विजयनगर साम्राज्य Vijayanagar Empire
राजनैतिक इतिहास
मुहम्मद तुगलक के काल में विजय नगर साम्राज्य की स्थापना हुई थी। विजयनगर का प्रारम्भिक इतिहास अभी भी अंधकार से आवृत्त है। उस विशाल राजनगर के उद्गम सम्बन्धी अनेक परम्परागत वर्णनों का निर्देश करते हुए सेवेल कहता है कि- सम्भवत: सर्वाधिक तर्कसंगत वर्णन हिन्दू पौराणिक कथाओं के सामान्य तात्पर्य और ऐतिहासिक तथ्य की निश्चित बातों के मिश्रण में से निकाला जा सकता है। वह उस परम्परागत कथा को स्वीकार करता है जिसके मतानुसार संगम के पाँच पुत्रों ने, जिनमें हरिहर और बुक्का सर्वाधिक प्रसिद्ध थे, तुंगभद्रा के उत्तरी तट पर स्थित अनेगुंडी दुर्ग के सम्मुख उसके दक्षिणी तट पर विजयनगर शहर एवं राज्य की नींव डाली थी। अपने इस साहसिक कार्य में उन्हें तत्कालीन प्रसिद्ध ब्राह्मण साधु एवं विद्वान् माधव विद्यारण्य तथा उनके भाई वेदों के प्रसिद्ध भाष्यकार सायण से प्रेरणा मिली। इस परम्परागत कथा को कुछ बाद की मिथ्या रचना मानते हैं, जिसका प्रचार (उनके मतानुसार) सोलहवीं शताब्दी में हुआ। रेवेरेंड फादर हेरास के मतानुसार, अनेगुडी नगर की, जो विजयनगर साम्राज्य का उत्पत्ति-स्थान था, नींव होयसल राजा वीर बल्लाल तृतीय ने डाली थी तथा उसी राज-परिवार का एक निकट सम्बन्धी हरिहर सीमा-प्रदेश का अधिकारी था एवं अपना मुख्यालय वहीं रखे हुए था। एक दूसरे लेखक के मतानुसार, उस नगर के दुर्गीकरण (किलाबन्दी) को, जो बाद में विजयनगर हो गया, महान् होयशल शासक वीर बल्लाल तृतीय का सुविचारित काम ही समझा जाना चाहिए। इसकी स्थापना मुहम्मद तुगलक की सेना द्वारा कम्पिली के विनाश के शीघ्र पश्चात् एवं होयशल राजधानी द्वारसमुद्र के आक्रमण के तुरत बाद हुई।
हाल में होयसल उद्गम के सिद्धान्त को एक लेखक की चुनौती मिली है, जिसने विभिन्न स्रोतों से इस प्रश्न पर विचार करते हुए तर्क किया है कि हरिहर और बुक्का ने उस नगर की स्थापना की तथा उन्होंने माधव विद्यारण्य की सलाह पर अपने आचरण का दिशा-निरूपण किया, जिनका वर्णन हरिहर द्वितीय के एक अभिलेख में सर्वोच्च प्रकाश अवतार के रूप में हुआ है। कतिपय अधिकारी विद्वानों के मतानुसार, वे पाँचों भाई वारंगल के काकतीय राज्य में सम्मिलित तेलुगु देश के भगोड़े थे, जिसकी राजधानी 1424 ई. में मुसलमानों द्वारा अधिकृत कर ली गयी थी। इन विरोधी सम्मतियों के बीच इतना ही कहा जा सकता है कि हरिहर और बुक्का तथा उनके तीन भाईयों ने उत्तर के आक्रमणकारियों की प्रगति के विरुद्ध प्रतिरोध संगठित करने के लिए गंभीर प्रयत्न किया। भारत के इतिहास में विजयनगर-साम्राज्य का महत्त्व यह है कि लगभग तीन शताब्दियों तक वह देश के प्राचीनतर धर्म एवं संस्कृति का साथ देता रहा और उन्हें नये विचारों एवं शक्तियों के प्रचंड आक्रमण द्वारा निगले जाने से बचा लिया। साथ ही, उसने बहमनी राज्य और उसकी शाखाओं को सदैव दक्षिण में फंसाये रखा तथा इस प्रकार अप्रत्यक्ष रूप से उत्तर में उनके प्रभाव के विस्तार को रोका, जहाँ दिल्ली सल्तनत की शक्ति पहले से ही अत्यन्त दुर्बल हो चुकी थी। संक्षेप में, यह विजयनगर ही था, जिसके पास तुर्क-अफगान सल्तनत के पतन तथा महत्वपूर्ण देशी शक्तियों के अभ्युदय के कारण, तत्कालीन राजनैतिक परिस्थिति की कुंजी थी।