मिश्रधातुएं एवं यौगिक Alloys & Compounds
धातुएं, तीन विभिन्न रूपों में मानव के काम आती हैं-
- शुद्ध धातु
- मिश्रधातु
- यौगिक
1. शुद्ध धातु: तांबा तथा एल्युमीनियम जैसी धातुए विद्युत धारा को संचरित करने के लिए प्रयुक्त होती हैं। घरेलु बर्तन तथा कारखानों की मशीनें लोहे, एलुमीनियम तथा तांबे से बनती हैं। सोने तथा चांदी का उपयोग आभूषण बनाने तथा मिठाइयों को सजाने में होता है। एलुमीनियम के पतले वर्क खाद्य पदार्थों को पैक करने में प्रयुक्त होता हैं। तरल धातु पारे का उपयोग तापमापी में किया जाता है। सोडियम, टाइटेनियम, जिर्कोनियम आदि धातुओं का उपयोग नाभिकीय ऊर्जा तथा अंतरिक्ष विज्ञान के प्रोजेक्टों में होता है। टाइटेनियम तथा इसकी मिश्र धातुओं के आकर्षक गुणों, जैसे भार के अनुपात में अधिक सुदृढ़ता, संक्षारण के लिए प्रतिरोध तथा उच्च गलनांक के कारण उनका निम्नलिखित क्षेत्रों में व्यापक पैमाने पर उपयोग किया जाता है।
मिश्र धातुयें, उनके घटक तथा उपयोग | ||
मिश्रधातु | अवयव घटक | उपयोग |
स्टील | लोहा, कार्बन | जहाजों, भवनों तथा यातायात को साधनों का निर्माण |
स्टेनलेस | लोहा, निकिल | बर्तन, खाद्य एवं दुग्ध उद्योगों के लिए |
स्टील | क्रोमियम | उपकरण |
पीतल | तांबा, जिंक | बर्तन, फिटिंग |
कांसा | तांबा, टिन | मूर्तियां, जहाज, तमगे |
टांका | सीसा, टिन | जोड़ों में टांका लगाना |
जर्मन सिल्वर | तांबा, निकिल, जिंक | बर्तन |
ड्यरेलियम | एल्युमीनियम, तांबा, मैग्नीशियम तथा लघु मात्रा में मैंगनीज | वायुयान, रसोई के सामान तथा अन्य उपकरण |
(a) अंतरिक्ष यान, (b) वायुयान ढांचे तथा इंजन (c) सेना में उपयोग के लिये साज-समान (हार्डवेयर), (d) समुद्रीय उपकरण, (e) रासायनिक रिऐक्टर तथा (f) रासायनिक उद्योग।
इसके विशेष उपयोग के कारण टाइटेनियम को रणनीतिक तत्वों के अंतर्गत वर्गीकृत किया गया है और इसीलिए यह एक महत्वपूर्ण धातु है।
2. मिश्र धातुएँ: किसी धातु के किसी अन्य धातु अथवा अधातु के साथ मिलने पर बनने वाली धातुएँ मिश्रण धातुएँ कहलाती हैं। मिश्र धातुओं के गुण, उनके घटकों के गुणों से भिन्न होते हैं जिनसे मिलकर मिश्रधातु बनी हैं। वांछित गुणों वाली मिश्रधातु बनाना भी सम्भव है।
3. यौगिक: यौगिकों के रूप में धातुएं, उन अनेक रसायनों का एक अंग हैं, जिनकी हमें दैनिक जीवन में आवश्यकता पड़ती है। कुछ महत्वपूर्ण यौगिकों का विवरण नीचे दिया गया है-
सामान्य नमक: सामान्य नमक सोडियम तथा क्लोरीन का यौगिक है। यह मुख्यत: समुद्री जल से प्राप्त किया जाता है। कुछ स्थानों पर यह नमक की चट्टनों से निकाला जाता है। सामान्य नमक को यदि खुला छोड़ दिया जाए तो यह वायु से नमी सोख लेता है। यह सामान्य नमक में मैग्नीशियम क्लोराइड की उपस्थिति के कारण होता है। मैग्नीशियम क्लोराइड प्रस्वेदी होता है अर्थात् पसीज जाता है। इसीलिए यह नमी को सीखता है। सोडियम क्लोराइड एक महत्वपूर्ण रसायन है। यह हमारे दैनिक आहार का आवश्यक अंग है। इसको उपयोगी रसायनों में परिवर्तत किया जाता सकता है जैसे कास्टिक सोडा, वाशिंग सोडा तथा बेकिंग सोडा। इस महत्वपूर्ण रसायन से हाइड्रोक्लोरिक अम्ल भी प्राप्त किया जाता है जो रसायन उद्योगों में उपयोग होता है। इसके अतिरिक्त इससे क्लोरीन भी प्राप्त होती है जो विरंजक के रूप में प्रयुक्त होती है।
वॉशिंग सोडा: वॉशिंग सोडा वास्तव में सोडियम का कार्बोनेट है, जिसका रासायनिक सूत्र NA2CO3 है। इसकी प्रकृति क्षारीय है तथा इसमें अपमार्जक के गुण हैं क्रिस्टलीय अवस्था में, इसमें क्रिस्टलन-जल होता है। वायु में खुला रखने पर क्रिस्टलों में से पानी निकल जाता है तथा वे सफेद अपारदर्शक पाउडर के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं।
Na2CO3 + 10H2O → Na2CO3H2O + 9H2O
क्रिस्टलन-जल के वायुमण्डल में मुक्त होने की इस प्रक्रिया को उत्फुल्लन कहते हैं। सोडियम कार्बोनेट, घरेलू कार्यों में सफाई के लिए उपयोग होता है। कठोर जल को मीठा जल बनाने में भी इसका उपयोग होता है। बोरेक्स, कॉस्टिक सोडा, काँच तथा जल ग्लास जैसे अनेक रसायनों में सोडियम कार्बोनेट पाउडर का भी घटक होता है।
उपयोग
- साबुन, कांच, कागज और दाहक सोडा के उत्पादन में।
- जल की स्थायी कठोरता दूर करने में।
- फोटोग्राफी में तथा,
- प्रयोगशाला में प्रतिकारक के रूप में।
जैव तंत्र में धातुयें |
जैव तंत्र के लिये कुछ धातुएँ अत्यन्त आवश्यक हैं। उदाहरण के लिए लोहा, हीमोग्लोबिन का घटक है, जो मानव तथा अन्य जन्तुओं में ऑक्सीजन का परिवहन करता है। तांबा तथा जिंक, एन्जाइमों में घटक हैं। सोडियम तथा पोटेशियम, स्नायु एवं पेशीय संकुचन की वैद्युत प्रक्रियाओं में भाग लेते हैं। हमारे शरीर के लिये धातुओं की अल्पमात्रा ही पर्याप्त है। अधिक मात्रा में उनकी उपस्थिति का विषैला प्रभाव पड़ता है। रक्ताल्पता की स्थिति में आयरन की गोलियाँ लेने की सलाह दी जाती है। किन्तु लोहे की अधिकता से लोहमया हो सकती है। यह रोग अफ्रीका के बेन्टू आदिवासियों में पाया जाता है क्योंकि वे बियर का निरथन लोहे के पात्रों में करते हैं। किसी वयस्क के शरीर में सामान्यतः तांबे की मात्रा 0.10 से 0.15 ग्राम तक होती है। यदि तांबे की मात्रा इस सीमा से बढ़ जाती है ते विल्सन रोग नामक रोग हो जाता है। इस रोग के विशेष लक्षण है- कम्पन, जोड़ों में गांठ, निगलने में कठिनाई, स्नायु असामान्यताएं इत्यादि। |
बेकिंग सोडा: बेकिंग सोडा सोडियम हाइड्रोजन कार्बोनेट है। सोडियम बाइकार्बोनेट बेकिंग पाउडरों को बनाने में उपयोग होता है। सोडियम बाइकार्बोनेट के अतिरिक्त बेकिंग पाउडरों में टारटारिक अम्ल भी होता है। गर्म करने पर सोडियम बाइकाबोंनेट अम्ल के साथ अभिक्रिया करके कार्बन डाइऑक्साइड उत्पन्न करता है जिसके कारण केक फूल जाता है और हल्का हो जाता है।
NaHCO3
चूना: यह कैल्सियम का ऑक्साइड है। यह चूने के पत्थर को भट्टी में गर्म करके प्राप्त किया जाता है।
CO3 → CaO + CO2
कैल्सियम ऑक्साइड जल के साथ सरलता से अभिक्रिया करके बुझा हुआ चूना बनाता है, जो गारा बनाने तथा सफेदी के लिए उपयोग होता है। बुझा हुआ चुना पानी में बहुत कम घुलनशील है। इसका घोल प्रयोगशालाओं में चूने के पानी की तरह उपयोग होता है। कैल्सियम ऑक्साइड सीमेन्ट तथा काँच बनाने हेतु उपयोग में आता है।
ब्लीचिंग पाउडर: ब्लीचिंग पाउडर ठोस बुझे हुए चूने में से क्लोरीन प्रवाहित करके बनाया जाता है।
Ca(OH)2 + Cl2 → CaOCl2 + H2O
वायु के सम्पर्क में आने से ब्लीचिंग पाउडर अपघटित हो जाता है और क्लोरीन मुक्त हो जाती है।
ब्लीचिंग पाउडर लांड्री में सामान्यत: विरंजन के लिए उपयोग होता है। यह कागज तथा कपड़ा उद्योगों में उपयोग होता है। यह जल को संक्रमण रहित बनाने हेतु भी उपयोग किया जाता है।
प्लास्टर ओंफ पेरिस: अर्ध जलयोजित कैल्सियम सल्फेट को सामान्यत: प्लास्टर आँफ पेरिस कहा जाता है। यह जिप्सम को गर्म करके बनता है।
[latex]2(CaSO{ H }_{ 4 }.2{ H }_{ 2 }O)\longrightarrow 2(CaSO_{ 4 }.\frac { 1 }{ 2 } { H }_{ 2 }O)+3{ H }_{ 2 }O[/latex]
प्लास्टर ऑफ पेरिस में एक विशेष गुण है। पानी की उचित मात्रा मिलाने पर यह कड़ा हो जाता है। इसका उपयोग प्रयोगशालाओं में धूप को रोकने के लिए खिड़कियों, दरवाजों तथा अन्य स्थानों के छिद्रों को सील करने में किया जाता है। इसका उपयोग मूर्तियों के लिए साँचे बनाने में भी किया जाता है। इसका उपयोग शल्य चिकित्सा में भी किया जाता है। विशेषकर जोड़ों को किसी विशेष स्थिति में बनाए रखने के लिए।
मिश्रधातु और उनके गुण
लोहा, तांबा और ऐलुमिनियम जैसी धातुओं के विभिन्न उपयोगों के बारे में हम जानते ही हैं। पीतल, और कांसा धातुओं के समांगी मिश्रण होते हैं। इन्हें मिश्रधातु भी कहते हैं। इन्हें धातुओं को गलित अवस्था में मिलाकर बनाया जाता है।
जब किसी धातु में अन्य धातु मिलाकर उसकी मिश्रधातु बनायी जाती है, तो उस धातु के मूल गुणों में परिवर्तन हो जाता है। उदाहरण के लिए, तांबा एक उपयोगी धातु है, परन्तु कोमल होने के कारण यह सिक्के तथा अन्य वस्तुएं बनाने के लिए उपयुक्त नहीं होता। इसे कठोर और संक्षारणरोधी बनाने के लिए इसमें टिन मिलाकर कांसा नामक मिश्रधातु प्राप्त कर लेते हैं। इसी प्रकार, कच्चा लोहा बहुत सस्ता और उनके कार्यों के लिए उपयोगी होता है, परन्तु यह भंगुर होता है और इस पर सरलता से जंग लग जाता हैं इसीलिए, इसमें अन्य धातुओं जैसे क्रोमियम को मिलाकर मिश्रधातु बनाई जाती है जो कठोर, प्रबल और संक्षारणरोधी होती है। लोहे में कार्बन मिलाकर विभिन्न प्रकार की स्टील बनाई जाती है। स्टील की प्रबलता तथा अन्य गुण उनमें उपस्थित कार्बन की मात्रा पर निर्भर करते हैं। लगभग 2500 ई. पू. पृथ्वी से तांबे व टिन का निष्कर्षण काफी बड़े पैमाने पर किया गया और कांसा लोगों के जीवन और कार्य में इतना महत्वपूर्ण हो गया था कि उस युग को ही कांसा युग कहा जाने लगा।
कुछ मिश्रधातु, उनका संघटन एवं उपयोग |
||
मिश्र धातु | अवयव-धातु | उपयोग |
स्टेनलेस स्टील | लोहा, क्रोमियम, निकिल | भोजन पकाने व परोसने को बर्तन, चिकित्सा के उपकरण बनाने में। |
स्टील | लोहा, कार्बन | जहाज, टैंक,रेलवे लाइन, पुल तथा यंत्रों का निर्माण। |
पीतल | तांबा, जिंक | बर्तन, मशीनों के भाग, तार, आभूषण, वाद्य यंत्र। |
कांसा | तांबा, टिन | मूर्तियां, आभूषण, सिक्के, भोजन, पकाने के बर्तन, घण्टियां, पदक। |
स्टर्लिंग सिल्वर | चांदी, तांबा | चांदी के बर्तन तथा आभूषण। |
नाइक्रोम | निकिल,लोहा, क्रोमियम तथा मैंगनीज | विद्युत तापन अवयव। |
डुरैलूमिन | तांबा,एल्युमिनियम | वायुयान के विभिन्न भागों का निर्माण |
सोल्डर | सीसा, टिन | वैद्युत संबंधन। |
एलनिको | लोहा,एल्युमिनियम, निकिल, कोबाल्ट |
चुम्बकों के निर्माण में। |
इसके पश्चात् एक अन्य महत्वपूर्ण धातु लोहे का आविष्कार हुआ। यद्यपि खुदाई में प्राप्त लोहे के आभूषणों के अवशेष अब से लगभग 4000 ई. पू. के है और गीजा के विशाल पिरामिण्डों से प्राप्त लोहे के कुछ टुकड़े लगभग 2900 ई.पू. के हैं। परन्तु, शायद लोहे का विस्तृत पैमाने पर उपयोग काफी समय के बाद आरम्भ हुआ होगा। लौह-युग को प्राय: 1200 ई.पू. से माना गया है। लोहे की विभिन्न वस्तुएं कई पुरातत्व क्षेत्रों जैसे भारत, चीन, मध्य पूर्व तथा अधिकांश सभ्यताओं में पाई गई हैं। भारत में 2000 वर्ष से भी पहले लोहे का धातुकर्म काफी उन्नत था। दिल्ली की कुतुबमीनार में स्थापित अशोक स्तम्भ गुप्तकालीन है। यह प्रसिद्ध स्तम्भ इस तथ्य का प्रमाण है कि उस समय भारत में लोगों को धातुओं के विषय में विलक्षण ज्ञान था और वे इतने दक्ष थे कि जंग न लगने वाला लोहा बनाकर उसे इतने विशाल आकार में ढाल भी सकते थे। औद्योगिक क्रांति के साथ लौह-निर्माण भी विस्तृत हुआ और अठारहवीं शताब्दि के आते-आते संसार के कई देशें में लोहा-बनाने के संयंत्र स्थापित हो गए। इसने, तदनन्तर में, लोहे की मिश्रधातुओं के विकास की दिशा प्रदान की।
ऐल्यूमिनियम एक अत्यधिक हल्की और कोमल धातु है। यह उपयोगी मिश्रधातु भी बनाती है। मैंगनीज के साथ यह मैग्नेलियम नामक एक मिश्रधातु है, जो कठोर एवं प्रबल होती है। मैग्नेलियम का उपयोग वायुयान उद्योग में वायुयानों के कुछ भागों के निर्माण में किया जाता है। इसी प्रकार, शुद्ध सोना एक कोमल धातु है। आभूषण बनाते समय शुद्ध सोने में कुछ चांदी व तांबा मिलाया जाता है जिससे वह कुछ कठोर बन जाता है। सोने की शुद्धता कैरट में मापी जाती है। शुद्ध सोना 24 कैरट का होता है। स्वर्ण आभूषण प्राय: 22 कैरट का होते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि इन आभूषणों में 22 भाग सोना व 2 भाग तांबा व चांदी होती है।
प्रत्येक मिश्रधातु में कुछ निश्चित उपयोगी गुण होते हैं। ये गुण मिश्रधातु बनाने वाले अवयवी तत्वों के मूल गुणों से भिन्न होते हैं और अवयवों के अनुपात को कम या अधिक करके इन गुणों में परिवर्तन किया जा सकता है। प्राय: मिश्रधातुएं जिन धातुओं से मिलकर बनी होती हैं, उनसे अधिक कठोर होती हैं। ये उनकी अपेक्षा अधिक संक्षारणरोधी भी होती हैं। इनके गलनांक प्रायः अवयवी धातुओं की तुलना में कम होते हैं। हमारे दैनिक जीवन में मिश्रधातुओं की एक महत्वपूर्ण भूमिका होती है। अस्पतालों में चीर-फाड़ में स्टेनलेस स्टील के बने औजार काम में आते हैं। स्टील के बने पिन तथा अन्य युक्तियां, कृल्हे की हड्डी, टखना, कोहनी, जबड़े आदि से सम्बन्धित अस्थि शल्य चिकित्सा में सफलतापूर्वक काम में लाई जाती हैं।
मिश्र धातुएं एवं उनका उपयोग |
||
मिश्र धातु | संघटन | उपयोग |
ब्रास | तांबा (60-80 प्रतिशत) + जस्ता (40-20 प्रतिशत) | बर्तन, बिजली का सामान। |
पीतल | तांबा (75-90 प्रतिशत) + टिन (25-10 प्रतिशत) | सिक्का, मूर्ति, बर्तन। |
जर्मन सिल्वर | तांबा (56 प्रतिशत) + जस्ता (24 प्रतिशत) + निकिल (2 प्रतिशत) | बर्तन, प्रतिरोधक तार। |
गन धातु | तांबा (87 प्रतिशत) + टिन ( 10 प्रतिशत) + जस्ता (3 प्रतिशत) | मशीन पुर्जे, बन्दूकें। |
कृत्रिम सोना | तांबा (95 प्रतिशत) + एल्यूमिनियम (5 प्रतिशत) | आभूषण। |
सोल्डर | सीसा (50-70 प्रतिशत) + टिन (50-30 प्रतिशत) | जोड़ने के काम में। |
नाइक्रोम | निकिल (60 प्रतिशत) + फेरस (25 प्रतिशत) + क्रोमियम ( 15 प्रतिशत) | विद्युत प्रतिरोधक |
स्टेनलेस स्टील
|
फेरस (89.4 प्रतिशत) + क्रोमियम ( 10 प्रतिशत) + मैगनीज (.35 प्रतिशत) + कार्बन (.25 प्रतिशत) |
बर्तन, सजावटी सामान। |
मिश्र धातुएँ- घटक एवं उपयोग | ||
मिश्र धातु | अवयव घटक | उपयोग |
पीतल | Cu + Zn (70% + 30%) | बर्तन बनाने में। |
काँसा | Cu + Zn (88% + 12%) | सिक्का, घंटी एवं बर्तन आदि बनाने में। |
जर्मन सिल्वर | Cu + Zn + Ni (50% + 35% + 15%) | बर्तन बनाने में। |
रोल्ड गोल्ड | Cu + Al (90% + 10%) | सस्ते आभूषण बनाने में। |
गन मेटल | Cu + Zn + Sn (88% + 10% +2%) | तोप, गेयर, बेयरिंग बनाने में। |
डेल्टा मेटल | Cu + Zn + Fe(60% + 38% + 2%) | जहाज के पंख बनाने में। |
मुंज मेटल | Cu + Zn (60% + 40%) | सिक्का बनाने में। |
डच मेटल | Cu + Zn (80% – 20%) | सस्ते आभूषण बनाने में |
मोनेल मेटल | Cu + Ni (70% – 30%) | क्षार रखने वाले बर्तन बनाने में। |
टांका | Sn + Pb (67% + 33%) | जोड़ों में टांका लगाने में। |
रोज मेटल | Bi + Pb + Sn (50% + 28% + 22%) | स्वचालित फ्यूज बनाने में |
मैगनेलियम | Al + Mg (95% + 5%) | हवाई जहाज का ढांचा बनाने में। |
ड्यूरेलुमिन | Al + Cu + Mg + Mg (94% + 3% + 2% + 1%) | बर्तन बनाने में, रसोई के समान बनाने में |
टाइप मेटल | Sn + Pb + Sb (82% + 15% +3%) | हवाई जहाज का ढांचा बनाने में। |