जो व्यापार, निवेश एवं विकास मामलों को देखता है। इसका कार्य विकासशील देशों के व्यापार, निवेश एवं विकास अवसरों को अधिकतम करना है और समान आधार पर विश्व अर्थव्यवस्था में उनके एकात्म होने के प्रयास में उनकी मदद करना है। यह विकासशील देशों को उनकी जरूरतों के तहत् तकनीकी मदद प्रदान करता है।
एशियाई विकास बैंक (एडीबी) एक बहुपक्षीय विकास वित्तीय संस्थान है, जो एशिया एवं प्रशांत में निर्धनता उन्मूलन को समर्पित है। यह विकास की गतिविधियों की व्यापक श्रृंखला को ऋण एवं तकनीकी सहायता मुहैया कराकर जीवन को गुणवत्ता में सुधार करने में मदद करता है।
संयुक्त राष्ट्र का खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) की नीव वर्ष 1945 में इस जनादेश से डाली गई कि वह पोषण स्तर में वृद्धि एवं जीवनस्तर में सुधार करेगा जिसके लिए कृषि उत्पादकता में सुधार करेगा।
संयुक्त राष्ट्र औद्योगिक विकास संघ (यूनिडो) औद्योगिक समस्याओं के समाधान के लिए सरकारों, व्यवसायियों के संघों एवं वैयक्तिक कम्पिनियों के साथ मिलकर कम करता है और इनसे उबरने में उनकी मदद करता है। यह औद्योगिक विकास पर ध्यान देता है और उद्योग के सामाजिक, आर्थिक और तकनीकी परिस्थितियों के लिए एक वैश्विक संघ के तौर पर कार्य करता है।
अंतरराष्ट्रीय वित्त निगम, विश्व बैंक समूह का एक सदस्य है, एक वृहद वैश्विक विकास संस्थान है जो विशिष्ट रूप से विकासशील देशों में निजी क्षेत्र पर ध्यान देता है।
यूएसएआईडी की स्थापना प्रगति एवं नवोन्मेष के विजन से नवम्बर 1961 में की गई थी। यूएसएआईडी 100 से अधिक देशों में कार्य कर रहा है। जिसमें वृहद सहभागी आर्थिक समृद्धि का प्रोत्साहन; लोकतंत्र एवं अभिशासन का सशक्तिकरण; मानवाधिकारों का संरक्षण; वैश्विक स्वास्थ्य सुधार; खाद्य सुरक्षा एवं कृषि का उन्नयन; पर्यावरणीय पोषणीयता में सुधार; उच्च शिक्षा; मतभेदों को रोकने एवं उबरने में समाज की सहायता करना; और प्राकृतिक एवं मानव-जनित आपदा की स्थिति में मानवीय सहायता प्रदान करना। यूएसएआईडी भारत के साथ नवोन्मेषी तकनीकियों के विकास, परीक्षण, एवं स्थापना में मिलकर कार्य कर रहा है ताकि खाद्य सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन एवं स्वास्थ्य जैसी वैश्विक चुनौतियों से निपटा जा सके।
जापान अंतरराष्ट्रीय सहयोग एजेंसी (जेआईसीए) जन सुरक्षा के क्षेत्र में कार्य करता है और प्रभावशीलता, कार्यदक्षता एवं गति एवं वृद्धि करता है। यह जापान के लोगों एवं विकासशील देशों के बीच पुल के तौर पर कार्य करता है।
डायरेक्ट रिलीफ एक अलाभकारी संगठन है जो पूरे विश्व में गरीबी, प्राकृतिक आपदा एवं गृह युद्ध से घिरे एवं प्रभावित लोगों को चिकित्सकीय मदद मुहैया कराता है। एक्शन ऐड एक अंतरराष्ट्रीय निर्धनता विरोधी एजेंसी है जिसका उद्देश्य पूरे विश्व में गरीबी के खिलाफ मोर्चा खोलना है।
आगा खान फाउंडेशन एक अंतरराष्ट्रीय विकास एजेंसी है जिसकी स्थापना वर्ष 1967 में की गई। इसका उद्देश्य ऐसी समस्याओं का सृजनात्मक समाधान विकसित एवं प्रोत्साहित करना है जो सामाजिक विकास में गतिरोध एवं रुकावट पैदा करती है, प्राथमिक रूप से एशिया एवं पूर्वी अफ्रीका में।
राष्ट्रीय स्तर पर भारत की विकास प्रक्रिया में शामिल संस्थागत एजेंसी है- केंद्र एवं राज्य सरकार के मंत्रालय, राष्ट्रित विकास परिषद् (एनडीसी), योजना आयोग, पंचायती राज संस्थाएं, रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया (आरबीआई), व्यापारिक बैंक, वित्तीय संस्थान, पूंजी बाजार संगठन, आधारिक विकास संसथान एवं गैर-बैंकिंग वित्तीय निगम (एनबीएफसी)।
स्टेकहोल्डर्स की भूमिका
आजकल स्टेकहोल्डर (साझेदार) शब्दका इस्तेमाल नियोजन, लोक नीति एवं शासन-अभिशासन पर विचार-विमर्श में बढ़ता जा रहा है। इस संदर्भ में, स्टेकहोल्डर से तात्पर्य उस सामाजिक समूह या संस्था से है जिसका विचार-विमर्श के तहत् नीति या नियोजन में हित होता है। इस तथ्य से जो बात सामने निकलकर आती है, वह है कि स्टेकहोल्डर्स हित समूह के समान हैं। स्टेकहोल्डर्स एक संगठन के कार्यो, उद्देश्यों एवं नीतियों से प्रभावित हो सकता है और इन्हें प्रभावित कर सकता है।
व्यवसाय के संदर्भ में, स्टेकहोल्डर एक व्यक्ति या संगठन है जिसका एक कार्यक्रम या सत्ता में हित है। स्टेकहोल्डर के हित कई एवं भिन्न रूपों में हो सकते हैं। इनमें से कुछ सामान्य हित निम्न प्रकार हो सकते हैं-
- आर्थिक: एक रोजगार प्रशिक्षण कार्यक्रम निम्न आय लोगीं के लिए आर्थिक संभावनाओं में सुधारवाले हो सकते हैं। क्षेत्रीय विनियमन भी विभिन्न समूहों के लिए आर्थिक परिणामों वाले हो सकते हैं।
- सामाजिक परिवर्तन: जातीय सद्भाव के सुधार का प्रयास जातीय या प्रजातीय अल्पसंख्यकों एवं बहुसंख्यकों दोनों के सदस्यों के लिए सामाजिक माहौल बदल सकता है।
- कार्यं संतुष्टि: कामगारीं को निर्णयन प्रक्रिया में शामिल करना कार्य समय को बढ़ा सकता है और लोगों को उनके काम के प्रति अधिक संतुष्टि दे सकता है।
- तनाव में कमी: लोचशीलता कार्य घंटे, देखभाल करने वालों के लिए राहत कार्यक्रम, पेरेंटल अवकाश, एवं अन्य प्रयास जो लोगों की आराम करने या जीवन के कार्य करने का समय प्रदान करे, तनाव कम कर सकते हैं और उत्पादकता में वृद्धि करते हैं।
- पर्यावरणीय संरक्षण: खुले क्षेत्रों का संरक्षण, संसाधनों का संरक्षण, जलवायु परिवर्तन पर ध्यान, एवं अन्य पर्यावरणीय प्रयास प्रतिदिन जीवन में शामिल किए जा सकते हैं। ये व्यवसाय एवं निजी स्वामित्व के लिए भी नुकसानदेह दिखाई देते हैं।
- शारीरिक स्वास्थ्य: निःशुल्क एवं कम कीमत पर चिकित्सीय सुविधाएं एवं अन्य समान कार्यक्रम निम्न-आय लोगों को प्रत्यक्ष लाभ पहुंचाते हैं एवं समुदाय स्वास्थ्य में सुधार कर सकते हैं।
- सुरक्षा एवं बचाव: पड़ोस निगरानी या निगरानी कार्यक्रम, उच्च अपराध वाले क्षेत्रों में बेहतर पुलिस, सुरक्षा कदमों पर कार्य इत्यादि एवं कई अन्य प्रयास विशिष्ट जनसंख्या हेतु सुरक्षा में सुधार कर सकते हैं या पूरे समुदाय के लिए ऐसा किया जाना संभव हो सकता है।
- मानसिक स्वास्थ्य: सामुदायिक मानसिक स्वास्थ्य केंद्र एवं वयस्क डे केयर बेहद महत्वपूर्ण हैं न केवल उन लोगों के लिए जो मानसिक स्वास्थ्य मामलों से पीड़ित हैं, अपितु उनके परिवार एवं समग्र रूप में समुदाय के लिए भी महत्वपूर्ण हो सकते हैं।
योजना से संबंध के आधार पर स्टेकहोल्डर्स को प्राथमिक स्टेकहोल्डर्स, सेकेण्डरी स्टेकहोल्डर्स एवं मुख्य स्टेकहोल्डर्स के तौर पर वर्गीकृत किया जा सकता है।
प्राथमिक स्टेकहोल्डर्स वे लोग या समूह होते हैं जो किसी एजेंसी, संस्था या संगठन के कार्य से, या तो सकारात्मक रूप से या नकारात्मक रूप से, प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होते हैं।
सेकण्डरी स्टेकहोल्डर्स ऐसे लोग एवं समूह होते हैं जो किसी एजेंसी, संस्था या संगठन के कार्यों से, या तो सकारात्मक रूप से या नकारात्मक रूप से, अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होते हैं।
मुख्य स्टेकहोल्डर्स वे होते हैं जो या तो पहले दो समूहों से संबद्ध होते हैं या सम्बद्ध नहीं होते या कार्यक्रम में संलग्न संगठन, एजेंसी या संस्था से सम्बद्ध होते हैं। एक संगठन के निदेशक स्वाभाविक मुख्य स्टेकहोल्डर्स हो सकते हैं, लेकिन लाइन स्टाफ भी हो सकते हैं- जो सहभागियों के साथ प्रत्यक्ष रूप से काम करते हैं। मुख्य स्टेकहोल्डर्स को वर्गीकृत किया जा सकता है जैसे-
- सरकारी अधिकारी एवं नीति-निर्माता;
- वे जो अन्य लोगों को प्रभावित कर सकते हैं; और
- वे जो एक कार्यक्रम या प्रयास में अपना हित रखते हैं।
एक कंपनी में कई स्टेकहोल्डर्स हो सकते है जैसे, कर्मचारी, समुदाय, शेयरधारक, ऋणदाता, निवेशक, सरकार, उपभोक्ता, आपूर्तिकर्ता, श्रमिक संघ, सरकारी विनियामक एजेंसी, सरकारी विधायी निकाय, सरकारी कर संग्रहण एजेंसी, उद्योग व्यापार समूह, पेशेवर संघ, गैर सरकारी-संगठन एवं अन्य दबाव समूह, संभावित कर्मचारी, संभावित उपभोक्ता, स्थानीय समुदाय, राष्ट्रीय समुदाय, वैश्विक समुदाय, प्रतिस्पर्द्धा विद्यालय, भविष्य निर्माण, विश्लेषक एवं मीडिया, एलुमिनी (पूर्व कर्मचारी), एवं अनुसंधान केंद्र।
एक प्रभावी स्वास्थ्य देखभाल कार्यक्रम में शामिल स्टेकहोल्डर्स हो सकते हैं-
- रोगी की देखभाल करने वाले, एवं रोगी वकालत संगठन;
- चिकित्सा एवं उनके पेशेवर संघ;
- संस्थागत स्वास्थ्य देखभाल प्रदाता, जैसे अस्पताल व्यवस्था एवं चिकित्सालय;
- सरकारी अभिकरण;
- केंद्र, राज्य एवं स्थानीय स्तर पर स्वास्थ्य संबंधी नीति-निर्माता; और
- स्वास्थ्य शोधार्थी एवं अनुसंधान संस्थान।
शिक्षा में स्टेकहोल्डर्स होते हैं- स्वयं बच्चा, उसके अभिभावक, एवं परिवार, उसके अध्यापकगण, प्रधानाचार्य, शिक्षा मंत्रालय, समुदाय, व्यवसाय एवं उद्योग, एलुमिनी एशोसिएशन एवं विद्यालय प्रबंधन समिति।
सामाजिक समावेशन एवं सामाजिक संरक्षण नीतियों में विभिन्न प्रकार के स्टेकहोल्डर्स शामिल होते हैं। वे हैं-
- संसद;
- सरकारी विभाग एवं अभिकरण;
- लोक सेवक/प्रशासक;
- विशिष्ट देशों में सामाजिक सहयोगी;
- गैर-सरकारी संगठनों के प्रतिनिधि;
- सामाजिक समावेशन के क्षेत्र में सम्बद्ध नेटवर्क एवं विशेषज्ञ;
- मीडिया; और
- वैश्विक समुदाय जिसमें निर्धनता में रह रहे लोग या सामाजिक समावेशन की समस्या का सामना कर रहे लोग शामिल होते हैं।