अफ्रीकी संघ African Union – AU
यह संगठन अफ्रीका महाद्वीप की सर्वाधिक महत्वपूर्ण और व्यापक क्षेत्रीय व्यवस्था है।
औपचारिक नाम: आर्गेनाइजेशन डी’ आई यूनाइटे अफ्रीकेने (ओयूए)।
मुख्यालय: अदिस अबाबा, (इथोपिया)।
सदस्यता:
अल्जीरिया | People’s Democratic Republic of Algeria | 05/25/1963 | |
अंगोला | Republic of Angola | 02/11/1979 | |
बेनिन | Republic of Benin | 05/25/1963 | 1975 तक दहोमे के नाम से जाना जाता था |
बोत्सवाना | Republic of Botswana | 10/31/1966 | |
बुर्किना फासो | Burkina Faso | 05/25/1963 | 1984 तक अपर वोल्टा के रूप में जाना जाता था| |
बुरुन्डी | Republic of Burundi | 05/25/1963 | |
कैमरून | Republic of Cameroon | 05/25/1963 | |
केप वर्डे | Republic of Cape Verde | 07/18/1975 | |
सेंट्रल अफ़्रीकन रिपब्लिक | Central African Republic | 05/25/1963 | |
चाड | Republic of Chad | 05/25/1963 | |
कोमोरोस | Union of the Comoros | 07/18/1975 | |
कांगो | Republic of the Congo | 05/25/1963 | |
आईवरी कोस्ट | Republic of Côte d’Ivoire | 05/25/1963 | 1985 तक आइवरी कोस्ट के नाम से जाना जाता था, 2010-2011 में आईवोरियन संकट के कारण निलंबित |
जिबूती | Republic of Djibouti | 06/27/1977 | |
कांगो | Democratic Republic of the Congo | 05/25/1963 | 1971-1997 तक जायरे के रूप में जाना जाता था |
मिस्र | Arab Republic of Egypt | 05/25/1963 | |
इक्वेटोरियल गिनी | Republic of Equatorial Guinea | 10/12/1968 | |
इरिट्रिया | State of Eritrea | 05/24/1993 | सोमाली इस्लामवादियों का कथित समर्थन, सोमालिया की संक्रमणकालीन संघीय सरकार का तख्ता पलट करने का प्रयास |
इथियोपिया | Federal Democratic Republic of Ethiopia | 05/25/1963 | |
गैबॉन | Gabonese Republic | 05/25/1963 | |
गाम्बिया | Republic of The Gambia | 10/01/1965 | |
घाना | Republic of Ghana | 05/25/1963 | |
गिन्नी | Republic of Guinea | 05/25/1963 | एक सैन्य तख्तापलट के बाद 23 दिसंबर 2008 निलंबित कर दिया |
गिनी-बिसाऊ | Republic of Guinea-Bissau | 11/19/1973 | |
केन्या | Republic of Kenya | 12/13/1963 | |
लेसोथो | Kingdom of Lesotho | 10/31/1966 | |
लाइबेरिया | Republic of Liberia | 05/25/1963 | |
लीबिया | Great Socialist People’s Libyan Arab Jamahiriya | 05/25/1963 | |
मेडागास्कर | Republic of Madagascar | 05/25/1963 | दिसम्बर 2001 से 10 जुलाई, 2003 तक निलंबित, एक राजनीतिक संकट के बाद 20 मार्च 2009 से निलंबित |
मलावी | Republic of Malaŵi | 07/13/1964 | |
माली | Republic of Mali | 05/25/1963 | |
मॉरिटानिया | Islamic Republic of Mauritania | 05/25/1963 | क सैन्य तख्तापलट के बाद 4 अगस्त 2005 निलंबित कर दिया। राष्ट्रपति चुनाव मार्च 2007 में आयोजित किया गया। सैन्य तख्तापलट के बाद 6 अगस्त 2008 से निलंबित |
मॉरीशस | Republic of Mauritius | 08/01/1968 | |
मोरक्को | Kingdom of Morocco | 05/25/1963 | 1984 में सदस्यता वापस ली |
मोजाम्बिक | Republic of Mozambique | 07/18/1975 | |
नामीबिया | Republic of Namibia | 06/01/1990 | |
नाइजर | Republic of Niger | 05/25/1963 | एक सैन्य तख्तापलट के बाद 8 फ़रवरी 2010 से निलंबित कर दिया |
नाइजीरिया | Federal Republic of Nigeria | 05/25/1963 | |
रवांडा | Republic of Rwanda | 05/25/1963 | |
साओ टोमे और प्रिंसिपे | Democratic Republic of São Tomé and Príncipe | 07/18/1975 | |
सेनेगल | Republic of Senegal | 05/25/1963 | |
सेशल्स | Republic of Seychelles | 06/29/1976 | |
सियरा लिओन | Republic of Sierra Leone | 05/25/1963 | |
सोमालिया | Federal Republic of Somalia | 05/25/1963 | |
दक्षिण अफ्रीका | Republic of South Africa | 06/06/1994 | |
सूडान | Republic of Sudan | 05/25/1963 | |
स्वाजीलैंड | Kingdom of Swaziland | 09/24/1968 | |
तंजानिया | United Republic of Tanzania | 01/16/1964 | टेंगानिका एवं जंजीबार 26 अप्रैल 1964 एकीकृत होकर टेंगानिका संयुक्त गणराज्य के नाम से जाने जाना लगा, जंजीबार का 1 नवम्बर 1964 को तंजानिया पुनः नामकरण किया गया। |
टोगो | Togolese Republic | 05/25/1963 | असंवैधानिक राष्ट्रपति नियुक्ति पर चिंता के बाद 25 फ़रवरी 2005 से निलंबित कर दिया, राष्ट्रपति चुनाव का 4 मई 2005 को आयोजन किया गया। |
ट्यूनीशिया | Tunisian Republic | 05/25/1963 | |
युगांडा | Republic of Uganda | 05/25/1963 | |
पश्चिमी सहारा | Sahrawi Arab Democratic Republic | 02/22/1982 | |
जाम्बिया | Republic of Zambia | 12/16/1964 | |
जिम्बाब्वे | Republic of Zimbabwe | 06/01/1980 |
उपर्युक्त 54 देशों ने 11 जुलाई, 2000 को लोमे (टोगो) में अफ्रीकी संघ गठन अधिनियम, को अपनाया। 26 अप्रैल, 2001 तक इन देशों में से 36 ने अधिनियम को अनुमोदित कर दिया था। अधिनियम 26 मई, 2001 से प्रभाव में है।
[अफ्रीकी संघ के द्वारा इरीट्रिया पर अंतरराष्ट्रीय रूप से मान्यता प्राप्त सोमालिया की सरकार को गिराने के लिए सोमाली इस्लामिस्ट को सहायता देने के प्रत्युत्तर में उस पर प्रतिबंध आरोपित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् का आह्वान किया, जिसके चलते इरीट्रिया ने नवम्बर, 2009 में अफ्रीकी संघ से अपने राजदूत को वापिस बुला लिया। गिनिया की वर्ष 2008 के सत्ता पलट के बाद निलम्बित कर दिया गया। मेडागास्कर को 2009 के बाद मालागासी राजनीतिक संकट के चलते निलम्बित कर दिया गया। 2010 के तख्ता पलट के बाद नाइजर को निलम्बित कर दिया गया।
कार्यकारी भाषाएं: यदि संभव हो ‘अफ्रीकी भाषाएं’ अंग्रेजी, फ्रेंच, अरबी तथा पुर्तगाली भाषाएं।
उद्भव एवं विकास
अफ्रीका महाद्वीप के 32 देशों के राष्ट्राध्यक्षों के द्वारा 25 मई, 1965 की इथोपिया की राजधानी आदिस अबाबा में अफ्रीकी एकता संगठन (ओएयू) की स्थापना के लिये एक घोषणा-पत्र (चार्टर) पर हस्ताक्षर किये गये। अफ्रीकी महाद्वीप के उभरते नव-स्वतंत्र राज्यों में एकता स्थापित करने के लिये एक मंच की तलाश थी। अफ्रीकी एकता संगठन की स्थापना इसी खोज का प्रतिफल था। आज अफ्रीका महाद्वीप के 54 देशों में से 53 देश इस संगठन के सदस्य हैं। एकमात्र अफ्रीकी देश जो आज ओएयू का सदस्य नहीं है, वह है— मोरक्को, जो नवंबर 1985 में इस संगठन से अलग हो गया था। मोरक्की ने 1982 में विवादित सहरावी लोकतांत्रिक गणराज्य की ओएयू की सदस्यता प्रदान करने के विरोध में यह कदम उठाया ।
अफ्रीकी एकता संगठन का गठन जिन उद्देश्यों की पूर्ति के लिये किया गया है वे हैं- अफ्रीकी राज्यों में एकता और भाईचारे को प्रोत्साहन देना; अफ्रीकी लोगों की जीवन-दशा में सुधार लाने कके लिए राज्यों के प्रयासों में समन्वय स्थापित करना तथा उन्हें और अधिक तीव्र बनाना; उनकी संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और स्वतंत्रता को अक्षुण्ण रखना; अफ्रीका से सभी प्रकार के उपनिवेशवाद का सम्मान करना, और; संयुक्त राष्ट्र चार्टर तथा सार्वभौमिक मानवाधिकार का सम्मान करते हुये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को प्रोत्साहन देना।
अफ़्रीकी एकता संगठन सदस्यों के साथ समानता, आतंरिक मामलों में हस्तेक्षप, क्षेत्रीय अखंडता को सम्मान, विवादों के शांतिपूर्ण समाधान, राजनीतिक विद्रोह को बिना शर्त निंदा और संपूर्ण अफ्रीका की प्रगति के लिये प्रतिबद्धता के सिद्धांतों पर कार्य करता है।
बहुत दिनों तक ओएयू संप्रभु राज्यों का एक ढ़ीला-ढाला संघ बना रहा। इसने कई संयुक्त परस्पर-विरोधी संधियों के परिणामस्वरूप बहुत कम संगठित कदम उठाये गये। अफ्रीकी औपनिवेशिक व्यवस्था से लड़ने के लिये सदस्य देश एक सामूहिक शक्ति गठित करने में सफल नहीं हुए। क्षेत्रीय तथा अन्य विवादों में मध्यस्थता करने तथा गृह युद्धों एवं पृथकतावादी आंदोलनों को रोकने के प्रयासों को भी कोई उल्लेखनीय सफलता नहीं मिली है, यद्यपि ओएयू घोषणा, 1964 में सदस्य देशों की स्वतंत्रता के समय में मौजूद औपनिवेशिक सीमाओं का सम्मान करने का संकल्प लिया गया। धन के अभाव में भी सदस्य देश ओएयू को मजबूत बनाने में बहुत सफल नहीं हुये हैं। फिर भी, ओएयू ने सदस्य देशों के मध्य सहयोग की भावना पैदा करने में सफलता प्राप्त की है।
अल्जीरिया-मोरक्को विवाद (1964-65) तथा सोमालिया-इथोपिया एवं केन्या-सोमालिया सीमा विवादों (1965-67) में मध्यस्थता ओएयू की प्रमुख उपलब्धियां रही हैं। ओएयू ने संयुक्त राष्ट्र संघ में एक अफ्रीकी समूह का गठन किया है। इस समूह के माध्यम से यह अपने कई अंतर्राष्ट्रीय समन्वयकारी प्रयासों का मार्ग प्रशस्त (channelling) करता है। ‘समूह-77′, जो अंकटाड (UNCTAD) के साथ विकासशील देशों के लिये एक चौगुट (caucus) के रूप में कार्य करता है, के गठन में भी ओएयू की भूमिका अग्रणी थी।
जून 1991 में वर्ष 2000 तक अफ्रीकी आर्थिक समुदाय गठित करने के लिये एक संधि पर हस्ताक्षर किए गए। 1993 में सदस्य देशों ने विवाद निषेध, प्रबंधन और समाधान तंत्र समिति की स्थापना की। ओएयू राष्ट्राध्यक्ष सभा ने अंतर-अफ्रीकी संबंधों के लिये एक आचार संहिता को भी अपनाया, जिसका उद्देश्य राजनीतिक परामर्श और सहयोग को प्रोत्साहन देना है।
ओएयू के एयू में परिवर्तन की प्रक्रिया सिर्ते (लीबिया) घोषणा, 1999, को अपनाने के साथ प्रारंभ हुई। उसके बाद जुलाई 2000 में संपन्न टोगो शिखर सम्मेलन में सदस्य देशों ने ओएयू के स्थान पर एक अफ्रीकी संघ स्थापित करने का निर्णय लिया और तद्नुसार मूलभूत अफ्रीकी संघ अधिनियम (सीएएयू) पर हस्ताक्षर किए। अधिनियम के अनुच्छेद 28 के अनुसार, ओएयू के 53 सदस्यों में से कम-से-कम 36 सदस्यों (अर्थात् दो-तिहाई) के द्वारा सीएएयू पर अनुसमर्थन मिल जाने के 30 दिन के बाद यह अधिनियम प्रभावी हो जाएगा। 26 अप्रैल, 2001 को नाइजीरिया इस अधिनियम पर हस्ताक्षर करने क्ला 36वां सदस्य बन गया । अतः 26 मई, 2001 को, अर्थात् नाइजीरिया-के-अनुसमर्थन के 30 दिन बाद, सीएएयू कै प्रभाव में आने की अंतिम कानूनी औपचारिकता पूरी हो गयी तथा अफ्रीकी संघ (एयू) अस्तित्व में आ गया।
अफ्रीकी संघ को संयुक्त राज्य अमेरिका की तर्ज पर संयुक्त राज्य अफ्रीका के गठन की प्रस्तावना के रूप में देखा जा रहा है। पूर्ण विकसित अफ्रीकी महासंघ की स्थापना अफ्रीकी देशों की एक चिरकालिक अभिलाषा है।
उद्देश्य
अफ्रीकी संघ के प्रमुख उद्देश्य हैं-
- अफ्रीकी देशों और लोगों के मध्य एकता की भावना को मजबूत करना;
- सदस्य देशों की संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और स्वतंत्रता की रक्षा करना;
- महाद्वीप के राजनीतिक और सामाजिक-आर्थिक एकीकरण में गति लाना;
- अंतरराष्ट्रीय सहयोग को प्रोत्साहित करना;
- मानवाधिकारों पर अफ्रीकी चार्टर और अन्य मानवाधिकार यंत्रों के अनुरूप लोगों के अधिकारों को प्रोत्साहित करना, तथा;
- अफ्रीकी लोगों के जीवन स्तर में सुधार लाने के लिए मानव गतिविधि के प्रत्येक क्षेत्र में सहयोग की भावना विकसित करना।
अफ्रीकी संघ इन सिद्धांतों पर आधारित है- संघ के सदस्य देशों की एकता और संप्रभुता; स्वतंत्रता के समय मौजूद सीमाओं का सम्मान, अफ्रीकी महाद्वीप के लिए सामूहिक रक्षा नीति का निर्धारण; सदस्य देशों के मध्य शक्ति के प्रयोग या शक्ति-प्रयोग की चेतावनी पर प्रतिबंध; सदस्य देशों के आंतरिक मामलों में अहस्तक्षेप; सदस्य देशों को शांति और सुरक्षा बहाल करने के लिए संघ के हस्तक्षेप की मांग करने का अधिकार, कानून का शासन और स्वच्छ प्रशासन, तथा; असंवैधानिक तरीके से सत्ता परिवर्तन पर रोक।
संरचना
ओएयू की संगठनात्मक संरचना में शासनाध्यक्ष सभा; मंत्रिपरिषद; मध्यस्थता, समाधान और विवाचन समिति, विवाद निषेध, प्रबंधन और समाधान तंत्र समिति, तथा; सामान्य सचिवालय सम्मिलित होते हैं।
ओएयू का प्रमुख राजनीतिक अंग शासनाध्यक्ष सभा है। इसकी बैठक प्रत्येक वर्ष होती है, जिसमें नीतियों को परिभाषित किया जाता है तथा ओएयू की एजेंसियों की गतिविधियों का पर्यवेक्षण होता है। सभा के निर्णयों के क्रियान्वयन का उत्तरदायित्व मंत्रिपरिषद पर होता है, जिसके सदस्य, सदस्य देशों के विदेश मंत्री होते हैं। मंत्रिपरिषद की वर्ष में दो बार बैठक होती है। सदस्य देशों के मध्य विवादों का शांतिपूर्ण समाधान सुनिश्चित करने के लिये 1964 में मध्यस्थता, समाधान और विवाचन समिति का गठन किया गया। इस समिति के सदस्यों की संख्या 21 है, जिनका चुनाव शासनाध्यक्षों की सभा के द्वारा पांच वर्षों के लिये होता है। इस समिति में किसी भी सदस्य देश का एक से अधिक सदस्य नहीं हो सकता है। सामान्य सचिवालय का प्रधान अधिकारी महासचिव होता है, जो ओएयू के पुनश्चर्या (day-to-day) कार्यों का निरीक्षण करता है। महासचिव का चुनाव आमसभा के द्वारा चार वर्षों के लिये होता है। विवाद निषेध, प्रबंधन और समाधान तंत्र समिति पर, जिसका गठन हाल में हुआ है, अफ्रीका महाद्वीप में शांति स्थापित करने का उत्तरदायित्व है।
इसके अतिरिक्त आर्थिक, सामाजिक, परिवहन और संचार; शिक्षा, विज्ञान, संस्कृति और स्वास्थ्य; रक्षा; मानवाधिकार और श्रम के क्षेत्रों में अनेक सहायक समितियों का गठन किया गया है।
कार्यकारी परिषद् विदेश व्यापार, सामाजिक सुरक्षा, खाद्य सामग्री, कृषि और संचार, सभा के प्रति उत्तरदायी रहते हुए, जैसे मामलों पर निर्णय लेते हैं और विचार विमर्श करने और अनुमोदन के लिए सभा हेतु सामग्री तैयार करती हैं। स्थायी प्रतिनिधि समिति में सदस्य देशों के पदनामित स्थायी प्रतिनिधि होते हैं, और कार्यकारी परिषद् के लिए कार्य करते हैं, जो यूरोपीय संघ में स्थायी प्रतिनिधि समिति की भूमिका के समान होता है।
पेन-अफ्रीकन पार्लियामेंट (पीएपी) अफ्रीकी संघ की सर्वोच्च विधायी निकाय बन गयी है। पीएपी मिडरेड, दक्षिण अफ्रीका में अवस्थित है। पार्लियामेंट में सभी 53 अफ्रीकी संघ के देशों के 265 निर्वाचित प्रतिनिधि होते हैं, और लोकतांत्रिक शासन की प्रक्रियाओं में लोकप्रिय एवं सभ्य समाज की भागीदारी करने का इरादा रखते हैं।
अफ्रीकी संध प्राधिकरण (एयूए) अफ्रीकी संघ का सचिवालय है, जिसमें 10 आयुक्त एवं अधीनस्थ या सहायक स्टाफ होते हैं और इसका मुख्यालय अदीस अबाबा, इथियोपिया में है। रीति एवं प्रकार में अपने यूरोपीय समकालीन, यूरोपीय आयोग, के समान यह अफ़्रीकी संघ की गतिविधियों एवं बैठकों के समन्वय एवं प्रशासन के लिए जिम्मेदार होता है।
सीएएयू अफ्रीकी संघ की संधियों की व्याख्या पर विवादों का निर्णय करने के लिए एक न्यायालय प्रस्तुत करता है। न्यायालय की स्थापना के लिए 2003 में एक प्रोटोकॉल स्वीकार किया गया जो 2009 में लागू किया गया।
अफ्रीकी मानव एवं नागरिक अधिकार आयोग, 1986 से अस्तित्व में, की स्थापना सीएएयू के चार्टर की अपेक्षा मानव एवं नागरिक अधिकार (अफ्रीकी चार्टर) के.अंतर्गत की गई। आयोग के कार्यों के पूरक के तौर पर 2006 में अफ्रीकी मानव नागरिक अधिकार न्यायालय की स्थापना की गई।
जुलाई 2002 में, अफ्रीकी संघ की सभा द्वारा अपनाए गए सीएएयू के प्रोटोकॉल के अंतर्गत लुसाका शिखर सम्मेलन (2001 में) में प्रस्तावित शांति एवं सुरक्षा परिषद् (पीएससी) की स्थापना 2004 में की गई। प्रोटोकॉल ने पीएससी को अफ्रीका में संघर्ष एवं संकट की स्थितियों के समयबद्ध एवं प्रभावी समाधान के लिए सामूहिक सुरक्षा और समय पूर्व चेतावनी प्रबंध के तौर पर परिभाषित किया। प्रोटोकॉल द्वारा पीएसी को सौंपी गयी अन्य जिम्मेदारियों में संघर्षों की रोकथाम, प्रबंधन एवं समाधान, संघर्ष पश्चात् शांति स्थापना और साझा रक्षा नीतियों का विकास शामिल हैं।
सभा द्वारा पीएससी में क्षेत्रीय आधार पर 15 सदस्य निचििचत किए जाते हैं। यह कार्यों एवं उद्देश्यों में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् के समान है।
आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिषद् एक परामर्शदात्री अंग हैं, जो संघ के सदस्य देशों के अलग-अलग सामाजिक एवं पेशेवर समूहों से बनती है।
अबुजा संधि एवं कॉस्टिट्यूटिव एक्ट दोनों ने मिलकर विशिष्टीकृत तकनीकी समितियों का मार्ग प्रशस्त किया। समितियों में अफ्रीकी मंत्री होंगे जो सभा को परामर्श देंगे। दस प्रस्तावित विषय हैं-ग्रामीण अर्थव्यवस्था एवं कृषि मामले; मौद्रिक एवं वित्तीय मामले; व्यापार, सीमाकर एवं आप्रवास; उद्योग, विज्ञान और प्रौद्योगिकी; उर्जा और प्राकृतिक संसाधन और पर्यावरण; परिवहन, संचार एवं पर्यटनः स्वास्यः श्रम, एवं सामाजिक मामले; शिक्षा, संस्कृति एवं मानव संसाधन। अफ्रीकी संघ के वित्तीय संस्थानों में अफ्रीकी केंद्रीय बैंक, अफ्रीकी मौद्रिक कोष, और अफ्रीकी निवेश बैंक शामिल हैं।
ये संस्थान अभी तक स्थापित नहीं किए जा सके हैं; हालांकि संचालन सभिति उनकी स्थापना पर विचार कर रही है। आखिरकार, अफ्रीकी संघ का उद्देश्य एक एकल मुद्रा (एफ़ो) स्थापित करना है।
गतिविधियां
अफ्रीकी संघ ने अपने जन्म से पूर्व प्रवृत्त मापदण्डों के पूरक के तौर पर और महाद्वीपीय स्तर पर मानकों की स्थापना के लिए कई नवीन मुख्य दस्तावेजों को स्वीकार किया है। इसमें अफ्रीकन यूनियन कन्वेंशन ऑन प्रोवेंशन एण्ड कॉम्बेंटिंग करप्शन (2003) और अफ्रीकन चार्टर ऑन डेमोक्रेसी, इलेक्शन एण्ड गवर्नेस (2007), न्यू पार्टनरशिप फॉर अफ्रीका डेवलपमेंट (एनईपीएडी) और इससे सम्बद्ध डेवलेरेशन ऑन डेमोक्रेसी, पोलिटिकल, इकॉनोमिक एण्ड कॉर्पोरेट गवर्नेंस शामिल हैं।
अफ्रीकी संघ ने अफ्रीका में राष्ट्रीय संघर्षों में सैनिक हस्तक्षेप द्वारा शक्ति हासिल की। अफ्रीकी संघ द्वारा सदस्य देश में प्रथम सैनिक हस्तक्षेप मई 2003 में किया जब दक्षिण अफ्रीका, इथियोपिया, मोजाम्बिक से बुरुंडी तक के सैनिकों से मिलकर बनी शांतिरक्षण सेना तैनात की गई। 1 जनवरी, 2008 को संयुक्त राष्ट्र को मिशन सौंपने से पूर्व भी अफ्रीकी संघ की सेनाएं दारफुर संघर्ष में शांति बनाए रखने के लिए सूडान में तैनात की गई थीं। अफ्रीकी संघ ने सोमालिया में भी शांतिरक्षण सेनाएं भेजीं, जिसमें युगांडा और बुरुंडी से सैनिक टुकड़ियां ली गई थीं।
मार्च 2012 में, माली में सैनिक तख्ता पलट हुआ, जब तोरेग और इस्लामी ताकतों के गठबंधन ने उत्तर को विजित कर लिया, जिसके परिणामस्वरूप इस्लामिस्ट सत्ता में आ गए। फ्रांस की सेना की मदद से सैनिक हस्तक्षेप के बाद, क्षेत्र माली की सेना के नियंत्रण में आया। स्थानीय प्राधिकारियों की पुनर्स्थापना करके, अफ्रीकी संघ ने केयरटेकर सरकार बनाने में मदद की, इसका समर्थन किया और जुलाई 2013 में माली में अध्यक्षीय चुनाव संपन्न कराए।
54 देशों के अफ्रीकी संघ का स्वर्ण जयंती शिखर सम्मेलन इथियोपिया की राजधानी अदीस अबाबा में 25-27 मई, 2013 को संपन्न हुआ। इस संगठन की स्थापना के 50 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में आयोजित स्वर्ण जयंती शिखर सम्मेलन में 54 सदस्य देशों के अलावा 10 अन्य सहयोगी राष्ट्र आमंत्रित किए गए थे। इनमें अमेरिका, यूरोपीय संघ, फ्रांस, ब्राजील, रूस, चीन, जमैका, फिलीस्तीन व संयुक्त अरब अमीरात के अतिरिक्त भारत भी शामिल था। सम्मेलन में भारतीय शिष्ट मण्डल का नेतृत्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने किया। यह शिखर सम्मेलन अफ्रीकी संघ का 21वां शिखर सम्मेलन था। इस शिखर सम्मेलन की मुख्य थीम थी-अखिल अफ्रीकावाद तथा अफ्रीकी नव-जागरण।
स्वर्ण जयंती शिखर सम्मेलन के अवसर पर 25 मई को एक 50वीं वर्षगांठ घोषणा-पत्र भी जारी किया गया। इस घोषणा-पत्र की मुख्य बातें निम्नलिखित हैं-
- अफ्रीकी नेताओं ने अखिल अफ्रीकावाद के आदर्श में प्रतिबद्धता व्यक्त की। साथ ही उन्होंने विकास के जन-केन्द्रित दृष्टिकोण को अपनाने पर जोर दिया। जिसमें राष्ट्रों की सम्प्रभुता तथा क्षेत्रीय अखण्डता का ध्यान रखा जाएगा। घोषणा-पत्र के अनुसार अफ्रीकी संघ की सभी नीतियों व कार्यक्रमों में अखिल अफ्रीकावाद के सिद्धांतों को शामिल किया जाएगा, जिससे अफ्रीकी नव-जागरण के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके।
- घोषणा-पत्र में कहा गया है कि अफ्रीकी संघ का अंतिम उद्देश्य एक एकीकृत अफ्रीकी समुदाय का निर्माण करना है। साथ ही इस संघ ने अपनी नीतियों व कार्यक्रमों में विधि के शासन, लोकतंत्र, लैगिंक समानता तथा महिलाओं और युवाओं के सशक्तिकरण पर जोर दिया।
- अफ्रीका के सामाजिक व आर्थिक विकास के साथ-साथ गरीबी व महामारी के निवारण, पयविरण के संरक्षण तथा समेकित विकास पर बल दिया गया।
- घोषणा-पत्र में संघर्ष मुक्त अफ्रीका के लक्ष्य को प्राप्त करने पर जोर दिया गया, जिसमें अफ्रीकी महाद्वीप को सिविल युद्ध तथा हिंसक संघर्षों से मुक्त किया जाएगा।
- घोषणा-पत्र में इस बात पर विशेष बल दिया कि अफ्रीका के लोग ही अफ्रीका के मामलों और अपनी समस्याओं के समाधान में अहम् भूमिका निभाएंगे तथा विकास की सम्पूर्ण प्रक्रिया का स्वामित्व अफ्रीकी जनता के हाथ में होगा।
ध्यातव्य है कि अफ्रीका संघ ने अफ्रीका में राजनीतिक स्थिरता तथा सिविल युद्धों में भी सकारात्मक भूमिका निभाई है। इसका अंतिम उद्देश्य अफ्रीका का आर्थिक एकीकरण व विकास है। यह संगठन पहले के संगठन की तुलना में अधिक सक्रिय है तथा इसके उद्देश्य अधिक व्यापक हैं। इसकी चुनौतियां भी कम नहीं हैं, लेकिन वैश्विक समुदाय के सकारात्मक दृष्टिकोण के चलते अफ्रीकी संघ धीरे-धीरे ही सही, लेकिन अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने की दिशा में ठोस कदम उठा रहा है।
अबुजा +12 विशेष शिखर सम्मेलनः अफ्रीकी संघ का एचआईवी/एड्स, टी.वी. और मलेरिया पर अबुजा +12 विशेष शिखर सम्मेलन 12-16 जुलाई, 2013 की नाइजीरिया की राजधानी अबुजा में संपन्न हुआ। इस सम्मेलन का थीम था- एचआईवी/एड्स, टी.बी. और मलेरिया स्वामित्व, जवाबदेही और स्थिरता, अफ्रीका में प्रतिक्रियाः अतीत, वर्तमान और भविष्य। यह सम्मेलन वर्ष 2030 तक अफ्रीका से एचआईवी/एड्स, टी.बी. और मलेरिया के उन्मूलन की दृढ़ प्रतिबद्धता के साथ समाप्त हुआ। वर्ष 2000 के बाद एड्स, मलेरिया और टी.बी. के खिलाफ लड़ाई में हुई प्रगति एवं स्वास्थ्य प्रणालियों की सुदृढ़ता पर अफ्रीकी संघ के राज्यों एवं सरकार के प्रमुखों द्वारा संतोष व्यक्त किया गया। यह कहा गया कि इससे लोगों के जीवन को बचाया जा सका, उत्पादकता को बढ़ाया गया और जीवन-स्तर की गुणवत्ता में सुधार किया गया।
अबुजा घोषणा-पत्र अफ्रीकी राष्ट्रों के लिए स्वास्थ्य के क्षेत्र में मील का पत्थर है। अबुजा में अफ्रीकी संघ के वर्ष 2000 के शिखर सम्मेलन के दौरान एड्स, मलेरिया और टी.बी. जैसी महामारी से लड़ने और अफ्रीकी स्वास्थ्य प्रणाली को मजबूत करने की प्रतिबद्धता व्यक्त की गई थी।
इस सम्मेलन में इन रोगों में कमी करने और उत्पादकता बढ़ाते हुए जीवन की गुणवत्ता में सुधार की घोषणा की गई थी। अबुजा सम्मेलन के दौरान पहली बार अफ्रीकी महादेश के लिए एड्स को एक महामारी घोषित किया गया था। अबुजा घोषणा-पत्र में यह कहा गया था कि हस्ताक्षरकर्ता राष्ट्र वर्ष 2015 तक अपने सकल घरेलू उत्पाद का 15 प्रतिशत लोक स्वास्थ्य पर खर्च करेंगे, साथ ही स्वास्थ्य से संबंधित सभी करों को दूर करने का वादा भी किया गया था। टैरिफ और अन्य आर्थिक बाधाएं, जो एड्स के प्रति आवश्यक कार्रवाई को बाधित करते हैं, उन्हें दूर करने की बात की गई थी। टीके के विकास, चिकित्सा वस्तुओं और प्रौद्योगिकियों की उपलब्धता सुनिश्चित करने की बात भी सम्मेलन में कही गई थी।