बिम्बिसार Bimbisara
बिम्बिसार मगध (दक्षिण बिहार) के हर्यक वंश का शक्तिशाली राजा था, जिसने 555–493 ई.पू. तक शासन किया| उसकी राजधानी राजगृह थी, जो उस समय पूर्वी भारत का एक शानदार शहर था| बिम्बिसार कम उम्र में ही राजा बन गया था, और उसने साम्राज्य विस्तार के लिए, कोशल नरेश प्रसेनजित की बहन महाकोशला से, वैशाली के चेटक की पुत्री चेल्लना से और मद्र देश (आधुनिक पंजाब) की राजकुमारी क्षेमा से वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किये, और पूर्व में ब्रह्मादत्त को हराकर अंग राज्य को, अपने राज्य में मिला लिया था| अब उसके राज्य में चावल की पैदावार के लिए बहुत बड़ी उपजाऊ भूमि, लौह अयस्क क्षेत्र और जंगलों से मिलने वाले प्राकृतिक संसाधन थे| पश्चिमी बिहार में गंगा के डेल्टा तक, बिम्बिसार ने इस नदी के व्यापार पर भी अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया था| बिम्बिसार ने कुशल प्रशासन और भू-राजस्व प्रणाली की शुरुआत की, जिससे उसे एक मजबूत सेना बनाने में मदद मिली| कहा जाता है की उसकी नीतियाँ फारसी सम्राट साइरस द्वितीय और डारियस प्रथम (Cyrus II and Darius I) से प्रभावित थीं| साइरस द्वितीय का साम्राज्य, 530 ई. पू. में उसकी मृत्यु से पहले, भूमध्य सागर (Mediterranean) से अफगानिस्तान (Afghanistan) तक फैला था| उसके साम्राज्य को हड़पकर 522 से 486 ई. पू तक शासन करने वाले .डारियस प्रथम ने इस साम्राज्य को नील नदी से सिन्धु नदी तक फैला दिया| बिम्बिसार निश्चित ही इन राज्यों की भव्यता से परिचित रहा होगा|
बिम्बिसार गौतम बुद्ध का समकालीन था| बिम्बिसार बुद्ध के उपदेशों से बहुत प्रभावित थे और वह उनका सबसे बड़ा आश्रयदाता भी था| बौद्ध किंवदंतियों (जातक कथाएं) में बिम्बिसार का प्रमुख स्थान है| बिम्बिसार ने संभवतः जैन धर्म के संस्थापक महावीर को भी अपना समर्थन दिया था| बिम्बिसार के महत्वाकांक्षी बेटे, अजातशत्रु, ने उसे शासन छोड़ने के लिए मजबूर किया और उसे भूखा रखकर मार डाला| जातक कथाओं के अनुसार बिम्बिसार का अपराध सिर्फ इतना था की वह बुद्ध का एक कट्टर अनुयायी था, जो अजातशत्रु को पसंद नहीं था| जैन व बौद्ध, दोनों साहित्यों में बिम्बिसार को उनके धर्म का अनुयायी बताया गया है।