केंद्रीय सतर्कता आयोग Central Vigilance Commission – CVC
केंद्रीय सतर्कता आयोग का गठन भारत सरकार द्वारा फरवरी 1964 में के. संथानम समिति की भ्रष्टाचार रोकथाम संबंधी सलाह एवं निर्देश के आधार पर किया गया। 25 अगस्त, 1998 से राष्ट्रपति के एक अध्यादेश द्वारा इसे संविधि दर्जा दिया गया।
उल्लेखनीय है कि 11 सितंबर, 2003 को केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम 2003 अस्तित्व में आया जिससे इस आयोग को स्पष्ट कार्यशैली मिली। आयोग में एक केंद्रीय सतर्कता आयुक्त, अधिकतम दो सतर्कता आयुक्त होते हैं। इसके संगठनात्मक ढांचे के अंतर्गत- सचिवालय, मुख्य तकनीकी परिक्षण विंग, विभागीय जांच हेतु आयुक्तों का विंग आते हैं।
केंद्रीय सतर्कता आयोग की शक्तियां एवं कार्य
- दिल्ली विशेष पुलिस इस्टेबलिशमेंट (DSPE) द्वारा भ्रष्टाचार प्रतिषेध अधिनियम 1988 के अंतर्गत की जाने वाली जांच का निरीक्षण करना,
- डी.एस.पी.ई. द्वारा अपराध की जांच की प्रगति की समीक्षा करना
- अनुशासनात्मक मुद्दों पर अन्य प्राधिकरणों को स्वतंत्र एवं निष्पक्ष सलाह देना
- सी.बी.आई. के निदेशक, प्रवर्तन निदेशालय के निदेशक एवं दिल्ली विशेष पुलिस इस्टेबलिशमेंट में अधीक्षक एवं उससे उच्च स्तर के अधिकारियों का चयन करने वाली समिति की अध्यक्षता करना।
केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम के अंतर्गत आयोग की न्यायिक अधिकारिता
- इसके अंतर्गत अखिल भारतीय सेवा संघ के अधिकारी एवं केंद्र सरकार के समूह ए के अधिकारी आते हैं।
- सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के स्केल v एवं इससे उच्च स्तर के अधिकारी,
- भारतीय रिजर्व बैंक, नाबार्ड एवं सिडबी में ग्रेड(डी) एवं इससे ऊपर के अधिकारी
- सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम के मुख्य कार्यकारी एवं सूची A एवं B से उच्च अधिकारी
- जनरल इंश्योरेंस कपनी के प्रबंधक एवं इससे उच्च स्तर के अधिकारी
- भारतीय जीवन बीमा निगम के वरिष्ठ मंडलीय प्रबंधक एवं इससे उच्च स्तर के अधिकारी
- उल्लेखनीय है कि केंद्रीय सतर्कता आयोग ने नागरिकों के करने योग्य और न करने योग्य कार्यों की एक नागरिक निर्देशिका, प्रकाशित की है। इसका उद्देश्य नागरिकों के मध्य भ्रष्टाचार के खिलाफ एक सामाजिक माहौल एवं जागरूकता पैदा करना है।