अहमदाबाद – इतिहास से आधुनिकता तक From History To Modern Metropolis
अहमद शाह, अहमदाबाद(Ahmedabad) सल्तनत के दूसरे शासक, ने अपनी राजधानी के रूप में सन् 1411 में भारत के पश्चिमी राज्य गुजरात में साबरमती नदी के किनारे इस शहर की स्थापना की परंतु उन्नीसवीं और बीसवीं सदी में यह शहर जैन और वैष्णव व्यापारियों के नियंत्रण में आ गया|
ऐसा माना जाता है की वर्तमान शहर एक पुराना हिंदू व्यापार केंद्र असवाल (कर्णावती) है, और इसने अब अहमदाबाद के रूप में प्राचीन गुजरात की हिंदू राजधानी अनहिलवाड़ा पाटन (अहमदाबाद से 113 किमी. पूर्वोत्तर) को प्रतिस्थापित कर दिया है| सन् 1903 में भारत सरकार के रेकॉर्ड निदेशक G.W.Forest ने अहमदाबाद को एक शक्तिशाली, सुंदर, साफ सुथरी गलियों वाला गढ़ बताया है|
यहाँ के सुल्तानों ने लंबी दूरी से संगमरमर और भवन निर्माण सामग्रियों को मँगवाया और उन्होने शानदार मस्जिदों, महलों और कब्रिस्तान का निर्माण कराया| उन्होने यहाँ के व्यापारियों, बुनकरों और कुशल कारीगरों को बढ़ावा देकर, अहमदाबाद को व्यापार और निर्माण का एक केंद्र बना दिया|
अहमदाबाद गुजरात का व्यापार और उत्पादन केंद्र बना हुआ है, यहाँ के कुशल कारीगरों ने कुछ ही समय में ब्रिटन के मैनचेस्टर को प्रतिस्पर्धा देना शुरू कर दिया| व्यापारिक और उत्पादन गतिविधियों के कारण गुजरात शहर के इतिहास में एक वंशानुगत पूंजीपति अभिजात वर्ग बनाया| अहमदाबाद में एक कॉर्पोरेट संस्कृति का विकास हो चुका है और स्वदेशी बैंकरों और फाइनेंसरों के एक वर्ग का भी उदय हुआ है| अहमदाबाद में संभवतः भारत का सबसे प्राचीन नगर निगम संगठन पाया जाता है|
मूलतः अहमदाबाद सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनैतिक रूप से और अहमदाबाद के व्यापारी समुदाय उद्योग गले लगाने के लिए आर्थिक दृष्टि से रूढ़िवादी भी बने रहे| यह परम्परागत उद्योगों में लगा रहा जो बॅंकिंग और व्यापार से ज़्यादा जोखिम भरा माना जाता रहा है| अहमदाबाद में कई पुराने हिंदू और मुस्लिम स्मारकों के होते हुए भी यहाँ की वास्तुकला स्थिर बनी रही|
अँग्रेज़ों ने सन् 1818 में मराठा शक्तियों को रौंदने के बाद यहाँ कब्जा कर लिया| तब तक, शहर का भाग्य मुगलों और मराठों के हाथों आर्थिक शोषण के हाथों और उपेक्षा के बीच झूलता रहा| जॉन एंड्रयू डनलप, जब अहमदाबाद के पहले ब्रिटिश कलेक्टर बने तब तक उन्होने पाया की शहर की अर्थव्यवस्था तबाह हो चुकी है| ईस्ट इंडिया कंपनी के अंतर्गत अँग्रेज़ों द्वारा शुरू किए गये उपायों जैसे की, करों को कम करना, हाथ करघा और हस्तशिल्प उद्योग में पूंजी में वृद्धि करना, रेलवे का विकास(1864), पश्चिमी शिक्षा संस्थानों की स्थापना और बेहतर कानून और व्यवस्था आदि, से अहमदाबाद की व्यापारिक आत्मा को फिर से जगाने में मदद मिली| परिणामस्वरूप गुजरातियों को अधिक जागरूक बनाने में भी मदद मिली और यहाँ राष्ट्रवाद का उदय हुआ तथा महात्मा गाँधी राष्ट्रीय नेता के रूप में उभरे|
अहमदाबाद ने अफ़ीम के व्यापार और जुओं से भी अच्छी आय उतन्न की| 19वीं शताब्दी तक शहर की जनसंख्या करीब 150,000 तक हो गयी थी, जो की 1818 में मात्र 80,000 थी| व्यापार की संभावनाओं क्में सुधार के साथ शहर ने पारसी, यहूदी, और ईसाइयों को भी आकर्षित किया और इसने एक वैश्विक रूप बना लिया| परंतु यहाँ मुस्लिमों की आबादी में काफ़ी कमी आई|
व्यापारिक सुधार और गुजराती उद्यमशीलता के संयोजन से गुजरात मे सन् 1858 में कताई और बुनाई कारखाने (Spinning and Weaving Mill) की स्थापना हुई अहमदाबाद एक व्यापारिक राजधानी से औद्योगिक राजधानी में बदलने लगा| सन् 1861 में जब अमेरिका में नागरिक युद्द समाप्त हुआ तब आकस्मिक रूप से भारतीय कपास की माँग बढ़ गयी और इसने भारतीय कपड़ा उद्योग को अच्छी तरह से उन्नीसवीं सदी के अंत तक स्थापित कर दिया था|
यहाँ के नव धनाढ्य व्यापारियों, वित्तीय, और मिल मालिकों ने पश्चिमी पोशाकों, अंग्रेजी शैली में बने बंगलों में काफ़ी पैसा बहाया| परंतु यहाँ के लोगों ने उच्च पाश्चात्य सिक्षा को बहुत धीरे अपनाया, फलस्वरूप मुंबई(Bombay) में विभिन्न प्रकार से कहीं ज़्यादा विकास हुआ और स्वतंत्रता के पश्चात भी यह गुजरतियों के लिए उच्च शिक्षा का केंद्र बना रहा|
इन सभी परिवर्तनो के होते हुए भी महात्मा गाँधी ने दक्षिण अफ्रीका(South Africa) लौटने के अहमदाबाद को रहने के लिए चुना और वहाँ सन् 1915 में सत्याग्रह आश्रम (जिसका नाम बदलकर बाद में उन्होने साबरमती आश्रम कर दिया) की स्थापना की| इस समय अहमदाबाद औद्योगिक परिवर्तनों के बावजूद यह शहर भारत के मध्य-कालीन शहरों और माहौल बहुत कुछ ग्रामीण परिवेश की ही तरह था, यद्यपि यहाँ की चिमानियाँ आसमान में धुआँ उगलने लगीं थी|
गाँधी ने अहमदाबाद को शायद इसलिए भी चुना क्योंकि यह शहर उस समय भारत और इसकी संस्कृति का प्रतिनिधितव भी करता था, इसके अलावा, गांधी अहमदाबाद के उपयोगितावादी और भौतिकवादी गुणों के लिए भी तैयार थे| यहाँ पर विभिन्न धर्मों, विशेषकर एक बड़े मुस्लिम वर्ग की उपस्थिति एवं आसपास के क्षेत्रों में किसानो की बड़ी आबादी जहाँ वे अपने सत्याग्रही सैनिकों की भारती कर सकते थे| गाँधी ने यहाँ के बनिया और जैन व्यापारियों से अपने स्वदेशी आंदोलन के तहत स्वदेशी (स्वदेशी माल) के अपने सिद्धांत से होने वाले मुनाफे को अपने सत्याग्रह (अहिंसात्मक प्रतिरोध) और राष्ट्रीय गौरव उत्पन्न करने के लिए प्रयोग करने के लिए तैयार कर लिया|
इन दशको में अहमदाबाद में भारत और यूरोपीय शैली की वास्तुकला भी पनपी| ले कॉर्ब्यूसियर(Le Corbusier) ने यहाँ 4 भवनो मिलमलिक संगठन(Millowners Association Building) भवन, अहमदाबाद संग्रहाले, साराभाई भवन और शोधन भवन का निर्माण कराया| ले कॉर्ब्यूसियर(Le Corbusier) वास्तव में अहमदाबाद को आधुनिक मेट्रॉपोलिस में बदलने के लिए उत्सुक थे| वास्तव में यहाँ के महापौर(Mayor) चीनुभाई चिमानभाई जो क़ि एक सम्मानित उद्योगपति कस्तूरभाई लालभाई के भतीजे थे, ने ही ले कॉर्ब्यूसियर(Le Corbusier) को यहाँ बुलाया था|| 1960 में एक अमेरिकी वास्तुकार(U.S. Architect) लुईस कान(Louis Kahn) ने हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रबंधन स्कूल(Harvard University’s School Of Management) के आधार पर यहाँ भारतीय प्रबंधन स्कूल(Indian School Of Management-IIM) का निर्माण कराया| मॅसचूसेट्स इन्स्टिट्यूट ऑफ टेक्नालजी(Massachusetts Institute of Technology) से पढ़े भारतीय वास्तुकार वास्तुकार चार्ल्स कॉरिया(Charles Correa) ने यहाँ गाँधी स्मारक संग्रहालय, बालकृष्ण दोषी और पर्यावरणीय योजना और प्रौद्योगिकी केन्द्र(Centre for Environmental Planning and Technology) का निर्माण कराया| चार्ल्स कॉरिया(Charles Correa) ने ले कॉर्ब्यूसियर(Le Corbusier ) और लुईस कान(Louis Kahn) दोनो के ही साथ काम किया|
गौतम और गिरा साराभाई जो की उद्योगपति अंबालाल साराभाई के परिवार से थे, ने यहाँ कॅलिको संग्रहालय(Calico Museum) का निर्माण कराया| बीसवीं सदी में अहमदाबाद का शहरी पुनर्जागरण औद्योगिक पूंजी से प्रेरित हुआ| ले कॉर्ब्यूसियर, कान और अन्य लोगों के यहाँ आने के बाद इसे एक क्षीण होते शहर से आधुनिक मेट्रॉपोलिस और गुजरात की राजधानी में में बदल दिया| बाद में सन् 1970 में गुजरात सरकार ने यहाँ अत्यधिक भीड़ और प्रदूषण के कारण अपनी राजधानी गाँधीनगर स्थानांतरित कर ली|