भारत का संविधान – भाग 4 राज्य की नीति के निदेशक तत्त्व
36. परिभाषा —इस भाग में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, “राज्य” का वही अर्थ है जो भाग 3 में है ।
37. इस भाग में अंतर्विष्ट तत्त्वों का लागू होना–इस भाग में अंतर्विष्ट उपबंध किसी न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय नहीं होंगे किंतु फिर भी इनमें अधिकथित तत्त्व देश के शासन में मूलभूत हैं और विधि बनाने में इन तत्त्वों को लागू करना राज्य का कर्तव्य होगा ।
38. राज्य लोक कल्याण की अभिवॄद्धिके लिए सामाजिक वयवस्था बनाएगा –[1][(1)]राज्य ऐसी सामाजिक वयवस्था की, जिसमें सामाजिक, आार्थिक और राजनैतिक न्याय राष्ट्रीय जीवन की सभी संस्थाओं को अनुप्राणित करे, भरसक प्रभावी रूप में स्थापना और संरक्षण करके लोक कल्याण की अभिवॄद्धि का प्रयास करेगा ।
[2][(2) राज्य, विशिष्टतया, आय की असमानताओं को कम करने का प्रयास करेगा और न केवल व्यष्टियों के बीच बल्कि विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले और विभिन्न व्यवसायों में लगे हुए लोगों के समूहों के बीच भी प्रतिष्ठा, सुविधाओं और अवसरों की असमानता समाप्त करने का प्रयास करेगा ।]
39. राज्य द्वारा अनुसरणीय कुछ नीति तत्त्व–राज्य अपनी नीति का, विशिष्टया, इस प्रकार संचालन करेगा कि सुनिाश्चित रूप से–
(क) पुरुष और स्त्री सभी नागरिकों को समान रूप से जीविका के पर्याप्त साधन प्राप्त करने का अधिकार हो ;
(ख) समुदाय के भौतिक संसाधनों का स्वामित्व और नियंत्रण इस प्रकार बंटा हो जिससे सामूहिक हित का सर्वोत्तम रूप से साधन हो ;
(ग) आार्थिक वयवस्था इस प्रकार चले जिससे धन और उत्पादन-साधनों का सर्व साधारण के लिए अहितकारी संक्रेंद्रण न हो ;
(घ) पुरुषों और स्त्रियों दोनों का समान कार्य के लिए समान वेतन हो ;
(ङ) पुरुष और स्त्री कर्मकारों के स्वास्थ्य और शक्ति का तथा बालकों की सुकुमार अवस्था का दुरुपयोग न हो और आार्थिक आवश्यकता से विवश होकर नागरिकों को ऐसे रोजगारों में न जाना पड़े जो उनकी आयु या शक्ति के अनुकूल न हों ;
[3][(च) बालकों को स्वतंत्र और गरिमामय वातावरण में स्वस्थ विकास के अवसर और सुविधाएं दी जाएं और बालकों
और अल्पवय व्यक्तियों की शोषण से तथा नैतिक और आार्थिक परित्याग से रक्षा की जाए ।]
[4][39क. समान न्याय और निःशुल्क विधिक सहायता–राज्य यह सुनिाश्चित करेगा कि विधिक तंत्र इस प्रकार काम करे कि समान अवसर के आधार पर न्याय सुलभ हो और वह, विशिष्टया , यह सुनिाश्चित करने के लिए कि आार्थिक या किसी अन्य निर्योग्यता के कारण कोई नागरिक न्याय प्राप्त करने के अवसर से वंचित न रह जाए उपयुक्त विधान या स्कीम द्वारा या किसी अन्य रीति से निःशुल्क विधिक सहायता की वयवस्था करेगा ।
40. ग्राम पंचायतों का संगठन–राज्य ग्राम पंचायतों का संगठन करने के लिए कदम उठाएगा और उनको ऐसी शक्तियां और प्राधिकार प्रदान करेगा जो उन्हें स्वायत्त शासन की इकाइयों के रूप में कार्य करने योग्य बनाने के लिए आवश्यक हों ।
41. कुछ दशाओं में काम, शिक्षा और लोक सहायता पाने का अधिकार–राज्य अपनी आार्थिक सामर्थ्य और विकास की सीमाओं के भीतर, काम फाने के, शिक्षा फाने के और बेकारी, बुढ़ापा, बीमारी और निःशक्तता तथा अन्य अनर्ह अभाव की दशाओं में लोक सहायता पाने के अधिकार को प्राप्त कराने का प्रभावी उपबंध करेगा ।
42. काम की न्यायसंगत और मानवोचित दशाओं का तथा प्रसूति सहायता का उपबंध–राज्य काम की न्यायसंगत और मानवोचित दशाओं को सुनिाश्चित करने के लिए और प्रसूति सहायता के लिए उपबंध करेगा ।
43. कर्मकारों के लिए निर्वाह मजदूरी आदि–राज्य, उपयुक्त विधान या आार्थिक संगठन द्वारा या किसी अन्य रति से कॄषिके, उद्योग के या अन्य प्रकारके सभी कर्मकारों को काम, निर्वाह मजदूरी, शिष्ट जीवनस्तर और अवकाश का संफूर्ण उपभोग सुनिाश्चित करने वाली काम की दशाएं तथा सामाजिक और सांस्कॄतिक अवसर प्राप्त कराने का प्रयास करेगा और विशिष्टया ग्रामों में कुटीर उद्योगों को वैयक्तिक या सहकारी आधार पर बढ़ाने का प्रयास करेगा ।
[5][43क. उद्योगों के प्रबंध में कर्मकारों का भाग लेना–राज्य किसी उद्योग में लगे हुए उपक्रमों, स्थापनों या अन्य संगठनों के प्रबंध में कर्मकारों का भाग लेना सुनिाश्चित करने के लिए उपयुक्त विधान द्वारा या किसी अन्य रीति से कदम उठाऋगा ।]
44. नागरिकों के लिए एक समान सिविल संहिता–राज्य, भारत के समस्त राज्यक्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान सिविल संहिता प्राप्त कराने का प्रयास करेगा ।
[6]45. बालकों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का उपबंध–राज्य, इस संविधान के प्रारंभ से दस वर्ष की अवधि के भीतर सभी बालकों को चौदह वर्ष की आयु पूरी करने तक, निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा देने के लिए उपबंध करने का प्रयास करेगा ।
46. अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य दुर्बल वर्गों के शिक्षा और अर्थ संबंधी हितों की अभिवॄद्धि–राज्य, जनता के दुर्बल वर्गों के, विशिष्टया, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के शिक्षा और अर्थ संबंधी हितों की विशेष सावधानी से अभिवॄद्धि करेगा और सामाजिक अन्याय और सभी प्रकार के शोषण से उसकी संरक्षा करेगा ।
47. पोषाहार स्तर और जीवन स्तर को ऊंचा करने तथा लोक स्वास्थ्य का सुधार करने का राज्य का कर्तव्य–राज्य, अपने लोगों के पोषाहार स्तर और जीवन स्तर को ऊंचा करने और लोक स्वास्थ्य के सुधार को अपने प्राथमिक कर्तव्यों में मानेगा और राज्य, विशिष्टया, मादक पेयों और स्वास्थ्य के लिए हानिकर औषधियों के, औषधीय प्रयोजनों से भिन्न, उपभोग का प्रतिषेध करने का प्रयास करेगा ।
48. कॄषि और पशुफालन का संगठन–राज्य, कॄषि और पशुफालन को आधुनिक और वैज्ञानिक प्रणालियों से संगठित करने का प्रयास करेगा और विशिष्टया गायों और बछड़ो तथा अन्य दुधारू और वाहक पशुओं की नस्लों के परिरक्षण और सुधार के लिए और उनके वध का प्रतिषेध करने के लिए कदम उठाएगा ।
[7][48क. पर्यावरण का संरक्षण तथा संवर्धन और वन तथा वन्य जीवों की रक्षा–राज्य, देश के पर्यावरण के संरक्षण तथा संवर्धन का और वन तथा वन्य जीवों की रक्षा करने का प्रयास करेगा ।]
49. राष्ट्रीय महत्व के संस्मारकों, स्थानों और वस्तुओं का संरक्षण—[8][संसद द्वारा बनाई गई विधि द्वारा या उसके अधीन] राष्ट्रीय महत्व वाले 4[घोषित किए गए] कलात्मक या ऐतिहासिक अभिरुचि वाले प्रत्येक संस्मारक या स्थान या वस्तु का, यथास्थिति, लुंठन, विरूफण, विनाश, अपसारण, व्ययन या निर्यात से संरक्षण करना राज्य की बाध्यता होगी ।
50. कार्यपालिका से न्यायफालिका का पृथकक़्करण–राज्य की लोक सेवाओं में, न्यायपालिका को कार्यपालिका से पृथक करने के लिए राज्य कदम उठाएगा।
51. अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की अभिवॄद्धि–राज्य,–
(क) अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की अभिवॄद्धि का,
(ख) राष्ट्रों के बीच न्यायसंगत और सम्मानपूर्ण संबंधों को बनाए रखने का,
(ग) संगठित लोगों के एक दूसरे से व्यवहारों में अंतरराष्ट्रीय विधि और संधि-बाध्यताओं के प्रति आदर बढ़ाने का, और
(घ) अंतरराष्ट्रीय विवादों के माध्यस्थम् द्वारा निपटारे के लिए प्रोत्साहन देने का, प्रयास करेगा ।
[1] संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 9 द्वारा (20-6-1979 से) अनुच्छेद 38 को उसके खंड (1) के रूप में पुनःसंख्यांकित किया गया ।
[2] संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 9 द्वारा (20-6-1979 से) अंतःस्थापित ।
[3] संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 7 द्वारा (3-1-1977 से) खंड (च) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
[4] संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 8 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्थापित ।
[5] संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 9 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्थापित ।
[6] संविधान (छियासीवां संशोधन) अधिनियम, 2002 की धारा 3 के प्रवार्तित होने पर अनुच्छेद 45 के स्थान पर निम्नलिखित प्रतिस्थापित किया जाएगा
“45. छह वर्ष से कम आयु के बालकों के लिए प्रारंभिक बाल्यावस्था देख-रेख और शिक्षा का उपबंध–राज्य सभी बालकों के लिए छह वर्ष की आयु पूरी करने तक, प्रारंभिक बाल्यावस्था देख-रेख और शिक्षा देने के लिए उपबंध करने का प्रयास करेगा ।”।
[7] संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 10 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्थापित ।
[8] संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 27 द्वारा “संसद् द्वारा विधि द्वारा घोषित” के स्थान फर प्रतिस्थापित ।