रक्त या रुधिर Blood
रक्त या रुधिर के तरल भाग को प्लाज्मा (Plasma) कहते हैं। इसमें रुधिर कणिकाएँ (Blood corpuscles) तैरती रहती हैं।
प्लाज्मा (Plasma): यह हल्के पीले रंग का चिपचिपा और थोड़ा क्षारीय (AIkaline) द्रव्य होता है जो आयतन के हिसाब से सम्पूर्ण रुधिर का 55% भाग है। शेष 45% में रुधिर कणिकाएँ होते हैं। प्लाज्मा में 90% भाग जल तथा शेष 10% भाग में प्रोटीन तथा कार्बनिक एवं अकार्बनिक पदार्थ होते हैं।
रुधिर कणिकाएं (Blood corpuscles): ये तीन प्रकार की होती हैं-
(i) लाल रुधिर कणिकाएं (Red blood corpuscles or RBC or erythrocytes)
(ii) श्वेत रुधिर कणिकाएं (white blood corpuscles or wbc or leucocytes)
(iii) प्लेटलेट्स (Platelets)
लाल रुधिर कणिकाएँ (RBC): ये रुधिर कणिकाओं का 99% होती हैं। इन्हें इरिथ्रोसाइट्स (Erythrocytes) भी कहते हैं। ये केवल कशेरुकी प्राणियों में ही पाये जाते हैं। लाल रुधिर कणिकाओं में हीमोग्लोबिन नामक एक प्रोटीन रंजक होता है जिसके कारण इन कणों का रंग लाल होता है। हीमोग्लोबिन (Haemoglobin) एक प्रोटीन ग्लोबिन (96%) तथा एक रंजक हीम (4%) से बना होता है। हीम (Haeme) अणु के केन्द्र में लोहा (Fe) होता है जिसमें ऑक्सीजन को बाँधने और मुक्त करने की क्षमता होता है। हीमोग्लोबिन की प्रमुख विशेषता यह है कि वह ऑक्सीजन को शोषित कर गहरे लाल रंग का ऑक्सी-हीमोग्लोबिन (Oxy-haemoglobin) नामक अस्थायी यौगिक बनाता है जो विखंडित होकर ऑक्सीजन को छोड़ देता है। यह ऑक्सीजन मानव शरीर के विभिन्न हिस्सों में पहुँचती है और कार्बन डाईऑक्साइड को वापस लाती है। स्तनधारियों के लाल रुधिर कणिकाओं के जीवद्रव्य में केन्द्रक का पूर्ण अभाव होता है। स्तनधारी प्राणियों में ऊँट (Camel) ही एक ऐसा प्राणी है जिसकी लाल रुधिर कणिकाओं में केन्द्रक पाया जाता है। ये लाल अस्थिमज्जा में बनती हैं।
(ii) श्वेत रुधिर कणिकाएँ (WBC): इन्हें ल्यूकोसाइट्स (Leucocytes) भी कहते हैं। ये अनियमित आकृति की केन्द्रकयुक्त तथा हीमोग्लोबिनरहित होती है। इनकी संख्या लाल रुधिर कणिकाओं (RBC) की अपेक्षा बहुत कम होती है। मनुष्य के शरीर में इनकी संख्या 5 से 9 हजार तक होती है। कुछ सूक्ष्मकणों की उपस्थिति के आधार पर इन्हें दो प्रकार का माना जाता है। जिन श्वेत रुधिर कणिकाओं में कण (Granules) मौजूद होते हैं उन्हें ग्रेनुलोसाइट्स (Granulocytes) कहते हैं। जैसे- न्यूट्रोफिल (Neutrophil), इओसिनोफिल (Eosinophils) और बेसोफिल (Basophil)। इनका केन्द्रक पालिवत होता है। कुछ श्वेत रुधिर कणिकाओं के कोशिका द्रव्य में कण (Granule) नहीं पाये जाते हैं। इन्हें एग्रेनुलोसाइट्स (Agranulocytes) कहते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं- लिम्फोसाइट्स (Lymphocytes) एवं मोनोसाइट (Monocytes)। लिम्फोसाइट्स एंटीबॉडी (Antibody) के निर्माण में भाग लेती है जबकि अन्य श्वेत रुधिर कणिकाएँ जीवाणुओं को नष्ट करने का प्रधान कार्य करती हैं।
(iii) रुधित प्लेटलेट्स या थ्राम्बोसाइट्स (Blood platelets or thrombocytes): ये केवल स्तनधारी वर्ग के रक्त में पायी जाती हैं। इनकी संख्या 2 से 5 लाख प्रति घन मिमी रक्त में होती है। स्तनियों में ये सूक्ष्म, रंगहीन, केन्द्रकहीन, कुछ गोलाकार टिकिये के समान होते हैं। इनका मुख्य कार्य शरीर के कट जाने पर रक्त के बहाव को रोकना है जिससे कि शरीर में रक्त की मात्रा कम न होने पाए। इस प्रकार ये रक्त का थक्का बनने (Blood Clotting) में मदद करती है।
रुधिर के कार्य (Function of blood): रुधिर के दो प्रमुख कार्य हैं- परिवहन एवं ताप नियंत्रण। रुधिर द्वारा पची भोजन सामग्री, अंतःस्रावी एवं उत्सर्जी पदार्थों, गैसों (O2 एवं CO2) आदि का परिवहन विभिन्न अंगों में होता है। यकृत और पेशियों में जो ताप उत्पन्न होता है वह रुधिर द्वारा शरीर के विभिन्न भागों में पहुँचाया जाता है, जिससे शरीर का तापमान नियंत्रित होता है। श्वेत रुधिर कणिकाएँ जीवाणुओं तथा अन्य हानिकारक पदार्थों को नष्ट कर देते हैं। प्लेट्लेट्स रुधिर को जमाने में मदद करता है।
रुधिर स्कंदन (Blood Clotting): जब किसी कटे हुए भाग से रुधिर बाहर निकलता है, तब यह जैली के रूप में कुछ ही मिनटों में जम जाता है, इसे स्कंदन कहते हैं। रुधिर का थक्का बनने की क्रिया एक जटिल क्रिया है। जब किसी स्थान से रुधिर बहने लगता है और जब यह रुधिर वायु के सम्पर्क में आता है तो रुधिर में उपस्थित थ्राम्बोसाइट्स टूट जाता है तथा इससे एक विशिष्ट रासायनिक पदार्थ मुक्त होकर रुधिर के प्रोटीन से क्रिया करता है तथा प्रोथ्रोम्बोप्लास्टीन नामक पदार्थ में बदल जाता है। यह प्रोथ्रोम्बोप्लास्टीन रुधिर के कैल्शियम आयन से क्रिया करके थ्रोम्बोप्लास्टीन बनाती है । थ्रोम्बोप्लास्टीन, कैल्शियम आयन (Ca++) तथा ट्रिप्टेज नामक एंजाइम के साथ क्रिया करके निष्क्रिय प्रोथ्रोम्बीन को सक्रिय थ्रोम्बोन नामक पदार्थ में परिवर्तित कर देता है। यह सक्रिय थ्रोम्बीन रुधिर के प्रोटीन फाइब्रिनोजेन पर क्रिया करता है और उसे फाइब्रिन में परिवर्तित कर देता है। फाइब्रिन बारीक एवं कोमल तन्तुओं का जाल बनता है। यह जाल इतना बारीक एवं सूक्ष्म होता है कि इसमें रुधिर के कण (विशेषकर RBC) फंस जाती है और एक लाल ठोस पिंड-सा बना देती है, जिसे रुधिर थक्का कहते हैं। थक्का बहने वाले रुधिर को बन्द कर देता है। रुधिर स्कंदन के बाद कुछ पीला-सा पदार्थ रह जाता है, इसे सीरम कहते है। सीरम का थक्का नहीं बन सकता, क्योंकि इसमें फिब्रिनोजेन नहीं होता है। रुधिर में प्राय: एक प्रति स्कंदन होता है, जिसे हिपेरिन (Heparin) कहते हैं। यह प्रोथोम्बीन के उत्प्रेरण को रोकता है।
रक्त के थक्का बनने के दौरान होने वाली महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया-
थ्रोम्बोप्लास्टिन + प्रोथ्रोम्बिन + कैल्शियम = थ्रोम्बिन
थ्रोम्बिन + फाइब्रिनोजेन = फाइब्रिन
फाइब्रिन + रक्त रुधिराणु = रक्त का थक्का
नोट: रुधिर वाहिका से निकाले गए रुधिर को जमने से बचाने के लिए उसमें थोड़ा-सा ऑक्जेलेट (सोडियम अथवा पोटैशियम ऑक्जेलेट) मिलाया जाता है।
मनुष्य के रुधिर वर्ग (Human blood groups): कार्ल लैंडस्टीनर 1900 ई. में पता लगाया कि सभी मनुष्यों का रुधिर समान न होकर भिन्न-भिन्न प्रकार का होता है। इस भिन्नता का कारण रुधिर की लाल रुधिर कोशिकाओं में एक विशेष प्रकार की प्रोटीन (ग्लाइकोप्रोटीन) की उपस्थिति है, जिसे एण्टीजन कहते हैं। एण्टीजन दो प्रकार की होती हैं- (i) एण्टीजन A, (ii) एण्टीजन B,
वास्तव में अक्षर A एवं B दो विभिन्न प्रकार की एण्टीजनों को निरूपित करते हैं। लाल रुधिराणुओं में उपस्थित ग्लाइकोप्रोटीनों की उपस्थिति के आधार पर मनुष्य में चार प्रकार के रुधिर वर्ग होते हैं-
क्रम | रुधिर वर्ग | एण्टीजनों | एण्टीबॉडी |
1. | A | केवल A | केवल b |
2. | B | केवल B | केवल a |
3. | AB | A एवं B दोनों | अनुपस्थित |
4. | O | अनुपस्थित | a एवं b दोनों |
एण्टीजन एवं एण्टीबॉडी (Antigen and Antibody): जब कोई बाहरी जीव (organism) किसी व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करता है, तो वह परोक्ष अथवा अपरोक्ष रूप से कुछ प्रोटीन यौगिक का उत्पादन करता है। यह प्रोटीन यौगिक उस जाति के विशिष्ट होते हैं, जो व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करता है। शरीर में प्रवेशित इन्हीं प्रोटीनों को एण्टीजन्स कहते हैं। शरीर में इन एण्टीजन्स अणुओं के प्रकटन के प्रतिक्रिया स्वरूप ऊतकों द्वारा दूसरे प्रोटीन अणुओं का संश्लेषण होता है, जो विशेषतया एण्टीजन से संयुक्त हो जाता है अथवा उस पर अभिक्रिया करता है। शरीर में संश्लेषित इस दूसरे प्रकार के प्रोटीन को एण्टीबॉडी कहते हैं। एण्टीबॉडी श्वेत रक्त कणिकाओं में संश्लेषित गामा ग्लोब्यूलिन (Gamma globulin) प्रोटीन के रूपान्तरण के फलस्वरूप संश्लेषित होता है।
मनुष्य में रक्त आधान (Blood Transfusion in Man): मनुष्य के रुधिर वर्गों में सामान्यतः कोई भी रक्त-अभिश्लेषण (Agglutination) नहीं होता, इसका कारण यह है कि किसी भी रुधिर वर्ग में अनुरूप (Corresponding) एण्टीबॉडी एवं एन्टीजन्स उपस्थित नहीं होते अर्थात् एण्टीजन A के साथ एण्टीबॉडी a, एण्टीजन B के साथ एण्टीबॉडी b उपस्थित नहीं होते। यदि किसी रुधिर वर्ग के रक्त को किसी ऐसे रुधिर वर्ग के रक्त में मिश्रित कर दिया जाय जिसमें अनुरूप (Corresponding) एण्टीजन्स एवं एण्टीबॉडीज उपस्थित हैं, तब रक्त की लाल कोशिकाओं का अभिश्लेषण हो जाएगा। उदाहरणस्वरूप, A रुधिर वर्ग के रक्त का, B रुधिर वर्ग के रक्त में मिश्रण के फलस्वरूप रक्त कोशिकाओं का अभिश्लेषण हो जाएगा। इसमें लाल रक्त कोशिकाएँ एक-दूसरे से चिपक जाती हैं। इस प्रकार के चिपकाव के फलस्वरूप रक्तवाहिनियों में अवरोध उत्पन्न हो जाता है एवं अंततोगत्वा प्राणी की मृत्यु हो जाती है। अतः रक्त आधान में एण्टीजन एवं एण्टीबॉडी का ऐसा ताल-मेल करना चाहिए जिससे रक्त का अभिश्लेषण न हो सके।
रक्त वर्ग O के दानकर्ता को सार्वभौमिक दानकर्ता (Universal donor) कहते हैं, क्योंकि इसमें कोई एण्टीजन नहीं होता है और इसका आधान किसी भी प्राप्तकर्ता में किया जा सकता है । इसी प्रकार रक्त समूह AB को सार्वभौमिक प्राप्तकर्ता (Universal recepient) कहते हैं, क्योंकि इसमें कोई एण्टीबॉडी नहीं होता है और इस रक्त वर्ग वाले प्राप्तकर्ता के शरीर में किसी भी वर्ग के रक्त का आधान किया जा सकता है।
माता-पिता के रक्त समूह के आधार पर बच्चों में संभावित रक्त समूह | ||
माता-पिता का रक्त समूह | बच्चों में संभावित रक्त समूह | बच्चों में संभावित रक्त समूह |
O × O | O | A, B, AB |
O × A | O, A | B, AB |
O × B | O, B | A, AB |
A × AB | A, B | O, AB |
A × A | A, O | B, AB |
A × B | A, B, O, AB | कोई नहीं |
A × AB | A, B, AB | O |
B × B | B, O | A, AB |
B × AB | A, B, AB | O |
AB × AB | A, B, AB | O |
Rh-तत्व (Rh-Factor): 1940 ई० में लैंडस्टीनर और वीनर (Landsteiner and Wiener) ने रुधिर में एक अन्य प्रकार के एण्टीजन का पता लगाया। इन्होंने इस एण्टीजन की खोज रीसस (Rhesus) नामक बन्दर पर की थी, इसलिए माता-पिता के रक्त समूह के आधार पर बच्चों में इस एण्टीजन का नामकरण Rh-तत्व (Rh- Factor) किया गया। जिन व्यक्तियों के रक्त में यह तत्व पाया जाता है, उनका रक्त Rh-सहित (Rh-Positive Rh+) कहलाता है तथा जिनके रक्त में नहीं पाया जाता, उनका रक्त Rh-रहित (Rh-Negative, Rh–) कहलाता है। रक्त आधान के समय Rh-Factor की भी जाँच की जाती है। Rh+ को Rh+ का रक्त ही दिया जाता है। यदि Rh+ रक्त वर्ग का रक्त Rh– रक्त वर्ग वाले व्यक्ति को दिया जाय, तो प्रथम बार कम मात्रा होने के कारण कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा किन्तु, जब दूसरी बार इसी प्रकार रक्ताधान किया गया, तो रक्त अभिश्लेषण के कारण Rh- रक्त वर्ग वाले व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है।
एरिथ्रोब्लास्टोसिस फीटेलिस (Erythroblastosis foetalis): यदि पिता का रक्त Rh+ तथा माता का रक्त Rh– हो, तो प्रथम सन्तान सामान्य होगी लेकिन उसके बाद जन्म लेने वाले शिशु की जन्म से पहले गर्भावस्था में अथवा जन्म के तुरंत बाद मृत्यु हो जाती है।
लसीका (Lymph): लसीका एक रंगहीन द्रव है जिसमें लाल रुधिर कणिकाएँ और प्लेटलेट्स नहीं होते हैं। इसमें रक्त से कम मात्रा में कैल्सियम और फॉस्फोरस पाया जाता है। साधारणतः इसमें लिम्फोसाइट्स तैरते रहते हैं। रुधिर की अपेक्षा लसीका में कम मात्रा में पोषक पदार्थ एवं ऑक्सीजन होते हैं जबकि कार्बन डाइऑक्साइड एवं अपशिष्ट पदार्थ अपेक्षाकृत अधिक मात्रा में पाये जाते हैं। लसीका में मौजूद लिम्फोसाइट्स रोगाणुओं जैसे जीवाणुओं का भक्षण कर उन्हें नष्ट कर संक्रमण से हमारी सुरक्षा करते हैं। यह पोषक पदार्थों का परिवहन भी करता है। यह शरीर के असंक्राम्य तंत्र (Immunity system) का निर्माण करता है।